भाजपा चेहरे, नीतिश सुशासन में उलझे
04-Jul-2015 06:16 AM 1234771

बिहार की राजनीति अब चुनावमय हो चुकी है। नेताओं के मुखारविंद से जो फूलÓ झर रहे हैं, उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि चुनाव अब

ज्यादा दूर नहीं हैं। चुनाव की इस बेला में नीतिश कुमार को चुनाव आयोग ने बड़ा झटका दिया है। नीतिश ने बढ़ चला बिहार नामक एक अभियान प्रारंभ किया था। लेकिन अगले माह होने वाले विधान परिषद चुनाव को देखतेे हुए इस अभियान पर जुलाई तक  रोक लग गई। सरकार ने इस अभियान के लिए 400 हाईटेक ट्रक किराए पर लिए थे। बड़ा भारी लाव-लश्कर साथ जाने वाला था।
कुछ ऐसा ही हाल बिहार में मुख्यमंत्री प्रत्याशी प्रोजेक्ट होने का सपना देख रहे भाजपा के लोकप्रिय नेता सुशील मोदी का हो रहा है। जिनके प्रयासों पर केंद्रीय मंत्री अनन्त कुमार ने पानी फेर दिया है। दरअसल अनंत कुमार का कहना है कि बिहार में नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखकर ही चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन बीच में सुशील मोदी कूद पड़े और उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित होना जरूरी है। मोदी के इस प्रयास को उनकी दावेदारी के रूप में देखा जा रहा है। वैसे यह अस्वाभाविक नहीं है। मोदी बिहार में लंबे समय तक भाजपा के नंबर-1 नेता बने रहे। जब उन्होंने नरेंद्र मोदी का करिश्मा देखा तो वे नरेंद्र मोदी के खेमे में शामिल होने की कोशिश करने लगे। सितम्बर 2013 में जब नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट किया गया, उस वक्त उस अभियान की अगुआई करने और नीतिश से नाता तोडऩे में सुशील मोदी की अहम भूमिका थी।  लोकसभा चुनाव के समय सुशील मोदी नरेंद्र मोदी के प्रिय भी बन गए थे। अब नरेंद्र मोदी के प्रिय नेताओं की संख्या बढ़ गई हैं। इनमें राजीव प्रताप रूडी, रविशंकर प्रसाद और शाहनवाज हुसैन के नाम प्रमुख हैं। रूडी ने महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जो रायता नितिन गडकरी ने फैला दिया था, उसे रूडी ने ही समेटा। अमित शाह और नरेंद्र मोदी को रूडी बहुत प्रिय हैं। रूडी को घोषित करके भाजपा जातीय समीकरण में पिछड़ सकती है। इसलिए बिहार में मोदी के नाम पर ही वोट मांगे जाएंगे। इसमें एक खतरा  है कि यदि भाजपा को पराजय मिली, तो इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को ही जाएगा। उधर ललित मोदी प्रकरण भी बिहार में फिलहाल असर दिखा रहा है। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि अक्टूबर में चुनाव तक यह मुद्दा दफन हो चुका होगा। नीतिश कुमार भी इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जो देने के पक्ष में नहीं हैं। उन्हें मालूम है कि जेल में बंद सहाराश्री के किन-किन श्रीमानों से कैसे-कैसे रिश्ते हैं इसका भण्डाफोड़ हो सकता है। इसलिए नीतिश का फोकस इस तरह के मुद्दों पर न होकर सीधी सपाट बातचीत पर है। उनका कहना है कि भाजपा केंद्र में जनता से किए गए वादे पूरे न कर पाने के कारण नर्वस हो गई है। नीतिश ने आडवाणी की आपातवाणीÓ को भी दोहराया और कहा कि इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि भाजपा नेताओं की भाषाशैली और शब्दों से इसका बखूबी अहसास हो रहा है। 
नेताओं के फूहड़ बोल
बिहार में चुनाव के मद्देनजर नेताओं के मुखमंडल से भी वीर वाक्य निकलने लगे हैं। राजनीतिक छींटाकशी और एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का दौर चरम पर है। नीतिश ने भाजपा नेता सुशील मोदी को विभीषण कहा, तो सुशील मोदी ने उन्हें रावण कह दिया। इस प्रकार दोनों एक-दूसरे के सगे भाई बन गए। लेकिन मोदी के इस कथन का एक आशय यह निकाला जा रहा है कि विभीषण को राम का इंतजार है, जो रावण को अपदस्थ कर उन्हें (विभीषण) सत्ता सौंपेंगे। उधर भाजपा के ही एक शब्द वीर सांसद अश्वनी चौबे ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जहर की पुडिय़ा और पूतना तक कह डाला। चौबे की वाणी इतने पर ही शांत नहीं हुई, बल्कि उन्होंने नीतिश और लालू की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये दोनों भाई पूतना की गोद में बैठकर उसका दूध पीने को बेताब हैं। राहुल को विदेशी तोता निरूपित करने वाले चौबे इससे पहले सोनिया गांधी को इटली की गुडिय़ा और लालू-नीतिश को रंगा-बिल्ला भी कह चुके हैं। नीतिश कुमार ने अमित शाह के मोटापे पर तंज कसते हुए कहा था कि इतने मोटापे में वे योग कैसे कर पाएंगे। अमित शाह इस सच्चाई से वाकिफ हैं, इसलिए पटना में उन्होंने भाषण तो दिया लेकिन योग नहीं किया।

लालू की मुश्किल
लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में नीतिश कुमार की दावेदारी पर तो समझौता कर लिया है, लेकिन अब उनकी पार्टी के एक धड़े ने साफ कह दिया है कि बिहार में ज्यादा सीटों पर राजद को लडऩा चाहिए। क्योंकि जातीय समीकरण राजद के पक्ष में हैं। नीतिश सीटों के बंटवारे पर ज्यादा घाटा खाने को तैयार नहीं हैं। नीतिश को डर है कि कहीं उनकी पार्टी के कुछ काबिल विधायक टूट न जाएं। सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस को लेकर है, जो 50 सीटों पर चुनाव लडऩे का मंसूबा पाले बैठी है। वैसे तो कांग्रेस की स्थानीय इकाई ने ऊपर संदेश भिजवा दिया है कि बिहार में पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए अकेले चुनावी समर में उतरना ज्यादा महफूज होगा।
-आरएमपी सिंह

 

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