05-Jun-2015 08:19 AM
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मोदी सरकार द्वारा बनाए गए नीति आयोग ने राज्य सरकारों को चिंता में डाल दिया है। राज्य सरकार की तमाम योजनाओं और केंद्र की योजनाओं के लिए बजट मिलने में भारी दिक्कत हो रही है।

जब मनमोहन
सिंह प्रधानमंत्री थे, तो भाजपा शासित राज्यों
के लिए भी खजाना खुला रहता था। पैसा
नहीं मिलता था तो शिवराज सिंह धरने पर
बैठ जाते थे, लेकिन अब क्या करें। न तो केंद्र को सुध है और नीति आयोग न ही कोई नीतिगत निर्णय ले पा रहा है। इसी कारण पशोपेश की स्थिति है।
योजना आयोग का स्थान लेने वाला नीति आयोग एक महीने बाद धीरे धीरे निगरानीकर्ता और सलाहकार की अपनी दोहरी भूमिका में नजर आने लगा है। हालांकि अभी भी बहुत अनिश्तितता है, लेकिन योजनाओं और कार्यक्रमों की निगरानी और मूल्यांकन को लेकर हुई चर्चा के बाद स्थिति थोड़ी साफ हुई है। आयोग ने बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं को गति देने के लिए भी बैठक आयोजित की और ऐसी योजनाओं की प्रगति की समीक्षा की, जिनमें बहुत ज्यादा देरी हुई है। इस बीच आयोग ने मंत्रालयों व विभागों को भी केंद्र सरकार की ओर से की जा रही विभिन्न पहल के बारे में सलाह भी दिया, जैसा कि योजना आयोग करता था।
इस तरह के एक विचार विमर्श में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न मसलों पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने भी हमसे संपर्क साधा। पीएमओ ने बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं तेजी से पूरा करने को लेकर सुझाव मांगे। उन्होंने कहा कि इस तरह से नीति आयोग अब निष्क्रिय हो चुके आर्थिक सलाहकार परिषद और योजना आयोग का मिला जुला रूप हो गया है।
आयोग ने पीएमओ और अन्य को लंबित और नई बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजाओं को लेकर अनिवार्य तकनीकी आर्थिक विश्लेषण मुहैया कराने का सुझाव देने की भी योजना बना रहा है, जो पूरा होने की अवधि व अनुमानित खर्च की सीमा को पार कर गई हैं। इस समय ज्यादातर बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की अनुमानित लागत का आकलन मंजूरी के समय किया जाता है, जिसमें लागत में बढ़ोतरी शामिल नहीं होती और पूरा होने के समय तक की महंगाई का अनुमान नहीं होता है। इसे न सिर्फ लागत बढ़ती है, बल्कि खजाने पर भार बढ़ता है और परियोजना में खासी देरी होती है।
अधिकारी ने कहा, लंबित योजनाओं का अगर एक बार उचित तरीके से तकनीकी आर्थिक विश्लेषण कर लिया जाएगा तो हमें साफ अनुमान होगा कि परियोजना पूरी करने के लिए कितने धन की जरूरत है। साथ ही इसका भी अनुमान होगा कि परियोजना पूरी होने तक अनुमानित लागत क्या होगी। इससे न सिर्फ उचित योजना बनाने में मदद मिलेगी बल्कि इससे धन की व्यवस्था में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, देश की 700 बड़ी परियोजनाओं में से करीब 80-85 प्रतिशत में विभिन्न वजहों से देरी हो रही है। अगर हम समय पर या उससे पहले काम खत्म करना सुनिश्चित कर लें तो यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि होगी।
वित्त मंत्रालय को धन के हस्तांतरण का अधिकार मिलने के बाद नीति आयोग और राज्य सरकारों के बीच संबंध इस सप्ताह के आखिर तक होने वाली बैठक के बाद साफ होने की उम्मीद है। 1 जनवरी के कैबिनेट प्रस्ताव के मुताबिक सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और लेफ्टीनेंट गवर्नर नीति आयोग की शासी परिषद के सदस्य होंगे। इसके साथ ही एक से ज्यादा राज्य से जुड़े मसलों की किसी विशेष समस्या के समाधान के लिए क्षेत्रीय परिषदों के गठन का भी प्रस्ताव है। यह परिषद नियत समय के लिए होगी, जिसके प्रमुख नीति आयोग के उपाध्यक्ष होंगे।
नीति आयोग अब निष्क्रिय हो चुके आर्थिक सलाहकार परिषद और योजना आयोग का मिला जुला रुप हो गया है।
आयोग ने पीएमओ और अन्य को लंबित और नई बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लेकर अनिवार्य तकनीकी आर्थिक विश्लेषण मुहैया कराने का सुझाव देने की भी योजना बना रहा है, जो पूरा होने की अवधि व अनुमानित खर्च की सीमा को पार कर गई हैं।
इस समय ज्यादातर बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का अनुमानित लागत का आंकलन मंजूरी के समय किया जाता है, जिसमें लागत में बढ़ौतरी शामिल नहीं होती और पूरा होने के समय तक की महंगाई का अनुमान नहीं होता है। इसे न सिर्फ लागत बढ़ती है, बल्कि खजाने पर भार बढ़ता है और परियोजना में खासी देरी होती है। अधिकारी ने कहा, च्लंबित योजनाओं का अगर एक बार उचित तरीके से तकनीकी आर्थिक विश्लेषण कर लिया जाएगा तो हमें साफ अनुमान होगा कि परियोजना पूरी करने के लिए कितने धन की जरूरत है। साथ ही इसका भी अनुमान होगा कि परियोजना पूरी होने तक अनमानित लागत क्या होगी।
इससे न सिर्फ उचित योजना बनाने में मदद होगी बल्कि इससे धन की व्यवस्था में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, देश की 700 बड़ी योजनाओं में से करीब 80-85 प्रतिशत में विभिन्न वजहों से देरी हो रही है। अगर हम समय पर या उससे पहले काम खत्म करना सुनिश्चित कर लें तो यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि होगी।
-भोपाल से अजयधीर