18-Jun-2015 07:17 AM
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20-25 या 150 संख्या मायने नहीं रखती। जज्बा मायने रखता है। मणिपुर में जब सेना की टुकड़ी पर हमला करके भारतीय सैनिकों को आतंकवादियों ने कू्ररतापूर्वक मार गिराया था, तब सभी को
यह आशंका थी कि हमेशा की तरह ठंडा रवैया अपनाकर और मुंह जुबानी बयान देकर भारत की सरकार शांत होकर बैठ जाएगी लेकिन 9 जून को जैसे ही मीडिया में यह खबर पता लगी कि भारतीय सेना ने पहली बार सीमा पार म्यांमार के भीतर 7 किलोमीटर तक घुसते हुए मानवता के दुश्मन बने आतंकवादियों को मौत की नींद सुला दिया है, तो सारी दुनिया को यह अहसास हो गया कि भारत एक सॉफ्ट स्टेट नहीं है वक्त आने पर वह दुश्मन को कहीं भी दबोच सकती है। यह सत्य है कि म्यांमार एक मित्र राष्ट्र है और नरेंद्र मोदी की म्यांमार यात्रा के बाद विश्वास का जो माहौल बना है उसके चलते दोनों देश आतंकवाद से लडऩे के लिए संकल्पित हुए हैं। इसीलिए जब भारतीय सेना ने म्यांमार की ओर भाग चुके उन हत्यारे आतंकवादियों को पकडऩे के लिए 13 घंटे का ऑपरेशन ऑल आउट चलाया, तो उसकी भनक दुनिया में किसी को भी नहीं लगी। तब तक भी नहीं जब तक कि भारतीय सेना की मेजर रुचिका शर्मा ने दिल्ली में प्रेस ब्रीफिंग करते हुए कहा कि ऐसे ऑपरेशनों में कमांडो कार्रवाई करते हुए आगे बढ़ते हैं, लाशें नहीं गिनते। इससे साफ होता है कि सेना ने 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया और किसी भी सैनिक को खंरोच तक नहीं आई। भारतीय सेना की संभवत: यह पहली सर्जिकल स्ट्राइक कही जा सकती है क्योंकि इससे पहले जितने भी ज्वाइंट ऑपरेशन किए गए वे सर्च एण्ड हंट ऑपरेशन थे, लेकिन सर्जिकल ऑपरेशन में आतंकवादियों को उन्हीं की तर्ज पर जवाब दे दिया गया। हालांकि मीडिया और केन्द्र सरकार के दो मंंत्रियों राज्यवर्धन सिंह राठौर तथा मनोहर पर्रिकर ने जिस तरह का हास्यास्पद प्रोपेगण्डा किया उससे सेना की छवि को धक्का भी पहुंचा। अंग्रेजी मीडिया ने दावा किया कि कुल 7 आतंकी मारे गए। जैसे अंग्रेजी मीडिया के वे पत्रकार स्वयं जाकर लाशें गिन आए हों। म्यांमार के घने जंगलों में जो कुछ हुआ उसका सच सेना ने वीडियो में रिकार्ड किया है जो गोपनीय है। लेकिन कुछ शूरवीर किस्म के लोग ऐसा दावा कर रहे हैं मानों उन्हें सारी जानकारी मिल गई हो। इस सर्जिकल हमले के बाद पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने परमाणु बम फेकने की धमकी दी थी। इसी से अंदाजा लगा लेना चाहिए कि सेना का यह आपरेशन सटीक है।
सेना के स्पेशल पैरा कमांडोज ने दो अलग-अलग जगह इन उग्रवादियों के ठिकाने पर हमला करके आतंकी हमले के दोषी उग्रवादियों को ढेर कर दिया। इस पूरे ऑपरेशन में भारतीय सेना को कोई नुकसान नहीं हुआ। म्यांमार सरकार को जानकारी उस वक्त दी गई, जब यह ऑपरेशन आधे से ज्यादा पूरा हो चुका था।
केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि यह कार्रवाई पीएम मोदी की रजामंदी के बाद की गई। देर रात ही सेना के हेलिकॉप्टर्स ने पैरा कमांडोज को म्यांमार के सीमा के अंदर एयरड्रॉप किया। ऑपरेशन तड़के 3 बजे शुरू हो गया। हालांकि, भारतीय राजदूत इसके बारे में म्यांमार के विदेश मंत्रालय में उस वक्त बता पाए, जब सुबह तयशुदा वक्त पर उनके दफ्तर खुले। कमांडोज ने 13 घंटे के ऑपरेशन में दोषी उग्रवादियों को ठिकाने लगा दिया। इस ऑपरेशन में इंडियन एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर और ड्रोन्स ने स्पेशल कमांडोज की मदद की। कमांडोज म्यांमार के सात किमी अंदर तक घुस गए। इंटेलिजेंस के इन्पुट्स के आधार पर कमांडोज नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) के कैंपों तक चुपचाप पहुंचे। कमांडोज को इन उग्रवादियों के कैंपों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों मीटर तक रेंग कर जाना पड़ा। तकनीकी एक्सपर्ट्स ने कन्फर्म किया कि आतंकी इन्हीं कैंपों में हैं। ड्रोन्स के जरिए उन पर कई घंटों से नजर रखी गई थी। इसके बाद, कमांडोज ने जो किया, उसकी आधिकारिक जानकारी सेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दी।
सेना की ओर से जो आधिकारिक जानकारी दी गई, उसमें कहीं यह बात नहीं कही गई कि यह मिशन म्यांमार और भारतीय सेना ने मिलकर किया। बस इतना ही बताया गया कि म्यांमार को इसकी जानकारी दी गई। सेना के बयान में कहा गया, हम इस मामले पर म्यांमार के अधिकारियों से संपर्क में हैं। दोनों देशों की सेनाओं के बीच सहयोग का पुराना इतिहास है। हम आतंकवाद से लडऩे की दिशा में उनके साथ मिलकर काम करने की दिशा में सोच रहे हैं। हालांकि, म्यांमार और भारत के बीच सेना को एक दूसरे के क्षेत्र में मंजूरी लेकर घुसने की आजादी है। लेकिन भारत को डर था कि ऐसा करने पर सूचना लीक हो सकती है और आतंकी फरार हो सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि उग्रवादी संगठन के म्यांमार सेना में संपर्क हैं।
जिन पैराकमांडोज ने मिशन को अंजाम दिया। यूनिट में कुछ हजार स्पेशली ट्रेन्ड कमांडोज होते हैं। यह कमांडोज पैराशूट रेजिमेंट के हिस्सा हैं। इसमें स्पेशल फोर्सेज की सात बटालियंस शामिल हैं। इस कमांडो यूनिट का निर्माण भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुई जंग के दौरान हुआ था। माना जाता है कि ये कमांडोज महाद्वीप के बाहर भी ऑपरेट कर चुके हैं। ये कमांडोज नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के अहम हिस्सा हैं। ये हाईजैक और आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में महारत रखते हैं। इस यूनिट को बहुत सारे अशोक चक्र और अन्य बहादुरी के मेडल मिल चुके हैं। जून 2000 में सियेरा लियोन में इन कमांडोज ने गोरखा राइफल्स के 200 से ज्यादा सैनिकों को बचाया था। इन सैनिकों को विद्रोहियों ने बंदी बनाकर रखा था। श्रीलंका में लिट्टे से निपटने के लिए भेजी गई शांति सेना में भी इन कमांडोज की अहम भूमिका थी। 1971 की जंग में ढाका पहुंचने वाली पहली यूनिट पैरा कमांडोज ही थे। 1999 के कारगिल के जंग में कई सफल मिशनों को अंजाम दिया।
डोभाल ने यात्रा टाली
देश के नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर अजीत डोभाल ने आखिरी वक्त पर पीएम के साथ बांग्लादेश दौरे पर जाना टाल दिया। डोभाल बीते कुछ दिन से मणिपुर में ही थे। यहां वे इंटेलिजेंस से मिले इन्पुट्स पर नजर रख रहे थे। एक हफ्ते पहले ही विदेश सचिव एस. जयशंकर ने भी गुपचुप तरीके से म्यांमार का दौरा किया था। म्यांमार से सटी भारत की सीमा 1643 किलोमीटर लंबी है। दोनों सीमाओं के बीच आज तक फेंसिंग नहीं हुई। दोनों देशों के सुरक्षा बल अपने इलाकों में 16 किलोमीटर अंदर तक आजादी से आवाजाही करने की इजाजत देते हैं। यही वजह है कि 4 जून को उग्रवादी मणिपुर में हमला करने के बाद म्यांमार की तरफ भाग निकले। पूर्वोत्तरी राज्यों में कम से कम 24 उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं। इनमें से अधिकतर के ट्रेनिंग कैम्प म्यांमार और भूटान में हैं।
भारत सरकार ने सेना को आतंकी हमले की स्थिति में किसी भी देश में सर्जिकल स्ट्राइक की इजाजत दे दी है। इससे यह पता लगता है कि सीमा पर मनमोहन सरकार की जो ढुलमुल नीति चल रही थी, उसे मोदी सरकार ने बदल दिया है। हालांकि कुछ लोगों को आशंका है कि इस नीति के चलते छोटे पड़ोसी देशों में भारत को लेकर भय की स्थिति पैदा हो सकती है। यह आशंका निर्मूल नहीं है। भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद म्यांमार ने इस बात का खंडन किया कि भारतीय सेना ने उसकी सीमा का उल्लंघन करते हुए सीमा के भीतर कार्यवाही की थी। म्यांमार के साथ इस विषय पर बात करने के लिए भारत के उच्चाधिकारी म्यांमार रवाना हो चुके हैं। भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा दुश्मनों के दांत तो खट्टे कर दिए लेकिन जिस तरह से इस मामले को मीडिया और राजनीतिक दलों ने हैंडल किया वह अपरिपक्व और जल्दबाज किस्म की नासमझी से भरा हुआ था। अनेक देश इस तरह के सर्जिकल ऑपरेशन करते हैं। इजराइल और अमेरिका में तो यह आम बात है। लेकिन वहां प्रोपेगंडा नहीं होता। भारत में तो आतंकवादियों की संख्या पर ही बहस चल पड़ी जबकि भारतीय सेना ने कोई स्पष्ट आंकड़ा जारी नहीं किया था। इसलिए भ्रम की स्थिति भी निर्मित हुई। भारत में पाकिस्तान के अलावा चीन, म्यांमार, भूटान, नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते आतंकी प्रवेश करते रहते हैं और भारतीय सेना या नागरिकों को निशाना बनाकर सीमा पर गुम हो जाते हैं। पाकिस्तान को छोड़कर बाकी सारे देश समय-समय पर आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करते रहे हैं। चीन की तरफ से आतंकियों को प्रत्यक्ष मदद देने के कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन चीन में कुछ एजेंसियां पूर्वोत्तर के आतंकवादियों को मदद करती हैं, ऐसा खूफिया सूत्रों से पता चला है। जहां तक पाकिस्तान का प्रश्न है, पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे के नाम पर आतंकवादियों को मदद करते आया है। पाकिस्तान म्यांमार की तरह मित्र राष्ट्र नहीं है और न ही पाकिस्तानी सेना इतनी कमजोर है। इसलिए पाकिस्तान में सर्जिकल ऑपरेशन की बात इतनी आसान नहीं है। लेकिन जिस तरह बौखलाहट में पाकिस्तान के पूर्व शासक और सेना प्रमुख ने बयानबाजी की है, उससे यह साफ लगता है कि नई सरकार ने सेना को जिस तरह की छूट दी है उसे देखकर पाकिस्तान भयभीत हुआ है। इसके दो असर हो सकते हैं। पूर्वोत्तर और पाकिस्तान से आने वाले उग्रवादियों को उकसाकर भारत में धकेला जा सकता है ताकि भारत को सर्जिकल स्ट्राइक के लिए मजबूर करके युद्ध थोपा जा सके। दूसरा असर यह भी हो सकता है कि भारतीय सेना की आक्रामकता को देखते हुए सीमा पार से उग्रवाद पर कुछ लगाम लगे। दोनों स्थिति में भारत को सीमा पर अब ज्यादा सतर्कता बरतनी होगी। बांग्लादेश में प्रधानमंत्री ने आतंकवाद पर अपने रुख से बांग्लादेश को सहमत करने की कोशिश की है। इसीलिए पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। बौखलाहट में वह कश्मीर के मुद्दे को अनावश्यक हवा दे रहा है। लेकिन पाकिस्तान की यह कोशिश उसे अलग-थलग कर देगी। म्यांमार में हमला करके भारतीय सेना ने कूटनीतिक रूप से भी पाकिस्तान और चीन जैसे देशों को परेशानी में डाला है। अनेक देशों ने भारत की इस कार्यवाही का समर्थन किया है। हालांकि अमेेरिका ने साथ ही साथ यह सीख भी दी है, कि एशिया में शांति के लिए भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार होना जरूरी है।
-रजनीकांत पारे