05-Jun-2015 08:21 AM
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ई-रिक्शा पर लगे प्रतिबंध को हटाकर केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक तरह से उन गरीबों को राहत देने की कोशिश की है लेकिन वे गरीब ही नहीं बल्कि ई-रिक्शा बनाने वाले एक

अन्य उत्पादक को भी इस फैसले से राहत मिली है, क्योंकि सरकार ने ई-रिक्शा धारियों को 3 प्रतिशत ब्याज पर लोन देने की घोषणा भी कर दी है।
यह उत्पादक और कोई नहीं नितिन गडकरी के पूर्ति समूह की कंपनी पूर्ति ग्रीन टेक्नॉलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड है। जिसके संचालक अशोक उर्फ राजेश तोताड़े नितिन गडकरी के साले हैं। पूर्ति ग्रीन टेक्नॉलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड (पीजीटी) सन 2011 में पंजीकृत कंपनी है। जिसे काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एण्ड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) द्वारा ई-रिक्शा विकसित और उत्पादित करने का लायसेंस प्रदान किया गया था। हालांकि 6 अन्य कंपनियों को भी यह लायसेंस मिला, लेकिन उनका चर्चा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उनमें से किसी के राजनीतिक कनेक्शन नहीं हैं। बहरहाल 17 जून 2014 को एक रैली में नितिन गडकरी ने कहा था कि 660 वॉट की मोटर वाले ई-रिक्शा का संचालन करने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट 1988 में परिवर्तन किया जाएगा। इस एक्ट में 250 वॉट के वाहन चलाने का प्रावधान है, जिनकी अधिकतम गति 25 किलोमीटर हो सकती है। लेकिन इस एक्ट का उल्लंघन करते हुए दिल्ली और आसपास के कई शहरों में ई-रिक्शा गरीब तबके द्वारा चलाए जा रहे थे, जिसे देखते हुए सरकार इस पर से प्रतिबंध हटाने के लिए प्रेरित हुई। यही नहीं गडकरी ने 3 प्रतिशत पर लोन देने की बात कहकर यह संकेत दिया कि इसे लेकर वे कितने गंभीर हैं। लेकिन मामला तब ज्यादा विवादास्पद हो गया जब उन्होंने अपनी कंपनी के पूर्ति रिक्शा के खरीदारों को भी इसी तरह का लाभ दीनदयाल ट्रस्ट के माध्यम से देने की घोषण कर दी। दीनदयाल ट्रस्ट की स्थापना गडकरी ने ही की है। गडकरी का कहना है कि दीनदयाल अंतिम पंक्ति के गरीब व्यक्ति के कल्याण मेंं विश्वास रखते थे इसीलिए ई-रिक्शा योजना भी उन्हीं के नाम पर चलाई गई। उस समय गडकरी ने प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को पत्र भी लिखा था कि वे बैंकों को निर्देशित करें कि ई-रिक्शा चालकों को 3 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण दिया जाए।
सरकार की यह योजना तो अच्छी है, पर हकीकत यह है कि साइकिल रिक्शा चलाने वाले इसे खरीदने की ताकत नहीं रखते। इस ई-रिक्शा का मैंटेनेंस भी महंगा है। जब यूपीए सरकार के समय इस योजना पर विचार किया गया था, उस वक्त पर्यावरणविदों ने चेताया था कि ई-रिक्शा की बैटरी का कचरा ज्यादा खतरा पैदा करेगा। केंद्र सरकार का अनुमान है कि ई-रिक्शा योजना पूरी तरह लागू होने पर देश में 2 करोड़ के करीब ई-रिक्शा आ सकते हैं। यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है। ई-रिक्शा की औसत कीमत 70 हजार से 1 लाख के बीच है। जो रिक्शा चला रहे हैं उनकी जेब इस काबिल नहीं है। वर्ष 2013 में जब नितिन गडकरी ने राकांपा नेता शरद पवार को एक प्रदर्शनी में ई-रिक्शा पर बिठाकर घुमाया था, तब किसी समाचार पत्र ने इसे गॉसिप बनाते हुए गडकरी की दूरदर्शिता निरूपित किया था। आज उस दूरदर्शिता का अर्थ स्पष्ट समझ में आ रहा है। गडकरी का कहना है कि बाजार में कई उत्पादक हैं। इसलिए किसी विशेष फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए ई-रिक्शा कानून में तब्दीली की बात गलत है। गडकरी सही भी हो सकते हैं लेकिन महाराष्ट्र में ई-रिक्शा को स्वीकृति देने और निखिल फर्नीचर द्वारा ई-रिक्शा सप्लाई करने की बात गले नहीं उतर रही। सूत्रों का कहना है कि पीजीटीएल का नाम ज्यादा उछलने के कारण निखिल फर्नीचर सामने आया है। निखिल फर्नीचर मुख्य रूप से बड़े-बड़े मॉल्स में उपयोगी क्लॉक हैंगर्स, सर्विस स्टील काउंटर्स, शॉपिंग ट्रॉली, डिस्प्ले केस, डिस्प्ले रैक्स आदि बनाने के साथ-साथ सोलर फैंसिंग भी करता है। लेकिन इसका नाम पहली बार ई-रिक्शा के संदर्भ में सुना गया है। निखिल फर्नीचर ने इस वर्ष फरवरी माह में ट्रांसपोर्ट विभाग में अर्जी लगाते हुए नागपुर में ई-रिक्शा संचालित करने की अनुमति चाही थी। इस फर्म ने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट से भी टे्रड सर्टिफिकेट की मांग की थी। सरकार ने वर्ष 2014 में जो नए नियम बनाए हैं, उसके तहत ई-रिक्शा में 4 सवारी बैठाते हुए 40 किलो लगेज की अनुमति दी गई है। जबकि सामान ले जाने वाले ई-रिक्शा 310 किलोग्राम तक वजन ढो सकते हैं। लेकिन ई-रिक्शा के आलोचकों का कहना है कि मंत्रालय और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट (सीआईआरटी) दोनों ने ई-रिक्शा की अनुमति देते समय बुनियादी सुरक्षा नियमों की अनदेखी की है। भारत की सड़कों पर ई-रिक्शा सुरक्षित नहीं है। उनकी गति बहुत सीमित है और उनका ढांचा कुछ इस तरह का बनाया गया है कि वे कभी भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकते हैं। 2 करोड़ ई-रिक्शा भारत की सड़कों पर दौडऩे लगें, तो बैटरी से निकलने वाले लैड और एसिड की समस्या पर्यावरण को खतरा पैदा करेगी। लगातार चलने के कारण ई-रिक्शा की बैटरी 6-7 माह में बदलनी होगी और इन बैटरियों का कबाड़ भारत में नई समस्या पैदा करेगा। लेकिन इसकी परवाह किसे है। सारी खुदाई एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ।
-बिंदु माथुर