04-Jul-2015 06:21 AM
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आईपीएल के ललित मोदी अपराधी हैं या फरियादी, पीडि़त हैं या पीड़ादायी हैं, सच्चे हंै या निहायत झूठे, यह आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल सच तो यह है कि विकीलीक्स की तर्ज पर ललित मोदी भी उनके सीने में दफन सच्चाइयों को बेनकाब कर रहे हैं। वसुंधरा से अपने संबंधों पर ललित मोदी

ने बेबाक बोला है। सुषमा स्वराज के पति और उनकी बिटिया बांसुरी स्वराज मोदी को मुफ्तÓ मेंं निस्वार्थ और अकर्ता भाव से वकालत की सेवा प्रदान कर रहे थे, यह भी एक सच है। लेकिन सबसे बड़ा सच तो यह है कि ललित मोदी केवल भाजपा के नेताओं की आंखों के तारे नहीं हैं बल्कि वे तो कांग्रेसियों को भी उतने ही प्रिय हैं। वे अनायास (तब जेड सुरक्षा प्राप्त) प्रियंका गांधी से किसी रेस्तरां में मिल जाते हैं, राजीव शुक्ला, शशि थरूर से उनके मधुर संबंध हैं, कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं से उनकी पहचान है, बीसीसीआई को मालामाल करने वाली आईपीएल की नींव भी उन्होंने तब डाली थी जब केंद्र में कांग्रेस का शासन हुआ करता था। शरद पवार तो उनके इतने मुरीद हैं कि उन्हें समझाने के लिए वे लंदन की यात्रा भी कर चुके हैं। हर दल में और दलों के सिरमौरों के दिल में ललित मोदी का लालित्य छाया हुआ है-फिर ऐसा क्या है, जो ललित मोदी का नाम लेकर अचानक भाजपा की दो नेत्रियों सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे पर वार किया गया है। हालांकि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी और महाराष्ट्र में दिवंगत गोपीनाथ मुण्डे की बेटी पंकजा मुण्डे जो मंत्री हैं, भी आरोपों के लपेटे में हैं। लेकिन ललित मोदी के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की यह कवायद बहुत रोचक मोड़ पर पहुंच चुकी है।
यह तो तय है कि कांग्रेस ने यह खबर नहीं तलाशी, बल्कि कांग्रेस के पास यह सूचना पहुंचाई गई कि सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे ने ललित मोदी को उपकृत किया था। वसुंधरा ने तो मोदी से संबंधित एक कागज पर बकायदा दस्तखत भी किए हैं। कांग्रेस को यह मुद्दा लपकने से भला क्या एतराज हो सकता था? कांग्रेस ने इसे हाथों-हाथ लिया, लेकिन जैसे ही ललित मोदी ने ट्वीट्स में लीक करना शुरू किया, कांगे्रस बैकफुट पर आ गई। अब ललित मोदी सुरेश रैना, अजय जडेजा सहित तमाम क्रिकेटरों को भी बेनकाब कर रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। मोदी रूपी मधुमक्खी के छत्ते में पत्थर भले ही विपक्ष ने मारा है, लेकिन यह मधुमक्खी सभी पर झूम रही है और इस खेल में नरेंद्र मोदी कुछ ज्यादा ही मजबूत होते जा रहे हैं, क्योंकि सबकी नब्ज उनके हाथों में आ चुकी है।
कमाल यह है कि मोदी की ताजपोशी में जहां-जहां से भी बाधा आई थी, अब उन सबकी कमजोरियां मोदी की नजरों में है। राजनाथ सिंह संघ के प्रिय बन गए हैं लेकिन असल ताकत मोदी, शाह और जेटली के बीच केंद्रित हो चुकी है। मोदी ने नागपुर को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वे अब अपनी शर्तों पर ही काम करेंगे। यानी मैदान भी उनका रहेगा और खेलेंगे भी वे ही। लालकृष्ण आडवाणी ने जिस आपातकाल की आशंका जताई है, वह आपातकाल भाजपा के भीतर ही पनपता जा रहा है। कभी राजस्थान विधानसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी की सभाओं का वसुंधरा ने परोक्ष रूप से विरोध किया था, क्योंकि वसुंधरा को मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा के वोट बिखरने का खतरा था। आज वसुंधरा मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने में भले ही कामयाब हो गई हों लेकिन वे केंद्रीय राजनीति में अलग-थलग हैं। सुषमा स्वराज विदेशमंत्री के रूप में मोदी की यात्राओं की प्रबंधक की भूमिका में थीं। ललित मोदी प्रकरण के बाद उनकी ताकत अब और सिमट जाएगी। मोदी किसी को मारेंगे भी नहीं और जीने भी नहीं देंगे। वे उन सबकी नब्ज को पकड़कर ही राजनीति करेंगे। नागपुर में बार्गेनिंग की जितनी ताकत मोदी ने अपने अंदर जुटा ली है, उतनी अटल के पास भी नहीं थी। अटल गठबंधन धर्म का हवाला देकर संघ के दबाव से बचे रहे। पर मोदी खुद दबाव बनाना जानते हैं। उन्होंने राजनाथ सिंह को अलग-थलग किया है, एक जमाने में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के दिग्गजों को कुछ इसी अंदाज में हाशिए पर धकेल दिया था और मंत्रियों को अपनी मुट््ठी में बंद कर लिया था। उस वक्त देश के एक प्रख्यात व्यंग्यकार ने लिखा था कि इंदिरा बार-बार मंत्रिमंडल फेरबदल की धमकी देती रहती हैं इसलिए सब मंत्री अपनी कुर्सी बचाने में जुट जाते हंै। कुछ ऐसा ही हाल मोदी ने मंत्रियों का कर रखा है। राजनीति में यही होता है। तलवारें लटका दी जाती हैं। लेकिन मोदी की राजनीति में मंत्री नहीं सांसदों पर भी तलवारें लटकी हैं। सांसदों की हालत घर की ना घाट की जैसी हो गई है। मोदी ने इतनी योजनाओं का भार लादा है कि उस भार से सांसद दबे जा रहे हैं। सारा इंटेलिजेंस जासूसी में लगा है। फोन टेपिंग की बात नीरा राडिया प्रकरण में सामने आई थी अब स्पष्ट हो रहा है कि मंत्री भी फोन टेपिंग से बेचैन हैं। हालांकि वे खुलकर कुछ नहीं कहते। जानकारों का कहना है कि ललित मोदी प्रकरण विपक्ष ने नहीं बल्कि भाजपा के ही कुछ करामातियों ने ताकतवरÓ नेताओं की शह पर उजागर किया था। यह भांडाफोड़ मोदी को लाभांवित कर गया। इसलिए चाल एकदम सटीक बैठी। इतनी सटीक कि भाजपा के एक सांसद को कहना पड़ा कि आस्तीन के सांप कौन हैं यह पहचानना जरूरी है। जिस पार्टी में यह कहने की नौबत आ जाए, उसकी आंतरिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। आडवाणी ने आपातकाल शब्द का प्रयोग किसी मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह किया।
जहां तक ललित मोदी प्रकरण की बात है, तो उसमें ज्यादा हंगामा होने की गुंजाइश इसलिए नहीं है क्योंकि ललित मोदी ने जो घालमेल किया उसमें सभी को पता था कि क्या हो रहा है। कांग्रेस के नेता भी बेनकाब हो सकते हैं। ललित मोदी के बहाने नरेंद्र मोदी का वजन बढ़ा, पर भाजपा की दुर्गति हो गई। अब बिहार में मोदी हमें जिता देंगे, यह कहावत विपक्ष ने कही। एक तरफ नरेंद्र मोदी तो दूसरी तरफ ललित मोदी। लेकिन बिहार चुनाव दूर हैं। तब तक यह मुद्दा ठहर पाएगा या नहीं, कहना मुश्किल है। पर इतना तय है कि भाजपा में मोदी, शाह और जेटली की तिकड़ी के पॉवरफुल होने से मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेताओं की ही नहीं कई अपेक्षाकृत युवा नेताओं की भी दुर्गति होना तय है।
प्राय: हर राज्य में इन त्रिदेवों के खासमखासÓ कुछ असहज और विरोध करने वाले नेताओं को ठिकाने लगाने में जुट चुके हैं। चुनाव से पहले बिहार में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की लॉबी जो खेल खेल रही है, उसका दबी जुबान से पार्टी में विरोध होना शुरू हो गया है। जब जीतनराम मांझी को भाजपा ने गठबंधन के लिए राजी किया, उस समय दिल्ली में एक प्रभावी नेता ने इसे घटिया निर्णय करार देते हुए ऑफ द रिकॉर्ड कहा था कि मांझी बिहार में भाजपा को डुबो देंगे और भाजपा की हालत दिल्ली से भी ज्यादा बदतर हो जाएगी। कुछ ऐसी ही तल्ख टिप्पणी गिरधर गमांग को लेकर सुनाई पड़ी थी। भाजपा का एक धड़ा मानता है कि जीत के लिए लालायित नरेंद्र मोदी और उनकी करीबी लोग कुछ बेहुदे फैसले ले रहे हैं। गुटबाजी चरम पर है और पार्टी में निष्ठावान लोगों को ठिकाने लगाकर अन्य दलों के क्रिमिनल माइंड या दागी नेताओं को शामिल किया जा रहा है, जो कि गलत है।
इतना सब होने के बावजूद अमित शाह उन राज्यों में बड़ा बदलाव करने से हिचक रहे हैं, जहां भाजपा की सरकारें हैं। शाह कुछ मुख्यमंत्रियों को बदलकर बदनामी मोल नहीं लेना चाहते लेकिन वे राज्य इकाइयों में जिस तरह तब्दीली कर रहे हैं, उससे मुख्यमंत्रियों को परेशानी हो सकती है। कई राज्यों में यह खींचतान देखी जा सकती है। शाह की योजना हर भाजपा शासित राज्य में मुख्यमंत्री के बरक्स एक ताकतवर नेतृत्व तैयार रखने की है। ताकि केंद्रीय मंत्रियों की तरह राज्य के मुख्यमंत्री भी असुरक्षा की भावना से ग्रसित रहें और तलवार उन पर भी लटकती रहे। यह शैली लगभग तीन दशक पुरानी है। जब कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला करता था, तो 5 वर्ष के भीतर कई राज्यों में दो-तीन बार मुख्यमंत्री बदल जाया करते थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल में अनापेक्षित बदलाव के लिए इंदिरा गांधी विख्यात थीं। राज्यपालों को भी रातों-रात बदल दिया जाता था। कई नेताओं को राज्यपाल बनाकर लूप-लाइन पर धकेलने का काम भी उस वक्त कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने किया। भाजपा में भी यही संक्रमण फैल रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि यदि 5 साल बाद मोदी फिर से सत्ता में आते हैं, तो वे पूरी ताकत का केंद्रीकरण कर डालेंगे। सारे सूत्र अपने हाथ में लेकर मोदी ने गुजरात में भी राजनीति की थी और अब दिल्ली की राजनीति में भी अपने सारथी अमित शाह के साथ वे यही कारनामा दोहराने जा रहे हैं। मोदी इसमें कितने कामयाब होंगे, कहा नहीं जा सकता। लेकिन तलवार तो उन्होंने लटका ही दी है। जब तलवार लटकती है, तो उसके नीचे बैठकर कोई विदेह ही निश्चिंत रह सकता है।
भाजपा में ऐसा विदेह कौन है? जो मंत्री मोदी के खास हैं, वे बेलगाम हैं और जो मोदी की गुडलिस्ट में नहीं हैं, वे खुलकर कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यहां तक कि म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक से पहले मोदी ने मंत्रिमंडल से सलाह लेना उचित नहीं समझा। डिप्लोमैटिक रूप से इसे उचित नहीं माना जाता। कांग्रेस ने मोदी के इस अंदाज की खुलकर आलोचना की। लेकिन मोदी बेखौफ और बेफिक्र हैं। उनके काम का अंदाज अलग है। दूसरी सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी सरकार के ज्यादातर राज्यमंत्री कार्यालय आने-जाने के लिए ही रह गए हैं। वे क्षेत्र में योजनाओं का उद्घाटन करने और मोदी के गुणगान के सिवा कुछ नहीं कर पाते। बहुत से राज्यमंत्री कसमसा रहे हैं लेकिन बेबस हैं।
वसुंधरा, सुषमा का इस्तीफा क्यों नहीं?
ललित मोदी प्र्रकरण में भाजपा ने भले ही सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे को अभयदान दे दिया हो, इस प्रक्रिया में नैतिकता की दुहाई देने वाली भाजपा बेनकाब हो गई। भाजपा ने अपना सारा चुनावी अभियान भ्रष्टाचार पर केंद्रित किया। लेकिन एक भ्रष्ट और धोखेबाज व्यक्ति को सहयोग करने की बात जब उजागर हुई जिसमें एक भाजपा शासित प्रदेश की मुख्यमंत्री और देश की विदेशमंत्री पर आरोप लगे, तो भाजपा उनके पीछे लामबंद हो गई। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कोयला और स्पेक्ट्रम घोटाले में सीधे आरोपी नहीं हैं, उन पर इल्जाम यह है कि उन्होंने सब कुछ जानते-बूझते अपने मंत्रियों की करतूत से मुंह मोड़े रखा। वसुंधरा और सुषमा ने भी यही तो किया है। वे जानतीं थीं कि ललित मोदी आईपीएल और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े कई मामलों में सीधे आरोपी हैं। लेकिन उसके बाद भी दोनों ने मोदी के पैरवी की। वसुंधरा तो मोदी पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थीं। वे मोदी की पत्नी को लेकर इलाज के लिए विदेश गईं, वहां तक तो ठीक था लेकिन मोदी को वसुंधरा के पहले कार्यकाल के दौरान जो छूट दी गई, उसका क्या अर्थ है? अशोक गहलोत ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि ललित मोदी पांच सितारा होटल के जिस सुईट में रुकता था, उसमें अधिकारी फाइल लेकर जाते थे। जब सत्ता मेंं दलालों का इतना दखल हो जाए, तो कहीं न कहीं जाकर भण्डाफोड़ हो ही जाता है।
-इंद्रकुमार बिन्नानी