क्रीमी लेयर का मुद्दा फिर उछला
21-May-2015 03:12 PM 1234870

 

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने कहा है कि वर्तमान और पूर्व सांसदों, विधायकों की संतानों को आरक्षण से अलग रखा जाना चाहिए। पिछड़ा वर्ग आयोग की यह अनुशंसा ऐसे समय में आई हैै जब कुछ समय बाद बिहार में चुनाव होने वाले हैं, जहां पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पिछड़ा वर्ग से ही संबंधित हैं। इसीलिए यह नया सुझाव कई मायने में महत्वपूर्ण बन पड़ा है। हालांकि आयोग ने यह भी कहा है कि क्रीमी लेयर की वार्षिक आमदनी 6 लाख से बढ़ाकर साढ़े दस लाख की जानी चाहिए। अभी जिनकी आमदनी 6 लाख सालाना है उन्हें क्रीमी लेयर मानते हुए आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता है, लेकिन इसका दुष्परिणाम यह निकला है कि कई जगह आरक्षित पद खाली हैं, क्योंकि उनके लिए न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने वाले प्रत्याशी नहीं हैं। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने यह भी कहा है कि पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत पदों पर नियुक्त करने के लिए योग्यता संबंधित मापदंडों में थोड़ी ढील दी जानी चाहिए। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की अनुशंसा को मानना मोदी सरकार के लिए नया सर दर्द बन सकता है। विधायकों, सांसदों की संतानों को आरक्षण के लाभ से क्रीमी लेयर के आधार पर वंचित रखना एक अलग विषय है किंतु क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा बढ़ाना फिलहाल सर दर्द ही है।
यदि आय सीमा बढ़ाई जाती है, तो पिछड़ा वर्ग में आरक्षण का लाभ लेने वालों की तादात अच्छी-खासी बढ़ जाएगी। जिससे सामान्य वर्ग के साथ उनका टकराव हो सकता है। अभी तक जिन पदों पर पिछड़े वर्ग के आरक्षित प्रत्याशी नहीं मिलते थे उन्हें सामान्य कर दिया जाता था, लेकिन इस नए कदम से बात बिगड़ सकती है। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ने जब मंडल रिजर्वेशन के समय अपना निर्णय दिया था, उस वक्त भी क्रीमी लेयर का सवाल उठाया गया था। आज आयोग ने 2 आय समूह क्रीमी लेयर के लिए सुझाए हैं। इसके तहत शहरी इलाकों में 12 लाख और ग्रामीण इलाकों में 9 लाख कमाने वाले क्रीमी लेयर के तहत आते हैं, इससे नीचे वालों को रिजर्वेशन मिलना चाहिए। हाल ही में जब पिछड़ा वर्ग पार्लियामेंट्री फोरम की बैठक हुई थी, उस वक्त फोरम ने प्रधानमंत्री को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री घोषित करते हुए यह मांग की थी कि क्रीमी लेयर की इनकम सीलिंग बढ़ाई जानी चाहिए। जस्टिस वी.ईश्वरैया की अध्यक्षता वाले आयोग ने यह भी कहा है कि  ओबीसी कोटा वाले 27 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं। लेकिन इसका एक असर यह भी हुआ है कि अच्छी शिक्षा और सुविधा पाने वाले मध्यम वर्गीय ओबीसी उच्च आय के कारण आरक्षण का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। जिसके चलते गुणवत्तापूर्ण प्रत्याशियों की कमी है। बहुत सी नौकरियां तो इसलिए खाली हैं क्योंकि उन पर योग्य प्रत्याशी नहीं मिले। आयोग का कहना है कि सरकारी विभागों से प्राप्त आंकड़ों का अध्ययन करने से पता चलता है कि पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व उनके 27 प्रतिशत कोटा के मुकाबले बहुत कम है। दरअसल क्रीमी लेयर वर्ष 1993 में प्रस्तावित की गई थी। उस वक्त इसके लिए अधिकतम आय सीमा 1 लाख प्रति वर्ष थी। वर्ष 2004 में इसे बढ़ाकर 2.5 लाख किया गया। 2008 में में इसे बढ़ाकर 4.5 लाख किया गया और 2013 में इसे बढ़ाकर 6 लाख किया गया।
सवाल यह है कि क्रीमी लेयर का आधार आर्थिक ही कैसे हो सकता है? भारतीय संविधान में आरक्षण का प्रावधान जिन कारणों से सम्मिलित किया गया था, उनमें आर्थिक कम सामाजिक कारण अधिक थे। वर्षों से अपमान, पीड़ा, उपेक्षा, छूआछूत और शोषण झेलने वाले वर्ग को उनकी दुरावस्था से उबारने के लिए आरक्षण दिया गया था। किंतु सरकारों ने बाद में आरक्षण का प्रयोग वोट बटोरने के लिए करना शुरू कर दिया जबकि उसके पीछे मूल भावना इन वर्गों के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक सशक्तिकरण की थी। होना तो यह चाहिए था कि देश भर की सरकारें लगातार प्रयास करते हुए भारतीय समाज से उन कारणों को दूर करने की कोशिश करतीं जिनके चलते आरक्षण जैसी व्यवस्था करने के लिए संविधान निर्माताओं को विवश होना पड़ा। जब समाज के एक बड़े तबके को सुनियोजित तरीके से हाशिए पर थकेला जाए और उसे इंसान ही न समझा जाए, तब आरक्षण जैसे प्रावधानों की आवश्यकता होती है। आरक्षण के पीछे भाव यही है कि जिन्हें आरक्षण दिया गया है वे राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त हो सकें। लेकिन राजनैतिक और आर्थिक सशक्तता तो प्राय: देखने को मिली है किंतु सामाजिक रूप से पिछड़़े, दलित और जनजातीय समूह आज भी उपेक्षा और शोषण के शिकार हैं। इसे दुष्चक्र कहें या सरकारों की नाकामी कि इस देश के नब्बे प्रतिशत गरीब इसी वर्ग से आते हैं। इसीलिए गरीबी इस वर्ग का दुर्भाग्य बन चुकी है। लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि आरक्षण वर्ग के भीतर ही एक ऐसा वर्ग पैदा हो गया है, जो आरक्षण की सुविधाओं का लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी उठा रहा है। ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों के लोग आज भी आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। सवाल आर्थिक स्थिति का नहीं है, बल्कि असली चुनौती यह है कि अधिक से अधिक लोगों को आरक्षण का लाभ मिले। पर यह एक चुनौती ही है। आरक्षण का लाभ एक छोटे वर्ग को मिलने के कारण इसका महत्व और प्रभावशीलता दिनों-दिन कम होती जा रही है। आज भी देश की 40 प्रतिशत आबादी गरीब है। यह गरीब ज्यादातर आरक्षित वर्ग से ही हैं। इन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सशक्तिकरण का लाभ नहीं मिला। इसी कारण न केवल ओबीसी बल्कि एससी, एसटी और आरक्षण पाने वाले तमाम वर्गों में क्रीमी लेयर तलाशकर उसे आरक्षण के लाभ से अलग किए जाने की मांग उठती रही है।

  • बिंदु माथुर

 

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