22-May-2015 03:37 PM
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तीन देश तीन मिशन
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मादी एक बार फिर विदेश यात्रा पर हैं। इस बार वे चीन, मंगोलिया और दक्षिण कोरिया की यात्रा करेंगे। चीन में 14, 15 और 16 मई उसके बाद मंगोलिया में 17 मई, दक्षिण कोरिया में 18-19 मई गुजार कर भारत वापस लौटेंगे। मंगोलिया में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा है। लेकिन जिन तीन देशों की यात्रा पर प्रधानमंत्री जा रहे हैं, वे मंगोल नस्ल के लोगों की भूमि है।
इसमें भी सर्वाधिक चर्चा प्रधानमंत्री की चीन यात्रा की है। पाकिस्तान के साथ चीन की मित्रता और चीन के अखबारों द्वारा मोदी की यात्रा के पूर्व भारत को लेकर की गई हल्की और घटिया टिप्पणियों के कारण यह यात्रा अब उतनी प्रफुल्लचित्त, उत्साहवर्धक और आशाजनक नहीं रही। लेकिन फिर भी हर आशा में निराशा छिपी हुई है, यदि चीन के संबंध भारत के शत्रु पाकिस्तान के साथ सुधर रहे हैं, तो भारत भी जापान जैसे मित्रों को तरजीह दे चुका है और उधर तिब्बत में न सही भारत में तो दलाई लामा को किसी राजकीय व्यक्ति के समान ही सम्मान मिलता है। चीनी मीडिया अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत को लेकर हल्का-फुल्का उपहासपूर्ण माहौल तैयार करने में जुटा है लेकिन भारत के लिए यह यात्रा बहुत अहम है। चीन भले ही भारत का प्रतिस्पर्धी हो, पर चीन को साथ लिए बगैर भारत विकास के पथ पर सुचारू रूप से आगे नहीं बढ़ सकता। इसीलिए प्रधानमंत्री ने चीनी सोशल मीडिया बीवो से जुडऩा उचित समझा और कहा कि उन्हें बीवो के जरिए संवाद स्थापित करने का इंतजार रहेगा। प्रधानमंत्री के इस कदम को चीन में अलग-अलग नजरिए से देखा गया। गत वर्ष जुलाई में जब प्रधानमंत्री ब्राजील में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में चीन के प्रमुख शी जिनपिंग से मिले थे, उस वक्त उन्होंने एक महत्वपूर्ण वाक्य कहा था कि भारत और चीन दो शरीर हैं जिनकी आत्मा एक है। यह कथन समूचे एशिया के उन राष्ट्रों पर समान रूप से लागू होता है जिनकी संस्कृति और परंपराएं कहीं न कहीं भारत से प्रेरित हैं। चीन में भी बुद्ध धर्म और भगवान बुद्ध का प्रभाव वहां की संस्कृति के कण-कण में देखा जा सकता है। यही विशेषता दोनों देशों को जोड़े रखती है। शी जिनपिंग ने भी सितंबर 2014 में भारत की यात्रा के समय मोदी के उक्त शब्दों को याद करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री के उस वाक्य ने दोनों देशों के बीच संबंधों को उजागर किया है। इसी कारण चीन यह सोचता है कि चीन और पाकिस्तान के बीच पनपते रिश्तों से ऊपर उठकर भारत को चीन के साथ अलग तरह से पेश आना चाहिए। चीन के इस विचार में कुछ गलत भी नहीं है। हर उभरती ताकत अपना प्रभाव आस-पास फैलाती ही है। आज चीन पाकिस्तान के करीब है, कभी अमेरिका हुआ करता था। यह सब समय का फेर है। लेकिन भारत को अपने विदेशी संबंध कुछ इस तरह गढऩे होंगे कि किसी की मित्रता या शत्रुता से भारत के वजन में कोई कमी न आए। इसीलिए प्रधानमंंत्री की विदेश यात्राओं की आलोचना भले ही की जा रही हो, लेकिन दुनिया में जिस तरह का माहौल चल रहा है उसे देखते हुए मोदी की यात्राओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मंगोलिया और दक्षिण कोरिया के साथ भी भारत को मजबूत संबंध बनाए रखने पड़ेंगे। मंगोलिया भले ही एक छोटा देश हो लेकिन भारत के इतिहास में मंगोलों का बहुत महत्व है। इस छोटे से देश ने दुनिया के इतिहास को नया आयाम प्रदान किया है। मोदी मंगोलिया जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं। इस यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों को नई ऊर्जा मिलेगी। पूर्वी ऐशिया में चीन और रूस जैसी महाशक्तियों से घिरा मंगोलिया अब एक ऐसे राष्ट्र के रूप में पहचान बना चुका है, जो संसदीय लोकतंत्र में विश्वास करता है। यहां 53 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध है। 95 प्रतिशत मंगोल हैं। दक्षिण कोरिया में भी 23 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध है और जो 46 प्रतिशत किसी भी धर्म को नहीं मानते उन पर भी बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव है। इसीलिए इन तीनों देशों की यात्रा को मोदी एक नया सांस्कृतिक स्वरूप देने की कोशिश भी कर रहे हैं, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।