टॉपर्स की भूमि मध्यप्रदेश
04-Jul-2015 07:32 AM 1234782

अब वे दिन लद गए जब पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से आईआईटी जैसी परीक्षाओं के टॉपर्स आते थे। अब तो टॉपर्स का गुरुत्व मध्यप्रदेश पर केंद्रित हो गया है। जेईई की टॉपर्स सूची में पहले 3 स्थान पर मध्यप्रदेश के होनहार छात्र विराजमान हैं, लड़कियों की सूची में भी मध्यप्रदेश की बेटी ने स्थान बनाया है और उधर विकलांग वर्ग में भी मध्यप्रदेश ने टॉप किया है। पहली बार ऐसा हुआ, जब 3 कैटेगरी में किसी एक प्रदेश से टॉपर्स निकले और साथ ही सामान्य कैटेगरी के प्रथम तीन स्थान पर किसी एक प्रदेश के छात्रों ने बाजी मारी।
व्यापमं घोटाले के राक्षसी अन्याय से जूझ रहे मध्यप्रदेश में इन नतीजों ने उन दुखभरे चेहरों को भी मुस्कुराने पर विवश कर दिया, जिनका हक व्यापमं के दानवों ने छीन लिया था। मध्यप्रदेश में व्यापमं की अमानवीयता के दर्द से निकला यह दरिया बहुतों को खुशी दे गया। न्याय होता अवश्य है भले ही देर से हो। इन परिणामों ने यह सिद्ध किया कि मध्यप्रदेश की भूमि में होनहार लालों को जन्म देने का सामथ्र्य है। यह बात अलग है कि कुछ कायर, अन्यायप्रिय और डकैत किस्म के लोग व्यापमं जैसे घोटाले करके ऐसे होनहारों का हक मार लिया करते हैं।
उद्योग नगरी इंदौर अब शिक्षा की नगरी भी बनती जा रही है। महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने शिक्षा के लिए जो अभूतपूर्व प्रयास किए उनका सार्थक परिणाम अब सामने आ रहा है। पूरे भारत में जेईई एडवांस में टॉप करने वाले सतवत जगनानी सतना के रहने वाले हैं, किंतु इंदौर से भी उनके तार जुड़े हुए हैं। वहीं अखिल भारतीय स्तर पर दूसरा स्थान पाने वाले जनक अग्रवाल और तीसरा स्थान पाने वाले मुकेश पारीक इंदौर के ही निवासी हैं। इंदौर से 25 किलोमीटर दूर महू में रहने वाली कृति तिवारी ने लड़कियों के बीच अखिल भारतीय स्तर पर टॉप किया है। वैसे उसकी रैंक 47वीं है। सामान्य नि:शक्त कोटे से टॉप करने वाले शांतनु दुबे भी इंदौर के ही हैं।
सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले इन होनहारों की कहानी उनकी लगन और मेहनत को बयां करती है। चाहे वह अपनी पढ़ाई के लिए वर्षों तक टी.वी. से दूर रहने वाले सतना के सतवत हों, या फिर 25 किलोमीटर प्रतिदिन बस की सवारी कर इंदौर में कोचिंग लेने वाली कृति तिवारी हों। लक्ष्य के प्रति जुटे रहना और सफलता का जुनून इनका मूल मंत्र है। इन अद्भुत दिमागों ने इस सत्य को स्थापित किया कि विद्या संसाधनों की मोहताज नहीं है। एक बार लक्ष्मी भले ही अन्याय कर दे किंतु सरस्वती कभी अन्याय नहीं करती, वह लगनशील और सुयोग्य को ही मिला करती है। आईआईटी का सपना संजोए इन छात्रों ने पहले ही प्रयास में बाजी मार ली। सतवत 1 लाख 17 हजार से ज्यादा परीक्षार्थियों को पीछे छोड़कर सर्वोच्च स्थान पर आए हैं। सतवत के माता-पिता दोनों डॉक्टर हैं, इसलिए पढ़ाई का माहौल तो घर में था ही लेकिन वे भी अपने पुत्र को डॉक्टर बनते देखना चाहते थे किंतु सतवत की लगन तो मैथ्स में थी। सतवत मैथ्स का जादूगर है। कम्प्यूटर से भी तेज कुशाग्र बुद्धि के मालिक सतवत चुटकियों में कठिन से कठिन मैथ्स के सवालों को हल कर देते हैं। न पेन की जरूरत न पेपर की जरूरत। 504 में से 469 अंक इसी विलक्षणता का परिणाम है। कुछ ऐसी ही कहानी जनक अग्रवाल की है जिसने पढ़ाई के लिए समय का प्रबंधन कुछ इस तरह किया कि मेरिट लिस्ट में दूसरा स्थान बना लिया। रात के शांत वातावरण में तल्लीन होकर एकाग्रचित्त पढऩे वाले इस शांत और मृदुल छात्र ने गणित के कठिन से कठिन सवाल मिनटों में हल कर लिए। मुकेश पारीक घंटों पढऩे में माहिर हैं। उनकी पृष्ठभूमि व्यापारिक है। माता-पिता संसाधन तो जुटा देते हैं लेकिन पढ़ाई में उनका मार्गदर्शन नहीं मिल पाता। मुकेश ने अपने बल पर पढ़ाई की। तनाव से मुक्त रहे, लगातार अभ्यास करते रहे और नतीजा एक सुनहरे परिणाम के रूप मेें सामने आया। शांतनु दुबे ने नि:शक्त कोटे से पूरे भारत में टॉप किया है। उसकी शारीरिक कमी उसकी लगन में बाधक नहीं बनी। अपनी इच्छाशक्ति के बल पर शांतनु ने न केवल टॉप किया बल्कि माता-पिता के सपने को भी पूरा कर दिखाया। कहानियां तो और भी हैं। गुदड़ी के लाल हर राज्य में हैंं। कोई कल्पना कर सकता है कि किसी मजदूर का बेटा भी टॉपर्स की लिस्ट में आ सकता है। लेकिन उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ के दो छात्रों ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में शीर्ष 500 छात्रों में स्थान बनाया, तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही इन दोनों भाइयों की पारिवारिक पृष्ठभूमि सामने आई, सभी ने दांतों तले उंगली दबा ली। इन होनहारों के पिता पेशे से मजदूर हैं। 18 साल के राजू का प्रवेश परीक्षा में 167वां और बृजेश का 410वां स्थान आया है। पैसे की कमी के कारण दोनों छात्र आईआईटी में दाखिला लेने में असमर्थ थे किंतु जब मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को यह पता चला, तो उन्होंने दोनों छात्रों की फीस माफ कर दी। यही नहीं इन दोनों बेटों को छात्रवृत्ति के साथ-साथ रहने, खाने आदि का खर्च भी दिया जाएगा।
द्यभोपाल से कुमार सुबोध

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