तिवारी की नैया विज्ञापन बना खिवैया
04-Jul-2015 06:25 AM 1234798

सेडमैप में फर्जी दस्तावेजों के सहारे लगभग एक दशक से अपनी निरंकुश सत्ता चला रहे ईडी जितेन्द्र तिवारी के खिलाफ लोकायुक्त से लेकर न्यायालयों तक तमाम शिकायतें होने और मीडिया में लगातार उनकी करतूतों का पर्दाफाश होने के बाद आला अफसरों ने उन्हें हटाने का मन तो बना लिया है, लेकिन तिवारी ने अपने आकाओं की मदद से सेडमैप में बने रहने का पुख्ता इंतजाम कर दिखाया है। दरअसल सेडमैप में नई नियुक्ति के लिए तिवारी के आकाओं ने जो विज्ञापन समाचार पत्रों और सेडमैप की वेबसाइट -222.ष्द्गस्रद्वड्डश्चद्बठ्ठस्रद्बड्ड.शह्म्द्द/द्गस्र.श्चद्धश्च पर डाला है, उसमें योग्यताएं और अर्हताएं इस तरह डाली गई हैं कि संसार में केवल तिवारी ही पुन: उस पद पर स्थापित हो सकते हैं। अंधा बांटे रेवड़ी अपने-अपने को देय। सेडमैप में पिछले एक दशक से अंधेरगर्दी तो चल ही रही है, लेकिन अब यह अंधेरगर्दी अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है। बिना किसी नियुक्ति पत्र के नौकरी कर रहे तिवारी ने 16 जून 2015 को अपना कार्यकाल खत्म होने के बावजूद बिना पद त्यागे आगे के लिए कदम बढ़ा दिए हैं। संचालक मंडल भी इतना मेहरबान है कि उसने भी तिवारी से पद त्यागने का नहीं कहा। बल्कि तिवारी ने अपनी मनमर्जी से जो विज्ञापन छपवाया उसकी मौन स्वीकृति भी संचालक मंडल ने दे दी है। जाहिर है संचालक मंडल को तिवारी जिस तरह मलाई खिला रहे हैं, उसके चलते अपनी बंधी टकी को बनाए रखने के लिए संचालक मंडल ने कुछ ऐसी व्यवस्था की है कि तिवारी ही फिर से इस पद पर स्थापित हो जाएं। प्रश्न यह है कि तिवारी को ही स्थापित करना था, तो विज्ञापन निकालने की औपचारिकता भी क्यों की गई? यदि तिवारी को ही सेडमैप उनकी घरेलू दुकान की तरह चलाना है, तो फिर सरकार ने इसमें बड़ा भारी संचालक मंडल क्यों नियुक्त कर रखा है और इसे उद्योग मंत्रालय से संबद्ध क्यों किया हुआ है? यदि सेडमैप का ईडी अपनी मर्जी का मालिक है, तो फिर बड़े-बड़े अधिकारी जवाबदेह क्यों बने हुए हैं? अभी तक तो सेडमैप का सारा खेल पर्दे के पीछे हो रहा था, लेकिन अब सबकुछ खुलेआम किया जा रहा है।
17 जून 2015 को समाचार पत्रों और सेडमैप की वेबसाइट पर प्रकाशित विज्ञापन से साफ पता चलता है कि तिवारी को स्थापित करने के लिए महज औपचारिकता की जा रही है, ताकि कानूनन भविष्य में उन पर कोई आंच न आ सके। लेकिन विज्ञापन बनाने वालों ने भी इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि इस पद पर तिवारी के अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति नियुक्त न हो जाए। इससे पहले वर्ष 2003 मेें इसी पद के लिए जो विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित और वेबसाइट पर प्रसारित किया गया था, उसमें और आज के विज्ञापन में जमीन-आसमान का फर्क है। वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से लेकर सत्ता के प्रभावशाली लोग इस धांधली पर खामोश क्यों हैं? इस बारे में विभागीय सचिव मोहम्मद सुलेमान से जब एक समाचार पत्र ने पूछा तो सुलेमान ने कहा कि सेडमैप सरकारी विभाग नहीं है। यदि सरकारी नहीं है तो उसके बोर्ड के चेयरमैन खुद मो. सुलेमान क्यों हंै। भला वह तो उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव भी हैं। वर्ष 2003 में प्रसारित विज्ञापन में आयु सीमा 50 वर्ष रखी गई थी, लेकिन अब इसे 45 वर्ष रखा गया है। जाहिर है इस क्राइटेरिया पर तिवारी ही फिट बैठेंगे, क्योंकि उनकी उम्र अभी 44 वर्ष ही हुई है। विभाग के अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारी तिवारी की उम्र पर संदेह व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि तिवारी की उम्र के बारे में जांच की जानी चाहिए। लेकिन आयु सीमा तय करने वालों ने सरकारी दिशा-निर्देशों का भी पालन करना उचित नहीं समझा। सरकारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक 7600 से ज्यादा बेसिक वेतनमान वाले पदों पर नियुक्ति के वक्त आयु सीमा 50-55 रखी जाती है, क्योंकि इस उम्र तक पहुंचते-पहुंचते व्यक्ति के पास पर्याप्त योग्यता और अनुभव रहता है। यही नहीं विज्ञापन में लिखा है कि वर्तमान में वह व्यक्ति 37400- 67000 अथवा बराबरी के पे-स्केल पर सरकारी अथवा गैरसरकारी संस्था में कार्यरत हो। जाहिर है तिवारी को वर्तमान में यही स्केल मिल रहा है। पल भर के लिए यह मान लिया जाए कि यह योग्यता उचित है, तो यही मापदंड वर्ष 2005 में क्यों नहीं अपनाया गया? उस वक्त मात्र 10 हजार की संविदा नौकरी करने वाले तिवारी को किस आधार पर कार्यकारी संचालक का पद दिया गया? वर्ष 2006 में जो मापदंड जरूरी थे, क्या वे वर्ष 2015 में बदले जा सकते हैं?
यह खुला गड़बड़झाला है। लेकिन इतना ही नहीं है, तिवारी एक चार्टड एकाउंटेंट है इसलिए नए विज्ञापन में पद के लिए जो योग्यता निकाली गई है उसमें अर्थशास्त्र, वाणिज्य, वित्त में स्नातकोत्तर या एमबीए या चार्टड एकाउंटेंट/कंपनी सेक्रेटरी/ ढ्ढष्टङ्ख्र जान-बूझकर दी गई है। विश्व में कहीं भी सीए को स्नात्कोत्तर के समकक्ष नहीं माना जाता। इसलिए यह विज्ञापन ही अवैध है। पल भर के लिए यह मान लिया जाए कि  स्वनामधन्य तिवारी को स्थापित करने के लिए मध्यप्रदेश की सरकार ने विशेष प्रावधान करते हुए सब धान बाइस पसेरीÓ की तर्ज पर सीए को स्नातकोत्तर के बराबर घोषत कर दिया है, तब भी इस पद हेतु बाकी राज्यों में वांछनीय योग्यता पीएचडी होती है। 25 नवंबर 2003 को इकोनॉमिक्स टाइम्स में जो विज्ञापन प्रसारित हुआ था उसमें सेडमैप की वेबसाइट पर लिंक देखने का कहा गया था। इस लिंक के अनुसार उस वक्त अर्हताएं अर्थशास्त्र, वित्त, वाणिज्य अथवा प्रबंधन में स्नातकोत्तर होने के साथ-साथ न्यूनतम 15 वर्ष का अनुभव भी मांगा गया था। क्या तब तिवारी इस पद के योग्य थे? या अब हैं? क्योंकि अब अनुभव को घटाकर 7 वर्ष कर दिया गया है। इस प्रकार केवल स्नातक तक पढ़े तिवारी को पोस्ट ग्रेजुएट के समकक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। गवर्निंग बॉडी ने अनुभव को 15 साल से घटाकर 7 साल क्यों किया? यह एक बड़ा सवाल है। 1971 में पैदा हुए तिवारी के पास वर्ष 2006 में क्या अनुभव था? इस सवाल का जवाब बड़े अधिकारी टाल जाते हैं। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि आज नियुक्ति के वक्त क्या तिवारी को स्नातकोत्तर अभ्यर्थियों पर वरीयता दी जाएगी? तिवारी ने नए विज्ञापन में जो अनुभव लिखवाए हैं, वे सब उन्हीं के पास हैं। 5 साल की गोपनीय वार्षिक रिपोर्ट भी वे ही लगा सकते हैं। इसमें योग्यता के लिए 20 प्रतिशत, अनुभव के लिए 50 प्रतिशत, साक्षात्कार के लिए 10 प्रतिशत और एसईआर के लिए 20 प्रतिशत वेटेज रखा गया है। यानी तिवारी साक्षात्कार कर्ताओं के सामने खामोश रहें तब भी 90 प्रतिशत अंक तो पा ही जाएंगे और यदि साक्षात्कारकर्ता भी सरलीकरणÓ का रास्ता अपना ले तो बचे हुए  10 प्रतिशत अंक भी तिवारी की झोली में गिर जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं। इसका अर्थ यह हुआ कि एक बार फिर सेडमैप के ईडी का पद  बाजारÓ में है और खरीददार होगा एकमात्र तिवारी। यह बड़ी विडंबना नहीं तो क्या है? दिन-रात मेहनत
करके अपनी मेघा, अपने श्रम और अपने दिमाग के बल पर आईएएस बनने वाले आला अफसरों को भी तिवारी की यह करतूत दिखाई नहीं दे
रही है।
मतलब साफ है कि तिवारी के नाम की सिर्फ औपचारिक घोषणा भर बाकी है। दुख तो इस बात का है कि स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन देने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिन-रात पसीना बहा रहे हैं, लेकिन उन्हीं के प्रयासों को कुछ भ्रष्ट अफसर नैराश्य में धकेलने की कोशिश कर रहे हैं। तिवारी के पीछे लामबंद तमाम लोगों को तिवारी ने किस तरह उपकृत किया है, इसका ब्यौरा सेडमैप के छोटे-बड़े सभी कर्मचारियों को मालूम है। चाहे वह मुख्य सचिव स्तर के एक अधिकारी को मगरमच्छ के चमढ़े वाली साढ़े 3 लाख रुपए की जैकेट भेंट करने का मामला हो, या फिर भोपाल और इंदौर की महंगी दुकानों से बाई साहबों को लाखों रुपए की बिना रसीद शॉपिंग का मामला। भ्रष्टाचार कैसे हुआ और पैसा किसने खाया? इसका जिक्र फिजाओं में है। यह बात अलग है कि तिवारी ने चालाकी से बहुत से सबूत नष्ट करवा दिए हैं लेकिन फिर भी बहुत से मामले जिनमें घालमेल स्पष्ट दिखाई दे रहा है, लोकायुक्त और न्यायालय के समक्ष आ चुके हैं।

सेडमैप के खर्चों पर बाउन्सर
जितेन्द्र तिवारी ने अपने दोस्तों के साथ मजा तथा मौज मस्ती करने के उद्धेश्य से सेडमैप की एक वार्षिक बैठक का आयोजन इन्दौर के पांच सितारा होटल रेडिसन ब्लूÓÓ में 14-15 अक्टूबर 2012 को किया जिसमें किसी को असलियत का पता न चले इसलिए दिन में तो बैठक का दिखावा किया गया और शाम होते ही सुरा-सुन्दरी का खेल चालू हो जाता था। इस रंगारंग कार्यक्रम में सेडमैप का स्टाफ  जिसमें महिला कर्मचारी भी शामिल थी सभी को बैठना अनिवार्य था फिर चाहे अच्छा लगे या न लगे। हद तो तब होती थी जब जितेन्द्र तिवारी के विशेष मित्र मनीष व्यास एवं अन्य खुले आम सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सामने राजा-महाराजाओं की तरह सरकारी खर्चों पर आंनद उठाते थे और अधीनस्थ कर्मचारी उनकी जी हजूरी करने के लिए मजबूर थे। तिवारी के विशेष मित्रों में से मनीष व्यास जोकि आज भी तिवारी के बेहद करीबी और कई अर्थो में उनके जोडीदार के रूप में जाने जाते हैं लघु उद्योग निगम का ठेकेदार है और जितेन्द्र तिवारी के करीबी होने से सेडमैप में जितने भी कार्य लघु उद्योग निगम के माध्यम से कराये जाते है वे सभी मनीष व्यास की फर्मों को ही मिलते हैं।
तिवारी की इस सरकारी खर्चो पर मौज मस्ती में सबसे विशेष बात यह रही कि इन सारी हरकतों का किसी को पता न चल जाये इस लिये होटल रेडिसन ब्लू के उस हाल में मोबाइल ले जाना या इस्तेमाल करना सख्त मना था ताकि कोई इन सब हरकतों को रिकार्ड न कर ले इसके लिये जीतेन्द्र तिवारी के खास लोगों की एक टीम भी निगरानी के लिये बनायी गयी थी इस टीम ने बडे अपमानजनक तरीके से कई कर्मचारी द्वारा फोटो लेने की कोशिश करने पर उनके मोबाइल छीन लिये और चुपचाप पीछे बिठवा दिया। तिवारी ने सभी तरह की सुरक्षा की। अपने स्टॉफ  द्वारा फोटो खींचने या फिर किसी के विरोध करने या मीडिया वाले के आने या किसी स्टाफ के बाहर जाकर किसी को खबर करने से रोकने की सुरक्षा हेतु खासतौर पर इन्दौर की एक सुरक्षा ऐजेन्सी मेसर्स टोटल सिक्यूरिटी सर्विस से बाउन्सरÓÓ किराये पर मंगवाये जो अलग-अलग शिफ्ट में अन्दर एवं निकासी के सभी रास्तों पर पहरेदारी एव सुरक्षा हेतु तैनात रहते थे। जिन्होने किसी को भी बिना तिवारी की अनुमति के न तो अन्दर आने दिया और न तो बाहर जाने दिया फिर चाहे वो कोई भी क्यों न हो। इन बाउन्सरों पर आये हजारों रुपये खर्च का भुगतान सेडमैप के खाते से किया गया। जैसे कि मेसर्स टोटल सिक्यूरिटी सर्विस के एक बिल में दिनांक 21.10.2012 को रुपए 6598/- का भुगतान सेडमैप के चेक क्रमांक 012933 दिनांक 22.10.2012 के माध्यम से सेडमैप के क्षेत्रीय कार्यालय इंदौर से किया गया। इसके अतिरिक्त भी कई बिलो का भुगतान इंदौर के क्षेत्रीय कार्यालय के माध्यम से कराया गया । अक्स के पास उक्त आयोजन के कुछ चित्र भी सुरक्षित हैं ।
यशोधरा राजे बेखबर
देश-विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त प्रदेश की माननीया  उद्योग मंत्री महोदया यशोधरा राजे भी इस विज्ञापन को देखने के बाद खामोश हो गई हैं। यह विडम्बना ही है कि जिस उद्योग विभाग के अधीन यह मलाईदार उपक्रम भ्रष्टाचार की कहानियों से लबरेज है उस उपक्रम में उनकी किसी भी तरह की कोई भूमिका ही नहीं है। एक सोची-समझी रणनीति के तहत माननीया को इस उपक्रम के कारनामों की भनक ही लगने नहीं दी गई है और प्रशासनिक अधिकारियों ने इसे अपनी चारागाह बनाकर रखा हुआ है। सबकी आंखों के सामने धांधली हो रही है, लेकिन सब तिवारी की काबिलियतÓ के कायल होकर उसकी ढाल बनकर खड़े हो गए हैं।
-भोपाल से सुनील सिंह

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