तमिलनाडु को फिर मिलीं अम्मा
05-Jun-2015 09:21 AM 1234822

तमिलनाडु की अनाथ राजनीति को अम्मा जयराम जयललिता का आश्रय मिल गया है। सितम्बर में आय से अधिक मामले में कोर्ट के निर्णय के बाद सलाखों के पीछे पहुंची जयललिता को जमानत तो मिल गई थी लेकिन अब 15 दिन पहले बैंग्लोर हाईकोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दी, जिसके बाद अम्मा की चरण पादुका संभाल रहे 64 वर्षीय मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने अम्मा के लिए सिंहासन छोड़ दिया। उस दिन तमिलनाडु वासियों को अम्मा कैंटीन का भोजन कुछ ज्यादा ही स्वादिष्ट लगा होगा। अम्मा कैंटीन ने गरीब तबकों को भरपेट भोजन वाजिब दामों पर प्रदान किया, जिससे जयललिता तमिलनाडु की राजनीति की अजेय नेत्री बन चुकी हैं। करुणानिधि परिवार में चल रहा घमासान और जयललिता की सजा, सलाखों के पीछे उनका जाना, जमानत, निर्दोषता सिद्ध होना यह सब ऐसे घटनाक्रम हैं जो दक्षिण भारत की किसी मसाला फिल्म का मसाला होने के साथ-साथ अम्मा के भक्तों के लिए भी चमत्कार से कम नहीं हंै। इसीलिए हरी साड़ी में अम्मा ने शांतिपूर्ण ढंग से एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
देखा जाए तो पन्नीरसेल्वम ने कभी भी नंबर 2 से नंबर 1 पर आने की महत्वाकांक्षा प्रकट नहीं की। यहां तक कि वे जयललिता के कार्यालय में जाकर उनकी कुर्सी पर भी नहीं बैठे। अपने ही वित्तमंत्रालय से राज्य का संचालन करते रहे। लेकिन उन्हें विरोधियों ने चैन से नहीं रहने दिया। पहले तो उन पर प्रशासन में ढीला-ढाला रवैया अपनाने का आरोप लगाया गया, बाद में उन्हीं के मंत्रीमंडल के कृषि मंत्री एस.एस. कृष्णमूर्ति को भ्रष्टाचार के चलते पद छोडऩा पड़ा। पन्नीरसेल्वम खुलकर काम नहीं कर सके। उनकी अपनी सीमाएं थीं। उनके आलोचकों का कहना है कि पन्नीरसेल्वम ने अम्मा के द्वारा प्रारम्भ बहुत सी योजनाओं को खटाई में डाल दिया। जिसमें अम्मा कैंटीन और मैट्रो रेल प्रणाली प्रमुख हैं। मुख्य विरोधी डीएमके के नेता एम.के. स्टालिन ने तो एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था कि तमिलनाडु आईसीयू में है और इसके हालात बेहद चिंताजनक हैं। अम्मा की गैरमाजूदगी में तमिलनाडु सरकार दो ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट तक आयोजित नहीं कर सकी। क्योंकि पन्नीरसेल्वम ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे थे। जबकि सरकार इसके प्रचार पर ही देश-विदेश में 100 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी थी। राज्य विधानसभा में जब 2015-16 का बजट प्रस्तुत करते हुए पन्नीरसेल्वम ने कोई नई घोषणा नहीं की, उसी वक्त लग गया था कि अम्मा को वापस आना पड़ेगा।
थेनी जिले के किसान पन्नीरसेल्वम जिन्हें पार्टी में ओपीएस के नाम से जाना जाता है, अब थोड़ी राहत महसूस कर रहे होंगे लेकिन जयललिता को चैन नहीं है। उनकी वापसी के बाद पूरे राज्य में जमकर खुशियां मनाई गईं, पर जयललिता के चेहरे पर चिंता साफ देखी जा रही है। यद्दपि उनकी पुन: ताजपोशी के समय भाजपा के प्रतिनिधि के रूप में पी. राधाकृष्णन मौजूद थे लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी जयललिता को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने की योजना बना चुके हैं इसलिए तल्खियां तो बनी रहेंगी। भाजपा चाहती है कि किसी तरह जयललिता के साथ उसकी समझ स्थापित हो जाए ताकि राज्यसभा में कामकाज सुचारू रूप से चल सके।
जयललिता के नेतृत्व वाली अन्ना द्रमुक के पास राज्यसभा में 11 सदस्य हैं, जो भूमि अधिग्रहण कानून जैसे विधेयकों को पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पश्चिम बंगाल की तरह तमिलनाडु में भी भाजपा को यह अहसास हो गया है कि मोदी लहर अब थम चुकी है। इसलिए भाजपा इन दोनों राज्यों से कोई विशेष उम्मीद नहीं लगा रही है। बल्कि मौजूदा हालात में जयललिता, ममता से अपने रिश्ते सुधारने में जुटी हुई हंै। भाजपा और जयललिता के रिश्ते सुधरने से केंद्र सरकार के कामकाज में तेजी आएगी। उधर जयललिता को यह समझ में आ चुका है कि तमिलनाडु में भाजपा शून्य है और बाकी विपक्ष सुप्त है। इसीलिए जयललिता काम में जुट गई हैं। शपथ लेने के अगले दिन रविवार होने के बावजूद लयललिता सचिवालय पहुंचीं। उनका ध्यान मैट्रो और अम्मा कैंटीन पर ज्यादा है। पिछले 10 माह से जो ढीलमपोल चल रही थी उसको भी कसने की कोशिश की। जयललिता ने पहले दिन ही 201 अम्मा कैंटीन लॉन्च कीं और 19 करोड़ के प्रोजेक्ट पर दस्तखत किए।
हालांकि जयललिता को अभी राहत लेने मेें वक्त लगेगा। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला जा सकता है। जहां तक कांग्रेस-भाजपा का प्रश्न है, दोनों दलों पर जयललिता के प्रति नरमी बरतने का आरोप लगा है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि उन्होंने इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। वर्ष 2012 में भाजपा ने इस मामले से बी.वी. आचार्य, जो कि उस समय स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर और कर्नाटक के एडव्होकेट जनरल भी थे, को हटा दिया था। आचार्य जयललिता के प्रति नरमी नहीं दिखा रहे थे बल्कि वे निष्पक्षता से इस मामले में जुटे हुए थे। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि दो पद होने के कारण उन्हें एक पद से हटा दिया गया। बाद में आचार्य ने एडव्होकेट जनरल का पद भी छोड़ दिया। रोचक तथ्य यह है कि आचार्य के नजरिए से भाजपा के सुब्रमण्यम स्वामी भी इत्तेफाक रखते हैं। स्वामी का कहना है कि भाजपा में कुछ लोग जयललिता के प्रति नरम दिल हैं, जो यह समझते हैं कि देश के व्यापक हित में जयललिता की रक्षा की गई है। स्वामी का कहना है कि वे बिना किसी तथ्य के किसी के खिलाफ नहीं बोलते जयललिता के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जयललिता की मुक्तिÓ में कोई गुप्त राजनीतिक एजेंडा भी हो सकता है। कर्नाटक के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अब जयललिता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करे।
-संजय शुक्ला

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