मौतों पर सवाल
04-Jul-2015 06:10 AM 1234780

व्यावसायिक परीक्षा मंडल का घोटाला अब मुन्नाभाईयों का खेल नहीं बल्कि मौत का खेल है। पाक्षिक अक्स ने इस घोटाले से जुड़े 30 आरोपियों की संदिग्ध मौत के विषय में कुछ माह पूर्व ही एक रिपोर्ट जारी की थी अब यह मामला न्यायालय की दहलीज तक पहुंच गया है। हाल ही में इंदौर जेल में कैद मुरैना के पशु चिकित्सक नरेंद्र तोमर की मौत  तथा श्योपुर जिले के अमित साहू की एक तालाब में तैरती लाश कई सवाल पैदा कर रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सरकार के दावे इन मौतों को प्राकृतिक मृत्यु बता रहे हैं। लेकिन मृतक संख्या 45 तक पहुंच चुकी है। परंतु सरकार अभी भी 25 का आंकड़ा बता रही है। जबकि ऑल इंडिया रेडियो ने मौतों के आंकड़ों को 45 बताया है।  जिनमें प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के पुत्र शैलेश यादव भी शामिल है। मध्यप्रदेश के असंवेदनशील गृह मंत्री बाबूलाल गौर ने इस आपदा पर आध्यात्मिक लहजे में बड़ा गैर जिम्मेदाराना बयान दिया है कि जो आया है वह जाएगा। निश्चित रूप से जाएगा लेकिन जब आने वाला 25 से 50 की अल्पआयु में स्वर्ग सिधार जाए तो चिंता और संदेह स्वाभाविक है। व्यापमं छोटा-मोटा घोटाला नहीं है। इसके सबूत जितने अधिक मिटाए जा सकते हैं। उससे कहीं अधिक सबूत प्रकट हो रहे हैं। जिस स्पंदन साफ्टवेयर की बात कही जा रही है उसके बारे में लोगों का कहना है कि व्यापमं से जुड़े कॉल डिटेल्स को खत्म करने के लिए भारत में भले ही खेल-खेल लिया गया हो लेकिन यह सारी जानकारीअमेरिका के पास है और विकीलीक्स की तरह कभी भी लीक हो सकती है। व्यापमं को लेकर भाजपा के भीतर भी खलबली है। कारण यह है कि भाजपा के लक्ष्मीकांत शर्मा ही नहीं कई बड़े नेताओं की गिरेबान तक एसआईटी और एसटीएफ पहुंचने वाली है। लेकिन उमा भारती का नाम जिस तरह इस घोटाले में आया है उसके बाद भाजपा के भीतर यह कहा जाने लगा है कि व्यापमं के बहाने बहुत से नेताओं की सीआरÓ खराब करने की तैयारी की गई है। इसी कारण नेताओं में और पार्टी के कई जिम्मेदार लोगों में खलबली मची हुई है। क्या पता एसटीएफ किससे पूछताछ करने लगे। लेकिन दो-दो मौतों के बाद प्रदेश की राजनीति उबल गई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मांग की है कि व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाए उन्होंने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी लगाई है। उमा भारती पहले ही सीबीआई जांच की मांग कर चुकी है, लेकिन अब कई नेता सीबीआई जांच की मांग खुलकर तो नहीं दबे-छुपे कर रहे हैं। कुछ इशारों-इशारों में ही कह रहे है। जैसे कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि मौतों की जांच कोर्ट की निगरानी में हो, उधर भाजपा के नंदकुमार चौहान ने जस्टिस चन्द्रेश भूषण को ज्ञापन देकर मौतों पर सच बताने का कहा है। वहीं पूर्व विधायक पारस सखलेचा ने हाईकोर्ट जबलपुर में एक जनहित याचिका दायर कर डीमेट घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। परंतु उनकी डीमेट की मॉनीटरिंग करने की मांग हाईकोर्ट ने ठुकरा दी है।

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