05-Jun-2015 09:09 AM
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खजुराहो में इनवेस्टर्स मीट में अनिल अंबानी ने बड़े जोशो-खरोश में कहा था कि मध्यप्रदेश में अंबानी समूह ने प्रति घंटे ढाई करोड़ रुपए का निवेश करते हुए पांच साल में 75 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगा। लेकिन अब लगता है कि अंबानी समूह प्रति घंटे ढाई करोड़ का निवेश मध्यप्रदेश से समेट रहा है। ताजा उदाहरण अनिल अंबानी समूह द्वारा प्रोत्साहित धीरू भाई अंबानी मेमोरियल ट्रस्ट (ष्ठ्ररूञ्ज) का है। जिसने भोपाल में निजी विश्वविद्यालय खोलने के लिए सरकार से वर्ष 2008 में अचारपुरा में 110 एकड़ सरकारी जमीन लीज पर ली थी। तय यह हुआ था कि ट्रस्ट तीन वर्ष के भीतर इस जमीन पर विश्वविद्यालय स्थापित करके उसका संचालन करेगा। लेकिन विश्वविद्यालय खोलना तो दूर रिलायंस समूह ने इस जमीन पर पिछले 7 वर्ष में बाउण्ड्रीवाल बनाने के अलावा और कुछ नहीं किया। बीच में राज्य सरकार ने रिलायंस समूह से दो बार विश्वविद्यालय की प्रगति के बारे में जानना चाहा, लेकिन दोनों बार निर्माण की अवधि आगे बढ़वाकर ष्ठ्ररूञ्ज ने हील हवाला कर दिया। टालमटोल 2013 तक चलती रही। दो वर्ष तक रिलायंस समूह ने इस जमीन की सुध लेना भी उचित नहीं समझा। इसके उपरांत 15 मई 2015 को ष्ठ्ररूञ्ज ने मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय रेग्यूलेटरी आयोग और मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव एन्टोनी डिसा को पत्र लिखकर उक्त विश्वविद्यालय खोलने के संबंध में असमर्थता जताते हुए बाउण्ड्रीवाल के निर्माण में खर्च हुई 1.4 करोड़ की राशि सहित शासन के पास जमा जमीन की कीमत और एंडोमेंट फंड मिलाकर 9 करोड़ 81 लाख रुपए वापस मांगे।
अनिल अंबानी के समूह ने 5 बड़े प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश में खोलने की घोषणा की थी जिसमें से मात्र डेढ़ आज तक खुल पाए हैं और इनमें भी सासन ताप विद्युत प्रोजेक्ट खटाई में है। इसके अलावा एक सीमेंट प्रोजेक्ट जिसे मैहर में खोलना था वह अधूरा है। दूसरे अन्य प्रोजेक्ट कागजों पर हैं। सिंगरोली में एयरपोर्ट बनाने के फैसले से भी रिलायंस पीछे हट गया है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रिलायंस सहित तमाम बड़े समूहों को निवेश के लिए आमंत्रित करते समय मखमली कालीन बिछाए थे लेकिन लगता है कि रिलायंस जैसे समूहों को मध्यप्रदेश रास नहीं आ रहा है। ष्ठ्ररूञ्ज ने विश्वविद्यालय के प्रोजेक्ट को स्थगित करने का जो कारण बताया है वह बेहद चिंतनीय है। ष्ठ्ररूञ्ज का कहना है कि सासन पावर लिमिटेड द्वारा निर्मित 3960 मेगावाट के प्रोजेक्ट जिससे मध्यप्रदेश को 25 वर्षों तक 1500 सौ मेगावाट बिजली 1.19 रुपए प्रति यूनिट की दर पर मिलने वाली है, कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। जिसमें ओबी डम्प लेंड (भूमि) की अनुपलब्धता, सरकारी असहयोग इत्यादि प्रमुख कारण हैं। इनके चलते आर्थिक रूप से यह परियोजना कंपनी को भारी पड़ रही है। इस अनुभव के मद्देनजर ष्ठ्ररूञ्ज भोपाल स्थित अचारपुरा में प्रस्तावित निजी विश्वविद्यालय बनाने में असमर्थ है। ष्ठ्ररूञ्ज ने न केवल निजी विश्वविद्यालय बनाने से असमर्थता जताई है। बल्कि जो बाउण्ड्रीवाल वहां खड़ी की है उसका खर्च भी शासन से मांग लिया है। यह परियोजना मध्यप्रदेश शासन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में से एक है। मध्यप्रदेश शासन ने यहां कुल 71 करोड़ रुपए के निवेश से 140 एकड़ क्षेत्र विकसित करने की तैयारी कर रखी थी जिसमें 19 शैक्षणिक संस्थाओं के अतिरिक्त और भी कई संस्थाएं शामिल थी। यदि यह विश्वविद्यालय बनता तो सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मध्यप्रदेश के शोधार्थियों को एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान उपलब्ध हो सकता था। लेकिन दो बार निर्माण की तिथि बढ़ाने के बावजूद ष्ठ्ररूञ्ज ने कुछ हास्यास्पद कारण बताते हुए इस प्रोजेक्ट को स्थगित कर दिया। जानकारों का कहना है कि सासन प्रोजेक्ट में बिजली की दर प्रति यूनिट बढ़ाने के लिए रिलायंस समूह दबाव बना रहा है। ष्ठ्ररूञ्ज द्वारा इस विश्वविद्यालय को डंप करना इसी दबाव की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। लेकिन प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश सरकार निवेशकों द्वारा की जा रही ठगी कब तक सहन करेगी। रिलायंस समूह पर पहले भी मध्यप्रदेश में मनमाने तरीके से निवेश करने और पर्यावरण संबंधी नियम कानूनों का मखौल उड़ाने के आरोप लगे हैं। इस बार इस समूह ने मध्यप्रदेश को बड़ा धोखा दिया है। क्या सरकार इस समूह के खिलाफ वैसी ही कठौर कार्रवाई करेगी जैसी उसने एसएल वल्र्ड के खिलाफ की थी। सुनने में आया है कि एसएल वल्र्ड द्वारा एक प्रोजेक्ट से हाथ खींचे जाने के बाद सरकार ने उस पर फाइन लगाया था।
अब रिलायंस की बारी है। रिलायंस ने मध्यप्रदेश में सरकार से सारी सुविधाएं लेने के बावजूद कछुआ चाल से काम किया है। रिलायंस की यह गति दूसरे निवेशकों को भी भड़का रही है। मध्यप्रदेश सरकार पर शुरू से ही रिलायंस का ज्यादा फेवर करने के आरोप लगते रहे हैं। अभी रिलायंस की पांच करोड़ रुपए की धरोहर राशि सहित लगभग 8 करोड़ रुपए सरकार के पास हैं। प्रदेश सरकार चाहे तो इन्हें जब्त भी कर सकती है। क्योंकि सरकार जब भी किसी निवेशक को जमीन इत्यादि का आवंटन करती है उस वक्त कोशिश यही रहती है कि तीन साल के भीतर प्रोजेक्ट पूरा हो जाए। लेकिन देरी करने वालों से जमीन वापस लेने के अलावा फाइन लगाने का प्रावधान भी है। पर रिलायंस जैसे बड़े समूह सरकारों को चूना लगाकर बच निकलने का रास्ता तलाशते हैं।
-भोपाल से राजेश बोरकर