यमुना की भी सुध ली जाए
19-Mar-2013 10:10 AM 1234908

होली का त्यौहार समीप आते ही हमारी पौराणिक गाथाओं और अतीत की स्मृतियों से कुछ स्वर लहरियां निकलकर कानों में गूंजने लगती हैं। जिनका सार यही है कि कभी रंगों से सराबोर होकर हमारा समाज यमुना और गंगा जैसी नदियों में नहाया करता था। तब ये नदियां इतनी स्वच्छ और निर्मल थी कि उनके अमृतमय जल से तरोताजा होकर सभी लोगों को वर्षभर स्वास्थ्य और समृद्धि मिला करती थी, लेकिन अपने सुख और अपने जीवन को विलासिता पूर्ण बनाने के फेर में हमने इन नदियों को नष्ट कर डाला और यमुना जैसी नदियां तो अब नाले में ही तब्दील हो गई हैं जिनका अस्तित्व केवल कागजों पर बचा है सच्चाई तो यह है कि यमुना में जो पानी बह रहा है वह सीवेज का और शहरों की गंदगी का पानी है। इसी कारण यमुना के भविष्य को लेकर सारा भारत वर्ष चिंतित है। विशेषकर वे लोग जो यमुना के आसपास रहते हैं और दिन ब दिन उसे मरता हुआ देख रहे हैं। कुछ समय पहले ही वृंदावन के छंटीकरा में एक मैदान में किसानों के संगठनों ने यमुना महापंचायत का आयोजन किया था। इस महापंचायत में भारी तादाद में लोग आए थे और इन सबने यमुना के भविष्य पर चिंता व्यक्त की थी। सभी महानुभावों का यह मानना था कि यमुना हमारी पवित्र नदी होने के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहर भी है इसीलिए इसी बचाया जाना जरूरी है। गंगा को बचाने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं और उसके लिए सरकारें भी दिल खोलकर पैसा खर्च करती हैं लेकिन गंगा उतनी ही गंदी है। बल्कि लगातार गंदी होती जा रही है। यही हाल यमुना का है। सच तो यह है कि गंगा और यमुना के सह अस्तित्व में ही भारत वर्ष का भला है। ये दोनों नदियां इलाहाबाद में संगम पर मिलती हंै और वहां गुप्त रूप से सरस्वती के साथ मिलकर त्रिवेणी बनते हुए सागर में समा जाती हंै। लेकिन यह त्रिवेणी अब नष्ट हो चुकी है। गंगा के साथ-साथ यमुना का जीवन भी अनिवार्य है। यदि गंगा स्वच्छ हो जाए और यमुना निर्मल न हो तो उसका कोई अर्थ नहीं है। यमुना रक्षक दल के अध्यक्ष बाबा जयकृष्ण दास कहते हैं कि समय रहते सरकार नहीं चेती तो यमुना बचाव अभियान सरकार को चेताने के लिए बड़ा भारी आंदोलन खड़ा कर सकता है।
दरअसल यमुना और गंगा ये दोनों नदियां तभी सुधर सकती हैं जब इस देश में नदियों को लेकर आम जनता के बीच संवेदना उत्पन्न हो। आम जनता में वह जागरुकता आना जरूरी है जिसके चलते नदियों को पर्याप्त सम्मान मिलता है। इसके साथ ही सरकारों को भी सही दिशा में सटीक प्रयास करने होंगे। गुजरात में साबरमती नदी कभी नाले में तब्दील हो चुकी थी, लेकिन मोदी सरकार ने जिस तरह का प्रयास किया उसके चलते आज साबरमती टेम्स से प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रही है। यह कार्य हर सरकार कर सकती है लेकिन इच्छाशक्ति का अभाव है। यही कारण है कि युग-युगान्तर से अविरल बहने वाली पवित्र यमुना नदी आज एकदम सूखी पड़ी है। पानीपत और दिल्ली के बीच पडऩे वाले सोनीपत और बागपत यमुना खादर में बिल्कुल एक बूंद का भी प्रवाह नहीं है। वास्तविकता यह है कि सरकारें पूरी तरह से यमुना के पर्यावरणीय प्रवाह की अनदेखी कर रही हैं। यमुना में पानी बिल्कुल रोक दिया गया है। बागपत और सोनीपत के पूरे यमुना खादर में पूरी गर्मियों में एक इंच का भी प्रवाह नहीं है। यमुना में जल प्रवाह बिल्कुल रुक जाने पर विभिन्न संगठनों ने गुस्सा जाहिर किया है। हरियाणा प्रदेश सर्वोदय मंडल, सजग और वाटर कम्युनिटी सहित कई संगठनों के लोगों ने मांग की है कि यमुना के साथ हो रहे खिलवाड़ को तुरंत रोका जाए। उनका कहना है कि यमुना में पानी नहीं छोड़े जाने से काफी बड़े इलाके में पेयजल समस्या उत्पन्न हो गई है। संगठनों का कहना है कि करोड़ों वर्षों का मिथक टूटा गया कि यमुना की धार को कोई रोक नहीं सकता। किसी भी नदी के पारिस्थतिकीय सन्तुलन को बनाये रखने के लिए पर्यावरणीय प्रवाह बनाये रखने की नितान्त आवश्यकता होती है। 14 मई 1999 के एक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि यमुना को पारिस्थितिक प्रवाह की जरूरत है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रति सेकंड 353 ष्ह्वह्यद्गष्ह्य का एक न्यूनतम प्रवाह नदी में होना ही चाहिए। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्यों को इस प्रवाह को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।  पानीपत और दिल्ली के बीच पडऩे वाले सोनीपत और बागपत यमुना खादर में बिल्कुल एक बूंद का भी प्रवाह न होना एक विराट समस्या बन गई है। जलाभाव से ग्रसित मानव तो किसी प्रकार अपना काम चला रहा है परन्तु वन्य प्राणी, पशु और पक्षी घोर संकट में है। यमुना नदी का जल प्रवाह रूक जाने से जल स्तर बहुत नीचे चला गया है। परिणामत: यमुना नदी के आस-पास के सभी ट्यूबवेल ठप हो गये हैं इससे कृषि उपज बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
गंगा और यमुना को बचाने के लिए अभियान तो चल रहे हैं लेकिन जब तक देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्थाओं में बैठकर कोई कठोर कानून नहीं बनाया जाएगा यह नदियां नहीं बच सकेंगी। दोनों नदियों के किनारे स्थापित सारे उद्योगों को तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए, उन्हें अन्यत्र स्थापित किया जाना चाहिए। गंगा और यमुना में मिलने वाले सीवेज को दूसरी जगह मोड़ा जाना चाहिए और भी कई ऐसे उपाय है जिनसे धीरे-धीरे ये नदियां स्वच्छ बन सकती हैं। सरकारी इच्छाशक्ति जरूरी है।
शोभन बनर्जी

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