19-Mar-2013 10:00 AM
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मध्यप्रदेश में चुनाव से लगभग 8 माह पूर्व मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के भीतर ही सियासी कशमकश तेजी पर है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की सक्रियता कांतिलाल भूरिया को रास नहीं आ रही है और इसी कारण राहुल गांधी भी ज्योतिरादित्य को खुलकर फ्री-हैंड देने से कतरा रहे हैं। बीते दिनों राहुल गांधी के सामने जब संसद भवन में कांग्रेस संसदीय दल के कक्ष में राहुल गांधी मध्यप्रदेश के लोकसभा और राज्यसभा सांसदों से मिले तो ऐसे कई विषय उठे जिनसे लगा कि मध्यप्रदेश में कांग्रेसी मिलजुल कर चुनाव लडऩे के मूड में नहीं हैं और उनकी आपसी उठापटक का नतीजा है कि हर कोई एक लाइन में भाजपा या शिवराज को मजबूत बताते हुए आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ जाते हैं। राहुल गांधी से चर्चा करने वाले कतिपय नेताओं ने एक सुर में यह बात कही कि राहुल गांधी प्रदेश के नेताओं को दबंगता के साथ बोलें कि वे एक होकर लगे रहें। प्रश्न यह है कि राहुल गांधी किस आधार पर यह दबंगई दिखा सकते हैं जबकि उन्हें स्वयं ज्ञात है कि कांग्रेस मध्यप्रदेश में कितनी बटी हुई है। शायद इसीलिए सीधे-सीधे किसी एक को जिम्मेदारी न सौंपते हुए राहुल गांधी ने लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों से कहा कि वे शिवराज की छवि का हौवा न बनाए बल्कि यह संकल्प करें कि प्रदेश में भाजपा को हराना है। उन्होंने हरिजन, किसान, दलितों और आदिवासियों को साथ लेकर चलने की वकालत की। कुछ नेताओं ने राहुल को आगाह किया कि यदि सभी गुट नहीं जुटे तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनना असंभव है। मीनाक्षी नटराजन ने 15-15 युवा कार्यकर्ताओं की टीम बनाकर ब्लॉक स्तर पर केंद्र सरकार की नीतियों को प्रचारित करने का सुझाव दिया है। यही सुझाव सत्यव्रत चतुर्वेदी का था। प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया असहयोग आंदोलनÓ से ग्रसित हैं। उन्होंने राहुल गांधी से गुहार लगाई कि सब उन्हें मदद करें। कांतिलाल भूरिया की इस दयनीय स्थिति से गुटबाजी का स्तर पता चलता है। हाल ही में वे दिल्ली जाने से पूर्व विशेष हेलीकाप्टर से राघौगढ़ जाकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से भी मंत्रणा करके आए थे। प्रेमचंद गुड्डू का भी कमोबेश यही दर्द था। उन्होंने कहा कि मंत्रियों और सांसदों में तालमेल का अभाव है मंत्री क्षेत्र में दौरा कर जाते हैं और सांसदों को बाद में पता चलता है। शायद उनका कटाक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कुछ बिंदुओं में रणनीति बताई, जिनमें से खास यह कि प्रभावी रणनीति बने, संगठन एक हो, सबको साथ रखना जरूरी है प्रमुख बात यह है कि राहुल गांधी ने किसी भी नेता को मध्यप्रदेश की कमान नहीं सौंपी है। राहुल गांधी की यह दुविधा समझी जा सकती है क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद कांग्रेसी एक नहीं हुए हैं। इसीलिए राहुल गांधी ने संगठन को मजबूत करने पर जोर देते हुए कहा कि प्रदेश में कांग्रेस को स्वयं को कमजोर नहीं समझना चाहिए बल्कि केंद्र की नीतियों को सही रूप में प्रचारित करना चाहिए। उन्होंने सर्वशिक्षा अभियान सहित अन्य केंद्रीय योजनाओं के समुचित प्रचार-प्रसार के विषय में समझाइश दी। लेकिन लगता है उस समझाइश का कोई असर नहीं पड़ा। ज्योतिरादित्य सिंधिया बिना जानकारी दिए निमाड़ के दौरे पर निकल गए और उन्होंने एक सभा में जनता से सीधे-सीधे पूछ लिया कि यदि मुझे मौका मिलता है तो आप मेरा साथ दोगे। सिंधिया के दौरे पर भूरिया ने तल्ख टिप्पणी करते हुए पूछा कि सिंधिया को और क्या चाहिए उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद तो दे ही दिया है। भूरिया ने इस बात पर भी ऐतराज जताया कि सिंधिया ने बगैर जानकारी दिए दौरा कर लिया। इस बीच हारी हुई सीटों पर युवा कांग्रेस द्वारा टिकिट मांगने से भी यही आभास मिलता है कि ज्योतिरादित्य संगठन के अंदर युवाओं के बीच अपनी सक्रियता बढ़ाने में लगे हुए हैं जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिल सकता है। कांग्रेस की परंपरा चुनाव में बहुमत मिलने के बाद नेता के चयन की जिम्मेदारी पार्टी हाईकमान पर छोड़े जाने की रही है। यही कारण है कि तमाम नेता बहुमत मिलने की स्थिति में अपनी-अपनी तरह से अपना भला होने की उम्मीद संजोए बैठे हैं। पर अचानक पिछले कुछ अरसे से केंद्रीय राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की बढ़ी सक्रियता ने संपने संजोने वालों को बेचैन कर दिया है। सिंधिया पिछले कुछ अरसे में निमाड़ और मालवा अंचल के दो दौरे कर चुके हैं। सिंधिया इन दौरों में पार्टी के किसी बड़े नेता को अपने साथ नहीं ले गए। उनका यह दौरा राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत था। चर्चा है कि प्रदेशाध्यक्ष भूरिया ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ हुई बैठक में इस बात की शिकायत भी की थी कि सिंधिया उन्हें दौरे के समय अपने साथ नहीं ले गए। लगता है कि भूरिया की इस शिकायत को ज्यादा महत्व नहीं मिला। यही कारण है कि सिंधिया ने एक बार फिर अकेले खरगोन व खंडवा का दौरा किया। पार्टी के कई नेता अपनी बेचैनी को छुपाए हुए हैं तो प्रदेशाध्यक्ष भूरिया इसे जाहिर करने से नहीं चूके। उनका कहना है कि सिंधिया किस तरह की जिम्मेदारी चाहते हैं, पार्टी ने उन्हें मंत्री बनाया है। वे ही बताएं कि उन्हें और क्या जिम्मेदारी चाहिए। सिंधिया को लेकर भूरिया सहित अन्य नेताओं में बेचैनी यूं ही नहीं है, क्योंकि सिंधिया इससे पहले ग्वालियर-चंबल संभाग के बाहर कभी भी ज्यादा सक्रिय नहीं हुए हैं। इतना ही नहीं सिंधिया की बदली कार्यशैली भी पार्टी नेताओं को सशंकित कर देने वाली है।