यह शहर नहीं है गरीबों के लिए
19-Mar-2013 10:03 AM 1234805

भोपाल, इंदौर, जबलपुर या मध्यप्रदेश के किसी भी राजभोगी शहर में रहना है तो अपनी जेब मजबूत कर लीजिए या फिर शहर में रहने का सपना ही त्याग दीजिए। बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने भोपाल की तुलना न्यूयॉर्क से क्या कर दी यहां की जमीनों के दाम न्यूयॉर्क को टक्कर देने लगे। इन बढ़ते दामों में अब कलेक्टर गाइड लाइन आग लगाने वाली है और रिटायर्ड वरिष्ठ आईएएस एमएन बुच की मानें तो भोपाल सहित तमाम शहर मुनाफाखोरों, जमाखोरों, भ्रष्टाचारियों, उद्योगपतियों तथा काली कमाई वालों के आश्रयदाता बनने वाले हैं। क्योंकि ईमानदार दो जून की रोटी का जुगाड़ करने वालों के बस में नहीं है अब यहां की जमीनें खरीदना या यहां पर प्रापर्टी बना पाना। इतना ही नहीं सुपर बिल्ट अप एरिया का शुल्क भी अब रजिस्ट्री में अलग से लगेगा यानी फ्लेट खरीदने वालों को भी ज्यादा दाम चुकाने होंगे क्योंकि रजिस्ट्री में शामिल होगी सीढिय़ां, बालकनियां तथा पोर्च। यही नहीं कई और ज्ञात-अज्ञात शुल्क वसूलने की तैयारी की जा रही है हमारी दयावानÓ सरकार द्वारा। यह कैसी गरीबों की पक्षधरता है जो उन्हें शहर में बसने से रोक रही है। कहने को तो सरकार सस्ते आवास उपलब्ध कराना चाहती है, लेकिन सच तो यह है कि कॉलोनाइजर सस्ते आवास दे ही नहीं सकते। जमीनों के बाजार में जो कृत्रिम बूम पैदा किया गया है उसे देखकर लगता है कि भारत जापान है जहां जमीन की बेहद कमी है। बुच कहते हैं कि सरकार चाहे तो जमीनों के दामों को नियंत्रित कर सकती है इसके लिए सरकार को सस्ते दामों पर पर्याप्त संख्या में मकान, फ्लैट्स, प्लाट्स उपलब्ध कराने चाहिए। उन्होंने बताया कि जब वे इंदौर में 73-74 के दशक में थे उस समय उन्होंने 14 हजार मकान तथा 16 हजार फ्लैट एक साथ उपलब्ध करा दिए, जिसके चलते निजी बिल्डरों के हौसले पस्त हो गए, लेकिन लगता है मध्यप्रदेश में बिल्डरों के हौसलों से टक्कर लेने का दुस्साहस सरकार के पास नहीं है। इसीलिए जानबूझकर साजिश के तहत शहरों की जमीनें बेतहाशा महंगी की जा रही है। आलम यह है कि भापेाल के केंद्र बिंदु से लेकर आसपास 10-10 किलोमीटर तक के दायरे में किसी मध्यम वर्गीय की जमीन खरीदने की हैसियत ही नहीं बची है। वे शहर से दूर जमीनें खरीदने के लिए विवश हैं जबकि शहर में अभी जगह की कमी नहीं है। हालांकि हाउसिंग बोर्ड ने ईडब्ल्यु एस और एलआईजी की दरें नहीं बढ़ाने का फैसला किया है, लेकिन सच तो यह है कि ये दाम पहले से ही काफी बढ़ चुके हैं और अब कलेक्टर भोपाल ने कहा है कि प्रस्तावित गाइड लाइन में जनप्रतिनिधियों व बिल्डर्स की आपत्ति के बाद नए सिरे से समीक्षा की जाएगी पर आपत्ति दर्ज कराने की भला किसे पड़ी है। कीमतें बढऩा तो लाभ का धंधा है और लाभ से भला कौन हाथ धोना चाहेगा।
भोपाल का ही उदाहरण लें तो चिनार ड्रीम सिटी में फ्लेट बुकिंग 15 सौ रुपए प्रति वर्गफीट के हिसाब से हो रही है और नई गाइड लाइन में दाम 2000 रुपए प्रति वर्गफीट कर दिया गया है। बावडिय़ा कला में नई गाइड लाइन के मुताबिक नए दाम 2400 रुपए प्रतिवर्ग फुट होंगे। ऐसी स्थिति में प्रापर्टी की रजिस्ट्री कराने के लिए 250 प्रतिशत तक ज्यादा स्टांप ड्यूटी देनी पड़ सकती है। सरकार ने गैस सिलेंडरों पर दाम घटाकर कलेक्टर गाइड लाइन के जरिए बड़ी चालाकी से गरीब लोगों की जेब काटी है। बुच कहते हैं कि सरकार चाहे तो नुकसान उठाए बगैर सस्ते मकान और जमीन आम आदमी को मुहैया करा सकती है, लेकिन जब सरकार ही मुनाफा कमाने लगेगी तो फिर बाकी बिल्डर्स भला क्यों पीछे रहेंगे। जहां तक रजिस्ट्री का प्रश्न है। वर्तमान में भोपाल जिले में ही स्टाम्प ड्यूटी से राजस्व हासिल करने का लक्ष्य 700 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया है जो वर्तमान वर्ष से 150 करोड़ रुपए ज्यादा है। यह बेहिसाब वृद्धि है जिससे जनता के साथ-साथ बिल्डर भी परेशान है। फ्लैट के मालिकों को अब एक्चुअल बिल्ड अप एरिये के बजाए सुपर बिल्ड अप एरिया का दाम देना पड़ेगा। दूसरा पेंच यह है कि फ्लेट की रजिस्ट्री में ग्राउंड फ्लोर को छोड़कर हर अगले फ्लोर पर जमीन के दाम की 90 प्रतिशत वैल्यु पर रजिस्ट्री होती है जो कि बहुत ज्यादा है। इसे घटाकर 70 प्रतिशत किया जाना चाहिए। अन्यथा फ्लैट भी आम आदमी के दायरे से बाहर चला जाएगा। कुछ समय पहले एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि जमीन के दाम बढऩे के मामले में भारत में भोपाल शहर दूसरे नंबर पर हैं। अभी हाल ही में एनएचबी (नेशनल हाउसिंग बैंक) बैंक ने प्रॉपर्टी के दामों की जानकारी जुटाई है। उसके मुताबिक भी दाम ज्यादा हंै। एनएचबी में औसत दाम 10 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर है। वहीं गाइड लाइन में औसत दाम 20 हजार रुपए प्रतिवर्ग मीटर है, लेकिन फ्लैट खरीदने वालों के लिए ज्यादा दिक्कत है। फ्लैट की रजिस्ट्री सुपर बिल्ट अप एरिया होने से सीढिय़ों और कॉरीडोर के ऐसे हिस्से की भी रजिस्ट्री करानी पड़ती है जो सभी के उपयोग में आती है। इस प्रकार 2000 वर्ग फीट के फ्लैट में 28 सौ वर्ग फीट हिस्से की रजिस्ट्री कराई जाती है। जिससे 40 प्रतिशत ज्यादा स्टाम्प ड्यूटी देनी पड़ रही है जो एक महंगा सौदा है। हाल ही में भोपाल में बीडीए ने छह हजार फ्लैट बनाने की घोषणा की है, लेकिन सच तो यह है कि इन फ्लैट्स पर भी दाम बेतहाशा लगने वाले हैं और जिस वर्ग के लिए यह फ्लैट्स बनाए जा रहे हैं वे लोग इन फ्लैट्स को खरीदने की हैसियत में नहीं रहेंगे।

नियमानुसार सीढ़ी, पार्किंग एवं चौकीदार के कमरे की रजिस्ट्री नहीं की जा सकती क्योंकि इनका स्वामित्व सरकारी होता है। रजिस्ट्री  होने की स्थिति में इनके स्वामित्व पर भी दावेदारी की जाने लगेगी और निर्माण भी किया जाने लगेगा जो कि नियम विरुद्ध होगा।
- सुनील मूलचंदानी, प्रो. चिनार बिल्डर्स

कुमार सुबोध

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