एक साल कुछ उपलब्यिां, कुछ बवाल!
05-Jun-2015 08:07 AM 1234834

कालाधन पर 15 लाख का लालीपॉप, 51 दिन में 18 देशों की 40 हजार से अधिक किलोमीटर की यात्राएं, अनगिनत सेल्फी, नीति आयोग का गठन, कॉलेजियम प्रणाली की समाप्ती, कई कानूनों का सफाया, जीएसटी जैसे सुधार के अतिरिक्त बहुत कुछ ऐसा है जो नरेंद्र मोदी के एक वर्ष को अलोचना, समालोचना और प्रशंसा की दृष्टि से परिभाषित कर सकता है। मोदी का 1 साल देश-विदेश की मीडिया और जनता जनार्दन के बीच जितना चर्चित रहा उतना इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री के एक वर्षीय शासन पर विचार-विमर्श नहीं किया गया। अखबारों में कई एकड़ पृष्ठ लिखे गए। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर घंटों चर्चा चली। भाजपा ने एक वर्ष के उपलक्ष में मोदी की देश भर में 200 रैलियों की घोषणा की, जिसका श्रीगणेश मोदी ने मथुरा से किया। यह सब अभी भी जारी है। नरेंद्र मोदी की एक वर्ष की उपलब्धियों, कमियों पर सत्तापक्ष-विपक्ष की नोंक-झोंक का सिलसिला चल रहा है।  इन सब के बीच यह तो कहना ही पड़ेगा कि नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति में एक व्यापक परिवर्तन की नींव रख दी है। अपने पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह के विपरीत वे एक बेलौस, बेखौफ और कुछ हद तक तानाशाह मसीहा के रूप में भारत की राजनीति के क्षितिज पर उभरे हैं।
जो लोग मोदी में इंदिरा गांधी का अक्स देखते हैं, उनका आंकलन भी उतना बुरा नहीं है। फर्क समय का है। जिस वक्त इंदिरा गांधी के हाथ में देश की बागडोर थी भारत गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, पिछड़ेपन जैसी तमाम समस्याओं से भयानक तरीके से जूझ रहा था। स्थिति इतनी दुरूह थी कि अमेरिका का राष्ट्राध्यक्ष व्यंग्य में कहता था कि भारत में अकाल पड़ता है तो हमें चिंता होती है। असिंचित और मानसून की दया पर निर्भर भारत तब अमेरिका से लाल गेंहू आयात करके अपने भूखे लोगों का पेट भरता था। भारत का जीडीपी अमेरिका के बड़े शहरों के खर्च के बराबर था। शिकागो और न्यूयॉर्क जितनी बिजली की खपत करते थे, उतनी बिजली तो भारत में उत्पादित ही होती थी। लेकिन इस जीर्ण-शीर्ण और जर्जर देश को अमेरिका के विरोध के बावजूद 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के वक्त विजेता बनाकर इंदिरा गांधी ने लौह महिला की उपाधि पाई थी। भारत के इतिहास को उनके दृढ़ संकल्प ने नई ऊंचाईयां दीं। पोखरण में परमाणु बम का विस्फोट करके इंदिरा ने दुनिया को दिखा दिया कि भारत भी ताकतवर है। भारत की तरफ उठती हर आंख को इंदिरा की आंच ने उस वक्त झुलसा दिया था।
आज नरेंद्र मोदी को विरासत में जो भारत मिला है वह न तो उतना पिछड़ा है, न गरीब और न ही लाचार। विकास की गति में तेजी से आगे निकलते भारत की पिछले तीन दशक में सबसे बड़ी कमजोरी उसकी राजनीतिक अस्थिरता ही थी। लंगड़ी सरकारों ने इस देश की केंद्रीय सत्ता को समझौते का पर्याय बना दिया था। ऐसा नहीं था कि अटल बिहारी वाजपेयी में काबीलियत नहीं थी, लेकिन सहयोगी दलों की बेसाखी पर टिकी उनकी सरकार की सीमा तय थी। यही उनसे पूर्ववर्ती और उनके बाद काम करने वाले प्रधानमंत्रियों के साथ हुआ। किंतु नरेंद्र मोदी भारतीय इतिहास के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने अपने दम पर 282 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। मोदी का यह कारनामा असाधारण ही था। निश्चित रूप से यह एक ऐसी विजय थी, जो मोदी के दम पर ही संभव हो पाई क्योंकि जनता के बीच वे एक लोकप्रिय जननायक बनकर उभरे। इसी कारण आज जब मोदी के एक वर्ष का आंकलन हो रहा है, तो इसे सहज और स्वाभाविक विश्लेषण ही कहा जा सकता है। क्योंकि मोदी को जो बहुमत मिला, उसी के अनुरूप जन आकांक्षाएं भी थीं। भ्रष्टाचार, विकास और सुशासन ये तीन मुद्दे मोदी की जीत के सूत्र बने। गुजरात मॉडल तो सामने था ही। लेकिन आज 365 दिन बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि जिस गति से काम करने का नरेंद्र मोदी ने वादा किया था, क्या उसे पूरा करने की दिशा में उन्होंने कदम बढ़ा दिए हैं?
12 मई को जब मथुरा की रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा कि 12 रुपए में कफन नहीं मिलता, मैं बीमा लेकर आया हूं। तो उनका यह कथन 15 लाख वाले वादे के समान खोखला नहीं था। 12 रुपए का बीमा एक ऐसी उपलब्धि है जिसे मोदी सगर्व दोहरा सकते हैं। हर घर में शौचालय का उनका मिशन भी संतोषजनक गति से आगे बढ़ रहा है। राज्य सरकारें ही नहीं गैर सरकारी संगठन और उद्योगपति भी गांव में सस्ते शौचालय उपलब्ध कराने के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने तो दहेज में शौचालय देने की घोषणा कर डाली है। लेकिन स्वच्छता अभियान कागजी ज्यादा दिखाई देता है। देश उतना ही धूल-धूसरित, कीचड़-कवलित और गंदगी-आच्छादित है। इसका कारण यह है कि स्वच्छता का जुड़ाव कहीं न कहीं अधोसंरचना और विकास से है। शहर नियोजन ठीक से होगा, तो सफाई भी अच्छी तरह से हो सकेगी।
नरेंद्र मोदी ने इंडिया मेक का नारा दिया है। लेकिन हकीकत थोड़ी अलग है। अकेले मध्यप्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेजेस ने 24 हजार से अधिक सीटें सरेंडर की हैं। जिस देश में इंजीनियरों की भारी कमी हो वहां कॉलेजों में इंजीनियरिंग पढऩे वाले न मिलें, तो मोदी का इंडिया मेक कैसे संभव हो पाएगा? इसका सीधा सा अर्थ यह है कि भारत की शिक्षा इतनी दयनीय है कि यहां पढऩे-लिखने वाले शिक्षित तो बन जाते हैं, लेकिन काबिल नहीं बनते। मोदी कहते हैं कि जिस की जिस में मास्टरी हो, उसे वही काम देना चाहिए। लेकिन सवाल पैचीदा है- मास्टरी हासिल करने के लिए प्रशिक्षण और वातावरण कहां है? हमारी शिक्षा प्रणाली अभी भी वैसी ही है- बाबू बनाने लायक।
महंगाई और पेट्रोल-डीजल की कीमतें यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर मोदी सरकार की पकड़ ढीली ही दिखाई दी। महंगाई के हाल तो मनमोहन सरकार के कार्यकाल से भी बुरे हैं। लेकिन पेट्रोल-डीजल को अपना नसीब बताने वाले मोदी इसकी बढ़ती कीमतों के समक्ष लाचार क्यों हैं? यह एक बड़ा सवाल है।
मनमोहन सरकार ने जब 2009 के चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी, उस वक्त उनकी इस जीत में मनरेगा का बड़ा योगदान था। मोदी ने मनरेगा को यूपीए की विफलता के स्मारक के रूप में बनाए तो रखा है पर उसका दायरा सीमित कर दिया है। प्रश्न यह है कि प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त रखने का संकल्प करने वाले मोदी मनरेगा पर इतने अनुदार क्यों हैं? यदि वे मनरेगा को भ्रष्टाचार मुक्त नहीं कर सकते, तो फिर इसके अवशेष क्यों बचाए रखना चाहते हैं? मोदी का यह कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि एक चैंपियन से लोग ज्यादा उम्मीद रखते हैं। तेंदुलकर 10 रन पर आउट हो जाए, तो लोग ज्यादा दुखी होते हैं। जबकि दूसरा खिलाड़ी शून्य पर आउट हो तो परवाह नहीं करते। जाहिर है गुजरात में जब अच्छा काम किया, तो जनता और मीडिया ने मोदी को उम्मीदों के पैमाने पर आंका। यह आंकलन इतनी ही कठोरता से किया जाएगा। लेकिन डर यह है कि वक्त के साथ मोदी नहीं चल पाए तो उनका आंकलन अपयश के पैमाने पर भी होगा। क्योंकि मोदी के ही शब्दों में ही कहें तो ईवीएम का बटन दबाना एके-47 के ट्रिगर को दबाने से ज्यादा शक्तिशाली है। दिल्ली चुनाव में मोदी के खिलाफ जनता ने एके-47 चलाकर अपनी ताकत का अहसास करा दिया था।
सौलहवीं लोकसभा के पहले सत्र में मोदी की जीत को जब कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने अच्छी मार्केटिंग का नतीजा बताया था, उस वक्त सुष्मा स्वराज का जबाव था कि मार्केटिंग भी तभी सफल होती है जब आपका प्रोडक्ट अच्छा हो। मोदी और केजरीवाल में यही समानता है, लेकिन केजरीवाल एक कदम आगे हैं क्योंकि उन्होंने अपने 49 दिन के छोटे से कार्यकाल में अपने प्रोडक्टÓ की झलक दिल्ली की जनता को दिखा दी थी। लेकिन उत्तरप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, राजस्थान, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में हुए उपचुनाव या दूसरे अन्य चुनाव भाजपा के लिए खुशखबरी नहीं ला सके। भाजपा बुरी तरह हारी। महाराष्ट्र और हरियाणा में अवश्य जीती, लेकिन महाराष्ट्र में बहुमत से दूर रही।
इन सबके बावजूद यह तो कहना ही पड़ेगा कि मोदी सरकार ने पिछली सरकार की अपेक्षा ज्यादा गति से काम किया है। संसदीय कामकाज में तेजी देखने को मिली है। पिछले तीन दशक में एक वर्ष के दौरान संसद में इतना काम कभी नहीं हुआ। हालांकि सरकार को 9 बार अध्यादेश का सहारा लेना पड़ा, जिसके लिए राष्ट्रपति ने भी चेताया है। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर गतिरोध और विपक्ष की एकजुटता सरकार को परेशान कर सकती है। राज्यसभा में मोदी सरकार के पास बहुमत नहीं है इसीलिए खुलकर काम करने का अवसर कम ही है। राज्यसभा में संख्या बढ़ाने के लिए मोदी को बिहार और उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार बनवानी पड़ेगी। लेकिन जनता परिवार के एकीकरण के कारण यह संभावना भी क्षीण पड़ी है।  गुजरात दंगा एक ऐसा कलंक है, जो नरेंद्र मोदी को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तंग करता रहता है। मोदी उस छवि से बमुश्किल निकल पाए हैं। लेकिन उनकी ताजपोशी के बाद जिस तरह हिंदूवादी संगठनों ने सारे देश में धर्मांतरण, घर वापसी, गौ-हत्या, लव जिहाद, मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि जैसे मुद्दों पर हंगामा करते हुए आक्रामक रुख अपनाया है वह मोदी के लिए परेशानी भरा रहा। चर्चों पर हमले जैसी घटनाओं ने अल्पसंख्यकों के विश्वास को झकझोरा है। इसीलिए मोदी के समक्ष दोहरी चुनौती है। यह सच है कि मोदी ब्रांड अभी भी मार्केट में बहुत बिकाऊ है लेकिन दिल्ली में मात्र 67 विधायकों के साथ सत्ता पर आसीन केजरीवाल भी लोकप्रियता के मामले में लगातार एक अच्छी ब्रांड बनते जा रहे हैं। राहुल गांधी इन दोनों से बहुत पीछे हैं। मीडिया भी केजरीवाल और मोदी को जितना महत्व देता है उतना राहुल गांधी को नहीं दिया जाता। मोदी एक स्थापित ब्रांड हैं और केजरीवाल नामक ब्रांड को मीडिया तैयार कर रहा है। अगले चुनाव तक एक अलग लड़ाई सामने आ सकती है। कांग्रेस को इसका अंदेशा है इसीलिए कांग्रेस ने मोदी के एक वर्षीय कार्यकाल को खारिज करते हुए उन्हें सूट-बूट वाला, सेल्फी वाला जैसे विशेषणों से नवाजा है। कांग्रेस ने एक तुलना भी की है-(देखें बॉक्स)। इस तुलना में तथ्यों की बाजीगरी करने की कोशिश की गई है। लेकिन कांग्रेस का यह आरोप कुछ हद तक सही है कि मोदी ने कांग्रेस की चलाई हुई योजनाओं को ही आगे बढ़ाया है। बस उनका नाम बदला है। पल भर के लिए यह मान लिया जाए कि मोदी ने ऐसा ही किया है, तो ऐसा करने में बुरा क्या है? यदि यूपीए सरकार की कुछ योजनाएं प्रशासनिक सुस्ती के कारण ठीक से काम नहीं कर रही थीं और मोदी सरकार ने उन्हें कस दिया है, तो इसमें क्या है?  लेकिन मोदी सरकार के समक्ष भारी चुनौतियां हैं। विकास के इतने दावों के बावजूद घर, स्वच्छ पेयजल, बिजली, सड़क जैसी सुविधाओं से देश का एक बड़ा तबका वंचित है। स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा भी सीमित है। बैंकिंग प्रणाली मजबूत होने के बावजूद जन-जन तक लोकप्रिय नहीं है।
इतना अवश्य कह सकते हैं कि विपक्ष भूमि अधिग्रहण के अतिरिक्त कोई बड़ा मुद्दा सरकार के खिलाफ नहीं बना पाया। भ्रष्टाचार का भी कोई मामला सामने नहीं आया है। लेकिन केंद्रीय योजनाओं का पैसा राज्य सरकारों तक पहुंचा ही नहीं इसलिए भ्रष्टाचार की गुंजाइश कहां पैदा होगी? नौकरशाही को कसने में मोदी कामयाब रहे। केंद्र सरकार के कार्यालयों में भी काम तेजी से हो रहा है।

कांग्रेस के आरोप
वैश्विक मंत्री और भाजपा के नकारात्मक अभियान के बावजूद कांग्रेस की यूपीए सरकार के 10 सालों (2004 से 2014) के दौरान भारत में सर्वाधिक आर्थिक वृद्धि हुई। भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत के औसत से बढ़ी। प्रतिव्यक्ति आय 2004 से 24,143 रु. से तीन गुना बढ़कर 2014 में 68,747 रु. हो गई। उद्योग में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सेवा क्षेत्र 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा और कृषि में 4.1 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की गई।
विदेशी मुद्रा भंडार 2003-2004 में 113 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2013-14 में 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। 2004-2014 के बीच भारत में 318  बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी सीधा निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ। भारतीय निर्यात प्रतिवर्ष 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 31.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। ग्रामीण इलाकों में औसत आय में प्रतिवर्ष 17.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2013-2014 में 42.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
विभिन्न अधिकार आधारित कानूनों और योजनाओं में सभी को सम्मिलित और समावेशी विकास करके सामाजिक सुरक्षा के घेरे में लाया गया। इसके परिणामस्वरूप पिछले 10 सालों में 14 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में अभूतपूर्व सफलता मिली।
अवसर गंवाए, मौके खोए देश को वित्तीय दिशाहीनता की ओर धकेला देश को विवकास के मार्ग पर ले जाने के लिए मोदी सरकार के पास न तो आर्थिक दूरदृष्टि है, और न ही राजस्व संबंधी दिशाÓ और वित्तीय समझदारीÓ। वरिष्ठ भाजपा नेता और श्री मोदी के सलाहकार श्री अरुण शौरी ने भी स्पष्ट रूप से कहा है, कि सरकार आर्थिक तौर से दिशाहीनÓ है।
भारत की जनसंख्या का 62.5 हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में है, जिसमें कुल 49 प्रतिशत लोग कार्य करते हैं। यह जीडीपी में 17 प्रतिशत का योगदान देता है। ग्रामीण खपतÓ विकास का सक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो देश की अर्थव्यवस्था में 35 प्रतिशत का योगदान देता है। मोदी सरकार के द्वारा नीतियों को पलट देने से खेत खलिहान में भारी निराशा छाई है। नरेंद्र मोदी ने लागत 50 प्रतिशत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का वादा किया था। मोदी सरकार द्वारा अक्टूबर 2014 में निर्धारित एमएसपी में -03 प्रतिशत का परिवर्तन कर दिया। यह 38 सालों में सबसे अधिक नीचे सातवें पायदान पर था। गैर एमएसपी फसलों की कीमत भी 100 प्रतिशत तक औंधे मुह गिरी है।
कांग्रेस के आरोप
वैश्विक मंत्री और भाजपा के नकारात्मक अभियान के बावजूद कांग्रेस की यूपीए सरकार के 10 सालों (2004 से 2014) के दौरान भारत में सर्वाधिक आर्थिक वृद्धि हुई। भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत के औसत से बढ़ी। प्रतिव्यक्ति आय 2004 से 24,143 रु. से तीन गुना बढ़कर 2014 में 68,747 रु. हो गई। उद्योग में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सेवा क्षेत्र 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा और कृषि में 4.1 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की गई।
विदेशी मुद्रा भंडार 2003-2004 में 113 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2013-14 में 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। 2004-2014 के बीच भारत में 318  बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी सीधा निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ। भारतीय निर्यात प्रतिवर्ष 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 31.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। ग्रामीण इलाकों में औसत आय में प्रतिवर्ष 17.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2013-2014 में 42.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
विभिन्न अधिकार आधारित कानूनों और योजनाओं में सभी को सम्मिलित और समावेशी विकास करके सामाजिक सुरक्षा के घेरे में लाया गया। इसके परिणामस्वरूप पिछले 10 सालों में 14 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में अभूतपूर्व सफलता मिली।
अवसर गंवाए, मौके खोए देश को वित्तीय दिशाहीनता की ओर धकेला देश को विवकास के मार्ग पर ले जाने के लिए मोदी सरकार के पास न तो आर्थिक दूरदृष्टि है, और न ही राजस्व संबंधी दिशाÓ और वित्तीय समझदारीÓ। वरिष्ठ भाजपा नेता और श्री मोदी के सलाहकार श्री अरुण शौरी ने भी स्पष्ट रूप से कहा है, कि सरकार आर्थिक तौर से दिशाहीनÓ है।
भारत की जनसंख्या का 62.5 हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में है, जिसमें कुल 49 प्रतिशत लोग कार्य करते हैं। यह जीडीपी में 17 प्रतिशत का योगदान देता है। ग्रामीण खपतÓ विकास का सक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो देश की अर्थव्यवस्था में 35 प्रतिशत का योगदान देता है। मोदी सरकार के द्वारा नीतियों को पलट देने से खेत खलिहान में भारी निराशा छाई है। नरेंद्र मोदी ने लागत 50 प्रतिशत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का वादा किया था। मोदी सरकार द्वारा अक्टूबर 2014 में निर्धारित एमएसपी में -03 प्रतिशत का परिवर्तन कर दिया। यह 38 सालों में सबसे अधिक नीचे सातवें पायदान पर था। गैर एमएसपी फसलों की कीमत भी 100 प्रतिशत तक औंधे मुह गिरी है।
भाजपा के जवाब
यूपीए की पहली सरकार के कार्यकाल पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद ही स्वीकार किया था कि कोयला घोटाला, 2 जी के आरोप यूपीए-1 के समय लगे। कॉमनवेल्थ गेम्स, 2जी, कोल इन सबने सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने कहा था कि कुछ गड़बडिय़ां जरूर हुई हैं, लेकिन इन्हें सीएजी और मीडिया द्वारा बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश किया है। मोदी सरकार का एक साल अभी तक उसके किसी मंत्री पर या सरकार का किसी घोटाले का आरोप नहीं लग पाया है।  विदेश नीति की बात की जाए तो मोदी सरकार ने अमेरिका, चीन, रूस जैसी विश्व शक्तियों से संबंधों की नई इबारत लिखने की कोशिश की है। इसकी प्रतिक्रिया चीन की ओर से भी देखने को मिली। मोदी की चीन यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने न सिर्फ प्रोटोकॉल तोड़कर मोदी का स्वागत किया, बल्कि राजधानी बीजिंग के बजाय अपने गृहनगर शियान में किया। चीन के दौरे पर जाने से पहले ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मोदी को फोन कर रूस आने का निमंत्रण दे दिया। वह खुद भी भारत के दौरे पर आ चुके हैं। नेपाल में भूकंप आने की खबर लगते ही मोदी ने राहत सामग्री सहित बचाव कर्मियों को वहां राहत के लिए तत्काल वहां रवाना कर दिया। खुद नेपाली प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें भूकंप की खबर मोदी के ट्वीट से मिली। मोदी सरकार ने देश की समस्याओं से जुड़े गंभीर मसलों पर आगे बढ़कर काम किया। कश्मीर में आई बाढ़ के समय मोदी ने खुद वहां जाकर हुए नुकसान की जानकारी ली और मदद पहुंचाई। छतीसगढ़ के दंतेवाड़ा में माओवादियों के गढ़ में जाकर उन्होंने संकेत दिया कि सरकार इस क्षेत्र में विकास करना चाहती है। जबकि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में माओवादियों से निपटने की रणनीति को लेकर पूछे गए सवाल पर पी.चिदंबरम और दिग्विजय सिंह में सार्वजिनक रूप से तकरार हुई थी। एनडीए सरकार ने 12 रुपए सालाना और 330 रुपए सालाना की दो बीमा योजनाएं शुरू करके आम आदमी को राहत देने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री जनधन योजना के जरिये जीरो बैलेंस से खाता खुलवाने की योजना को शुरू करवाकर हर नागरिक को बैंकिंग व्यवस्था से जोडऩे और बचत के लिए प्रेरित करने की दिशा में अहम कदम उठाया है। 2004-05 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बनी। यूपीए का पहला कार्यकाल 2008-09 तक चला। यूपीए एक के दौरान प्रति व्यक्ति जीडीपी में बढ़ोतरी की वार्षिक दर 2.7 फीसद से 6.8 फीसद तक पहुंच गई। प्रति व्यक्ति आय की दर में 6.9 फीसद का इजाफा हुआ। वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल के पहले वर्ष में अनुमान लगाया जा रहा है कि देश सात फीसद की विकास दर हासिल कर लेगा।

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