05-Jun-2015 08:16 AM
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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पहली मुलाकात में अरविंद केजरीवाल को संविधान की प्रति भेंट की थी। उनका आशय यही था कि कोई भी निर्णय लेने से पहले संविधान अवश्य पढ़ लें, लेकिन लगता है

अरविंद केजरीवाल ने संविधान का अध्ययन नहीं किया। इसी कारण दिल्ली ने राज्यपाल के मुद्दे पर वे केंद्र सरकार से उलझ बैठे। केंद्र और राज्यों के बीच समवर्ती सूची में दोनों की भूमिकाओं को स्पष्ट लिखा गया है। लेकिन केंद्र शासित प्रदेशों का अर्थ ही ऐसे प्रदेश हैं, जहां केंद्र का शासन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लागू रहता है। ऐसी सरकारों को सीधे कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं और बहुत से मामलों में केंद्र का हस्तक्षेप हो सकता है। दिल्ली में दिल्ली को राज्य का दर्जा मिलने के बाद सरकार को कुछ विशेष अधिकार मिले हुए हैं, जिन्हें स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। अरविंद केजरीवाल अनुभवी नहीं हैं और उनकी टीम में जो संविधान की समझ रखने वाले ज्ञानी थे, उनकी उन्होंने छुट्टी कर दी है। इसीलिए भारी बहुमत के बावजूद यह आशंका तो है ही कि भविष्य में केजरीवाल को कानूनी पचड़ों में उलझाया जा सकता है। केजरीवाल और लैफ्टिनेंट गवर्नर के बीच जो शीतयुद्ध चल रहा है, उसमें जनसमर्थन केजरीवाल के पक्ष में है लेकिन कानून लैफ्टिनेंट गवर्नर के पक्ष में। यही कारण है कि केजरीवाल चाह कर भी गवर्नर के खिलाफ महाभियोग नहीं ला सकते। इस लड़ाई में केजरीवाल को कोर्ट ने थोड़ी राहत तो दी है लेकिन अंतिम शक्ति केंद्र के पास ही है। इसीलिए केंद्र सरकार और केजरीवाल अब सीधे टकराव की मुद्रा में आ गए हैं। केजरीवाल ने भाजपा पर 3 विधायकों और लैफ्टिनेंट गवर्नर के मार्फत शासन करने का आरोप लगाया है। भाजपा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। लेकिन यह सच है कि दिल्ली के खेल में भाजपा भी कहीं न कहीं शामिल है।
इस बीच दिल्ली के हाईकोर्ट ने नजीब जंग से कहा है कि वह राज्य सरकार के उस प्रस्ताव पर विचार करें जिसमें कहा गया है कि उनके तमाम फैसले वे राज्यपाल के पास भेजेंगे और जिन मुद्दों पर राज्य सरकार की राय से राज्यपाल की राय मेल नहीं खाएगी उन्हें राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा जाएगा। दरअसल केजरीवाल ने हाईकोर्ट में एक अर्जी देकर यह मांग की थी कि कोर्ट केंद्र सरकार की उस अधिसूचना को रद्द कर दे जिसमें कहा गया था कि नियुक्ति और तबादले समेत तमाम मामलों में उप राज्यपाल का फैसला अंतिम होगा। उधर केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची है और उसने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज करने की अर्जी दी है जिसमें कहा गया है कि वह दिल्ली सरकार के अधिकार हड़पना चाहती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 3 हफ्ते के भीतर राज्य सरकार से जवाब देनेे का कहा है। वैसे मामले की सुनवाई 6 हफ्ते बाद होगी, जिसमें केंद्र सरकार को अपनी अधिसूचना पर सफाई देनी पड़ेगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कुछ समय पूर्व अधिसूचना जारी करके स्पष्ट किया था कि कानून व्यवस्था, सर्विसेज और जमीन के मामलों में उप राज्यपाल को मुख्यमंत्री से सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार अब यह मामला पूरी तरह कानून की दहलीज पर पहुंच चुका है। सवाल यह है कि कोर्ट के फैसले को कितनी मान्यता दी जाएगी? क्योंकि दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात मनवाने पर अड़े हुए हैं।
दिल्ली के मुख्य सचिव पद की जंग में अरविंद केजरीवाल कानूनी रूप से तो सुरक्षित थे किंतु नौकरशाही उन्हें उलझाने की कोशिश कर रही है। केजरीवाल की कार्यशैली सरकारी बाबुओंÓ को नापसंद है इसलिए 22 के करीब आईएएस अफसर दिल्ली को अलविदा कहने का मन बना चुके हैं। जाहिर है केजरीवाल प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त कर रहे हैं, जिस कारण अधिकारियों की सुखनिद्राÓ भंग हो रही है। यह सच है कि राजनीति के अखाड़े में केजरीवाल का फिलहाल एकछत्र राज है, दिल्ली में उन्होंने भाजपा-कांग्रेस के सभी दिग्गजों को हासिए पर धकेल दिया है। विधानसभा चुनाव में एक तरह से मोदी को ही केजरीवाल ने परास्त किया था। चुनाव जीतने के बाद अप्रैल माह में केजरीवाल ने कहा था कि नौकरशाही के साथ उनका पिछले 2 माह का अनुभव काफी अच्छा रहा है। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि केजरीवाल की सरकार में एक-दो नहीं पूरे 22 नौकरशाह नाराज हो गए। ऐसा नहीं है कि केजरीवाल अकेले जमकर काम लेने वालों में से हैं, प्रधानमंत्री मोदी भी दिन-रात काम करवा रहे हैं। लेकिन केजरीवाल में ऐसी क्या बुराई है, कि उनके नौकरशाह दूर होने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली में कार्यवाहक मुख्य सचिव का प्रकरण भी इसी तरह से समाचार पत्रों की सुर्खियां बन गया। केजरीवाल जिसे चाह रहे थे, उसे कार्यवाहक मुख्य सचिव नहीं बनाया गया। मुख्य सचिव के.के. शर्मा की 10 दिवसीय अमेरिका यात्रा केजरीवाल और दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग के बीच जंग का कारण बन गई।
शर्मा को यह नहीं पता था कि उनके जाने के बाद लड़ाई सड़क पर आ जाएगी। केजरीवाल ने मीडिया के माध्यम से युद्ध छेड़ दिया। कुछ दिन पहले तक वे मीडिया पर निजी हमले करने और उनकी सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए मीडिया सेंसरशिप की बात कर रहे थे लेकिन जब जंग के साथ जंग छिड़ी, तो उन्हें सबसे पहले मीडिया ही याद आया। मीडिया ने भी सबकुछ भूल-भाल कर इस लड़ाई में केजरीवाल का साथ दिया। क्योंकि केजरीवाल सही थे। उप राज्यपाल ने केजरीवाल की इच्छा के विरुद्ध 1984 बैच की आईएएस अधिकारी शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया। शकुंतला की एक बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस के साथ निकटता है, इसलिए केजरीवाल शकुंतला को मुख्य सचिव नहीं बनाना चाह रहे थे।
देखा जाए तो केजरीवाल का पक्ष एकदम सही है। भले ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला हो, लेकिन केजरीवाल का यह हक है कि वे सत्ता और प्रशासन में अपनी पसंद के नौकरशाह नियुक्त करें। उप राज्यपाल को इस तरह दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए। यदि उप राज्यपाल अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं, तो यह संवैधानिक प्रक्रिया का मखौल उड़ाना ही कहलाएगा। केजरीवाल में कुछ कमियां हैं, दिल्ली में उनके कार्य करने का तरीका थोड़ा अलग है लेकिन दिल्ली बदलने लगी है। भ्रष्टाचार के मामले कम हुए हैं, अफसरों-कर्मचारियों में केजरीवाल का भय है, काम भी ठीक से चल रहा है। हालांकि दिल्ली के स्वच्छता अभियान को उतनी गति नहीं मिली है लेकिन फिर भी दिल्ली पहले की अपेक्षा सुधरी है। जनता में भी केजरीवाल को लेकर कोई नाराजगी या शिकायत नहीं है। उनका काम-काज प्राय: सभी को पसंद आ रहा है। केजरीवाल भी जानते हैं कि जनता-जनार्दन को सुखी रखकर वे बाकी किसी की परवाह न भी करें तो चलेगा, इसीलिए उनका फोकस पूरा काम पर है। लेकिन राज्यपाल ने जिस तरह एक चुनी हुई सरकार के काम-काज में अनावश्यक दखलअंदाजी की कोशिश की है, वह दिल्ली में टकराव को बढ़ा सकती है। केजरीवाल ने गैमलिन को काम नहीं करने दिया। न ही उन्हें किसी बैठक में बुलाया गया और न ही उनसे कोई राय मांगी गई। उप राज्यपाल नजीब जंग ने संविधान के अनुच्छेद 239-ए की आड़ लेने की कोशिश की है। लेकिन कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अपनी सहूलियत के अनुसार अधिकारियों की नियुक्ति करना चुनी हुई सरकार का हक बनता है, उन्हें इस हक से वंचित नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा होगा तो चुनाव का कोई अर्थ नहीं निकलेगा। शकुंतला गैमलिन को वरिष्ठता के आधार पर उप राज्यपाल ने दिल्ली की सरकार की सलाह के विपरीत नियुक्त कर दिया। शकुंतला का कहना है कि केजरीवाल के सचिव राजेन्द्र कुमार ने उनसे फोन करके कहा था कि वे कार्यवाहक मुख्य सचिव की दौड़ में शामिल न हों। इस दौड़ में वरिष्ठ नौकरशाह एन. जयसीलन, अरविंद रे एवं एस.पी. सिंह शामिल थे। इन तीनों में से किसी को केजरीवाल कार्यवाहक मुख्य सचिव बनाना चाह रहे थे। लेकिन उप राज्यपाल ने तीनों को दरकिनार कर शकुंतला को पदभार सौंप दिया। बाद में केजरीवाल और नजीब जंग ने राष्ट्रपति से मिलकर एक-दूसरे पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाया। यह जंग और गहरा गई, जब आप सरकार ने जंग की अनदेखी करते हुए वरिष्ठ अधिकारी अरविंद राय को सामान्य प्रशासन विभाग का प्रधान सचिव नियुक्त किया। गौर करने वाली बात है कि राय की नियुक्ति का आदेश राजेंद्र कुमार ने प्रधान सचिव (सेवा) की हैसियत से जारी किया जबकि आप सरकार द्वारा इस पद पर कुमार की नियुक्ति को जंग ने निष्प्रभावी घोषित किया था। आप सरकार ने अनिंदो मजूमदार से सामान्य प्रशासन विभाग और सेवा विभाग की जिम्मेदारी लेकर कुमार को सौंपी थी। मजूमदार को इसलिए हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने कार्यवाहक मुख्य सचिव के रूप में शकुंतला गैमलिन की नियुक्ति की अधिसूचना वाला आदेश जारी किया था। उसी दिन शाम को उपराज्यपाल ने मजूमदार के स्थानांतरण को निष्प्रभावीÓ घोषित किया था। मजूमदार जब दिल्ली सचिवालय में अपने दफ्तर पहुंचे थे तो वहां ताला लटका हुआ था। बाद में आप सरकार ने कुमार को सेवा और सामान्य प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव पद पर बैठा दिया। आप सरकार ने अपने आदेश में कहा कि राय को राजेंद्र कुमार की जगह प्रधान सचिव नियुक्त किया गया है। इस साल की शुरुआत में आप सरकार ने राय को गृह विभाग के प्रधान सचिव पद से हटाया था और तब से उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी।
ऐसे अनेक नौकरशाह हैं, जिन्हें इधर से उधर किया गया है। इसी कारण नौकरशाही के एक धड़े ने केजरीवाल के खिलाफ बगावत सी कर रखी है। उधर उप-राज्यपाल से केजरीवाल की पटरी अच्छी नहीं बैठ रही है। यह लड़ाई केजरीवाल के लिए घातक सिद्ध होगी या नहीं, आने वाला वक्त बताएगा।
-दिल्ली से रेणु आगाल