बाल श्रम के नए कानून पर विवाद
05-Jun-2015 07:53 AM 1235248

मोदी सरकार ने बाल श्रम कानून में बदलाव किया है। जिसके तहत 14 वर्ष से छोटे बच्चे अपने घरेलू काम-धंधे में हाथ बंटा सकते हैं। यह छोटा सा बदलाव है, लेकिन सेंधमारी के लिए इसमें बहुत सी गुंजाइश पैदा हो गई है। भारत में तो घरेलू काम-धंधे के कई रूप हैं। बहुत से लोगों के कुछ ऐसे भी काम हैं जो बेहद खतरनाक हैं। यहीं से बहस शुरू हुई। लोगों का मानना है कि बच्चों की जगह केवल स्कूल हो सकती है और उन्हें स्कूल के अतिरिक्त घरेलू काम में लगाना भी बालश्रम ही है। इसीलिए इसको लेकर बहुत विरोध हो रहा है। कांग्रेस और वामपंथी संगठन विशेष तौर पर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा ने सियासी लाभ के लिए यह नया दांव चला है।
केंद्रीय कैबिनेट ने बालश्रम में बदलाव को जो मंजूरी दी है, उसके पीछे उद्देश्य क्या है? इन बदलाव में व्यावसायिक उपक्रमों में चौदह साल से कम उम्र के बच्चों से काम लेने पर प्रतिबंध शामिल है। यह एक स्वागतयोग्य कदम है। हालांकि इसमें एक प्रावधान यह है कि पारिवारिक और गैर खतरनाक उद्योगों में चौदह साल से कम उम्र के बच्चों से काम लेने पर मनाही नहीं है। बाल अधिकार से जुड़े कार्यकर्ता इस प्रस्ताव पर क्षुब्ध हैं। वे सरकार के इस प्रस्ताव से भी नाखुश हैं कि ऑडियो-विजुअल इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में भी ऐसे बच्चों के काम करने पर प्रतिबंध नहीं है, बशर्ते कि उस क्षेत्र में बच्चों का काम उनकी पढ़ाई को प्रभावित नहीं करेगा।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 5 से 14 साल के बच्चों  की कुल आबादी 25.96 करोड़ है। इनमें से 1.01 करोड़ बच्चे मजदूरी करते हैं  इसमें 5 से 9 साल की उम्र के 25.33 लाख बच्चे और 10 से 14 वर्ष की उम्र के 75.95 लाख बच्चे शामिल हैं। राज्यों की बात करें तो सबसे ज्यादा बाल मजदूर उत्तर प्रदेश (21.76 लाख) में हैं, जबकि दूसरे नम्बर पर बिहार है जहाँ  10.88 लाख बाल मजदूर हैं। राजस्थान में 8.48 लाख, महाराष्ट्र  में 7.28 लाख तथा, मध्यप्रदेश में 7 लाख बाल मजदूर हैं। यह सरकारी आंकड़े हैं और यह स्थिति तब है जब 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे बाल श्रम की परिभाषा के दायरे में शामिल थे, वैश्विक स्तर पर देखें तो सभी गरीब और विकासशील देशों में बाल मजदूरी की समस्या है। इसकी मुख्य वजह यही है कि मालिक सस्ता मजदूर चाहता है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने पूरे विश्व के 130 ऐसे चीजों की सूची बनाई है जिन्हें बनाने के लिए बच्चों से काम करवाया जाता है। इस सूची में सबसे ज्यादा बीस उत्पाद भारत में बनाए जाते हैं। इनमें बीड़ी, पटाखे, माचिस, ईंटें, जूते, कांच की चूडिय़ां, ताले, इत्र, कालीन, कढ़ाई, रेशम के कपड़े और  फुटबॉल बनाने जैसे काम शामिल हैं। भारत के बाद बांग्लादेश का नंबर है जिसके 14 ऐसे उत्पादों का जिक्र किया गया है, जिनमें बच्चों से काम कराया जाता है। घरेलू स्तर पर काम को सुरक्षित मान लेना गलत होगा। उदारीकरण के बाद असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र में काफी बदलाव आया है, काम का साधारणीकरण हुआ है। अब बहुत सारे ऐसे काम घरेलू के दायरे में आ गये हैं जो वास्तव में इन्डस्ट्रिअल हैं, आज हमारे देश में बड़े स्तर पर छोटे घरेलू धंधे और उत्पादक उद्योग असंगठित क्षेत्र में चल रहे हैं, जो संगठित क्षेत्र के लिए उत्पादन कर रहे हैं। जैसे बीड़ी उद्योग में बड़ी संख्या में बच्चे काम कर रहे हैं, लगातार तंबाकू के संपर्क में रहने से उन्हें इसकी लत और फेफड़े संबंधी रोगों का खतरा बना रहता है। बड़े पैमाने पर अवैध रूप से चल रहे पटाखों और माचिस के कारखानों लगभग 50 प्रतिशत बच्चे होते हैं, जिन्हें दुर्घटना के साथ-साथ सांस की बीमारी के खतरे बने रहते है। इसी तरह से चूडिय़ों के निर्माण में बाल मजदूरों का पसीना होता है जहाँ 1000-1800 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाली भट्टियों के सामने बिना सुरक्षा इंतजामों के बच्चे काम करते हैं। देश के कालीन उद्योग में भी लाखों बच्चे काम करते हैं। आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कालीन उद्योग में जितने मजदूर काम करते हैं, उनमें तकरीबन 40 प्रतिशत बाल श्रमिक होते हैं। वस्त्र और हथकरघा खिलौना उद्योग में भी, भारी संख्या में बच्चे खप रहे हैं। पश्चिम बंगाल और असम के चाय बागानों में लाखों की संख्या में बाल मजदूर काम करते हैं। इनमें से अधिकांश का तो कहीं कोई रिकॉर्ड ही नहीं होता। कुछ बारीक काम जैसे रेशम के कपड़े बच्चों के नन्हें हाथों बनवाए जाते हैं।
दरअसल पारिवारिक व्यवसायÓ अपने आप में बेहद अस्पष्ट शब्दावली है। ऐसे अनेक व्यवसाय असंगठित क्षेत्र में होंगे। फिर पारिवारिक व्यवसाय की परिभाषा परिवार से जुड़े बाहरी व्यक्तियों तथा दूर के रिश्तेदारों तक भी जाती है। जैसा कि मिर्जापुर स्थित सेंटर फॉर रूरल एजुकेशन ऐंड डेवलपमेंट ऐक्शन के निदेशक शमशाद खान पूछते हैं, यह कैसे तय किया जाएगा कि काम पर लगे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है या नहीं? कल्पना कीजिए कि पूरा दिन स्कूल में बिताने के बाद एक बच्चे से पारिवारिक व्यापार में हाथ बंटाने के लिए कहा जाता है। वैसे में वह कब पढ़ेगा, कब खेलेगा, और कब होमवर्क करेगा? अगर बच्चा पारिवारिक व्यापार में हाथ बंटाने के बजाय पढऩा चाहता है, तो क्या होगा?
-कोलकाता से इंद्रकुमार बिन्नानी

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