04-May-2015 03:02 PM
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उत्तरप्रदेश चुनाव से पहले आसाराम बापू के सलाखों के पीछे से बाहर आने की संभावना बढ़ चुकी है। भाजपा के सुब्रह्मण्यम स्वामी और भाजपा से बाहर किंतु भाजपा के प्रति सहानुभूति रखने वाले राम

जेठमलानी जैसे दिग्गज बापू को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। स्वामी ने तो जेल में जाकर आसाराम से मुलाकात के बाद यह भी कहा कि बापू निर्दोष हैं और उन्हें गलत फंसाया गया है। स्वामी ने बापू का केस लडऩे का संकेत दिया है। सुब्रह्मण्यम स्वामी भाजपा में खोजी पत्रकार कहे जाते हैं, वे न जाने कहां-कहां से तलाशकर ऐसे तथ्य लाते हैं जिनसे कुछ लोगों को परेशानी उत्पन्न हो जाती है।
बहरहाल बापू और भाजपा का लगाव किसी से छिपा नहीं है। बापू ने एक जमाने में अपने प्रवचन-मंच पर अटल बिहारी वाजपेयी को भी भजनों की धुन पर अपने साथ थिरकने पर विवश कर दिया था। उधर उमा भारती भी बापू के समर्थन में बयान दे चुकी हैं। वैसे तो कांग्रेस के भी कई नेता बापू के दरबार में मत्था टेकते थे लेकिन भाजपा से बापू की निकटता कुछ लोगों को रास नहीं आई। हालांकि चुनावी माहौल देखते हुए उस वक्त राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कुछ नरमी दिखाई थी, लेकिन कांग्रेस के केंंद्रीय नेतृत्व ने बापू के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई। यहां तक की उमा भारती ने आरोप लगाया कि सोनिया और राहुुल की बुराई करने के कारण बापू के ऊपर आरोप लगाए गए। पूर्व भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने तो उन्हें प्रेरणास्रोत भी कहा था। अब गडकरी के अनुसार बापू किसके लिए पे्ररणास्रोत हैं यह फिलहाल पता नहीं चल पाया है। हरियाणा के पूर्व कांग्र्रेसी सीएम भूपिन्दर सिंह हुड्डा भी बापू के मुरीद रहे हैं क्योंकि बापू ने 14 फरवरी को प्रेम दिवस की बजाए मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल तो बापू के समर्थन में कई बार सामने आ चुके हैं।
यौन उत्पीडऩ का आरोप झूठा है या सच, यह तो कानून ही बता सकेगा लेकिन वोट की राजनीति राजनीतिक दलों को आसाराम के पक्ष में खड़े होने के लिए विवश कर रही है। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव सामने है और भाजपा इस बार कोई भी कसर नहीं रखना चाहती। इसीलिए हर स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। यूं तो सुब्रह्मण्यम स्वामी जाने-माने वकील हैं और उनका फर्ज है कि वे अपने मुव्वक्किल की पैरवी करें। जिस तरह डॉक्टर किसी भी मरीज का इलाज करने से इनकार नहीं कर सकता उसी तरह वकील भी किसी दोषी की पैरवी करने से इनकार नहीं कर सकते। जब तक अपराध सिद्ध न हो किसी को अपराधी नहीं कहा जा सकता। आसाराम का मामला कोर्ट की दहलीज पर है, वे दोषी हैं अपराधी नहीं। दोष लगाने वालों को दोष सिद्ध करना है और दोषी व्यक्ति को स्वयं की निर्दोषता सिद्ध करनी है। इस लिहाज से स्वामी का आसाराम बापू से मिलना कोई गलत बात नहीं कही जा सकती। लेकिन सत्ता के गलियारों में चर्चा यह है कि स्वामी ने यही वक्त क्यों चुना? बापू तो लंबे अरसे से सलाखों के पीछे हैं। कोर्ट ने कई बार उनकी जमानत ठुकरा दी है। 19 मार्च को जब उनके भांजे का देहान्त हुआ, उस वक्त भी भांजे का अंतिम संस्कार करने के लिए बापू ने जमानत की अर्जी लगाई थी। लेकिन भांजेे का शव लंबे समय तक रखने के बावजूद अदालत ने बापू को जमानत नहीं दी। उनके भांजे शंकर पगरानी की अंतिम इच्छा थी कि बापू ही उसकी अंत्येष्टी संपन्न करवाएं। आसाराम के बेटे नारायण सांई को अवश्य बीमार माँ की देखभाल के लिए तीन सप्ताह की जमानत दी गई है। सांई दिसंबर 2013 से सूतर जेल में बंद थे। वैसे तो सलमान खुर्शीद और केटीएस तुलसी भी आसाराम की पैरवी कर चुके हैं। उत्तरप्रदेश में आसाराम के अनुयायियों की संख्या अच्छी-खासी है। बिहार में भी लाखों की संख्या में आसाराम के अनुयायी है। यदि अक्टूबर में होने वाले बिहार चुनाव से पहले आसाराम बाहर आते हैं, तो उनके भक्त भाजपा के प्रति नरम दिल हो जाएंगे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। इसीलिए भाजपा से जुड़े कुछ जाने-माने वकील आसाराम को जमानत दिलवाने की कोशिश में हैं। हालांकि खुलकर किसी ने कुछ नहीं कहा है। जहां तक नरेंद्र मोदी का प्रश्न है, उन्होंने आसाराम की तरफ सदैव निरपेक्ष रवैया अपनाया, न कभी निकटता दिखाई और न ही कभी दुश्मनी निभाई। लेकिन राजनीतिक जरूरतें दोस्ती-दुश्मनी से ऊपर होती हैं, इसलिए आसाराम को फिलहाल राजनीतिक तौर पर परोक्ष रूप से एक संबल तो मिल ही गया है। पर अंतिम फैसला तो कोर्ट पर ही निर्भर है।
-ज्योत्सना अनूप यादव