05-Jun-2015 08:43 AM
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दा समय नहीं बीता जब जयपुर में मिलावट करते पकड़ाए एक मांस व्यापारी ने खुलासा किया था कि मेकडोनाल्ड, पिज्जा हट, डॉमिनोज यह सब पशुओं की चर्बी वाले घी और चीज का उपयोग अपनी

खाद्य सामग्रियों मेंं करते हैं। उस समय व्यापारी की बातों को महत्व नहीं दिया गया। बोला गया कि इतनी प्रतिष्ठित कंपनियां गड़बड़ी नहीं कर सकतीं। लेकिन जब नेस्ले के उत्पाद मैगी में मिलावट का पता चला, तो यह गोरख धंधा सबके सामने आ गया।
उत्तर प्रदेश में इसके कुछ सैंपल्स में मोनोसोडियम ग्लूटामेट की मात्रा जरूरत से ज्यादा पाई गई। लखनऊ के फूड सेफ्टी ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (एफसीडीए) ने मैगी के कुछ सैंपल लेकर उन्हें टेस्टिंग के लिए कोलकाता भेजा था। इन सैंपल्स की जांच में मोनोसोडियम ग्लूटामेट और लेड की मात्रा ज्यादा पाई गई। लखनऊ फूड सेफ्टी ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीए) ने जांच शुरू की है और नई दिल्ली स्थित फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडडर्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) को पत्र लिखकर मांग की है कि मैगी के लाइसेंस कैंसिल किए जाएं। एफएसडीए ने एफएसएसएआई से मांग की है कि देश भर में मैगी के सैंप्लस की जांच की जाए। लैब्स के नतीजे दिखाते हैं कि मैगी में लेड की मात्रा 17 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) पाई गई जबकि इसकी तय सीमा 0.01 पीपीएम ही है। मोनोसोडियम ग्लूटामेट एक प्रकार का अमीनो ऐसिड होता है जो कि प्राकृतिक तौर पर कई एग्रीकल्चरल प्रॉडक्ट्स में पाया जाता है। इसका प्रयोग पैकेज्ड फूड का भी फ्लेवर बढ़ाने के लिए कृत्रिम रूप से होता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस तरह के तत्व स्वास्थ्य, खासतौर पर बच्चों के लिए हानिकारक होते हैं। फूड सेफ्टी रेग्युलेशंस कंपनियों को पैकेजिंग पर यह उल्लेख करने का निर्देश देती हैं कि उन्होंने एमएमसी का प्रयोग किया है। मोनोसोडियम ग्लूटामेट खाने का स्वाद बढ़ाने वाला तत्व होता है जो कि अधिकतर चीनी खानों, सूप, मांस और डिब्बाबंद खानों में प्रयोग की जाता है।Ó एमएसजी सालों से खाने के स्वाद बढ़ाने के लिए जाना जा रहा है लेकिन इसके लिए इसे सीमित मात्रा में यूज किया जाना जरूरी है। एमएसजी के जरूरत से ज्यादा प्रयोग से सिरदर्द, पसीना आना, चेहरे, गले और शरीर के अन्य हिस्सों पर जलन हो सकती है। इसके कारण उल्टी और कमजोरी की शिकायत भी हो सकती है। लंबे समय तक एमएसजी के प्रयोग से तंत्रिका तंत्र को भी नुकसान पहुंच सकता है।
किस वस्तु में मिलावट से क्या नुकसान : हल्दी में मक्के का पाउडर, पीला रंग और चावल की कनकी मिलाई जा रही है। यह मिलावट लीवर पर कहर बरपा रही है। मिर्च में लाल रंग, फटकी, चावल की भूसी मिलाई जा रही है जिसके कारण लीवर सिकुडऩे की शिकायत पाई जा रही है। धनिये में हरा रंग, धनिए की सींक मिलाने से लीवर पर सूजन होती है जो सेहत की दृष्टि से खतरनाक है। अमचूर में अरारोठ, कैंथ, चावल की कनकी मिलाई जा रही है जिससे पेट संबंधी कई रोग पनप रहे हैं। गरम मसाला में मुख्य रूप से लौंग की लकड़ी, दालचीनी, काली मिर्च जैसे पदार्थ मिलाए जा रहे हैं जिनसे अल्सर का खतरा बढ़ रहा है। जीरा में सोया के बीज बहुतायत में मिलाए जा रहे हैं, जो पेट संबंधी रोगों में वृद्धि के कारण है। किशमिश में हरा कलर, गंधक का धुआं जैसी गैर सेहतमंद चीजें मिलाई जा रही हंै जिनका किडनी पर सीधा असर पड़ रहा है। लौकी, करेला और कद्दू में बड़ी संख्या में ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाए जा रहे है जिनका असर शारीरिक विकास पर पड़ रहा है। फलों में चमक के लिए मोम की पॉलिश, पकाने के लिए जिस घोल का इस्तेमाल हो रहा है उससे किडनी को नुकसान पहुंच रहा है। सरसों तेल में राइस ब्रान ऑइल की मिलावट फेफड़ों और शरीर में सूजन का कारण बन रही है। शुद्ध घी में बटर ऑइल, वनस्पति और रिफाइंड के मिश्रण से हार्टअटैक की संभावना बढ़ रही है।
फूड सप्लिमेंट भी खतरनाक
प्रोटीन पॉवडर को लेकर बहस चल रही है। लेकिन इसके साथ-साथ बाजार में प्रचलित सारे फूड सप्लिमेंट अब संदेह के दायरे में हैं। डॉक्टरों को कमीशन मिलता है, इसलिए वे कमजोर बच्चों या मरीजों को इसे खाने की सलाह देते हैं। लेकिन अब तो वे बच्चे भी फूड सप्लिमेंट लेने लगे हैं, जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं। जिनकी हड्डियां पहले से ही मजबूत हैं। शोध कर्ताओं का कहना है कि फूड सप्लिमेंट सभी के लिए अनिवार्य नहीं हैं। सिर्फ चुनिन्दा मामलों में उन बच्चों या वयस्कों को ये दिए जाने चाहिए जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं या जिनके शरीर में किसी प्रकार की कमी है। लेकिन आज प्राय: हर बच्चा दूध के साथ या वैसे ही इन फूड सप्लिमेंट को ले रहा है, जिसके चलते कम उम्र में ही दिल और शरीर की अन्य व्याधियां हो रही हैं। भारत में भोजन फैशन बनता जा रहा है। इसी कारण कई ऐसी बीमारियां महामारी में तब्दील हो गई हैं, जो अब से पहले कभी सुनने में ही नहीं आई थीं।
-मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर