सोमनाथ में नहीं घुसेंगे गैर-हिंदू
18-Jun-2015 07:08 AM 1235030

हिंदुओं के सबसे पवित्र मंदिर सोमनाथ में अब गैर-हिंदुओं का प्रवेश परमिट के द्वारा ही संभव हो सकेगा। इससे पहले इस भव्य मंदिर मेंं सभी धर्मावलंबी बेरोकटोक आते थे। कांग्रेस ने मंदिर में गैर- हिंदुओं के प्रवेश पर रोक की आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि गुजरात के स्थानीय निकाय के चुनाव के समय यह आदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शय पर दिया गया है। कांग्र्रेस ने सवाल उठाया कि इसका अर्थ यह है कि बाबा अंबेडकर जिंदा होते, तो उन्हें इस मंंदिर में प्रवेश से रोक दिया जाता। कांग्रेस का तर्क कितना जायज है, यह अलग विषय है किंतु गैर हिंदुओं को रोकने की यह पहल सराहनीय नहीं कही जा सकती। हिंदू संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकं में विश्वास करती है। ऐसी स्थिति में भगवान के दर्शन से किसी को रोकना, एक यर्थाथवादी दृष्टिकोण नहीं कहा जा सकता।

गिरधर के कंधों पर भाजपा

कांग्रेस के गिरधर गमांग अब भाजपा को अपने कंधों पर धरेंगे। चार दशक से कांग्रेस की सेवा में तैनात गिरधर गमांग ने भाजपा में दस्तक देने से पहले 30 मई को कांग्रेस छोडऩे की घोषणा की थी। गमांग पिछले लंबे समय से असम की राजनीति में कांग्रेस द्वारा हासिए पर धकेल दिए गए थे। ये वही गमांग हैं जो मुख्यमंत्री का पद संभालते हुए भी वाजपेयी सरकार के खिलाफ विश्वासमत के दौरान कोरापुट के सांसद के नाते लोकसभा में वोट डालने आए थे। उस समय मात्र एक मत से वाजपेयी सरकार पराजित हो गई थी। हालांकि अब गमांग ने इस पराजय के लिए एनसीपी के सैफुद्दीन सोज को जिम्मेदार ठहराया है, जिन्हें वी.पी. सिंह ने लंदन से फोन करके सरकार के खिलाफ वोट डालने का कहा था। राजनीति का वह घिनौना खेल अब खत्म हो चुका है लेकिन सवाल यह है कि विश्वासघात करने वाले गमांग भाजपा को कितना लाभ पहुंचा पाएंगे। गमांग के भाजपा में आने के पीछे उड़ीसा के नेता और भाजपा के उड़ीसा से एकमात्र सांसद जुआल ओराम की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन इससे स्थानीय भाजपा नेतृत्व असंतुष्ट हो सकता है। गमांग की आदिवासी वोटों पर अच्छी पकड़ है। वे स्वयं इसी समुदाय से हैं और 72 वर्ष की वयोवृद्ध उम्र में भी उन्होंने आदिवासियों के बीच काम करते हुए अपनी छवि एक जमीनी नेता की बना रखी है। भाजपा ने असम में स्थानीय निकाय और लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है। भाजपा को यहां एक जाने-पहचाने चेहरे की आवश्यकता है। गमांग के रूप में एक अनुभवी नेतृत्व तो अवश्य मिलेगा लेकिन स्थानीय स्तर पर दूसरी चुनौतियां हैं। कांग्रेस का ग्राफ असम में लगातार गिर रहा है। कई बड़े नेता कांग्रे्रस से नाराज हैं। तरुण गोगोई मुख्यमंत्री के रूप में विवादास्पद रहे हैं। 2006 के बाद से कांगे्रस यहां लगातार जीती है। अगले वर्ष यहां चुनाव हैं। वर्ष 2011 में भाजपा 120 सीटों पर लड़ी, कुल 5 सीटें ही जीत पाई थी। 126 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस 78 सीट लेकर पूर्ण बहुमत में रही थी, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में 36.50 प्रतिशत वोट मिला था और उसने 14 में से 7 लोकसभा सीटें जीती थीं। कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 29.60 रह गया था। ऐसी स्थिति में वर्ष 2016 के चुनाव में भाजपा भारी उलटफेर कर सकती है। लेकिन लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के मुद्दे अलग-अलग रहते हैं। इसी वजह से भाजपा इस राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने की भरसक कोशिश कर रही है। देखना है गमांग के आने से क्या फायदा मिलता है।

कैलाश को भावुकता महंगी पड़ी

भारत मेें सच बोलने की कीमत चुकानी पड़ती है। कहने को भारत एक लोकतांत्रिक देश है, किंतु यहां के कुछ संगठनों में तानाशाही और फांसीवाद सर चढ़कर बोलता है। ऐसा ही एक वाकया हुआ राजस्थान में, जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को जेड प्लस सुरक्षा देने पर सवाल उठाने वाले राजस्थान भाजपा के प्रवक्ता कैलाश नाथ भट्ट को अपने पद से हाथ धोना पड़ा। भट्ट भी स्वयंसेवक रहे हैं। स्वयं सेवक के नाते उन्हें सदैव सत्य के पक्ष में खड़े होने की सीख मिली है। लेकिन व्यवहारिक रूप से जब उन्होंने अपने संघीय संस्कारों का प्रयोग किया, तो पद से हाथ धोना पड़ा। चिंता इस बात की है कि भट्ट के साथ हुए इस व्यवहार पर सभी मौन रहे। हालांकि बाद में भट्ट ने कहा कि उन्होंने ऐसा भावुकता में कहा था। लेकिन भट्ट ने जो  प्रश्न उठाए थे, वे जायज थे। निश्चित रूप से जेड प्लस सुरक्षा की आवश्यकता संघ प्रमुख को उन दिनों में भी नहीं पड़ी, जब संघ पर वास्तविक खतरा मंडरा रहा था। आज संघ के किसी भी कार्यकर्ता को लेकर समाज में कोई दुर्भावना नहीं है। ऐसी स्थिति में संघ प्रमुख की जेड प्लस सुरक्षा स्टेटस सिंबल ज्यादा प्रतीत हो रही है। संघ जैसे सामाजिक संगठन अपनी जान हथेली पर रखकर जनता के  बीच कार्य करते हैं। भट्ट ने यह बिल्कुल उचित ही कहा था कि सुरक्षा संघ प्रमुख को स्वयं सेवकों से दूर कर देगी और उनकी गोपनीयता भी भंग हो जाएगी। लेकिन भट्ट की सच्चाई को अब भला कौन स्वीकार करेगा। अब तो भाजपा अनेक प्रदेशों और केंद्र मेें सत्तासीन है। इसलिए सत्ता सुख का चस्का सभी को थोड़ा-बहुत लग ही जाता है। वैसे भट्ट ने सत्य बोलकर अपना भविष्य अंधकारमय कर लिया है। भाजपा में अब उनका कोई नामलेवा नहीं है। बेहतर है वे भी गोविंदाचार्य की तरह सम्मानजनक रास्ता पकड़ लें अन्यथा उनके घुटन भरे दिनों की शुरुआत तो हो ही चुकी है।

नशे में मदहोश पंजाब

 

नशे के सेवन को लेकर पंजाब की हालत देश में सबसे बदतर बताई जा रही है। एक राष्ट्रीय सेमिनार में यह खुलासा हुआ कि पंजाब की जनसंख्या के 67 प्रतिशत लोग नशे से ग्रसित हैं। यह नशा युवा पीढ़ी को तबाह कर रहा है।  500 बिलियन डॉलर के इस विश्व व्यापी कारोबार ने पंजाब की खुशहाली छीन ली है। यह महज संयोग ही है कि पंजाब की जनसंख्या में कैंसर पीडि़तों की तादात भी तेजी से बढ़ रही है। पंजाब एक खुशहाल और अमीर प्रांत है। लेकिन नशे की लत तथा महंगी जीवन शैली ने पंजाब का अमन और चैन छीन लिया है। पंजाब से राजस्थान जाने वाली कैंसर एक्सप्रेस इस हकीकत को बयां कर रही है। सरकार ने नशे पर रोक के लिए कोई प्रभावी उपाय नहीं किए। पंजाब के ज्यादातर पुनर्वास केंद्र संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। नशा मुक्ति के लिए चलाए गए अभियान खोखले साबित हुए हैं। नशे की तस्करी रोकने मेें सरकार पूरी तरह असफल रही है। आधुनिकता के कारण शराब और तम्बाकू पंजाब की जीवन शैली का अहम हिस्सा बन गए हैं। लोगों के पास जमीनों के दाम बढऩे से अचानक बहुत पैसा आ गया है, जिसे वे नशे में बर्बाद कर रहे हैं। पंजाब का उदाहरण पूरे देश में दिया जाता था। लेकिन आज का पंजाब वैसा नहीं है। हरित क्रांति पंजाब से ही जन्मी थी, पर उर्वरकों और कीटनाशकों ने पंजाब की जमीन को जहरीला बना दिया है। कृषि अब पंजाब में लाभ का धंधा नहीं है। मिट्टी के साथ खिलवाड़ करने के नतीजे सामने आ चुके हैं। पंजाब तबाही की कगार पर है और नशा यहां की तरुणाई को खोखला कर रहा है।

रोहतांग टनल 2017 में

नौ किलोमीटर लंबी रोहतांग टनल दो साल में बनकर तैयार हो जाएगी। बीआरओ ने 2017 तक इस सुरंग के निर्माण का लक्ष्य रखा है। इस पर करीब 1700 करोड़ खर्च आएगा। निर्माण में जुटे इंजीनियर और अधिकारी भी इसके तय समय पर पूरा होने का दावा कर रहे हैं। अभी तक दोनों छोर से करीब पौने पांच किलोमीटर खुदाई का कार्य हो चुका है। टनल बनने से रोहतांग के रास्ते से लाहौल-पांगी और लेह की दूरी भी करीब 46 किलोमीटर कम हो जाएगी। रक्षा मंत्रालय भी टनल को लेकर गंभीर है। दिल्ली से बीआरओ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल आरएम मित्तल ने रोहतांग टनल के निर्माण का जायजा लिया और काम में तेजी लाने के निर्देश दिए। टनल बनने से भारतीय सेना और लाहौल-पांगी घाटी के लोग छह माह तक बर्फ में कैद नहीं रहेंगे। भारी बर्फबारी में भी सैलानी जब चाहे तब लेह तक पहुंच सकेंगे। सेना भी इस रास्ते से रसद और गोला बारूद पहुंचा सकेगी। रोहतांग टनल के प्रमुख कमांडर एस. राव का कहना है कि उनका पूरा प्रयास है कि रोहतांग टनल को 2017 तक किसी भी सूरत में बनाया जाए। रोहतांग टनल का निर्माण कार्य 28 जून 2010 में शुरू हुआ था और इसे पूरा करने का लक्ष्य 2015 रखा गया था।

-अरविन्द नारद

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