मुख्यमंत्रियों के लिए शुभ नहीं है सिंहस्थ
05-Jun-2015 09:13 AM 1234801

महाकाल की नगरी उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ का आयोजन तो सदियों से शास्वत है किंतु मध्यप्रदेश में सिंहस्थ के दौरान  मुख्यमंत्रियों की विदाई एक संयोग है या कोई शिव का तांडव कहां नहीं जा सकता। वर्ष 1956 में जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ था उस वक्त उज्जैन में सिंहस्थ आयोजन 8 माह पूर्व ही सम्पन्न हुआ था। उसी समय प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ला ने एक नवंबर से 31 दिसंबर 1956 तक प्रदेश की (दो माह के लिए) बागडोर संभाली। लेकिन उसके बाद जितने भी सिंहस्थ हुए उस समय भारतीय जनता पार्टी या संघ के समर्थन वाली संविद सरकार के मुख्यमंत्री रहे हैं और उनका सिंहस्थ के दौरान जाना तय माना गया है। इसे महज संयोग ही नहीं कहा जा सकता। मध्यप्रदेश में सिंहस्थ के समय मुख्यमंत्रियों की विदाई एक परंपरा बन चुकी है।
1956 के बाद वर्ष 1968 के बाद सिंहस्थ आयोजित हुआ और उसके 11 माह के भीतर ही 12 मार्च 1969 को गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। 1980 में सिंहस्थ के दौरान ही थोड़े समय के लिए मुख्यमंत्री बने सुंदरलाल पटवा भी 17 फरवरी 1980 को रुखसत हो गए। पटवा के साथ सिंहस्थ से जुड़ा हादसा दो बार हुआ। मार्च 1990 में मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए पटवा की सरकार सिंहस्थ सम्पन्न होने के चंद माह बाद ही 15 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादास्पद ढांचा विध्वंस के बाद जाती रही। उसके बाद 2004 में सिंहस्थ के समय मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री उमाभारती थी उमा श्री ने कैलाश विजयवर्गीय के देखरेख में सिंहस्थ सफलता पूर्वक सम्पन्न करवाया। किंतु फिर भी महाकाल प्रसन्न नहीं हुए और 23 अगस्त 2004 को वे मध्यप्रदेश से कुछ इस अंदाज में रुखसत हुई कि आज तक प्रदेश की राजनीति में उनका कोई दखल नहीं है। सिंहस्थ का अगला पड़ाव वर्ष 2016 में है देखना यह है कि 2016 के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में शीर्ष क्रम पर कोई बदलाव आता है या नहीं। क्योंकि इस बार शिवराज की देखरेख में ही सिंहस्थ की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इस बार सिंहस्थ का बजट भी पहले हुए सिंहस्थ आयोजनों से ज्यादा है। शिवराज महाकाल के अन्यन्य भक्त हैं और उनका खुद का नाम भी शिव से जुड़ा हुआ है। हालांकि पुरानी यादों को ताजा करें तो सिंहस्थ के दौरान संघ समर्थित सरकारों के मुख्यमंत्रियों का आना-जाना चलता रहा है। वैसे इस लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद कई मिथक टूटे हैं। पहले सिंहस्थ के समय केन्द्र और मध्यप्रदेश में अलग-अलग दल की सरकारें थी जो बाद में मिथक टूट गया। 2004 में मध्यप्रदेश में सिंहस्थ आयोजन के समय भाजपा सरकार थी लेकिन केन्द्र की एनडीए सरकार के अंतिम दिन चल रहे थे। इस बार दोनों जगह भाजपा की सत्ता पूर्ण बहुमत से है। इसीलिए केन्द्र और प्रदेश दोनों में किसी बदलाव का अंदेशा फिलहाल नहीं है। लेकिन राजनीति में मौसम बदलते देर नहीं लगती। परिस्थितियां तेजी से बदल जाती हैं। इसीलिए सिंहस्थ जैसे ही करीब आ रहा है। कुछ लोगों के दिलों की धड़कनें बढऩे लगी हैं।

22 अप्रैल 2016 से आरंभ होगा सिंहस्थ
सिंहस्थ के मास्टर प्लान में आधारभूत संरचनाओं को अभी से विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। इस बार सिंहस्थ का आयोजन 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक किया जाएगा। इस बार के सिंहस्थ की तैयारियों में सिंहस्थ का प्रथम स्नान 22 अप्रैल को होगा। शाही स्नान 21 मई, अन्य स्नान 9, 11, 17, 19 मई को होगा। वहीं सवा सात किलोमीटर के नए-पुराने घाटों में सिंहस्थ में आने वाले साधुसंतों और भक्तों का स्नान होगा। दो पवित्र नदी क्षिप्रा-नर्मदा के मिलन का साक्षी बनेगा सिंहस्थ। विश्व के लगभग 100 देश से श्रद्धालुओं के आने की संभावना के चलते सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। कोई 5 करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन की संभावना। इस बार स्विस टैंटों में आगन्तुकों के लिए 5 सितारा व्यवस्था होगी। पूरे माह होंगे सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजन। अप्रैल में ही पेशवाई होगी। एक से छह मई तक पंचक्रोशी यात्रा का आयोजन होगा। जगह जगह धार्मिक प्रवचन और सत्संग का आयोजन किया जाएगा।  23 हजार पुलिस बल तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं में 80 हजार की तैनाती होगी। इसमें 60 हजार वॉलेंटियर्स शामिल। सिंहस्थ व्यवस्थाओं-निर्माण के लिए 773 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं।
सिंहस्थ वर्ष     मुख्यमंत्री    कार्यकाल
1956    रविशंकर शुक्ला    1 नवंबर से 31 दिसंबर 1956
1968    गोविंद नारायण सिंह     30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969
1980    सुंदरलाल पटवा    20 जनवरी से 1980 से 17 फरवरी 1980
1992    सुंदरलाल पटवा    5 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992
2004    उमाभारती    8 दिसंबर 2003 से 23 अगस्त 2004
2016    शिवराज चौहान    29 नवम्बर 2005 से
- उज्जैन से श्याम सिंह सिकरवार

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