29-May-2015 05:54 AM
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मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल की 50 से अधिक परीक्षाओं में की गई अनियमितताओं के मामले में गिरफ्तारियों का सिलसिला तो जारी है। गृह मंत्री बाबूलाल गौर ने व्यापमं में कुछ बड़े लोगों की गिरफ्तारी का कहा था वो अभी तक नहीं हो पाई हैं। यह मामला और इससे जुड़े तमाम मामले प्याज की परतों की तरह उघड़ते तो जा रहे हैं पर अंजाम तक नहीं पहुंचे हैं। इसी कारण व्यापमं में अब यह कहा जाने लगा है कि राजनीतिक बदले और अपनों का बचाने तथा परायों को निपटाने के खेल में यह महा घोटाला उलझ चुका है। जिसके छोर तक पहुंचना शायद आसान न हो।
भाजपा के अरविंद भदोरिया ने कह दिया है कि दिग्विजय सिंह मानसिक रूप से दिगम्बर हैं। वो षड्यंत्र करतेे हैं लेकिन कोर्ट ने उन्हें व्यापमं मामले में आईना दिखा दिया। भाजपा ने 1 मई से 15 मई के बीच प्रदेश भर में दिग्विजय के खिलाफ सच का बोल बाला झूठे का मुंह कालाÓ अभियान का श्रीगणेश भी कर दिया था। उधर दिग्विजय सिंह ने हाईकोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए और कहा कि इतने प्रमाण देने के बाद भी हाईकोर्ट एसटीएफ की जांच-पड़ताल पर ही भरोसा कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमने सबूतों की मिरर इमेज दी थी यदि वो फर्जी थी, तो मुझे बयान के लिए बुलाया जाना चाहिए था।
कौन हैं वे बड़े लोग?
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने कहा है कि व्यापमं मामले में दो बड़े लोगों की गिरफ्तारी होगी। कौन हैं वे दो बड़े लोग? एक तरफ तो पीएमटी घोटाले में चालान पेश होने के बावजूद 1 साल तक शासन ने विशेष लोक अभियोजक नियुक्त नहीं किया है जिसके चलते कोर्ट ने फटकार लगाई थी। दूसरी तरफ गौर बड़े लोगों की गिरफ्तारी की बात कर रहे हैं। पीएमटी के एक और साल्वर आशीष कुमार को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया है।
एसआईटी भी जुटी
इस बीच व्यापमं में गड़बड़ी को लेकर इंदौर पुलिस और एसटीएफ ने किन-किन को बचाया इसको लेकर एसआईटी ने गुप-चुप पड़ताल शुरू कर दी है। एसआईटी यह जानना चाह रही है कि पुलिस ने अफसरों के नाम से अलाट अन्य कम्प्यूटर्स या उनके लैपटॉप क्यों सील नहीं किए? व्यापमं फर्जीवाड़े में कई दिक्कते हंै। पीएनपी से संबंधित बहुत से सबूत पहले ही नष्ट हो चुके हैं। इसलिए एसटीएफ को इन सबूतों को स्थायी बनाना होगा। उधर व्यापमं से जुड़े मामले में सुरेश सोनी से पूछताछ की अटकलें हैं। यह भी कहा जा रहा है कि पूर्व मंत्री जगदीश देवड़ा ने व्यापमं घोटाले में सिफारिश की थी। इस मामले में लक्ष्मीकांत शर्मा की बेटी एवं स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. मूलचंद हरगुनानी का नाम उस एक्सल शीट पर बताया जा रहा है जो एसटीएफ के कब्जे में है। लेकिन इन लोगों को बचाया क्यों गया यह एक सवाल हो सकता है। हाईकोर्ट ने एसटीएफ को कहा है कि लंबित प्रकरणों के निराकरण के लिए एक्शन प्लान बनाना चाहिए। विनोद भंडारी की 5वीं जमानत अर्जी खारिज होने के बाद व्यापमं मामले में कुछ और बड़े नामों का खुलासा होने की आशंका पैदा हो गई है। उधर डाटा एंट्री ऑपरेटर परीक्षा में रिमांड पर चल रहे पूर्व परीक्षा नियंत्रिक पंकज त्रिवेदी ने दोहराया है कि उन्होंने व्यापमं की पूर्व अध्यक्ष रंजना चौधरी को 42 लाख रुपए दिए थे। इस मामले में गिरफ्तार पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कोर्ट के सामने कहा है कि एक्शल सीट में उनका नाम पंकज त्रिवेदी और नितिन महिंद्रा ने क्यों लिखा इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। उधर उन्हीं के ओएसडी ओपी शुक्ला ने कहा है कि मंत्री जी जो नाम देते थे उन्हें वह त्रिवेदी तक पहुंचा देता था। एसटीएफ ने पुलिस भर्ती मामले में भी दो नए केस दायर करते हुए 4 सिपाहियों को गिरफ्तार किया है। परिवहन आरक्षक भर्ती मामले में घपलेबाजी करने के लिए ज्वाइंट आईजी स्टांप इंद्रजीत जैन भी हिरासत में हैं। उन पर 3.50 लाख रुपए रिश्वत लेने का आरोप है। इसी मामले में जगदीश देवड़ा के पीए राजेंद्र सिंह गुर्जर की संपत्ति कुर्क करने की कार्रवाई प्रारंभ हो चुकी है। यदि गुर्जर ने आत्मसमर्पण नहीं किया तो उनकी संपत्ति अटैच कर ली जाएगी। पीएमटी घोटाले की जांच का दायरा भी बढ़ता जा रहा है। एसटीएफ ने वर्ष 2002 से 2007 के बीच भर्ती 36 सौ डाक्टरों के रिकार्ड डीएमई से मांगे हैं। व्यापमं मामले में 55 प्रकरणों की मानीटरिंग की जा रही है। जिनमेंं से 22 तो एसटीएफ के पास ही हैं।
तिवारी को सुप्रीम कोर्ट से राहत
सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ दर्ज की गई। एफआईआर को लेकर मध्यप्रदेश सरकार से पूछा है कि इसमें 13 साल क्यों लगे। सुप्रीम कोर्ट ने तिवारी को जमानत देते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट के रुख से साफ झलकता है कि कहीं न कहीं व्यापमं मामले में दिग्विजय सिंह और कांग्रेस द्वारा मुख्यमंत्री तथा सरकार को लगातार घेरने के कारण तिवारी का प्रकरण जवाबी कार्रवाई के रूप में सामने आया है। तिवारी ही नहीं बल्कि चरणदास महंत के खिलाफ 1997 में की गई अनियमितता की फाइल खोली गई है। अब राज्य सरकार बैकफुट पर है। विधानसभा भर्ती घोटाले में अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई जारी है। कुछ लोगों से पूछताछ भी की जा रही है। श्रीनिवास तिवारी का मामला एक दम स्पष्ट है। इसमें गड़बड़ी साफ दिखाई दे रही है। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने संभवत: इस प्रकरण की टाइमिंग पर सवाल खड़ा किया है। यह मामला काफी पुराना है और यदि समय रहते राज्य सरकार कार्रवाई करती तो संभवत: तिवारी और अन्य आरोपी आज सलाखों के पीछे होते। लेकिन तिवारी को जानबूझकर बख्शा गया। अब व्यापमं मेें कांग्रेस ने आक्रामकता दिखाई और मुख्यमंत्री पर सीधे हमले किए गए तो विपक्ष के बड़े नेताओं को ठिकाने लगाने के लिए दिग्विजय के 10 वर्ष के कार्यकाल की फाइलें खंगाली गई है। इसे व्यापमं पर सरकार का पलटवार कहा जा रहा है विधानसभा में फर्जी नियुक्ति की बात ही नहीं है बल्कि एमपी एग्रो में एक अधिकारी की चरणदास महंत की सिफारिश पर की गई नियुक्ति भी अब जांच के दायरे में है। उक्त अधिकारी का नियुक्ति के बाद गैर कानूनी रूप से सरकारी उपक्रम में संविलियन भी कर दिया गया है। दिग्विजय सरकार के समय मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास निगम में भी घोटाला हुआ था। 8 सौ करोड़ के इस घोटाले की जांच उमा भारती के कार्यकाल में शुरू हुई। पहले-पहल कुछ उठापटक हुई लेकिन बाद में उमा भारती के जाते ही यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। अब अचानक इस मामले की परतें भी उखाड़ी जा रही हैं। लेकिन इस मामले में जो अफसर दागी थे वे वर्तमान सरकार में महत्वपूर्ण पद पर हैं। यदि सभी तरह के घोटाले खुल गए तो जिस प्रकार मामूली भूकंप पर वल्लभ भवन के कर्मचारी और अधिकारी बाहर गार्डन में आकर गप्पे मारने लगते हैं उसी प्रकार उनमें से बहुत से समय से पहले ही नदारत हो जाएंगे। लेकिन सवाल यह है कि शिवराज सरकार यदि सारे घोटालों पर उतनी ही गंभीर है तो उन्हें अंजाम तक पहुंचाएंगी या नहीं। दिग्विजय सिंह ने तो साफ कह दिया है कि एसटीएफ उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। लेकिन एसटीएफ को दिग्विजय की गिरफ्तारी में कोई रुचि नहीं है।
कांग्रेस व्यापमं मामले में नए सिरे से आक्रमण की तैयारी में है। यदि कांग्र्रेस ने वार किया तो भाजपा भी पीछे नहीं हटेगी। शायद कोई बड़ा खुलासा भाजपा भी करे, लेकिन कोर्ट ने जिस तरह का रुख अपनाया है। उससे साफ है कि कोर्ट सभी मामलों की जांच बिना किसी राजनीतिक दबाव के करना चाहता है। जिस तरह कोयला घोटाले में सरकार ने सीबीआई को प्रभावित किए बगैर खुलकर जांच करने का कहा है उसी प्रकार व्यापमं समेत तमाम मामलों में शिवराज सरकार को भी निष्पक्ष रहते हुए बिना राजनीतिक भेदभाव के तमाम आरोपियों तक पहुंचना होगा। अन्यथा ये गंभीर मामले राजनीतिक उठापटक में खो सकते हैं।
विधानसभा सचिवालय में नियम विरुद्ध नियुक्तियों के मामले में बयान दर्ज करने एसआईटी की टीम श्रीनिवास के घर पहुंची थी लेकिन वहां वे नहीं मिले। बाद में टीम उनके घर की तलाशी लेकर लौट आई और नोटिस चस्पा कर दिया। हाईकोर्ट ने भी तिवारी के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। अपने संवैधानिक पद का दुरुपयोग करते हुए रिश्तेदारों और करीबियों को नौकरी की रेवड़ी बांटने के आरोप में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी की गिरफ्तारी का रास्ता साफ हो गया था। हाईकोर्ट ने तिवारी की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। जस्टिस जीएस सोलंकली की एकलपीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था- श्रीनिवास तिवारी ने अपने कार्यकाल में एक तानाशाह राजा की तरह भमिका निभाई जो खुद को कानून के ऊपर समझता है। हम जिस लोकतंत्र में रहते हैं, वहां किसी भी ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति को नियम और कानून से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।Ó इस बीच तिवारी ने भोपाल के जहांगीराबाद थाने में अपना बयान दर्ज कराने के लिए उपस्थित होने में असमर्थता जताई थी क्योंकि वे बीमार थे।
रंजना चौधरी से पूछताछ
कैट की सदस्य रंजना चौधरी से व्यापमं में एसटीएफ ने ढाई दिन तक लंबी पूछताछ की। बीच में यह अफवाह भी उड़ी की रंजना चौधरी को गिरफ्तार भी किया जा सकता है लेकिन एसटीएफ ने व्यापमं का रिकॉर्ड खंगाल कर सत्यता जांची और एसटीएफ के डीएसपी बघेल ने सवाल पूछने के बाद फिलहाल कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। उधर डाटा एंट्री ऑपरेटर परीक्षा 2013 केे मामले में एसटीएफ ने पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उनके ओएसडी ओ.पी. शुक्ला आदि को एक बार फिर गिरफ्तार करके 5 मई तक रिमांड पर ले लिया था। 387 पदों के लिए आयोजित इस परीक्षा में एसटीएफ ने 14 लोगों को आरोपी बनाया है, इनमें से लक्ष्मीकांत शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने अपने 5 परिचितों की सिफारिश की थी जिन्हें व्यापमं के अफसरों ने पास करवा दिया। लक्ष्मीकांत शर्मा को पांचवी बार गिरफ्तार किया गया। सबसे पहले वे 24 जून 2014 को गिरफ्तार हुए थे। शुक्ला ने भी 4 उम्मीदवारों को पास करवाया था।