04-Jul-2015 07:39 AM
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मध्यप्रदेश में इस समय प्रमोटी और आरआर का युद्ध भीषण दौर में चल रहा है। इस मिथक को गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के 1991 बैच के आईएएस अफसर एसके मिश्रा ने तोड़ दिया। मध्यप्रदेश

बने हुए 54 वर्षों में अभी तक कोई भी प्रमोटी या गैर राज्य प्रशासनिक सेवा का अफसर प्रमुख सचिव नहीं बन पाया था। परंतु इस बैच के छह अफसर प्रमुख सचिव बन गए। इनमें से दो तो गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के थे बाकी 4 राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर थे। अब उसके बाद राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बने 1992 बैच के अफसर राह देख रहे हैं कि उनके ऊपर कब शिव की नजर पड़ेगी। 1992 बैच में 14 अफसरों की टोली है। यह जंग अब सीधे-सीधे आरआर और प्रमोटी में होने जा रही है। क्योंकि इस बैच में भी 7 अफसर प्रमोटी है और दो अफसर की जांच चल रही है। परंतु उक्त बैच के अफसर चाहते हैं कि इस वर्ष उनकी पीएस के लिए डीपीसी हो जाए।
जल्द ही डीपीसी होगी
राज्य प्रशासनिक सेवा को भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए अफसरों की डीपीसी जल्दी ही होने वाली है। इन्हीं के साथ-साथ गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की डीपीसी इस बार ज्यादा जोर शोर कर रही है। पिछले चार-पांच वर्षों से गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर आईएएस नहीं बन पाए हैं। बार-बार इंतजार करने के बाद एक-दो अफसर तो उम्रदराज हो गए हैं अब आईएएस के लिए आवेदन नहीं दे सकते।
ट्रांसफर उद्योग में लेनदेन की शिकायत
दो वर्ष बाद सरकार ने मंत्रियों को ट्रांसफर करने की छूट क्या दे डाली बस वह तो टूट पड़ेे। भाजपा राज में मंत्री से ज्यादा संत्री पावरफुल है। सारा लेनदेन संत्री के माध्यम से हुआ है। हर मंंत्री के पास पुराना अनुभवी एक संत्री है। जो कि कांग्रेस के राज में भी मंत्रियों को चांदी कटवा चुका है। अनुभव का लाभ लेते हुए मंत्रियों ने भी अपने-अपने लिए ऐसे संत्रियों को चुना है जिन्हें इन सब कामों में दक्षता हासिल हो।
नई सरकार के चयन के बाद ही आरएसएस से लेकर भाजपा के अनेक संगठनों ने बागी संत्रियों को हटाने की मांग की थी और उनकी नियुक्ति भी सीएम सचिवालय से हुई थी जिसे तात्कालीन मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के छन्ने से होकर गुजरना पड़ा था परंतु न तो मुख्यमंत्री की चली और न ही उनके पीएस की। मंंत्रियों ने वही किया जो उन्हें पसंद था। इसी का लाभ उन्हें इस तबादला उद्योग में मिला है और लेनदेन की शिकायत मुख्यमंत्री से लेकर नागपुर तक पहुंच चुकी है।
सचिव के लिए सिर्फ दो अफसरों का इन्पेनलमेंट
भारत सरकार ने इस वर्ष मध्यप्रदेश को पिछड़ा राज्य मान लिया है। उन्होंने सिर्फ 1982 बैच के अजयनाथ को सचिव के समकक्ष माना है वहीं जितेन्द्र शंकर माथुर का सचिव के लिए इम्पेनलमेंट हो गया है। राज्य सरकार उन्हें कहीं प्रदेश का मुख्य सचिव बनाने का आफर तो नहीं दे रही है। गलियारों से खबर मिल रही है कि 2018 में सेवानिवृत्त होने वाले अफसर को 2016 में प्रदेश के मुख्य सचिव की कमान दी जा सकती है। अगर वहीं 1985 बैच के काबिल अफसर रजनीश वैश्य, राधेश्याम जुलानिया, दीपक खांडेकर, प्रभांशु कमल, इकबाल सिंह बैस, अनिल श्रीवास्तव, केके सिंह, विनोद चंद सेमवाल को इस पद के लिए काबिल नहीं समझा। गोपाल रेड्डी, एमके सिंह की जांच संस्थित होने के कारण उनका इम्पेनलमेंट नहीं हुआ है। वहीं इकबाल सिंह भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति अवधि के बीच में आ जाने के कारण उनको भी अतिरिक्त सचिव का लाभ नहीं मिल पाया है।
एसीएस के लिए दौड़ शुरू
1984 बैच के एमएम उपाध्याय, डी सिंघई, अजीता वाजपेयी पांडेय और अजयनाथ इसी वर्ष रिटायर हो जाएंगे। उपाध्याय जुलाई में तो सिंघई और अजीत वाजपेयी पांडेय अगस्त में वहीं अजयनाथ सितंबर में सेवानिवृत्त होंगे। उपाध्याय की जगह पर राज किशोर स्वाई एक महीनेे के लिए प्रदेश के अपर मुख्य सचिव होंगे। वहीं सिंघई की जगह एपी श्रीवास्तव और अजीता वाजपेयी पांडेय की जगह पीसी मीणा और अजयनाथ की जगह दिल्ली से लौटकर पीडी मीणा अपर मुख्य सचिव होंगे। कहीं 1985 बैच के रजनीश बैस का तुक्का जब ही लग सकता है जब पीडी मीणा भारत सरकार से वापस प्रदेश में न लौटे। वैसे अभी 12 पद हैं। 11 अतिरिक्त मुख्य सचिव और मुख्य सचिव। 1985 बैच के काबिल अफसरों को अभी एसीएस बनने में देर है। वहीं सूत्र बताते हैं कि अनुराग जैन जो भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं उनकी शीघ्र ही प्रदेश में वापसी हो रही है।
-कुमार राजेंद्र