शंकराचार्य की बेबाकी से दुविधा
18-Jun-2015 08:33 AM 1234839

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जब भी बोलते हैं सुनियोजित ही बोलते हैं। लेकिन उनकी यह सुनियोजित बयानबाजी भाजपा सरकार को दुविधा में डाल देती है। पिछले दिनों शंकराचार्य के ऐसे बहुत से बयान आए हैं। जिनसे सरकार की परेशानी बढ़ी है। चाहे सांई विवाद में उमा भारती को खरी-खरी सुनाने का मामला हो या फिर योग को लेकर सूर्य नमस्कार अलग करने के फैसले के खिलाफ की गई बयानबाजी। केन्द्र में भाजपा नीत सरकार सत्ता सीन है। इसी कारण भाजपा की दुविधा बढ़ जाती है। स्वरूपानंद की कांग्रेसी नेताओं से निकटता छिपी नहीं है। लेकिन राम मंदिर निर्माण से लेकर योग-गौमांस आदि विषयों पर शंकरचार्य ने बेबाक बोला है। उनकी अखाड़ा परिषद से भी तू-तू मैं-मैं हो चुकी है। भाजपा सरकार पर कटाक्ष करते हुए शंकराचार्य ने कहा था कि देश के नेता चाहते हैं कि शंकराचार्य को देश का नेता न माना जाए। क्योंकि इससे उनके हिंदू कार्ड को खतरा पैदा हो जाता है। शंकराचार्य ने धारा 370 खत्म करने की बात कहकर भी भाजपा को दुविधा में डाला था। यह बात उन्होंने ऐसे समय पर कही जब भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर गठबंधन बना लिया था। इस गठबंधन में धारा 370 जैसे मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया है। हालांकि कश्मीर में पंडितों को बसाने के लिए भाजपा ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। शंकराचार्य ने समान नागरिक संहिता की बात भी उठा दी है। सवाल यह है कि शंकराचार्य भाजपा के मुद्दे क्यों उठाने लगे हैं। ज्ञात रहे कि धारा 370 की समाप्ति, समान नागरिक संहिता और राम मंदिर कभी भाजपा के मुद्दे हुआ करते थे। लेकिन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भाजपा सरकार के सत्तासीन होने के बाद एक नहीं अनेक मौकों पर इन विवादास्पद मुद्दों को उठाया है। बल्कि कई बार तो वे इससे भी आगे गए थे। हाल ही में उन्होंने केदारनाथ में रावल समुदाय की उपस्थिति पर हमला बोलते हुए कहा था कि जब रावल अपने आप को हिंदू नहीं मानते तो वे केदारनाथ में कैसे पूजा कर सकते हैं। शंकराचार्य ने तो रावलों को ही केदारनाथ आपदा के लिए दोषी ठहरा दिया था। इससे पूर्व उन्होंने अजमेर में चिस्ती की दरगाह और  ताज महल के नीचे शिव मंदिर होने की बात कही। शंकराचार्य यहां यही नहीं रुके बल्कि उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम काल में देश के मंदिरों को निशाना बनाया गया। जब मुस्लिमों की यह साजिश सफल नहीं हुई तो एक मुस्लिम ने सांईं बाबा की प्रतिमाएं मंदिरों में रखवाने की साजिश रची।  मुस्लिमों के शासनकाल में मस्जिद बनाने के लिए जमीन की कमी नहीं थी लेकिन इसके लिए उन्होंने काशी, सोमनाथ, मथुरा और राम जन्मभूमि हर जगह पर मंदिरों को निशाना बनाया। शंकराचार्य ने हरिशंकर जैन और रंजना नामक हिंदू एक्टिविस्टों द्वारा ताज महल को लेकर आगरा के सिविल कोर्ट में दायर याचिका को भी समर्थन दिया है। इन दोनों का कहना है कि ताजमहल में 623 चिन्ह ऐसे हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि यह हिंदू स्थल है। ताज महल में बंद पड़े अग्रेश्वर महादेव की मुक्ति के लिए भी अभियान चलाने की बात कहीं जा रही है। हिंदू संगठनों ने सारे देश में तीन हजार से अधिक धर्मस्थलों पर दावा ठोंका है। इनमें से अधिकांश मुस्लिमों के कब्जे में हैैंं। शंकराचार्य के रुख से लगता है कि आने वाले समय में इन विवादित धर्मस्थलों का विवाद और गहराएगा। इस तरह बीजेपी सरकार को शंकराचार्य की यह पहल भारी पड़ सकती है।

राम मंदिर मुद्दे पर भी शंकराचार्य की बयानबाजी के कुछ अलग अर्थ निकाले गए हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि कारसेवकों द्वारा विवादित ढांचा गिराया जाना सबसे बड़ी गल्ती थी। कारसेवकों ने मुसलमानों को यह कहने का अवसर दे दिया कि विवादित ढांचा मस्जिद थी इसी के चलते मुसलमान छह दिसंबर को शहीदी दिवस मनाते हैं। शंकराचार्य ने सरकार को सलाह दी है कि वह राम मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी न्यास को सौंप दे।

प्रश्न यह है कि शंकराचार्य अचानक भाजपा की भाषा क्यों बोलने लगे है। हाल ही में ज्योतिष पीठ (बद्रिकाश्रम) के शंकराचार्य पद को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई स्वरूपानंद जीत तो गए लेकिन दूसरे दावेदार वसुदेवानंद इस मामले को हाईकोर्ट तक घसीटना चाहते हैं। स्वरूपानंद 1982 से द्वारकामठ के शंकराचार्य भी है। पिछले 26 वर्ष से वे बद्रिकाश्रम के लिए लड़ रहे थे। इस लड़ाई में उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी मिला। अब केन्द्र में भाजपा की सरकार है। कांग्रेस देश की राजनीति में शक्तिहीन हो चुकी है। ऐसी स्थिति में शंकराचार्य द्वारा भाजपा की भाषा बोलने के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। कुछ लोग इसे कांग्रेस की सुनियोजित चाल भी मान रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि विवादित मुद्दों पर भाजपा के सामने सवाल उठाकर भाजपा को बेनकाब किया जाना ज्यादा जरूरी है। जाहिर है इससे भाजपा की परेशानी बढ़ेगी और उसका मौन हिंदुओं के बीच भाजपा की स्वीकार्यता को कम करेगा। भाजपा ने इस रणनीति को भांप लिया है। इसलिए इसका तोड़ तलाशा जा रहा है।  नरेंद्र मोदी के करीबी सूत्रों का कहना है कि भाजपा राम मंदिर मुद्दे पर आम राय बनाने की भरसक कोशिश कर रही है। जो मुसलमान नेता इस मुद्दे पर अडिय़ल रुख अपनाए हुए हैं। उन्हें अलग-थलग करने की तैयारी की जा रही है। लेकिन कुछ राजनीतिक दल इस विवाद को लंबा खींचना चाहते हैं। क्योंकि भाजपा के शासनकाल में राम मंदिर बना तो भाजपा को इसका श्रेय मिल जाएगा। स्वरूपानंद सरस्वती ने कुछ दिन पहले  हरिद्वार में मीडिया से कहा था कि धर्म निरपेक्ष सरकार मंदिर का निर्माण नहीं कर सकती। इसके लिए मस्जिद को जमीन नहीं देनी चाहिए। इस बयान के बाद भाजपा ने मंदिर निर्माण का काम और तेज कर दिया है। हालांकि खुलकर भाजपा भी कुछ नहीं कह रही है।

-विकास दुबे

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^