भोपाल में मैट्रो आएगी बीआरटीएस टूटेगा?
18-Jun-2015 08:22 AM 1234780

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में देर सवेर लाइट मैट्रो तो दौडऩे लगेगी लेकिन बीआरटीएस कारीडोर को तोडऩा पड़ेगा। आप चाहें तो पाक्षिक पत्रिका अक्स की इस भविष्यवाणी को लिख सकते है। इसके सच होने में कोई संदेह नहीं है। जिस गैर जिम्मेदाराना और अदूरदर्शी रवैये के तहत शहर की चौड़ी सड़कों के बीचों-बीच बीआरटीएस कारीडोर बनाया गया है उसका उपयोग अब शून्य हो चुका है और राज्य सरकार लाइट मैट्रो लाने की तैयारी में है।

लाइट मैट्रो का भोपाल में स्वागत है। आखिर क्यों न हो स्मार्ट शहर बनने की दिशा में यह पहला कदम भी तो है। दुनिया भर के निवेशक भी एयरपोर्ट, मैट्रो, वाईफाई, स्मार्टसिटी आदि देखकर निवेश करने के लिए प्रेरित होते है। उन्हें अच्छी कनेक्टिीविटी भी चाहिए इसलिए भोपाल और इंदौर दोनों शहरों में लाइट मैट्रो आगामी कुछ वर्षों में हकीकत बन सकती है। इन शहरों की जनसंख्या मैट्रो लायक है या नहीं, यहां आसपास उपनगरीय इलाके ज्यादा हैं या नहीं, ट्रेफिक की समस्या है या नहीं। यह अलग विषय है। लेकिन  भारत के सभी बड़े प्रदेशों की राजधानियों और प्रमुख शहरों में अद्योसंरचना की स्पर्धा चल रही है। इसी कारण मैट्रो की आवश्यकता से अधिक अब एक विकास सिम्बल के तौर पर मैट्रो को अपनाया जा रहा है। फिर 20 हजार करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली इस परियोजना में बहुत से सूख चुके दरख्तों के हरियाने की संभावना भी छिपी हुई है। जितना बड़ा प्रोजेक्ट उतना बड़ा खर्च और जितना बड़ा खर्च उतनी ही आमदनी इसलिए प्रदेश के नेता, मंत्री और नौकरशाहों ने मिलकर मैट्रो की आवश्यकता महसूसी हैं तो अवश्य ही मैट्रो आनी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि इस मैट्रो को भोपाल में चलाने के लिए जमीनी स्तर पर क्या प्रयास किए जा रहे हैं। लखनऊ में तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मैट्रो के लिए श्रीधरन जैसे विख्यात विशेषज्ञ को बतौर सलाहकार नियुक्त कर लिया है। लेकिन मध्यप्रदेश में तो अभी बहुत से लोगों को मैट्रो, लाइट  मैट्रो, मोनो रेल का अंतर ही पता नहीं है। अभी तक कोई भी ऐसा व्यक्ति मध्यप्रदेश में नियुक्त नहीं हुआ है जो मैट्रो के विषय में अनुभव प्राप्त हो। कागजी ज्ञान अलग बात है। लेकिन जिस मैट्रो की बात की जा रही है। उससे संबंधित तकनीकी दक्षता रखने वाले व्यक्ति मध्यप्रदेश के पास फिलहाल नहीं है। भोपाल में देर सवेर 73.06 किलोमीटर छह मार्गों पर लाइट मैट्रो चलाने का प्रस्ताव है। इसके लिए दो बड़ी दिक्कते सामने आएंगी। लाइट मैट्रो एलिवेटर या खंभों पर चलेगी। एलिवेटेट ज्यादा सक्सेसफुल है। इनको चलाने के लिए या तो सड़कों के दोनों तरफ जमीन अधिगृहित करनी पड़ेगी या फिर सड़क के बीचों-बीच दिल्ली की तर्ज पर खम्भे खड़े करते हुए उन पर मैट्रो दौड़ाई जा सकती है। इसके लिए सड़कों का चौड़ीकरण अनिवार्य होगा। वैसे देखा जाए तो देर सवेर बीआरटीएस को तोड़कर उसका कबाड़ ओने-पौने दाम में बेचना होगा। यह एक अतिरिक्त खर्चा मैट्रो के साथ अवश्य जुड़ेगा। क्योंकि मैट्रो जिन पिलर पर चलेगी उन्हें लगाने के लिए आदर्श स्थान सड़क के बीचों-बीच ही है। इससे बिना बाधा सड़क ट्रैफिक भी चलेगा और मैट्रो भी दौड़ते रहेगी। लेकिन मैट्रो के साथ-साथ कई दिक्कते है सबसे पहली चुनौती फीडर सर्विस की है। मैट्रो बस की तरह शहर में हर जगह नहीं घुस सकती। वह कुछ प्रमुख जगहों पर जाएगी जहां से गंतव्य तक पहुंचने के लिए साधन सुलभ होने चाहिए इस प्रकार फीडर सर्विस बहुत आवश्यक है। दूसरी समस्या वित्त की है। मध्यप्रदेश 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की स्थिति में नहीं है। सरकार इसे पीपीपी मॉडल के तहत टोल प्लस एन्यूनिटी से बनाना चाहती है। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार को 20 प्रतिशत राशि तो खर्च करनी ही पड़ेगी और 20 प्रतिशत राशि भी इतनी आसान नहीं है 5-6 हजार करोड़ रुपए तो सरकार की जेब से निकलेगा ही। गुजरात में जब इतना खर्चीला प्रोजेक्ट सामने आया था तो उन्होंने अपने पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ही ज्यादा एफिशिएंट बनाने में भलाई समझी और यह काम कम खर्चे में भी हो गया। गुजरात का बीआरटीएस इसी कारण सबसे सफल है। विशेषज्ञ कहते हैं कि भोपाल में बीआरटीएस बनाने वालों ने भविष्य का विचार नहीं किया। यदि लाइट मैट्रो का प्लान था तो फिर बीआरटीएस पर खर्च क्यों किया गया। जिसकी डिजाइन पर अनेक सवाल उठाए जा चुके हैं। सवाल यह है कि जब बीआरटीएस को तोड़ा जाएगा तो इस घटिया स्ट्रक्चर को बनाने के जिम्मेदार अफसरों पर क्या कार्रवाई की जाएगी। दिल्ली में मैट्रो जमीन पर जमीन के भीतर और पिलर पर चल रही है। वहां शहरी ट्रांसपोर्ट के रूप में अत्यंत सफल रही। इसकी गति भी तेज है। भोपाल और इंदौर की लाइट मैट्रो संभवत देश की लाइट मैट्रो होगी। लाइट मैट्रो जमीन में चलने वाली मैट्रो केे मुकाबले कम खर्चीली है। इसकी खासियत यह है कि ट्रेफिक को रोके बगैर इसे पिलर पर खड़ा किया जा सकता है। विदेशों में लाइट मैट्रो का स्ट्रक्चर अलग जगह तैयार किया जाता है शहर में केवल पिलर उठाए जाते हैं। इस तरह यह काम बहुत तेजी से होता है। लेकिन भोपाल और इंदौर में देश की पहली लाइट मैट्रो चलाने के लिए फरवरी माह में मैट्रो रेल कार्पोरेशन नामक कंपनी के गठन को कैबिनेट में स्वीकृति दी थी। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कार्पोरेशन में मुख्य सचिव, पीएस सहित दोनों नगर निगम के महापोरों को सदस्य बनाया गया। भविष्य में जबलपुर में भी लाइट मैट्रो चल सकती है। हालांकि यह योजना अभी तक कागजों से बाहर नहीं निकली है और न ही डीपीआर बन पाई है वैसे डीपीआर पर ही 7 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा आएगा। लेकिन पहले जो 28 किलोमीटर लाइट मैट्रो का प्लान था उसका खर्च 8 हजार करोड़ रुपए था। उस अनुपात से 73 किलोमीटर मैट्रो का खर्च 21 हजार करोड़ रुपए लगभग उसी लाइन पर है।

कैसे चलेगी इंदौर में मेट्रो

शहर में लाइट मेट्रो की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार है। वर्ष 2021 तक दो चरणों में चार रूट पर 190 लाइट मेट्रो चलाने की प्लानिंग है। राज्य सरकार ने भी इंदौर-भोपाल में इस प्रोजेक्ट का काम अगले साल जुलाई में शुरू करने की तैयारियां तेज कर दी हैं। मंगलवार को होने वाली राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में इसके फंड के लिए कंपनी बनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगेगी।

द्य 85 किमी कुल लंबाई, 23000 करोड़ कुल लागत, जमीन पर 12 किमी लंबाई, 220 करोड़ रु. प्रति किमी खर्च

द्यसुपर कॉरिडोर के इस हिस्से के अलावा एमआर-10 में भी कुछ ट्रैक जमीन पर होगा।

एयरपोर्ट- एलिवेटेड (पिलर पर)

63 किमी लंबाई, 100 करोड़ रु. प्रति किमी खर्च

कैसे आएंगे पैसे

20-20 प्रतिशत केंद्र और राज्य सरकार देगी। , 60 प्रतिशत लोन से। हालांकि सरकार पीपीपी मोड पर भी विचार कर रही है

प्रोजेक्ट पर टैक्स

4000 करोड़ रु.। इसमें कस्टम ड्यूटी, वर्क्स टैक्स व अन्य कर शामिल। केंद्र सरकार यदि इस पर राहत देती है तो कुल लागत से यह राशि सीधे कम हो जाएगी।

कब चलेगी पहली मेट्रो

पहला फेस-2018 वर्ष 50 त्न प्रोजेक्ट। 40 स्टेशन बन जाएंगे।

अंतिम फेस-2021 वर्ष प्रोजेक्ट पूरा करने का लक्ष्य

एक मेट्रो की क्षमता-975 यात्री 3 बोगी की एक ट्रेन, एक बोगी में 325 यात्री

लाइट मेट्रो के लिए ही टीओडी पॉलिसी जरूरी होगी, जो शहर के मास्टर प्लान में जल्द जुड़ेगी। मेट्रो के सारे रूट मास्टर प्लान में शामिल होंगे। जहां से मेट्रो गुजरेगी, वहां एफएआर भी अलग होगा।

स्टेशन के बीच दूरी

800 मीटर (शहर के बीच कम तो बाहर एक से डेढ़ किमी)।

80 स्टेशन 5 स्टेशन इंटरलिंक होंगे। इसलिए 75 ही बनाने होंगे।

05 डिपो पहले एक मेजर और एक माइनर डिपो की जरूरत होगी।

मेजर के लिए 40 एकड़ और माइनर के लिए 19 हजार वर्ग मीटर जमीन चाहिए।

डीपीआर  730 लाख रुपए

लाइट मेट्रो निर्माण प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप से किया जा रहा है। इसका रूट 73 किमी का है और 72 ही स्टेशन बनाए जा रहे हैं। इसका संभावित खर्च 21 हजार करोड़ रुपए है। एक किलोमीटर के लिए 500 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। लाइट मेट्रो की जो डीपीआर तैयार होने वाली है उसमें प्रति किलोमीटर 10 लाख रुपए का भुगतान कंसलटेंट कंपनी रोहित गुप्ता एंड एसोसिएट को किया जा रहा है। 20 दिसंबर 2011 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिल्ली मेट्रो रेल निगम से भोपाल मेट्रो के लिए डीपीआर बनाने को कहा। तब इस डीपीआर में 6 करोड़ रुपए खर्च होने थे। मेट्रो का रूट 28.5 किमी और 28 स्टेशन बनने थे। इस परियोजना पर तब 8 हजार करोड़ रुपए खर्च होना था। उस समय तीन गलियारों पर ट्रेन चलाना प्रस्तावित था।

-भोपाल से सुनील सिंह

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^