हाशिमपुरा और अमर सिंह सपा का नया पैंतरा
05-Jun-2015 09:24 AM 1234794

समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले नया मोर्चा खड़ा करने की कवायद शुरू कर दी है। हाशिमपुरा जैसे मामलों में समाजवादी पार्टी की सक्रियता और अमर सिंह की संभावित वापसी प्रदेश में नई सियासत के दौर की शुरुआत हो सकती है। मुजफ्फर नगर दंगों के कलंक को धोने के लिए मुलायम सिंह अब हाशिमपुरा नरसंहार के पीडि़तों के प्रति कुछ ज्यादा ही उदारता और सहानुभूति दिखा रहे हैं। हालांकि यह कांड 28 वर्ष पहले मेरठ में हुआ था, लेकिन उत्तरप्रदेश के मुसलमानों के मन में इस कांड को लेकर आक्रोश बना हुआ है, इसीलिए मुलायम सिंह यादव ने पीडि़तों व घायलों को 5-5 लाख रुपए मुआवजा देने का आश्वासन दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 21 जुलाई को होनी है। उत्तरप्रदेश सरकार चाहती है कि पीडि़तों को न्याय मिल सके। सरकार भी अपना पक्ष रखने की कोशिश कर रही है। उत्तरप्रदेश के मंत्री आजम खान का कहना है कि इस मामले में फैसला हुआ है, इंसाफ नहीं।
इसी कारण अब यह लगता है कि उत्तरप्रदेश की सियासत हाशिमपुरा जैसे मामलों पर नए रंग में रंगी जाएगी। उधर मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की मुलाकात ने नया सियासी  पिटारा खोल दिया है। अमर सिंह की सपा में वापस लौटने की अटकलें हैं लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा आजम खान बने हुए हैं। इसीलिए मुलायम संतुलन स्थापित करना चाहते हैं ताकि आजम खान को मनाते हुए अमर सिंह को पार्टी में वापस बुला लिया जाए।
उधर भाजपा भी भरपूर मेहनत कर रही है। हाल ही में लखनऊ यात्रा के दौरान राजनाथ सिंह एक मिनट भी चैन से नहीं बैठे। उन्होंने लखनऊ की गलियों की खाक छानी और लोगों से मिले। इससे पहले राजनाथ सिंह इतने सक्रिय नहीं दिखे। मोदी सरकार की वर्षगांठ पर उत्तरप्रदेश में भाजपा ने 26-28 मई तक 15 सभाओं का भी आयोजन किया था लेकिन इनमें ज्यादा भीड़ नहीं जुटी, जिससे भाजपा को थोड़ी मायूसी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की 80 में से भाजपा ने 71 सीटों पर शानदार जीत हासिल की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सुनामी ने वहां के पार्टी वर्करों से लेकर जनता तक को जोश में डाल दिया था लेकिन इस मामले को एक वर्ष बीतते-बीतते उत्तर प्रदेश में भाजपा की पकड़ कमजोर होती दिखनी शुरू हो गई है। इसे लेकर संघ ने भाजपा को चेतावनी भी दी है। सूत्रों का कहना है कि संघ के उत्तर प्रदेश से संबंधित नेताओं का कहना है कि पिछले एक वर्ष में भाजपा की उत्तर प्रदेश में जमीन खिसकी है। खासकर पिछड़े वर्ग में भाजपा ने जिस तरह से अपनी पैठ बनाई थी वह कम होती जा रही है। इन सबको देखते हुए संघ नेताओं ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों के लिए नए सिरे से रणनीति तैयार करने के लिए भाजपा पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। जानकारी के अनुसार संघ के उत्तर प्रदेश पदाधिकारियों की गाजियाबाद में भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के साथ एक बैठक हुई है जिसमें उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिसक रहे आधार को लेकर काफी गहरा मंथन किया गया है। सूत्रों का कहना है कि बैठक में यह भी चर्चा हुई है कि 2014 में जिस तरह से लोगों ने भाजपा में अपना विश्वास जताया था वह स्थानीय कमियों के कारण तथा आरक्षण और भूमि अधिग्रहण मसलों के कारण कमजोर हो रहा है। बेशक भाजपा को सदस्यता अभियान में राज्य में भारी सफलता मिली तथा पार्टी ने 1.8 करोड़ नए सदस्य बनाए लेकिन संघ का दावा यह भी है कि सदस्यता अभियान की सफलता या असफलता पर गौर करने से पहले दिल्ली चुनावों के परिणाम भी ध्यान में रखने चाहिएं।
संघ ने साफ तौर पर भाजपा नेताओं को कहा है कि भूमि अधिग्रहण जैसे मसले पार्टी के लिए काफी घातक सिद्ध हुए हैं। इससे पहले पिछले हफ्ते संसदीय बोर्ड की बैठक में भी भाजपा के कुछ सांसदों ने पार्टी तथा सरकार को लेकर कुछ सवाल खड़े किए हैं। खासकर बलिया के सांसद भरत सिंह ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ही यह बात कह कर नई सनसनी फैला दी थी कि जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा है। यहां तक कि पिछले 11 महीने में उत्तर प्रदेश में 1 कि.मी. तक सड़क नहीं बनी है जबकि दूसरी तरफ राज्य के नेताओं तथा पार्टी के मंत्रियों के बीच में आपसी विरोध भी बढ़ रहा है।
अमेठी में राहुल गांधी की सक्रियता के बाद अब सभी दल सक्रिय हो चुके हैं। बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना दलित वोट बैंक मजबूत करना शुरू कर दिया है। ज्ञात रहे कि राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक का मुद्दा यूपी की सियासत को ध्यान में रखते हुए ही उठाया। विधान परिषद चुनाव में जो जुगलबंदी देखने को मिल रही है, उससे राहुल की सक्रियता समझमें आती है।
-मधु आलोक निगम

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