स्त्री को कितना निर्भय करेगा निर्भया फंड
19-Mar-2013 09:57 AM 1234816

दिल्ली गेंगरेप के आरोपी रामसिंह ने अपने ही कपड़ों से लटक कर तिहाड़ जेल में सवेरे 5 बजे फांसी लगा ली। यह वही समय था तकरीबन जिस समय दिसंबर माह में निर्भया की नग्न देह दिल्ली के फूटपाथ पर तड़पती मिली थी। रामसिंह ने भले ही इस संसार से मुक्ति पा ली हो किन्तु उसकी आत्मा पर यह बोझ सदैव रहेगा कि उसने एक लडकी से की गयी पाशविकता में सहयोग किया और उन दरिंदों को भी पनाह दी जिन्होंने उसकी बलात्कार के बाद दुर्गति कर डाली थी। राम सिंह को शायद अपने किये का अहसास था इसीलिये उसकी आत्मा उसे धिक्कार रही होगी और जब यह  धिक्कार असहनीय हो गयी तो उसने मौत को गले लगा लिया। आरोपी रामसिंह की आत्महत्या के पीछे शायद उसकी पापों का प्रायश्चित करने की भावना थी। लेकिन केंद्र सरकार ने निर्भया फंड में जो 1 हजार करोड़ रुपये देने की घोषणा की है  उसमें इन पापों को रोकने का रोडमेप स्पष्ट नहीं है। यह पैसा क्या इतनी बड़ी तादात में महिलाओं के लिए महफूज होगा। 1665 अरब रुपये वाले बजट में महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक हजार करोड़ रुपये को  भारत की कुल महिला आबादी में बांटा जाए, तो एक औरत पर सोलह रुपये साठ पैसे ही बैठते हैं। इससे बेहतर तो गोवा सरकार कर रही है कि कम से कम गृहणियों को 1000 रुपये  प्रतिमाह उनके हाथ में देने का  प्रावधान है। सवाल यह भी है कि क्या निर्भया फंड स्त्री को निर्भया कर सकेगा। निर्भया फंड  की ही तरह सरकार ने महिलाओं का बैंक खोलने की भी बात की है, जिसका लाइसेंस चुनाव से ऐन पहले यानी अक्टूबर में मिल सकता है। इसके लिए भी बुनियादी रकम एक हजार करोड़ रुपये ही रखी गई है। सरकार इस बैंक को शुरु में 1000 करोड़ रुपये की पूँजी उपलब्ध करवायेगी, जिसे छोटे स्तर पर ऋण मुहैया करवाने के दृष्टिकोण से प्रर्याप्त माना जा रहा है। जरुरत के मुताबिक सरकार पुन: इस बैंक को पूँजी दे सकती है। इस बैंक के संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नये बैंकों के लिए जारी दिशा-निर्देश लागू नहीं होगा। चूँकि यह बैंक भी सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा होगा, इसलिए इस बाबत अलग से किसी नियम-कानून को अमलीजामा नहीं पहनाया जाएगा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मामले में जारी दिशा-निर्देश ही इस बैंक पर लागू होंगे। लिहाजा यह बैंक भी अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की तरह बैंकिंग उत्पादों एवं सेवाओं को ग्राहकों को बेचेगा। हाँ, इस कार्य को कार्यान्वित करने के क्रम में बैंक की प्राथमिकता में महिलाएँ जरुर रहेंगी।
महिलाओं ने भी सरकार के इस पहल का स्वागत किया है। स्वागत करने वालों में सोनिया गाँधी के अलावा प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी हैं। निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक चंदा कोचर एवं एचएसबीसी की भारत में प्रमुख नैना लाल किदवई ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। इंडियन बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक टी.एम.भसीन ने भी सरकार के इस प्रस्ताव का खैरमकदम किया है। बैंकिंग क्षेत्र में यदि महिला सशक्तिकरण की बात की जाए तो इस क्षेत्र में पिछले दशक से ही महिलाओं का दबदबा रहा है। यह रुतबा महिलाओं ने तब हासिल किया है, जब उन्हें घर और बाहर दोनों स्थान पर समान रुप से काम करना पड़ता है। फिर भी वे इस दोहरी जिम्मेदारी का निर्वाह बखूबी कर रही हैं। बता दें कि महिलाएँ फिलवक्त अनेकानेक बैंकों के शीर्ष पद पर काबिज हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की दो बैंकों की प्रमुख अभी महिलाएँ हैं। एक्सिस बैंक और एचडीएफसी लिमिटेड की प्रमुख क्रमश: शिखा शर्मा एवं रेणु कर्नाड भी महिला हैं। रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड का भारत में नेतृत्व मीरा सान्याल के हाथों में है।
देश के केंद्रीय बैंक में बीते दिनों ऊषा थोराट और श्यामला गोपीनाथडिप्टी गर्वनर रह चुकी हैं। इस परिप्रेक्ष्य में आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक चंदा कोचर महिला सशक्तिकरण के आलोक में उल्लेखनीय काम कर रही हैं। चंदा की कोर टीम के 10 प्रमुख सदस्यों में से 3 महिलाएँ हैं। वर्तमान में इस बैंक में अनुमानत: 40000 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिसमें से महिला कर्मचारियों की संख्या अमूमन 10,000 है। इसी क्रम में महिलाओं की वकालत करते हुए वित्तीय मामलों के जानकार एवं सामाजिक वैज्ञानिक लीड विश्वविद्यालय के अध्यापक निक विलसन कहते हैं कि महिला प्रबंधकों का नजरिया वित्तीय जोखिम के मामले में संतुलित रहता है। वे दवाब में भी सही निर्णय लेने में सक्षम होती हैं।
बहरहाल, बजट में की गई प्रस्तावित बैंक की घोषणा से छोटे कर्जदाताओं के बीच संशय की भावना पनपने लगी है,क्योंकि माइक्रोफाइनैंस कंपनियों (एमएफआई) का अब तक इस बाजार पर तकरीबन पूरी तरह से कब्जा रहा है। इस क्षेत्र में पहले से सरकारी बैंकों का दखल ज्यादा नहीं होने के कारण उनको लग रहा है कि अब उन्हें गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनका कारोबार प्रभावित होगा। ज्ञातव्य है कि आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित श्रीनिधि बैंक स्व सहायता समूह (एसएचजी) को कर्ज मुहैया करवा करके सूक्ष्म स्तर के लेनदारों को माइक्रोफाइनैंस कंपनियोंके जाल में फंसने से बचाती है। माना जा रहा है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित महिला बैंक भी इसी तर्ज पर काम करेगा। भले ही प्रस्तावित महिला बैंक सार्वजनिक क्षेत्र का पहला बैंक होगा, लेकिन  महिलाओं द्वारा एक लंबे अरसे से बैंक संचालित किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित श्रीनिधि बैंक के अलावा भी निजी एवं सरकारी तौर पर देश एवं विदेशों में अनेकानेक बैंक महिलाओं के द्वारा संचालित किये जा रहे हैं। स्वाश्रेयी महिला सेवा सहकारी बैंक (सेवा) की स्थापना वर्ष, 1974 में की गई थी। आज की तारीख में इस बैंक के लगभग 93000 जमाकत्र्ता हैं। मान देशी महिला सहकारी बैंक, जिसकी स्थापना वर्ष, 1997 में की गई थी, भी इसके बरक्स अच्छा काम कर रहा है। इन दोनों बैंकों ने महाजनों के जाल से ग्रामीण महिलाओं को निकालने में अपनी महती भूमिका निभाई है।
पाकिस्तान में महिलाओं द्वारा संचालित सार्वजनिक क्षेत्र का पहला बैंक वर्ष 1989 में खुला था, जिसे 100 मिलियन की चुकता पूँजी से खोला गया था। कहा यह भी जा रहा है कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम को सरकारी क्षेत्र में महिलाओं द्वारा संचालित पहला बैंक खोलने की प्रेरणा पाकिस्तान से मिली है। विकसित देशों में तो काफी सालों से महिलाओं के द्वारा बैंकों का संचालन किया जा रहा है। इस मामले में पिछड़े व विकासशील देशों की बात करें तो युगांडा, श्रीलंका, मारीशस इत्यादि देशों में भी महिलाओं के द्वारा बैंक संचालित किया जा रहा है। इन देशों में महिला बैंक सिर्फ बैंकिंग कार्यकलाप तक सीमित नहीं है, वरन वह महिलाओं को आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कृतसंकल्पित है।
माना जा रहा है कि प्रस्तावित महिला बैंक को कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सबसे महत्वपूर्ण चुनौती मानव संसाधन के स्तर पर हो सकती है। हालांकि प्रस्तावित बैंक की शाखाओं को खोलने वाले स्थानों का खुलासा अभी नहीं किया गया है। फिर भी बजट भाषण में महिला बैंक की संकल्पना के रेखाकंन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मोटे तौर पर इस बैंक का विस्तार ग्रामीण इलाकों, तहसील एवं अनुमंडल स्तर पर होगा, क्योंकि इसका उद्देश्य छोटे स्तर पर कार्यरत महिला उद्यमियों को आर्थिक एवं सामाजिक रुप से सबल बनाना है। चूँकि सूक्ष्म स्तर पर काम करने वाली महिला उद्यमियों की संख्या महानगरों में नगण्य है। अस्तु महिला सरकारी बैंक का टारगेट गाँव एवं कस्बानुमा शहरों की तरफ रहने की प्रबल संभावना है। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू इस संबंध में यह है कि अभी भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारियों/अधिकारियों का तनख्वाह बहुत ही कम है। एक बैंक लिपिक को आरंभ में कुल वेतन तकरीबन 15000 रुपये मिलता है, जिसमें एक परिवार का गुजारा होना आज की मंहगाई में बहुत ही मुश्किल है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि नये बैंकों के खुलने के बाद सरकारी बैंकों से कुशल मानव संसाधन का पलायन होना लाजिमी है। जाहिर है इस तरह की प्रतिकूल स्थिति में ग्रामीण क्षेत्र एवं कम सैलरी पर काम करने वाली इच्छुक महिलाओं को अक्टूबर, 2013 तक चिन्हित करना महिला बैंक के लिए आसान नहीं होगा।
सरकारी बैंकों में कार्यरत मानव संसाधन की समस्याओं से जुड़ी हुई खंडेलवाल समिति का मानना है कि मानव संसाधन स्तर पर सरकारी बैंकों की चुनौतियाँ कम होने की बजाए, बढऩे वाली हैं, क्योंकि आगामी वर्षों में तकरीबन 80 प्रतिशत महाप्रबंधक, 65 प्रतिशत उप महाप्रबंधक, 58 प्रतिशत सहायक महाप्रबंधक और 44 प्रतिशत मुख्य प्रबंधक सेवानिवृत हो जायेंगे। इस वजह से रिजर्व बैंक ने वर्ष, 2010 से वर्ष 2020 की अवधि को सेवानिवृति का दशक करार दिया है।
वित्त मंत्री चिदंबरम का कहना है कि बैंकिंग में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। भारत के दो बड़े बैंकों की प्रमुख औरतें हैं और तेजी से बदलते बैंकिंग सेक्टर में अच्छे बिजनेस के लिए महिला कर्मचारियों को रखना मजबूरी और जरूरी भी है। तो ऐसे में अगर इस फैसले को भी राजनीतिक नजरिए से देखने की कोशिश की जाए, तो बहुत गलत नहीं होगा।सरकार को समझना होगा कि अब वे दिन बीत गए, जब इस तरह के लॉलीपॉपों से लोगों को रिझाया जा सकता था। पढ़ी लिखी और समझदार होती जनता अब जवाबदेही चाहती है। उसे बताना होगा कि खुद जनता के पैसे से वह जो लुभावने वायदे कर रही है, उसे पूरा कैसे करेगी और इसे घोटालों से कैसे बचाएगी।
सरकार बैंकिंग सेक्टर को भले ही महिलाओं के प्रति अधिक जवाबदेह बना दे, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा तब भी एक बड़ा प्रश्न रहेगा। क्योंकि महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो निर्भया फंड जारी किया जा रहा है वह अपर्याप्त है और ऐसे हालात में जब देश में महिलाएं आर्थिक लाभों के फलस्वरूप घर से बाहर निकलकर दैनिक जीवन में काम करने के लिए प्रेरित हुई हैं उनकी सुरक्षा एक बड़ा प्रश्न है। इसीलिए निर्भया फंड में केवल पैसे उपलब्ध कराने से काम नहीं चलेगा।
डॉ. माया

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