18-Jun-2015 07:48 AM
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अंतत दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कानून मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर को गद्दी छोडऩी पड़ी और वे गिरफ्तार कर लिए गए। तोमार को लेकर दिल्ली पुलिस देश के अनेक विश्वविद्यालयों में घूम रही है

बिहार में उनके ऊपर अंडे और टमाटर फेंके गए। उनकी एक डिग्री छोड़कर बाकी सभी फर्जी पाई गई। फर्जी डिग्री के आधार पर गिरफ्तार होने वाले तोमर देश के संभवत: पहले मंत्री हैं। हालांकि मंत्रियों की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल पहले भी उठते रहे हैं। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर भी सवाल उठे स्मृति ईरानी और राम शंकर कठेरिया जैसे केन्द्रीय मंत्रियों की डिग्री भी सवालों के घेरे में है। आम आदमी पार्टी के 9 विधायकों की डिग्री फर्जी होने का दावा किया गया है। कई नेताओं की क्वालिफिकेशन सवालों के घेरे में है। राजनीति में सजा भले ही न हो लेकिन वह कहावत जरूर सिद्ध होती है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। मेरी ही नहीं तेरी भी करतूत सामने आएगी।
राजनीति के इस हमाम में नंगा कौन नहीं है। पहला पत्थर वह मारे जिसने पाप न किया हो और जो पापी न हो। फर्जीवाड़े और जालसाजियों से भरी हमारी राजनीति की यह विशेषता है कि यहां कोई एक पकड़ में आया तो बाकी सब संत बनकर उसकी छीछालेदर करने लग जाते हैं। कभी अभिषेक मनु सिंघवी, नारायण दत्त तिवारी, भाजपा के नेता जोशी की वीडियो क्लिप सामने आने पर बाकी बहुत से राजनीतिज्ञों ने कुछ इस अंदाज में हंगामा किया था मानों वे लंगोट के बड़े पक्के हैं। अब तोमर की डिग्री पर हंगामा और हल्ला भी वे लोग ज्यादा मचा रहे हैं जिनके मैट्रिक के सर्टिफिकेट भी संदेह के घेरे में हैं। भारत मेें फर्जी कागजों के आधार पर जब एक महिला आईएएस की ट्रेनिंग एकेडमी में महीनों रह सकती है तो फिर नेताओं के क्या कहने उनकी तो बलिहारी है। लेकिन आम आदमी पार्टी को तोमर की फर्जी डिग्रियों ने ज्यादा नुकसान इसलिए पहुंचाया है क्योंकि यह पार्टी हाई मॉरल ग्राउंड पर सत्ता सीन हुई थी। इसने परंपरागत राजनीति को चुनौती देते हुए नैतिकता और शुचिता से भरपूर स्वच्छ राजनीति की गारंटी दी थी। इसीलिए जब तोमर के फर्जी दस्तावेजों का पर्दाफाश होने के बाद आशुतोष ने लेख लिखकर और अरविंद केजरीवाल तथा सिसोदिया ने प्रेस वार्ता में भाजपा और केन्द्र्र सरकार को कोसते हुए तोमर की तरफदारी की तो जनता कुछ ज्यादा ही दुखी हो गई। जाहिर है जनता को लग रहा था कि भ्रष्टाचार और गड़बडिय़ों पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाते हुए सुदर्शन चक्र चलाने केे लिए विख्यात केजरीवाल तोमर को धराशायी करने में जरा भी वक्त नहीं लगाएंगे। लेकिन फर्जीवाड़े के सरताज तोमर ने बिहार के विश्वविद्यालय के कुलपति का फर्जी एफिडेबिट भी केजरीवाल को दिखा दिया जिसमें कहा गया था कि डिग्रियां फर्जी नहीं हैं। पर अब दिल्ली पुलिस ने तोमर का सामना उन सब लोगों से करवा दिया है जिनकी आड़ लेकर तोमर झूठ पर झूठ बोले जा रहे थे। कॉलेज के उच्चाधिकारियों ने दस्तावेज सामने रखकर तोमर के मुंह पर उनका झूठ खोल दिया। इस प्रकार आम आदमी पार्टी को बैकफुट पर आने के लिए मजबूर कर दिया गया। सूत्र बता रहे है कि केजरीवाल इस घटनाक्रम से बेहद व्यथित हैं। तोमर को कभी भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। जो पार्टी तोमर के पीछे तनकर खड़ी हो गई थी उसने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। आशुतोष और कुमार विश्वास जैसे बड़बोले नेता भी खामोश हैं। उन्हेें समझ में आ गया है कि जिसकी पैरवी वे करने जा रहे हैं वह व्यक्ति नटवर लाल है और जालसाजी में माहिर है। तोमर सलाखों से बाहर कब आएंगे कहा नहीं जा सकता। उनका झूठ परत दर परत खुल रहा है। दिल्ली पुलिस ने इस मामले को जिस तत्परता से अंजाम तक पहुंचाया है उसमें तोमर के बच निकलने की संभावना शून्य के बराबर है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई संभव नहीं है।
तोमर प्रकरण के बाद अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह, मनीष सिसोदिया जैसे नेताओं ने आरोप लगाया था कि केन्द्र सरकार कदम-कदम पर अड़ंगे लगा रही है। यह आरोप शत-प्रतिशत सच है। लेकिन इन बाधाओं से केजरीवाल तभी लड़ सकेंगे जब उनका अपना पक्ष मजबूत होगा। अधिकारियों की नियुक्तियों को लेकर उप राज्यपाल नजीब जंग से जंग छेडऩे और जालसाजी करने वालों की पैरवी करने में बुनियादी अंतर यह है कि पहले मामले में केजरीवाल को जनता की सहानुभूति मिल सकती थी। लेकिन दूसरे मामले में जनता उन्हें बर्दाश्त नहीं करेगी। इसीलिए केजरीवाल को अपना पक्ष मजबूत करते हुए संगठन से ऐसे लोगों को बाहर फेंकना होगा जो फर्जी हैं और जालसाज हैं। योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण जैसे नेताओं को हाशिए पर धकेलकर केजरीवाल ने पार्टी में विचारशील और निष्ठावान लोगों को किनारे कर दिया है। इसी कारण आपराधिक प्रवृत्ति के जितेन्द्र सिंह तोमर जैसे लीडर केजरीवाल को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
तोमर पर आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत मामला दर्ज किया गया है। इनमें से एक भी धारा अदालत में नहीं कट पाएगी क्योंकि सबूत बहुत स्ट्रांग हैं और सब कुछ कागजों पर स्पष्ट नजर आ रहा है। जो पार्टियां केजरीवाल को घेरने के मुद्दे तलाश रही थी उन्हें बैठे-बिठाए यह मुद्दा मिल गया है। लेकिन इसके साथ ही फर्जी डिग्रियों पर जंग छिड़ चुकी है। केजरीवाल ने भी कहा है कि वे भाजपा के केन्द्रीय मंत्रियों की डिग्री की जांच कराएंगे। यानी अगला वार आम आदमी पार्टी की तरफ से होगा। इसीलिए बहुत से मंत्रियों ने अपना शपथ पत्र फिर से पढऩा शुरू कर दिया है कि कहीं कोई गलत जानकारी तो नहीं दी। उधर राहुल गांधी ने दिल्ली में हड़ताली सफाई कर्मियों के बीच जाकर सरकार को नए विवाद में घसीटा है।अफसरों पर लड़ाई जारी
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच अफसरों की नियुक्ति पर शीत युद्ध चल रहा है। केजरीवाल ने दिल्ली के गृहसचिव धर्मपाल का स्थानांतरण करके राज्यपाल को सूचना भेज दी। पाल का स्थानांतरण इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने एंटी करप्शन ब्रांच में संयुक्त आयुक्त एम.के. मीणा की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया था। बाद में मीणा को भी दिल्ली सरकार ने पत्र भेजकर बता दिया कि एंटी करप्शन ब्रांच में उनकी कोई आवश्यकता नहीं है। बल्कि वहां पर ऐसा कोई पद ही नहीं है इसलिए मीणा को वापस दिल्ली पुलिस में भेज दिया गया। साथ ही उन 7 इंस्पेक्टरों को भी पदभार नहीं दिया गया, जिनकी नियुक्ति उपराज्यपाल ने मीणा के साथ-साथ की थी। इस तरह भ्रष्टाचार पर लडऩे की बजाए उपराज्यपाल और केजरीवाल आपस में ज्यादा लड़ रहे हैं। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया का कहना है कि यह सारी नियुक्तियां अवैध हैं, इस तरह रातों-रात एंटीकरप्शन ब्रांच में संयुक्त आयुक्त का पद नहीं बनाया जा सकता। इस नियुक्ति से पहले सरकार से चर्चा की गई।
दरअसल दिल्ली का मामला कुछ ज्यादा ही उलझा हुआ है। बाकी केंद्र शासित प्रदेश केंद्र द्वारा शासित अवश्य होते हैं लेकिन वे केंद्र से बहुत दूर हैं। पर दिल्ली देश की राजधानी है और केंद्र सरकार की पूरी ताकत वहीं है। इसलिए दिल्ली में केंद्र कुछ ज्यादा ही दखलअंदाजी करता है। फिर दिल्ली पुलिस का नियंत्रण उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र के हाथ में है और दिल्ली सरकार अधिकारियों को वापस केंद्र में भेजने के लिए अधिकृत नहीं है। दुविधा यह है कि उपराज्यपाल मनमर्जी से अधिकारियों को नियुक्त कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी नहीं है कि सदैव दिल्ली के मुख्यमंंत्री से चर्चा करनी पड़े। यदि अधिकारियों को वापस भेजना है, तो इसके लिए एक संयुक्त कॉडर अधिकरण गठित किया गया है। जिसमें दिल्ली के गृहसचिव के साथ-साथ गोवा, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के मुख्य सचिव शामिल हैं। दिल्ली में नजीब जंग और केजरीवाल की जंग में अधिकारियों को फुटबॉल की तरह एक पाले से दूसरे पाले में भेजने की करतूतें अब दिल्ली के नौकरशाहों को नागवार गुजर रही हैं। केजरीवाल को बहुमत भले ही पर्याप्त से अधिक मिला हो, लेकिन दुख इस बात का है कि उनके हाथ बंधे हुए हैं। यह सच है कि केजरीवाल के पीछे स्थापित राजनीतिक दल हाथ धोकर पड़े हुए हैं। लेकिन केजरीवाल का अडिय़लपन भी कहीं न कहीं मुसीबत खड़ी कर रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री के नाते उन्हें अपनी सीमाओं का भान होना चाहिए, जो शायद उन्हें नहीं है। इसीलिए आए दिन विवाद खड़े रहते हैं। लेकिन केजरीवाल चालाकी से इन विवादों में स्वयं को किसी पीडि़त की तरह प्रस्तुत करके जनता की सहानुभूति प्राप्त करने में कामयाब रहे हैं। भले ही उनकी गाड़ी हिचकोले लेकर चल रही हो, लेकिन सत्य तो यह है कि दिल्ली में केजरीवाल फिलहाल अजेय हैं। उन्होंने अपने वादे पूरे करने की भरसक कोशिश की है। कहीं-कहीं अतिश्योक्ति भी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस लड़ाई की बात केजरीवाल कर रहे हैं और अधिकारियों की पोस्टिंग तथा स्थानांतरण के आंकड़े जनता को बता रहे हैं, उस पर सवाल उठ रहा है। केजरीवाल और नजीब जंग के बीच जारी शीत युद्ध के कारण जो स्थानांतरण हुए हैं, उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का परिणाम नहीं माना जा सकता।
विश्लेषकों का कहना है कि केजरीवाल कुछ ज्यादा ही आक्रामक और व्यवस्था के खिलाफ लडऩे वाले की व्यक्ति की भूमिका में हैं। जबकि वे ये भूल रहे हैं कि उसी व्यवस्था का एक सूत्र उनके हाथ में भी है। इसलिए उन्हें व्यवस्था को खुद सुधारना होगा और यह व्यवस्था स्थानांतरण या मनचाही पोस्टिंग से नहीं सुधरेगी। इसके लिए कुछ कठोर उपाय करने होंगे। ऐसे उपाय जिनमें केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता न पड़े।
-दिल्ली से रेणु आगाल