23-May-2015 05:05 AM
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने अंतत: 10 सेकंड के भीतर 19 साल पुराने मामले में जयराम जयललिता को बरी करते हुए आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोष मुक्त कर दिया और जयललिता के साथ-साथ तीन अन्य की संपत्ति जब्त करने के आदेश को भी रद्द कर दिया।
सजा से मुक्ति के कई पहलू हैं। यह सच है कि हाईकोर्ट के फैसले ने जयललिता के राजनैतिक जीवन को न केवल नया रंग प्रदान किया है बल्कि प्रदेश की राजनीति में जयललिता को एक बार फिर सर्वमान्य और सर्वशक्तिशाली नेत्री के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है। अब तमिलनाडु में जयललिता को विधानसभा चुनाव में पराजित करना असंभव हो चुका है। मुख्य विपक्षी पार्टी डीएमके अंतर्कलह से जूझ रही है और भाजपा राज्य में पैर जमाने की भरसक कोशिश कर रही है। लेकिन अन्नाद्रमुक के मुकाबले कोई भी दल प्रदेश में शक्तिशाली नहीं है। विधानसभा चुनाव 2016 में है, तब तक जयललिता उनको मिली चंद दिनों की जेल से उपजी सहानुभूति को भुनाने में कामयाब हो जाएंगी। इस मुकदमे के बाद जो भी जनमत संग्रह करवाए गए हैं उनमें जयललिता की लोकप्रियता में जबरजस्त इजाफा दिखाई दे रहा है। भाजपा के लिए जयललिता का बरी होना ज्यादा चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि जयललिता के खिलाफ कठोर रुख अपनाने वाले वकील सुब्रह्मण्यम स्वामी भाजपा से जुड़ गए हैं। इसलिए जयललिता के मन से यह खटास फिलहाल तो नहीं निकलेगी। इसका असर राज्यसभा में भी देखने को मिल सकता है। यही वहज है कि नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले जयललिता को फोन लगाकर बरी होने पर बधाई दी। मोदी हर हाल में जयललिता को अपने पक्ष में रखना चाहते हैं। लेकिन जयललिता का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह भविष्य की राजनीति तय करेगी। यदि जयललिता को तमिलनाडु में भाजपा से कोई खतरा उत्पन्न हुआ, तो वे केंद्र में भाजपा से असहयोग अवश्य करेंगी। लेकिन उन्हें यह आभास हुआ कि तमिलनाडु में भाजपा का वोट बैंक बढऩे से डीएमके को नुकसान होगा, तो शायद जयललिता भाजपा की राह में रोड़ा न बनें। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में जलललिता डीएमके के मुकाबले भाजपा को ज्यादा मुफीद मानती है। तमिलनाडु में कांग्रेस की हैसियत वैसी ही है जैसी बिहार और उत्तरप्रदेश में है इसलिए जयललिता को चुनौती और संभावना भाजपा में ही दिखाई दे रही है। केंद्र से रिश्ते अच्छे बनाए रखना भी जरूरी है क्योंकि केंद्र राज्य के लिए धन और अन्य योजनाएं प्रदान करता है। फिलहाल तो जयललिता का पलड़ा ही भारी लग रहा है। फिर आय से अधिक संपत्ति के मामले तो मुलायम सिंह और मायावती के खिलाफ भी हैं। उनमें कोई हलचल दिखाई नहीं देती। जस्टिस कुमारस्वामी ने अपने फैसले में कहा- कृष्णानंद अग्निहोत्री केस के मुताबिक यह स्थापित नियम है कि जब आय से अधिक संपत्ति का अनुपात 10 प्रतिशत तक हो तो आरोपी बरी होने का हकदार है। यही नहीं, आंध्र प्रदेश सरकार तो यह सर्कुलर जारी कर चुकी है कि अगर आय से अधिक संपत्ति 20 प्रतिशत तक हो तो वह भी स्वीकार्य सीमा कहलाएगी। इस तरह 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक की ज्यादा संपत्ति भी आंकड़ों की बढ़ा-चढ़ा कर गणना होने के कारण स्वीकार्य मान ली गई है।Ó बता दें कि कृष्णानंद अग्निहोत्री के खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार ने 1976 में आय से अधिक संपत्ति का केस चलाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चूंकि ऐसी संपत्ति 10 प्रतिशत से भी कम है, इसलिए अग्निहोत्री को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अग्निहोत्री इनकम टैक्स अफसर थे। 1949 से 1962 के बीच अग्निहोत्री की आमदनी 1.27 लाख थी। इस दौरान उनकी संपत्ति में 11 हजार रुपए का इजाफा हुआ। जो कुल आमदनी से 10 प्रतिशत से कम पाया गया।
क्या कहा हाईकोर्ट ने
हाईकोर्ट जज ने कहा- जयललिता के कपड़ों, चप्पल और अन्य चीजों का मूल्य मायने नहीं रखता, फिर भी मैं इसे संपत्ति के आंकलन में से कम नहीं करूंगा। लेकिन प्रॉसिक्यूशन ने आरोपी की निजी संपत्ति, कंपनियों की संपत्ति, कंस्ट्रक्शन का 27.79 करोड़ का खर्च और सुधाकरण की 1995 में हुई शादी का 6.45 करोड़ रुपए का खर्च कुल संपत्ति के मूल्य में शामिल कर लिया। कुल संपत्ति 66.44 करोड़ रुपए की बताई गई। अगर हम कंस्ट्रक्शन और शादी के बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए गए खर्च को घटा दें तो संपत्ति का मूल्य 37.59 करोड़ रुपए आता है। आरोपियों की निजी आय और कंपनियों की आमदनी मिलाकर 34.76 करोड़ रुपए होती है। अंतर 2.82 करोड़ रुपए का है। यह आमदनी के मुकाबले 8.12 प्रतिशत ही ज्यादा बैठता है। जस्टिस कुमारस्वामी ने कहा- निचली अदालत ने जयललिता द्वारा सुधाकरण की शादी का खर्च 3 करोड़ रुपए बताया लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं है जो कहता हो कि खर्च 3 करोड़ रुपए का हुआ था। निचली अदालत ने इंडियन बैंक से जयललिता द्वारा लिए गए कर्ज को उनकी आमदनी में शामिल नहीं किया। यह भी साबित नहीं होता कि अचल संपत्तियां काली कमाई से खरीदी गईं। जबकि ये संपत्तियां खरीदने के लिए नेशनलाइज्ड बैंकों से बड़ा कर्ज लिया गया था। आय के स्रोत वैध पाए गए हैं। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि साजिश कर आमदनी इक_ा की गई थी।
क्या थे आरोप
1996 में तत्कालीन जनता पार्टी के नेता और अब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मुकदमा दायर कर आरोप लगाया था कि जयललिता ने 1991 से 1996 तक सीएम पद पर रहते हुए 66.44 करोड़ रुपए की बेहिसाब संपत्ति इक_ा की थी। जब मामला बेंगलुरू की स्पेशल कोर्ट में पहुंचा तो प्रॉसिक्यूशन ने जयललिता की संपत्ति का ब्योरा दिया। कहा- जयललिता, शशिकला और बाकी दो आरोपियों ने 32 कंपनियां बनाईं जिनका कोई कारोबार नहीं था। ये कंपनियां सिर्फ काली कमाई से संपत्तियां खरीदती थीं। इन कंपनियों के जरिए नीलगिरी में 1000 एकड़ और तिरुनेलवेली में 1000 एकड़ की जमीन खरीदी गई। जयललिता के पास 30 किलोग्राम सोना, 12 हजार साड़ी थीं। उन्होंने दत्तक बेटे वी.एन. सुधाकरण की शादी पर 6.45 करोड़ रुपए खर्च किए। अपने आवास पर एडिशनल कंस्ट्रक्शन पर 28 करोड़ रुपए लगाए।
अम्मा की सफाई
स्पेशल कोर्ट ने अपने फैसले में सुधाकरण की शादी पर हुए खर्च को 6.45 करोड़ रुपए के बजाय 3 करोड़ रुपए करार दिया। लेकिन जब मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो जयललिता के वकील बी. कुमार ने बताया कि सुधाकरण की शादी पर 29 लाख रुपए ही जयललिता ने खर्च किए थे। एडिशनल कंस्ट्रक्शन पर 13 करोड़ रुपए नहीं, सिर्फ 3 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। प्रॉसिक्यूशन ने हर तरह के खर्च और संपत्ति की राशि बढ़ाचढ़ाकर बताई। कुल संपत्ति तय करते वक्त खेती के चलते 5 साल में हुई 50 लाख रुपए की आमदनी को नजरअंदाज किया गया। बचाव पक्ष के वकीलों ने यह भी कहा कि जयललिता जिन कंपनियों का हिस्सा नहीं थीं, उनके कारोबार के लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता। आय से अधिक संपत्ति मामले में हाईकोर्ट से बरी होने के बाद एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता ने अपने खिलाफ इस मामले को विपक्षी दल डीएमके की साजिश बताया है। उधर, सरकारी वकील का कहना है कि उनके पास पूरे सबूत थे, लेकिन उन्हें जयललिता के खिलाफ दलीलें रखने का पूरा मौका ही नहीं दिया गया। इस मामले में स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बी.वी. आचार्य हाईकोर्ट के फैसले से नाखुश नजर आ रहे हैं। आचार्य ने बेहिसाब संपत्ति रखने के मामले में जयललिता के खिलाफ कर्नाटक सरकार की तरफ से पैरवी की थी। आचार्य ने कहा, कर्नाटक सरकार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के तौर पर मुझे हाईकोर्ट में मौखिक दलीलें रखने का मौका नहीं मिला। इससे प्रॉसिक्यूशन के केस के साथ गंभीर रूप से पक्षपात हुआ। हमारा केस कमजोर हो गया। आरोपियों के वकील तो दो महीने तक दलीलें रखते रहे। उस वक्त कर्नाटक सरकार की तरफ से कोई पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ही नहीं था। इस वजह से पूरी कार्यवाही कानूनन नियुक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के बिना ही हो गई। मुझे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 22 अप्रैल को स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बनाया गया। आदेश में कहा गया था कि मुझे एक दिन में लिखित दलीलें पेश करनी होंगी।
फैसला उम्मीदों के विपरीत : स्वामी
तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के आय से ज्यादा संपत्ति मामले में बरी होने पर शिकायतकर्ता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला उम्मीद के विपरीत है। स्वामी ने कहा, अभी मैंने फैसले की कॉपी नहीं देखी है और इसके बाद ही पता चल पाएगा कि आखिर क्या कमियां रह गईं। उन्होंने कहा कि सेशंस कोर्ट ने सबूतों के आधार पर ही जयललिता को सजा दी थी और अब हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। जया के कट्टर राजनीतिक विरोधी और डीएमके चीफ करुणानिधि ने कहा, आज जो भी फैसला सुनाया गया है वह अंतिम नहीं है। उन्होंने कहा कि जया के खिलाफ पूरे सबूत पेश नहीं किए गए। करुणानिधि ने कहा, मेरा यकीन महात्मा गांधी के उन शब्दों में है, जिनके अनुसार किसी भी अदालत के फैसले से बड़ी चीज हमारी अंतरात्मा की आवाज होती है। लेकिन लालू, मुलायम, मायावती के खिलाफ भी मुकदमें हैं उनमें किसकी अंतरआत्मा से आवाज आती है यह देखना रोचक होगा।
फैसले की खास बातें
- हाईकोर्ट ने कहा- जयललिता की आय से अधिक संपत्ति 8.12 प्रतिशत थी। यह 10 प्रतिशत से कम है जो स्वीकार्य सीमा में है।
- आंध्र प्रदेश सरकार तो आय से अधिक संपत्ति 20 प्रतिशत होने पर भी उसे जायज मानती है, क्योंकि कई बार हिसाब बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है।
- जो संपत्तियां खरीदी गईं, उसके लिए आरोपियों ने नेशनलाइज्ड बैंकों से बड़ा कर्ज लिया था। निचली अदालत ने इस पर विचार नहीं किया।
- यह भी साबित नहीं होता कि अचल संपत्तियां काली कमाई से खरीदी गईं। आय के स्रोत वैध पाए गए हैं।
- निचली अदालत का फैसला कमजोर था। वह कानून की नजरों में नहीं टिकता।
- सुनील सिंह