03-Apr-2015 03:39 PM
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वर्ष 2014 में ही राजस्थान सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई थी क्योंकि 2005 के बाद रणथम्भौर में बाघों की संख्या लगभग तीन गुनी हो गई थी। लेकिन अब उनमें से कुछ बाघ लापता हो गए हैं। इसी कारण राज्य में बवाल मचा हुआ है। विधानसभा में भी रणथम्भौर बाघ परियोजना के लापता बाघों का मामला गूंजा। निर्दलीय विधायक किरोड़ी लाल मीणा ने आरोप लगाया कि बाघों की ट्रेकिंग सही तरह से नहीं की जा रही। उन्होंने मांग की कि बाघों की ट्रेकिंग सवाईमाधोपुर के बजाय जयपुर से हो। किरोड़ी ने बाघ ट्रेकिंग सिस्टम को संदिग्ध बताया तथा कहा कि पिछले छह महीनों से पांच बाघों की ट्रेकिंग नहीं हो पा रही है। उन्होंने कहा कि टी 47, 48, 65, 67 व टी 68 बाघों को अधिकारी ट्रेक तक नहीं कर पाए हैं। जवाब में वन एवं पर्यावरण मंत्री राजकुमार रिणवां ने कहा कुछ माह पहले की गई गणना में रणथम्भौर में 21 नर, 22 मादा और 16 शावक पाए गए। इनमें से आपसी संघर्ष में एक शावक की मौत हो चुकी है। उन्होंने एक मॉनिटरिंग टीम बनाकर रणथंभौर टाइगर रिजर्व क्षेत्र में लापता हुए बाघों को जल्दी से जल्दी पता लगाने के प्रयास करने का आश्वासन दिया। मॉनिटरिंग के लिए जयपुर में भी अलग से प्रकोष्ठ बनाया जाएगा। 1700 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए इस रिजर्व क्षेत्र में कभी कभी बाघ संघर्ष करते हुए मर जाते हैं, कभी कभी बाघ मध्यप्रदेश तक चले जाते हैं, फिर भी लापता बाघों को पता लगाने के लिए मॉनिटरिंग की जाएगी।
अवैध खनन
राज्य सरकार की नजरों में भले ही रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में अवैध खनन नहीं हो रहा है और विधानसभा में खनन नहीं होने का जवाब देकर विपक्ष से पीछा छुड़ा लिया हो, लेकिन रणथम्भौर में अवैध खनन की हकीकत कुछ और ही है। वन विभाग के अधिकारी खुद इस बात को स्वीकार करते हैं। पिछले दिनों कुछ लोगों ने रणथम्भौर के अवैध खनन के संबंध में सुगम पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर उप वन संरक्षक ने जवाब दिया कि रणथम्भौर टाइगर रिजर्व क्षेत्र के आसपास कई गांवों में बेखौफ खनन हो रहा है। खनन पर रोक लगाना अकेले वन विभाग के बूते की बात नहीं है। ऐसे में राज्य सरकार के जवाब एवं वन विभाग के अफसरों के जारी बयानों से स्थिति विरोधाभास बनी हुई है। गौरतलब है कि विधानसभा में राज्य सरकार ने बताया था कि रणथम्भौर के 29792.65 हैक्टेयर क्षेत्र को बफर क्षेत्र घोषित किया था। क्षेत्र में कहीं भी खनन नहीं हो रहा है। उप वन संरक्षक ने शिकायत के जवाब में ये भी कहा कि रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के बाहरी क्षेत्र में वन क्षेत्र से लगते हुए गांव खवा, खांडोज, उलियाना, भदलाव, श्यामपुरा, एण्डा, बसो, भूरी पहाड़ी, सुखवास आदि में अवैध खनन की समस्या है। उनका कहना है कि इन गांवों की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि अवैध खनन से प्रभावित वन क्षेत्र में जाने के लिए गांव की पूरी आबादी से गुजर कर जाना पड़ता है। ग्रामवासी भी अपराधियों को सहयोग करते हैं, जिससे की मौके पर कार्रवाई करने में समस्या आती है।
2005 में थे 18 बाघ
रणथम्भौर बाघ परियोजना में वर्ष 2005 में महज 18 ही बाघ-बाघिन थे। उस समय पार्क संकट के दौर से गुजर रहा था। वहीं शिकारी भी सक्रिय थे। इसके चलते बाघों की संख्या घट रही थी। इस समय तक सरिस्का तो बाघ विहीन ही घोषित किया जा चुका था। तब रणथम्भौर से ही चार बाघिन व तीन बाघ सरिस्का शिफ्ट किए थे। जुलाई 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग में भारत सहित 13 देशों की एक कॉन्फ्रेंस हुई थी। इसमें वे देश शामिल हुए थे, जहां पर बाघ पाए जाते हैं। तब विश्व में बाघों की संख्या 3200 मानी गई थी। इनमें से भारत में इनकी संख्या 1706 थी। आगामी 2022 तक बाघों की संख्या दुगुनी करने का निर्णय किया गया था। 2004-05 में बाघों की संख्या घटी तो वन विभाग ने मॉनीटरिंग में सुधार करते हुए टाइगर नम्बर देने की पहल शुरू की। इससे एक-एक बाघ की पहचान हुई। वन विभाग एवं एनजीओ ने शिकारी जाति मोग्या को विकास की मुख्य धारा में जोडऩे के प्रयास किए। इससे शिकार पर अंकुश लगा। वन विभाग ने बीते वर्षो में इंडाला, पादड़ा, कठुली, मोर डूंगरी, भीड़ आदि गांवों के विस्थापन में सफलता पाई। इससे करीब 50-60 वर्ग किलोमीटर एरिया बाघों के लिए मिला। वन्यजीवों द्वारा आसपास के ग्रामीणों के पालतू जानवरों का शिकार करने पर वन विभाग द्वारा मुआवजे की प्रक्रिया में सुधार किया। पहले मुआवजे में साल भर लग जाता था, वहां अब एक माह में ही उन्हें मुआवजा मिल जाता है। सवाईमान सिंह सेंचुरी का विकास भी बाघों की संख्या बढ़ाने में सहायक रहा है। इसका परिणाम ये रहा है कि करीब 25 वर्ष बाद वहां फिर से बाघ पहुंचे।