19-Mar-2013 10:05 AM
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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कागजों पर इमारतें खड़ी हो रही हैं। हितग्राहियों से पैसे लिए जा चुके हैं लेकिन जमीनों पर कहीं दूर-दूर तक कोई विशेष प्रगति होती नजर नहीं आती। जब-जब हल्ला मचता है थोड़ा बहुत काम दिखाकर खानापूर्ति कर ली जाती है और यह आश्वासन दिया जाता है कि समयसीमा में निर्माण कार्य हो जाएगा, लेकिन समयसीमा निकली जा रही है और निर्माण के नाम पर जो कुछ हुआ है वह लगभग शून्य ही है। इससे एक तरफ तो यह आशंका बलवती हो रही है कि कहीं कंपनी द्वारा आनन-फानन में घटिया निर्माण न कर दिया जाए। वहीं दूसरी तरफ यह डर भी सताने लगा है कि बिना एक ईंट लगाए जो लाखों रुपए जमा करा लिए हैं उनका हश्र भी वैसा ही न हो जैसा कि कुछ योजनाओं में पैसा जमा कराकर बाद में मामूली ब्याज पर उसे लौटाया गया था।
सबसे बड़ी समस्या महादेव परिसर, ंकीलनदेव परिसर और तुलसी टॉवर को लेकर आ रही है। आलम यह है कि सरकार के अधिकारियों के बयानों में स्पष्ट विरोधाभाष है। उपायुक्त एनके गुप्ता कहते हैं कि तीनों टॉवरों में हर तरह की अनुमतियां मिल गई हैं और काम चल रहा है यद्यपि जिस कंपनी ने ठेका लिया है उसे लेबर ढूंढने में परेशानी आ रही है तो वही हाउसिंग बोर्ड के आयुक्त मुकेश गुप्ता का कहना है कि तुलसी टॉवर में अभी पर्यावरण विभाग से क्लीयरेंस नहीं मिली है। बाकी महादेव और कीलनदेव में काम ठीक से चल रहा है कंपनी अपने श्रेष्ठ स्रोतों का उपयोग इन इमारतों के निर्माण में कर रही है। थोड़े अंतराल पर दो जिम्मेदार अधिकारियों से बात की गई और दोनों के वक्तव्यों में भिन्नता पाई गई। एनके गुप्ता का कहना है कि तय समय सीमा से अधिक विलंब होने पर संबंधित कंपनी से पेनल्टी लिए जाने का प्रावधान है, लेकिन सवाल यह है कि विलंब का खामियाजा जो ग्राहकों द्वारा भुगता जाएगा उसकी परवाह कौन करेगा। तुलसी टॉवर का ही मामला लें तो इस आवासीय योजना में 96 फ्लेट्स का निर्माण 30 माह के भीतर करने का लक्ष्य तय किया गया है। फरवरी 2012 में निर्माण कार्य कथित रूप से प्रारंभ हुआ और अभी तक लगभग 14 माह पूर्ण होने पर हैं साइट पर कोई विशेष प्रगति नहीं है। यह योजना मई 2010 में प्रस्तावित की गई थी जिसके लिए पंजीयन 16 जून 2010 से 15 जुलाई 2010 तक किए गए थे। वर्ष 2011 में गृह निर्माण मंडल के कमिश्नर द्वारा जारी एक पत्र में यह कहा गया कि उक्त योजना हेतु कुछ अनुमतियां मंडल को प्राप्त होना बाकी हंै, जिसके फलस्वरूप निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सका है, इसीलिए जो किश्त जुलाई 2011 में देय थी उसे दिसंबर 2011 में जमा करना सुनिश्चित किया गया। हितग्राहियों द्वारा अभी तक कुल भवन की 35 प्रतिशत राशि जमा कर दी गई है जो कि संपूर्ण रूप से लगभग 20 करोड़ है। 2012 के जुलाई तक कोई भी काम शुरू नहीं हुआ था। यह योजना दिसंबर 2013 तक पूरी हो जानी थी, लेकिन अब पूरी होती कहीं नहीं दिखाई दे रही। शायद इसी कारण इसे पुनरीक्षित कर जुलाई 2014 तक बढ़ा दिया गया है। लेकिन इस सीमा में भी इस योजना का काम पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है। यही हाल दूसरी योजनाओं का है। खास बात यह है कि जब विभाग को पूरी अनुमतियां नहीं मिलीं थी तो उसने हितग्राहियों से 35 प्रतिशत राशि ही क्यों ली। यदि हितग्राही समय पर पैसा न करे तो उस पर 14 प्रतिशत ब्याज भारित किया जाता है जबकि अधिक समय तक हितग्राही की राशि जमा रहने पर मंडल स्टेट बैंक की बचत ब्याज दर से ब्याज देता है जो अंतर लगभग 10 प्रतिशत है। वसूली करने में हाउसिंग बोर्ड आगे हैं, लेकिन ग्राहकों का नुकसान होने की स्थिति में उन्हें बहुत मामूली ब्याज देकर ठग लिया जाता है। इस दौरान जो लोग पैसे जमा कराते हैं वे भी कीमतें ज्यादा होने के कारण अन्यत्र आवास नहीं खरीद पाते। भोपाल में ऐसी कई आवासीय परियोजनाएं हैं जिनका ठेका समय सीमा में कार्य न होने के कारण पहले निरस्त किया गया और बाद में दूसरे ठेकेदार द्वारा कार्य करवाया जा रहा है। इनमें प्रगति परिसर नेहरू नगर, हाउसिंग पार्क बैरसिया रोड, विश्वकर्मा नगर बैरसिया रोड आदि परियोजनाओं में ठेकेदार द्वारा काम बंद किए जाने पर दूसरे व्यक्ति को ठेका दिया गया और अब तकरीबन डेढ़ से दो वर्ष इन योजनाओं की अवधि बढ़ चुकी है। आलम यह है कि कुछ योजनाएं जो 2011 में प्रारंभ हुई थी उनके पूर्ण होने की तिथि 2014 तक बताई जा रही है पर इसमें भी संदेह है। हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष रामपाल सिंह का कहना है कि काम गति से करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन काम होता दिखाई नहीं दे रहा। तुलसी टॉवर के ही साइट इंजीनियर प्रिंस पांडे ने बताया कि इनीशियल स्टेज पर काम चल रहा है। वहीं उनके सीनियर चरणजीत सिंह कहते हैं कि बैसमेंट में काम हो गया है, लेकिन ये इमारत सर उठाकर कब खड़ी होगी इसका किसी को पता नहीं है। सिर्फ बातें की जा रही हैं।
दूसरी तरफ विभिन्न योजनाओं में प्लाट, मकानों के दाम बढऩे से भी जनता परेशान है। हाउसिंग बोर्ड ने अयोध्या नगर में 40 वर्गमीटर वाले प्लॉट ईडब्ल्यूएस की बुकिंग 3.65 लाख रु. में की थी। तब कलेक्टर गाइडलाइन के रेट 4 हजार वर्गमीटर थे। इस आधार पर 1.60 लाख का प्लॉट और बाकी कंस्ट्रक्शन की कीमत थी। अब वर्ष 2012-13 के लिए गाइडलाइन में जमीन की कीमत 15 हजार वर्ग मीटर है। इसके चलते प्लॉट की कीमत ही 6 लाख रुपए हो गई और मकान की कुल कीमत करीब आठ लाख रुपए पहुंच रही है।
बोर्ड के संभाग कार्यालय क्रमांक 4-5 में अक्टूबर 2010 में 700 ईडब्ल्यूएस और 140 एलआईजी की बुकिंग की गई थी। इसमें ईडब्ल्यूएस 3.65 लाख और एलआईजी 6.50 लाख रुपए में बुक किए गए थे। अब इनका निर्माण लगभग पूरा होने को है। ऐसे में संभाग कार्यालय ने आवंटियों को पजेशन देने के लिए कीमतों का नए सिरे से निर्धारण किया है। इसमें 2008 के एक सर्कुलर को आधार बनाते हुए मौजूदा साल की कलेक्टर गाइड लाइन से कीमतें तय की गई हैं। इसके तहत ईडब्ल्यूएस की कीमत करीब 8 लाख और एलआईजी की 15 लाख रुपए आ रही है। हालांकि, आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हाउसिंग बोर्ड ने अभी तक इसकी मंजूरी नहीं दी है। बोर्ड के अधिकारी पसोपेश में हैं कि कीमतें कितनी बढ़ाई जाएं? उधर, लोगों की आपत्ति है कि बोर्ड ने बुकिंग के वक्त विज्ञापन में इस तरह की शर्ते नहीं बताई थीं, लिहाजा कीमतें नहीं बढ़ाई जाएं। रिवेयरा टाउन, अभिरुचि परिसर समेत प्रदेश के अन्य शहरों की कॉलोनियों में भी यही स्थिति है।
महादेव, कीलनदेव में तेजी से काम चल रहा है काम करने वाले लोग आ चुके हैं। जहां तक कीमतें बढ़ाने की बात है तो उस पर चर्चा की जा है। गरीबों को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा।
-रामपाल सिंह, अध्यक्ष हाउसिंग बोर्ड