कुम्भ के बहाने गंगा की सफाई
04-Feb-2013 11:28 AM 1235051

हाल ही में कुम्भ मेले को लेकर जब गंगा की सफाई की बात उठी तो प्रशासन ने गंगा किनारे की फेक्टरियों से लेके कत्लखानों को अस्थायी रूप से बंद करने करने का हवाला दिया, लेकिन जरूरत इन प्रयासों को स्थायी बनाने की है। कुम्भ तो 12 वर्ष में एक बार होता है किन्तु गंगा का अस्तित्व हमेशा बना रहे इसके लिए विशेष प्रयास करने होंगे। उन विदेशियों की तरह जो   इसमें फैली गंदगी को निकालने का संकल्प लेकर इसकी सफाई में जुटे हुए हैं। दुनिया के तमाम देशों से आए गंगा भक्त लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को तारने वाली पतित पावनी गंगा की हालत देखकर दुखी हैं। 
राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के निर्देशन में गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गंगा नदी की सफाई एवं बहाव को सुनिश्चित करने के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने 7000 करोड़ मंजूर किये। इस 7000 करोड़ की धनराशि में 5100 करोड़ केन्द्र तथा 1900 करोड़ उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड व अन्य राज्य देगें। केन्द्र की इस 5100 करोड़ की धनराशि में 4600 विश्वबैंक बतौर कर्ज देगा। इस परियोजना को अगले 8 वर्षों में पूरा किया जाना सुनिश्चित होगा तथाकुल व्यय लगभग 15000 करोड़ का अनुमान है। अपने उद्गम स्थल गोमुख से अपने समर्पण बिन्दु गंगा सागर तक गंगा नदी की लम्बाई 2510 किमी है। इस गंगाघाटी का क्षेत्रफल 9,07,000 वर्ग किमी है तथा इसका सम्पर्क देश के 11 राज्यों से है। इन 11 राज्यों में से 5 राज्यों मेें गंगा नदी का पवित्र स्पर्श है। गंगा नदी में छोटी-बड़ी प्रमुख नदियां महाकाली, करनाली, कोशी, गण्डक, घाघरा, यमुना, सोन तथा महानन्दा आदि मिलकर इसके स्वरूप को विशालता, पवित्रता तथा गहराई देती हैं। गंगा नदी के तट पर हरिद्धार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, गाजीपुर, पटना तथा कोलकाता जैसे धार्मिक, राजनैतिक गतिविधियों के केन्द्र तथा आर्थिक रीढ़ के शहर स्थित हैं। गंगा नदी की विशालता तथा उपादेयता का अन्दाज इसी बात से लगाया जाता है कि गंगा घाटी में निवास करने वाली तथा निर्भर रहने वाली लगभग 50 करोड़ आबादी दुनिया की किसी भी नदी घाटी में रहने वाली आबादी से ज्यादा है। जीवन के लिए भोजन हेतु सिंचाई के मामले गंगा नदी घाटी देश की कुल सिंचित क्षेत्र का 29.5 प्रतिशत है।
भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लम्बी नदी, लगभग 50 करोड़ की आबादी का भरण पोषण करने वाली पवित्र गंगा, पंच प्रयागों के प्राण से अनुप्राणित गंगा, ऋगवेद के श्लोक (10.75) में वर्णित गंगा, रामायण में सीता द्वारा पूजी गई गंगा, भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली विष्णुपदी गंगा, संगम इलाहाबाद में मुनि भारद्वाज द्वारा अर्चित की गई गंगा, रोम की पियज्जा नबोना में वर्णित दुनिया की 4 प्रमुख नदियों नील, दानुबे, रियोदिला प्लांटा में शुमार चैथी गंगा, आमेजन तथा कांगो के बाद सर्वाधिक जलराशि की गंगा, समय के साथ अपने पुत्रों की उपेक्षा से आहत होकर दुनियां की सबसे प्रदूषित नदी कैसे बन गई? भागीरथ के प्रयासों से धरती पर लाई गई गंगा भागीरथी प्रयासों से ही स्वच्छ, निर्मल और अविरल होगी। गंगा को मात्र नदी या उपभोग करने का पानी समझने वालों को जानना चाहिए कि अनुपम पारिस्थितिकी तन्त्र को संजोये, जैव विविधता को अन्दर समेटे तथा सामाजिक सांस्कृतिक धरोहर वाली नदी गंगा केवल एक नदी ही नहीं बल्कि वह गंगा हमारे लिए व हमारी संस्कृति के लिए माँ है, देवी है, परम्परा है, संस्कृति है।
गंगा के प्रदूषण के लिए बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण तथा कृषि के कारण ज्यादा जिम्मेदार है। बढ़ती आबादी और शहरीकरण से गंगा नदी घाटी पर दबाब बढ़ गया जिसके कारण नदी का प्रदूषण स्तर बढ़ता गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार जो बैक्टीरिया 500 फैकल प्रति 100 मिली होना चाहिए वह 120 गुना ज्यादा 60,000 फैकल प्रति 100 मिली पाया गया, जिससे गंगा स्नान योग्य भी नहीं रह गई। उत्तर प्रदेश के अन्दर कन्नौज से लेकर पवित्र शहर वाराणसी तक लगभग 450 किमी के बीच गंगा सर्वाधिक प्रदूषित हैं इस क्षेत्र की फैक्ट्रियां इस नदी को प्रदूषित कर रही हंै। एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार गंगा में 75 प्रति सीवरेज तथा 25 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण पाया जाता है। इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार तत्व अपने द्वारा फैलाये गये प्रदूषण से बेखबर भी नहीं हंै। उनको जानकर भी अनजान रखने वाली शासन प्रणाली गंगा की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। हमारी स्वार्थ परक उपभोग वाली मानसिकता ने हमारे पारिस्थितिकी तन्त्र का कितना नुकसान कर दिया है इसको हमारी आने वाली पीढ़ी भुगतेगी। अगर हम वास्तविक धर्म में विश्वास रखते तो मोक्ष दायिनी माँ स्वरूपा गंगा को प्रदूषित न करते। 800 ई. के ब्रह्मानन्द पुराण में वर्णित निर्मल गंगा मन्त्र में 13 प्रतिबन्धित कार्य जैसे मल त्याग, धार्मिक पूजन सामग्री का धोना, गन्दे पानी का विसर्जन, चढ़ावे के फूल इत्यादि फेंकना, मैल धोना, स्नान में रासायनिकों का प्रयोग, जल क्रीडा करना , दान की मांग करना, अश्लीलता, गलत मन्त्रों का उच्चारण, वस्त्रों को फेंकना, वस्त्रों को धोना तथा तैर कर नदी का पार करना वर्जित है।
-सुजाता शुक्ला

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