तिवारी की छुट्टी तय
05-Jun-2015 08:01 AM 1234830

अंतत: सेडमैप के ईडी जीतेन्द्र तिवारी अगले सेडमैप से रुख्सत हो जाएंगे।  सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि हाल ही में बोर्ड ने तिवारी को चलता करने के प्रस्ताव पर मोहर लगा दी है।  बोर्ड मीटिंग के दौरान

जब तिवारी के समय वृद्धि को लेकर चर्चा चली तो अफसरों ने अपना-अपना सरखुजा कर पूरी दम से तिवारी के समय वृद्धि नहीं किए जाने पर जोर दे दिया और फैसला कर लिया कि नई नियुक्ति किए जाने के लिए विज्ञापित करके काबिल और सारी अर्हताएं पूरी करने वाले को नियुक्ति किया जाए। तब तक तिवारी उस पद पर वैकल्पिक रूप से बने रहेंगे। विवादास्पद जीतेन्द्र तिवारी की नियुक्ति को लेकर पक्ष से लेकर विपक्ष तक के विधायकों ने विधानसभा में प्रश्न उत्तर कर डाले। अभी तक तो धक्कापेल चलता रहा। विधायक आरिफ अकील, कमलेश्वर पटेल और सरस्वती सिंह ने जब सेडमैप के ईडी तिवारी और संस्था में जारी घालमेल पर सवाल उठाया तो अधिकारियों ने सदन में मंत्री तक को झूठ बोलने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने विधानसभा प्रश्नों के उत्तर की गलत जानकारी दे डाली। इसको लेकर महाराज को गुस्सा आ गया और उन्होंने अधिकाारियों की अपने तरीके से खिंचाई कर दी। मजा तो जब आया जब विधायक खुद ही मेडम के पास पहुंच गए और उन्होंने अपने प्रश्नों की गलत जानकारी का सवाल मेडम से कर लिया। फिर तो बचा क्या था हालांकि आईएएस अफसरों ने विभागीय मंत्री को बोर्ड में स्थान ही नहीं दिया। क्योंकि तिवारी जैसा अधिकारी मध्यप्रदेश के आईएएस अफसरों को बड़े नसीब से ही मिला है। जुगाड़ डाट काम में माहिर तिवारी अपने अधीनस्थ आने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों  को निपटाता रहता है। वह तो बंधुआ मजदूर की तरह उन सब लोगों को ट्रीट करता है जैसे तिवारी वहां का कार्यकारी संचालक नहीं बल्कि चेयरमैन हो। लगभग दस वर्षोंे से बिना पर्याप्त योग्यता के पद पर डटे रहने वाले तिवारी के स्टेमिनाÓ का चर्चा सत्ता के गलियारों में जोर-शोर से किया जा रहा है। दहशत और आतंक में डूबे हुए वहां के कर्मचारी चारों तरफ कैमरे की निगरानी से घिरे हुए हैं। यहां तक कि जो ज्यादा तिवारी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे उन्हें या तो बर्खास्त, निलंबित, भोपाल से बाहर धकेल दिया। अब नौकरी करनी है तो तिवारी की मर्जी से नहीं तो जो तिवारी करें वह सही है। इस बात की भनक बोर्ड के चेयरमैन से लेकर सभी अधिकारियों को है पर तिवारी से कोई पार न पा सका। आधा दर्जन से ज्यादा आर्थिक अनियमितताओं के प्रकरण लोकायुक्त में थे, शिकायत सरकार जवाब दे देकर परेशान पर तिवारी को कोई टस से मस नहीं कर पाया। पाक्षिक अक्स पत्रिका लगातार पिछले एक वर्ष से तिवारी के आतंक को छाप रहा है। अब वहां के सेवकों को लगने लगा है कि हमारा भी कोई माईबाप है। दबे पांव वहां के सेवक तो कोई जानकारी पाक्षिक अक्स को दे नहीं पाए पर अक्स के अपने भी बहुत सारे सूत्र हैं जिन्हें समय-समय पर प्रकाशित कर सरकार का ध्यान तिवारी के काले कारनामों पर डलवाया। पाक्षिक अक्स को पढ़ते हुए ही बोर्ड के चेयरमैन से लेकर सभी को मजबूर होना पड़ा कि तिवारी का तो इलाज करना पड़ेगा और उन्होंने कर डाला। पाक्षिक अक्स पत्रिका के कार्यालय में वहां के सेवकों की ढेरों बधाईयां मिल रही है। वहां के लोगों का कहना है कि इसके पहले जो ईडी पीएन मिश्रा थे उन्होंने मान-मर्यादा में रहकर काम किया है और करवाया है। जब से उद्यमिता की कमान जीतेन्द्र तिवारी के पास है उसके कारण वहां के लोग बहुत भयभीत हैं। सवाल यह खड़ा होता है कि तिवारी को जो कुछ करना था वह तो उसने कर डाला और बोर्ड ने उसे हटाने का निर्णय भी ले डाला। परंतु आर्थिक अनियमितता की शिकायतों का क्या होगा। क्या शासकीय अधिकारियों की तरह तिवारी की संपत्ति राजसात होगी या उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा। क्योंकि चूना तो उन्होंने सरकारी माल पर बखूबी लगाया है। तिवारी की ढाल बनने वाले अफसर जिनकी बहु-बेटियों को तिवारी ने बगैर नियम कायदे के नौकरी पर रखा है उनका क्या होगा। ऐसा लगता है कि कहीं नया व्यापमं न खुल जाए। पाप का घड़ा इतना भर चुका था कि सिवाय उसे फोड़े बगैर कुछ नहीं हो सकता था और तो और मंत्री तक को सरकार में बैठे अधिकारियों ने गुमराह किया और उन्हें विधानसभा में विधायकों के तरकश तीरों का जवाब देना पड़ा। वह भी गलत।   तिवारी की बगैर आदेश की नियुक्ति को लेकर ऐसे कई सवालात उनकी छुट्टी होने के बाद भी खड़े रहेंगे या कानूनी कार्रवाई होगी। 
तिवारी और स्वयंभू ईडी
सबसे पहला मामला तो सेडमैप द्वारा तिवारी की नियुक्ति का है। बिना पर्याप्त योग्यता के पद हथियाने वाले तिवारी केे पास शुरू से ही नियुक्ति पत्र नहीं है। वर्ष 2003 में टाइम्स ऑफ इंडिया में सेडमैप के ईडी की नियुक्ति के लिए जो विज्ञापन निकला था उसमें साफ लिखा था कि इस पद के लिए अभ्यर्थी को अर्थशास्त्र, वित्त, वाणिज्य या प्रबंधन के क्षेत्र में स्नातकोत्तर होना चाहिए। लेकिन तिवारी तो महज सीए हैं। उस समय 17 आवेदनों को लौटाते हुए तिवारी ईडी बन बैठे। वर्ष 2009 में लोकायुक्त के समक्ष  भी यह मामला पहुंचा था लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। तत्कालीन अपर मुख्य सचिव उद्योग ने भी तिवारी की नियुक्ति पर गोलमाल जवाब दिया था। गत वर्ष मई माह मेंं ही कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा और उपाध्यक्ष रामेश्वर नीखरा ने तिवारी की शिकायत चुनाव आयोग से की थी। चुनाव आयोग ने प्रभारी प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान से 15 मई तक जवाब मांगा, लेकिन राज्य सरकार द्वारा प्रतिवेदन नहीं भेजा गया। तिवारी के खिलाफ वर्ष 2012 में लोयुक्त तथा वर्ष 2013 में ईओडब्ल्यू में शिकायत की गई थी। यह जांच अभी तक लंबित है। अपने कार्यकाल में 100 लोगों को नियुक्त करने वाले तिवारी ने खरीदी में भी भंडार क्रय नियमों का उल्लंघन कर लगातार भष्टाचार किया लेकिन उनकी बाल भी बांका नहीं हुआ। उनके खिलाफ 100 से अधिक शिकायतें लंबित हैं। विश्वपति त्रिवेदी, सत्यप्रकाश, प्रसन्न कुमार दास से लेकर कई बड़े अधिकारी तीस कैमरों की निगरानी में रहने वाले तिवारी की ढाल बने हुए थे। जब भी उन्हें खतरा होता वे कहीं न कहीं से अपने बचाव का जुगाड़ कर ही लेते। लेकिन इससे सरकारी उपक्रम की बदनामी हो रही थी। लोकायुक्त जांच प्रकरण क्रमांक 166/13 में तिवारी के विरुद्ध मनमर्जी से खरीददारी करने और संस्था को करोड़ों रुपए का चूना लगाने के आरोपों को लोकायुक्त ने भी सत्य पाया था। इस खरीददारी में तिवारी के साथ-साथ जीपी मिश्रा, चित्रा अय्यर और एमएम कोरी भी शामिल थे। जांच अधिकारी के समक्ष स्वयंं तिवारी ने स्वीकार किया था कि 13 अप्रैल 2012 को पत्र क्रमांक 1859 में जो टूलकिट क्रय करने का निवेदन किया गया था उसका अनुमोदन तिवारी ने ही किया था। 15 मई 2014 को यह जांच शुरू हुई और 31 मई, 2014 को सेडमैप के विधि अधिकारी ने छह: बिन्दुओं पर जानकारी ओपी गुप्ता को सौंपी। जिसमें स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था कि भ्रष्टाचार हुआ है और तिवारी द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग किया गया है। किंतु तिवारी के कृपानिधान विभागीय अधिकारियों ने मई से लेकर सितम्बर तक का समय खानापूर्ति में ही निकाल दिया।
संस्था द्वारा प्रदत्त सेवाओं का भी तिवारी ने भरपूर दुरुपयोग किया। संस्था के खर्चे पर यात्राएं करके मनमाने बिल लगवाए और जितनी पात्रता थी उससे कहीं ज्यादा की राशि खर्च की। वर्ष 2012 में तिवारी द्वारा इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में जिन होटलों में रात बिताई उनके किराए पात्रता से 10 से 20 गुना ज्यादा हैं जिन सबके प्रमाण पाक्षिक अक्स के पास उन होटलों के बिल नंबर, बिल राशि, उनके भुगतान की दिनांक, चेक नंबर आदि सभी सुरक्षित हैं। जिनसे स्पष्ट होता है कि मात्र 24 यात्रा में तिवारी ने एक लाख 80 हजार रुपए पात्रता न होते हुए भी खर्च कर दिए। जबकि पात्रता अनुसार 24 यात्राओं के लिए उनके खर्च की अधिकतम सीमा मात्र 19 हजार 200 रुपए होती है। तिवारी ने वर्ष 2005 के दिसम्बर में तत्कालीन कार्यकारी संचालक जेएन कन्सोटिया एवं उद्योग आयुक्त से एक नोटशीट के माध्यम से विशेषज्ञों की सेवाएं लेने हेेतु स्वीकृति प्राप्त की जिसकी आड़ में अपने चहेतों, परिचितों और मित्रों की लगभग 21 फर्मों का पंजीयन कर लिया। यहीं से तिवारी के भ्रष्टाचार की कहानी प्रारंभ होती है। सेडमैप के नाम पर विभिन्न विभागों से प्रशिक्षण, परियोजना एवं कम्प्यूटर से जुड़े अनेक प्रोजेक्ट लेकर अपने मित्रों को आवंटित कर देना तथा कार्य के निष्पादन हेतु 90 प्रतिशत राशि आवंटित कर देना तिवारी का प्रमुख हथकंडा था। जबकि इसके पूर्व सेडमैप में कार्यरत जिला समन्वयकों द्वारा यही कार्य मात्र 40 से 60 प्रतिशत बजट में गुणवत्तापूर्ण कार्य के साथ सम्पन्न किया जाता रहा। कथित रूप से तिवारी ने अपने मित्र फर्मों के माध्यम से अतिरिक्त राशि पर हिस्सा तय कर लिया था। आर्थिक अनियमितताओं में माहिर जीतेन्द्र तिवारी ने अपने सीए की डिग्री का भरपूर सदुपयोग सेडमैप को चूना लगाने में किया है। लोकायुक्त में 4 अक्टूबर 2012 को की गई एक शिकायत में जीतेंद्र तिवारी द्वारा शासन की राशि के गबन एवं पद के दुरुपयोग के विषय में विस्तार से सबूतों को सही बताया गया। इस प्रकरण को ध्यान से देखने पर लगता है कि साल-दर-साल तिवारी सेडमैप को लाखों का चूना लगाते रहे और उनका कुछ भी नहीं हुआ।
-भोपाल से सुनील सिंह

 

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