18-Jun-2015 07:35 AM
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कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के भाषण सरकार के खिलाफ आक्रामक आरोप-प्रत्यारोप से भरे हुए थे। भूमि अधिग्रहण कानून को मुद्दा बनाकर कांगे्रस

ग्रामीणों के बीच घट चुके जनाधार को पुन: प्राप्त करने की कोशिश में है। इसीलिए सोनिया गांधी ने इस कानून को किसान विरोधी बताते हुए मोदी पर तानाशाही का आरोप लगाया है। उन्होंने मोदी की आर्थिक नीतियों पर हमला किया। पिछले लोकसभा चुनाव में घटिया प्रदर्शन के बाद कांग्रेस का यह पहला बड़ा सम्मेलन था।
आरोप लगाया कि मोदी सरकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरणÓÓ के लिए भय और दबावÓÓ का माहौल उत्पन्न करने की अनुमति देकर खतरनाक दोहरा खेलÓÓ खेल रही है। उन्होंने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि वह कल्याणकारी राज्य संरचना को ध्वस्त करने के सुनियोजित प्रयासÓÓ कर रही है। सोनिया ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे भूमि विधेयक और खाद्य सुरक्षा कानून पर सरकार के कदमों का मजबूती से विरोधÓÓ करें। सोनिया के अनुसार एक तरफ प्रधानमंत्री खुद को सुशासन और संवैधानिक मूल्यों के बड़े पैरोकार के रूप में पेश करना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ वह अपने कई सहकर्मियों को घृणास्पद बयानों और सांप्रदायिक धुवीकरण करने की अनुमति देते हैं। यह पहले ही हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने बाने को नष्ट कर चुका है। डर और दबाव का माहौल जानबूझकर उत्पन्न किया गया है।
पार्टी की 1998 से कमान संभाल रही अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन कराने की परंपरा शुरू की। उस समय कांग्रेस केन्द्र में विपक्ष में थी। माउण्ट आबू, गुवाहाटी, दिल्ली और श्रीनगर में इस तरह के सम्मेलन हो चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने सम्मेलन ऐसे वक्त में बुलाया है, जब सांगठनिक चुनावों और राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपने में विलंब हुआ है। राहुल को जनवरी 2013 में जयपुर चिन्तन शिविरÓ के दौरान पार्टी उपाध्यक्ष बनाया गया था। सोनिया ने कहा, वास्तविकता और शैली दोनों का एक और पहलू है जिसका मुझे उल्लेख करना चाहिए तथा यह खेले जा रहे खतरनाक दोहरे खेल से संबंधित है.ÓÓ उन्होंने कहा, वास्तविकता के संदर्भ में, कांग्रेस सरकारों द्वारा दशकों में निर्मित कल्याणकारी राज्य संरचना को ध्वस्त किए जाने के सुनियोजित प्रयास किए जा रहे हैं।ÓÓ सोनिया ने सत्ता के अभूतपूर्व केंद्रीकरण के लिए मोदी पर हमला बोला और कहा कि सरकार की वास्तविकता और शैलीÓÓ दोनों बड़ी चिंताÓÓ का कारण है। उन्होंने प्रधानमंत्री को निशाना बनाते हुए कहा, सत्ता और प्राधिकार का अभूतपूर्व केंद्रीकरण, संसदीय प्रक्रिया एवं नियमों को धता बताना, नागरिक समाज को उत्पन्न खतरा और न्यायपालिका को चेतावनी, यही मोदी शासन की विशेषताएं हैं।Ó
राहुल गांधी ने सम्मेलन के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि मेक इन इंडिया का शेर बहुत बड़ा है, पर उस शेर की आवाज सुनायी नहीं दे रही है। नरेंद्र मोदी सरकार एक हाथ से राज्यों के पैसे देती है और दूसरे हाथ से उसे वापस ले लेती है। राहुल गांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार में किसानों की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि लैंड बिल व मेक इन इंडिया जैसे मुद्दों पर हमने चर्चा की। गरीबों व अनुसूचित जाति व जनजाति के बारे में भी सम्मेलन में बात हुई। राहुल गांधी ने दावा किया कि कांग्रेस पार्टी अपने मुख्यमंत्रियों को काम करने की आजादी देती है। उन्होंने कहा कि हम उन्हें नहीं बताते कि उन्हें क्या करना है, हम सिर्फ को-आर्डिनेशन का काम करते हैं। हमारे मुख्यमंत्री अनुभवी लोग हैं और वे स्वयं निर्णय लेते हैं और सरकार
चलाते हैं।
लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अनजाने में सरकार पर निशाना साधते साधते मोदी सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों की तारीफ कर बैठे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के कार्यक्रमों और पहल की ही नए रूप में पैकेजिंग कर लोगों के सामने ला रही है। अपने भाषण में मनमोहन ने यह स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनसे ज्यादा कुशल सेल्समेन, इंवेन्ट मैनेजर और वक्ता है। पूर्व प्रधानमंत्री के विचारों से ऐसा आभास होना स्वाभाविक है कि संप्रग सरकार के मुखिया के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाह में मिली असफलता के कारणों का अब उन्हें ऐहसास होने लगा है। कांग्रेस पार्टी को इस बात का दुख अवश्य साल रहा होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री पूरे एक दशक तक सत्ता प्रमुख बने रहकर भी अपनी इन कमियों को दूर करने में असफल रहे और जिसकी वजह से पार्टी को केन्द्र की सत्ता से शर्मनाक तरीके से बेदखल होना पड़ा। डॉ. मनमोहन सिंह ने दरअसल कभी अपनी उन कमियों पर विजय पाने की इच्छाशक्ति ही नहीं दिखाई जिनकी वजह से उनकी बेबस एवं लाचार प्रधानमंत्री की छवि बनती रही। दरअसल उस छवि से बाहर निकलने में भी उन्होंने रुचि नहीं ली। इसलिए अगर आज वे मोदी को बेहतर वक्ता, ईवेंट मैनेजर और कुशल सेल्समेन मानने पर मजबूर हो गए हैं तो यह उनके दिल में एक साल से छुपा वह दर्द है जिसमें उनकी कुर्सी खोने के कारण शायद नजर आने लगा है।
-ऋतेन्द्र माथुर