22-May-2015 03:18 PM
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पंजाब के मोगा में चलती बस में छेडख़ानी के बाद मां-बेटी को बस से फेंकने की घटना ने पंजाब सरकार को परेशान कर दिया है। सारे राज्य में विरोध प्रदर्शन हुए। नाबालिग लड़की की मौत के बाद राज्य की राजनीति तो सुलग ही उठी, लेकिन साथ ही आम जनता भी उद्धेलित हो गई। यह उद्धेलन इतना अधिक है कि आगामी विधानसभा के समय पंजाब में बादल सरकार को भारी नुकसान हो सकता है। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल इसे देश की संसद में भी उठा चुके हैं। भाजपा दुविधा में है वह सरकार को समर्थन दे रही है, लेकिन लगता है मोदी लहर के समय जो करिश्मा पंजाब में दिखाई दिया था वह खत्म हो गया है। भाजपा के लिए पंजाब जैसे राज्यों में जीत का सिलसिला बनाए रखना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसका प्रभाव राज्यसभा में सरकार की संख्या पर पड़ सकता है। यह घटनाक्रम इस आग में घी डालने का काम करेगा। जिस ऑर्बिट बस सर्विस में नाबालिग लड़की को छेडख़ानी का विरोध करने के बाद बस से फेंक दिया गया वह बादल परिवार की थी। बादल परिवार ने इसके बाद वह बस सर्विस बंद कर दी, लेकिन पीडि़ता के पिता के मन में आक्रोश इतना था कि उन्होंने बेटी का अंतिम संस्कार 4 दिन बाद किया।
यह मामला इतना गंभीर बन गया कि हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले को पीठ के समक्ष रखने का कहा। बादल ने पीडि़ता के परिजनों से मिलकर संवेदना व्यक्त की और कहा कि परिवार को इंसाफ मिलेगा। सवाल यह है कि बस मालिक पर कार्रवाई होगी या नहीं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में बसें महिलाओं के लिए न केवल असुरक्षित हैं बल्कि बस के भीतर किसी भी पल महिलाओं की इज्जत लुट सकती है या उन्हें मौत के मुंह में धकेला जा सकता है। पुलिस हमेशा की तरह घटिया जांच पड़ताल करती है और मामले को इतना लचर बना देती है कि अपराधियों को मामूूली सजा भी नहीं हो पाती। इस मामले में भी पुलिस ने ज्यादा सख्ती नहीं दिखाई। बस मालिकों के खिलाफ तो कोई मामला ही दर्ज नहीं किया। पुलिस ने आरोपियों की परेड भी नहीं कराई ताकि उनकी पहचान हो सके। पुलिस मामले को रफा-दफा करने के मूंड में है।
दिल्ली में जब निर्भया कांड हुआ था। उसके बाद सारे देश में सार्वजनिक परिवहन की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किए गए थे। बहुत से राज्यों ने बस परिवहन को लेकर दिशा निर्देश भी जारी किए थे, जिनमें महिलाओं की सुरक्षा को लेकर विशेष इंतजाम करने की बात कही गई थी। लेकिन मोगा कांड से पता चलता है कि सुरक्षा को लेकर न तो बस मालिक गंभीर हैं और न ही सरकारें। अपराधी बेखौफ होकर घूम रहे हैं। वे बसों में मां-बहनों की इज्जत पर हमला करते हैं और विरोध करने पर उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। यह सिस्टम की असफलता है या समाज के दिनों-दिन असंवेदनशील होने का लक्षण। उस बस में भी मां-बेटी के साथ बदतमीजी करने वाले उन दरिंदों को रोकने की कोशिश किसी ने नहीं की। सब मूक दर्शक बने बैठे रहे और एक बेटी की जान चली गई। लोकसभा, राज्यसभा में बहस से क्या होगा। या न्यायिक जांच की मांग से क्या हासिल होगा। उस वक्त जो कदम उठाने चाहिए थे वह किसी ने नहीं उठाए अब खानापूर्ति की जा रही है।
पहले निर्भया कांड, फिर उबेर टैक्सी कांड और अब मोगा कांड ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट की साख को गिराने का काम किया है। जरुरत तो ये है कि आम जनता को आरामदायक, सुरक्षित पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ओर आकर्षित किया जाए ताकि लोग निजी वाहनों का इस्तेमाल कम करें जिससे वातावरण दूषित न हो, ट्रैफिक जाम न हों और सड़कें सुरक्षित रहे। लेकिन मोगा कांड जैसी घटनाएं इस प्रयास के लिए बड़ी बाधा साबित हो रही हैं। ऐसा नहीं है कि पिछले साल दो साल में बसों और ट्रेनों में औरतों के साथ छेडख़ानी आदि की उक्त दो तीन घटनाएं ही हुई हैें। ऐसी घटनाएं तो देश भर में प्रतिदिन हो रही हैं। जो कि समाज के लिए तो दुखद है ही साथ में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए भी खतरनाक है। सिर्फ लग्जरी बसें चलाने से या बुलेट ट्रेनें चलाने से आम जनता और खासकर मिडल क्लास को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ओर खींचना संभव नहीं है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अनुभव सुखद बनाने के लिए बसों के अलावा, बस अड्डों की हालत, बसों में खाने पीने की सुविधाएं और बस स्टाफ का रवैया बेहतर होना बेहद जरूरी है। बस स्टाफ का रवैया बहुत लोगों को बसों के सफर से दूर कर रहा है।
बस मालिकों को अपने स्टाफ की जिम्मेदारी लेनी ही होगी अगर वे चाहते हैं कि उनका कारोबार आने वाले समय में फलता फूलता रहे। किसी समय में बसों या रेलों में सफर करना आम जनता की मजबूरी थी, लेकिन आज देश का एक बड़ा तबका इतना समृद्ध हो चुका है कि उसके लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट इकलौता विकल्प नहीं रह गया है। निजी दो पहिया और चार पहिया वाहन पब्लिक ट्रांसपोर्ट को चुनौती दे ही रहे हैं, इसके अलावा संचार के बढ़ते माध्यम भी, सफर की जरुरतों को दिन-ब-दिन कम कर रहे हैं। निर्भया और मोगा कांड के बारे में सोचें तो एक और दुखद तथ्य सामने आता है। हमारे समाज में किसी दूसरे की मदद करने का जज्बा बहुत तेजी से खत्म हो रहा है। निर्भया कांड में पीडि़त लड़की और लड़का घंटों सड़क पर दयनीय स्थिति में मदद के लिए पुकारते रहे लेकिन किसी ने समय पर मदद नहीं की।