कृषि कर्मणÓ विभाग में भ्रष्टाचार की सरिता
21-May-2015 03:02 PM 1235205

धार, सतना, रतलाम में करोड़ों का घोटाला, तीन उप संचालक निलंबित

केंद्र में एनडीए सरकार को सत्तासीन हुए तो महज एक वर्ष ही हुआ है। लेकिन इससे पहले वर्षों तक केंद्र से मिलने वाली करोड़ों रुपए की सहायता के भरोसे तीन-तीन बार कृषि कर्मण अवार्ड लेने वाले मध्यप्रदेश के कृषि विभाग में किस तरह घोटाला और घपला किया जा रहा था, इसकी परतें अब खुल रही हैं। विभाग के अफसरों ने केंद्र से आने वाली सहायता को जिस तरीके से ठिकाने लगाया उसकी जवाबदारी अब पूरे प्रदेश पर आ चुकी है। मजे की बात तो यह है कि ये अफसर प्रदेश के मुखिया की नाक के नीचे पकौड़े तल रहे थे, लेकिन मुखिया को खुशबू तक नहीं लगने दी। उस समय पैसा उदार हाथों से मिल रहा था इसलिए सरकार ने भी गौर नहीं किया। लेकिन नई सरकार ने सत्तासीन होते ही जब हाथ खींच लिए तो पुराने खर्चों की सुध ली गई और उसमें जो भ्रष्टाचार सामने आया वह बेमिसाल है। वह तो भला हो विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा का जिनकी जागरूकता और सजगता से ये घोटाला पकड़ा गया। अन्यथा सारी अनियमितताएं फाइलों में दफन होकर कहां गोल हो जाती पता ही नहीं चलता। स्वभाव से तेजतर्रार और लिखा-पढ़ी में माहिर राजेश राजौरा के कहने पर ही विभाग ने प्रदेश भर के सारे जिलों में  कृषि से संबंधित किए गए खर्चों को फिर से खंगालना शुरू किया है। इस कारण उनकी पूर्व संचालक डॉ. डी.एन.शर्मा से सीधी टक्कर भी हुई थी। विभाग पर एकछत्र राज करने वाले संचालक शर्मा ने विभाग में अपनी मनमानी कर खूब वारे न्यारे किए। विभाग एक तरफ कृषि को लाभ का धंधा बनाने में जुटा रहा दूसरी तरफ ओला-पाला में नष्ट फसलों के मुआवजे तथा किसानों की आत्महत्या में उलझा रहा। वहीं किसानों की दुर्दशा पर सबसे पहले पहुंचने वाले, आंखों में आंसू बहाने वाले शिवराज सिंह चौहान की नाक के नीचे यह सारा खेल चलता रहा। केवल तीन जिलों की रिपोर्टों ने विभाग की आंखें खोल दी हैं। जब पता चलेगा शिवराज को कि उसके किसानों को दी जाने वाली मदद जिलों के उप संचालक, सहायक संचालक जेब में जा रही थी तो भला उनका क्या होगा। शिवराज तो किसानों को किसी भी तरीके की मदद देने के लिए सरकार के खजाने को खंगालते रहते हैं लेकिन बीच के लोग इस धन पर मौजमस्ती कर रहे थे। समझ नहीं आता कि कृषि कर्मण अवार्ड से नवाजे गए विभाग में इतनी घपलेबाजी कैसे संभव हुई। कहां गया वह टास्क पर रहने वाला विभाग। विभाग के बड़े अफसर वल्लभ भवन और विन्ध्याचल में बैठकर क्या कर रहे थे। क्या उन्हें पता नहीं था कि फील्ड में क्या चला रहा है। अभी तो केवल तीन जिलों का काला-पीला सामने आया है। बाकी जिलों का हाल कहना मुश्किल है।
सतना जिले में भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में यह भ्रष्टाचार किया गया और सरकार आंख मूंदकर देखती रही। वैसे भी बलराम तालाब योजना में अनुदान राशि का भुगतान प्रथम निर्माण प्रथम अनुदान पद्धति से  किया जाता है। लेकिन इसमें वह पद्धति अपनाई ही नहीं गई। यहां तक कि उप संचालक कृषि ने बलराम तालाबों का भौतिक तालाबों का सत्यापन करना भी उचित नहीं समझा। वर्ष 2012 के मार्च माह से लेकर दिसंबर 2014 तक उप संचालक किसान कल्याण तथा कृृषि विभाग सतना के पद पर एस. के शर्मा, संजीव कुमार शाक्य (प्रभारी उपसंचालक) ए.पी. सुमन पदस्थ रहे। इस दौरान रोकड़ पुस्तिका भी नियमित रूप से नहीं भरी गई। विभाग वित्तीय वर्ष 2014-15 के अंतिम दिवस 31 मार्च 2015 को कार्यालय अवशेष राशि 4 करोड़ 47 लाख 69 हजार 40 रुपए का वर्गीकरण बताने में भी असफल रहा। कई मामलों में अनुदान की राशि पहले ही निकाल ली गई जबकि इसे अग्रिम न निकालने का निर्देश शासन का है।
एक जिले में 250 से अधिक गांव आते हैं।  ऐसी स्थिति में सभी गांवों में दिए गए अनुदान और विभिन्न योजनाओं के तहत करवाए गए हर एक काम की जांच करना संभव नहीं है। अधिकारियों द्वारा जो जांच पड़ताल की जा रही है। वह बड़ी वित्तीय अनियमितताओं की है। छोटे-बड़े सभी मामलों को मिलाया जाए तो यह एक बड़ी धांधली हो सकती है। विभाग का अनुमान है कि केवल तीन जिले में 75 करोड़ रुपए की हेराफेरी हुई है। राजेश राजौरा ने इस संबंध में सभी 51 जिलों के कलेक्टरों को 22 मार्च को पत्र लिखते हुए 30 अप्रैल तक समस्त जांच करने का कहा था। लेकिन अभी तक कुल तीन जिलों धार, सतना, रतलाम से जांच प्राप्त की गई है। अब कलेक्टरों को और अधिक समय दिया जा रहा है। तीन उप संचालक निलंबित कर दिए गए हैं। जिनके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किए जा सकते हैं।
इसी प्रकार धार जिले में भी उप संचालक कृषि द्वारा गंभीर वित्तीय अनियमितता करने का मामला सामने आया है। लाखों रुपए की राशि तो मार्च 2015 तक समयोजित नहीं की गई थी। रोकड़ पुस्तिका में बाउचर तक अंकित नहीं थे और किसानों के खाते में राशि तक जमा नहीं कराई गई थी। उप संचालक ने न तो कार्यालयों को नियंत्रित किया और न ही नियमानुसार हितग्राही कृषकों का चयन किया। बीज, उर्वरक, कीटनाशक,औषधि आदि बेचने वाले विक्रेताओं के संस्थानों का निरीक्षण तक नहीं किया न ही उनके द्वारा प्रयुक्त अमानक सामग्री आदि के संबंध में कोई उपयुक्त कार्यवाही की गई। हितग्राही कृषकों को कृषि सामग्री का वितरण संदेहास्पद पाया गया। अन्नपूर्णा/सूरजधारा योजना में हितग्राही कृषकों से उनका अंशदान नहीं लिया गया, बल्कि वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी स्तर से लगने वाली राशि की गणना कर अपने  स्तर से राशि जमा कर, दर्शाया गया। 46 लाख 28 हजार 178 रुपए की राशि का समयोजन ही नहीं किया गया। विभिन्न योजनाओं के तहत कृषकों को जो सामग्री वितरित की गई उसकी पावती तक नहीं दी गई। लगभग 22 लाख रुपए की राशि एमपी एग्रो धार को बिना किसी सक्षम अधिकारी की स्वीकृति के अग्रिम दे दी गई। मूल प्रति के बगैर छायाप्रति पर ही बिल की राशि ले ली गई। लगभग सभी विकासखण्डों में कुछ न कुछ गड़बड़ी पाई गई है। स्प्रिंकलर, ड्रिप, पाइप लाइन, डीजल पंप, विद्युत पंप, सीड ड्रिल आदि की खरीद के लिए जो कोटेशन प्रक्रिया अपनाई गई वह भी त्रुटिपूर्ण थी। ज्ञात रहे कि इन यंत्रों की आपूर्ति कृषि विभाग द्वारा विभिन्न कंपनियों से लेते हुए की जाती है। इसके लिए किसान अपना अंश जमा कराते हैं और बाकी सरकारी अनुदान से मिलती है। लेकिन कतिपय कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए किसानों को उनके मन पसंद यंत्र न देकर उप संचालक ने स्वयं कोटेशन दिए और बाद में उसी के अनुरूप यंत्र प्रदान करवा दिए। इन यंत्रों तथा अन्य योजनाओं के लिए हितग्राही के चयन में कई तरह की गड़बडिय़ा मिली हैं। धार जिले में 573 बीज विक्रेता हैं जिनके निरीक्षण का दायित्व उप संचालक का है। लेकिन इस निरीक्षण में भी कंजूसी बरती गई। कई मामलों में नमूने अमानक पाए जाने के बाद भी कार्रवाई लंबित रखी गई।  रोकड़ पुस्तिका, कंटेंजेट रजिस्टर, अग्रिम पंजी आदि के रखरखाव में भी गंभीर अनियमितता पाई गई है। कहीं बाउचर नहीं है तो कहीं पैमेेंट में पारदर्शिता नहीं है। राष्ट्रीय खाद सुरक्षा मिशन की दलहन योजना में भी भारी गड़बड़ी की गई है। बीज ग्राम योजना, बीजों पर अनुदान की योजना, संकर मक्का विस्तार कार्यक्रम, नलकूल योजना सहित तमाम योजना में छोटी से बड़ी गड़बड़ी मिली है। 1 करोड़ 15 लाख 75 हजार रुपए की राशि के बिलों का भुगतान तो किया गया लेकिन इनके भुगतान से संबंधित कॉन्टीजैन्ट रजिस्टर में कोई प्रविष्टी नहीं है तथा बिलों में रजिस्टर का पेज नंबर, पेड एवं केंसिल आदि का भी विवरण नहीं है। यह घपलेबाजी लंबे समय से चल रही है।
रतलाम जिले में भी इसी तरह से उप संचालक द्वारा जमकर भ्रष्टाचार किया गया। फसल प्र्रदर्शन मेंं बीज, उर्वरक, कीट-नाशक औषधियों के प्रदाय एवं वितरण में वित्तीय अनियमितताएं पाई गई है।  जिले में उप संचालक ने वर्ष 2011 से 2015 तक शासन के निर्देशों का न केवल उल्लंघन किया बल्कि त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का उल्लंघन करते हुए विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत लक्ष्य से अधिक खर्च किए गए। स्प्रिंकलर, पाइप लाइन, पंंप सेट आदि में किसानों को अनुदान देते समय उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उप संचालक ने अपने अधीनस्थ कृषि विकास अधिकारियों को कोई लक्ष्य नहीं दिए और मौखिक निर्देशानुसार बिलों का सत्यापन करवाया। वर्ष 2011-12 में 5 लाख 71 हजार रुपए बिना प्रदाय आदेश के खर्च कर दिए। इसी वर्ष प्रदाय सामग्री को झूठा दर्शाकर हड़पने का प्रयास किया और किसानों के नाम पर लूट खसौट की गई। इतना ही नहीं बीज नियंत्रण आदेश 1983 के अंतर्गत उप संचालक कृषि ने बीज गुण नियंत्रण में नियमानुसार वैधानिक कार्रवाई न करते हुए व्यापारियों को संरक्षण प्रदान किया और अपने दायित्व की अवहेलना की। बीज ग्राम योजना में भी किसी भी स्तर पर भौतिक सत्यापन नहीं किया। विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत वितरित माइक्रो न्यूट्रियेंट में भी भारी अनियमितता पाई गई। अस्थाई अग्रिम राशि जो कि 17 लाख 3 हजार के करीब थी के समायोजन में मध्यप्रदेश कोषालय संहिता के सहायक नियम 53 (4) का पालन नहीं किया गया। ऐसा एक नहीं अनेक बार हुआ। शासकीय वाहन से जो यात्रा की गई उसमें भी अनियमितताएं पाई गईं। महालेखाकार द्वारा किए गए ऑडिट में भी 20 वर्ष पुराना  सोयाबीन बीज खरीद के मामले में 6 लाख 19 हजार 9 सौ 20 रुपए की अनियमित भुगतान की बात सामने आई है इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में 13 लाख 50 हजार 500 रुपए व आईसोपाम तिलहन योजना में 44 लाख 99 हजार 140 रुपए की अनियमितताएं पाई गईं। कुछ मामलों में कृषकों की बजाए सीधे संस्थाओं को पैसा दे दिया गया। किसानों के हितों को ताक में रखकर अमानक उर्वरक और दवाएं वितरित की गईं। ये तो कुछ बानगी है। अनियमितताओं और घोटाले की सूची तो बहुत लंबी है। अकेले तीन जिलों में हजारों सैकड़ों छोटे-बड़े मामले पकड़ में आए हैं। ज्यादा गहराई से जांच करने पर कुछ और मामले पकड़ में आएंगे। शासन की आंख के नीचे यह सब होता रहा और जिम्मेदार अधिकारी नींद से नहीं जागे। कलेक्टरों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की। समय रहते कलेेक्टर ही जागृत हो जाते तो सरकारी खजाने पर करोड़ों रुपए का बोझ नहीं पड़ता। राजौरा को कई दिनों से अनियमितताओं की शिकायत मिल रही थी उन्होंने जांच में देरी नहीं की और परिणाम सामने आया। अब यह जांच करना बाकी है कि सभी 51 जिलों में से कितने जिलों में ये घोटाला हुआ है।

क्या है मामला?
रतलाम, धार तथा सतना जिलों में कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा भारत सरकार एवं राज्य पोषित योजनाओं में गंभीर अनियमितताएं की गईं। अकेले सतना जिले में करोड़ों रुपए की हेराफेरी हुई। स्प्रिंकलर सेट के वितरण, छोटे एवं बड़े कृषि यंत्रों के वितरण, बीज वितरण कार्यक्रम, सूरज धारा एवं अन्नपूर्णा योजना में बीज अदला-बदली-स्वालंबन-उत्पादन, बीज ग्राम योजना, बलराम तालाब योजना जैसी केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। कई योजनाओं में वित्तीय सीमा से बाहर जाकर लाखों रुपए खर्च कर दिए गए। वर्ष 2013-2014 में आईसोपाम योजना के अन्तर्गत 60  पाइप लाइन डाली जानी थी लेकिन 72 पाइप लाइन डाली गई। इस प्रकार जहां 9 लाख रुपए तक खर्च करने की सीमा थी वहां 27 लाख 23 हजार रुपए खर्च कर दिए गए। यह खर्चा तो कागजों पर लिखा हुआ है। वे 72 पाइप कहां हैं, किस जमीन में बिछे हुए हैं। बिछाए गए भी हैं या नहीं। इसमें भी संदेह  है। क्योंकि जब हिसाब गलत है तो बाकी जगह भी गड़बड़ी हो सकती है। किसानों को स्प्रिंकलर सेट देने के लिए फर्जी आवेदन मंगाए गए।  आवेदन में किसान द्वारा किस कंपनी का स्प्रिंकलर सेट मांगा गया है इसका कोई उल्लेख नहीं है। जाहिर है कागजों में स्प्रिंकलर सेट बांटे गए। केवल स्प्रिंकलर सेट ही नहीं बल्कि एन.एफ.एस.एम. धान के अंतर्गत वर्ष 2012-2013 में 88 लोगों को 16.20 लाख रुपए के यंत्र बांटने की योजना थी जिसमें 252 लोगों को 36 लाख रुपए के यंत्र बांटे गए। बिना किसी अतिरिक्त स्वीकृति के। जनपद पंचायत की कृषि स्थायी समिति से अनुमोदन प्राप्त किए बगैर किसानों के खाते में पैसा डाल दिया गया। बलराम तालाब योजना में भी कई कृषकों के खाते में पैसे तो डाल दिए गए लेकिन उनकी प्रशासकीय स्वीकृतियां जारी ही नहीं हुई। जब पैसा स्वीकृत नहीं हुआ तो खाते में कैसे पहुंचा। कई ऐसे किसानों को 1-1 लाख रुपए का अनुदान दे दिया गया जो सामान्य वर्ग के संपन्न किसान थे तथा जिन्हें नियमानुसार बलराम तालाब योजना के तहत अनुदान या अन्य लाभ लेने की पात्रता ही नहीं थी। बताया जाता है कि 40 हजार रुपए से लेकर 1 लाख रुपए तक की राशि बिना किसी शासकीय स्वीकृति के किसानों के खाते में डाल दी गई। जो गंभीर अनियमितता की ओर इशारा करती है।

कृषि विभाग में मेरे कार्यकाल की जांच हो रही है, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है। अफसरों ने गड़बड़ी की होगी। मेरे कार्यकाल में मैंने पहले रायसेन जिले में जांच करवाई थी। मेरे कार्यकाल में कोई गड़बड़ी हुई हो, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है। मैं और गौरीशंकर बिसेन साथ-साथ पढ़े हैं। मैं सीनियर था, वे जूनियर थे। -रामकृष्ण कुसमारिया

कुछ गड़बड़ी की शिकायत मिली थी इसलिए जांच कराई जा रही है। जांच चलती रहती है। 30-35 जिलों में जांच कराई जाएगी। जांच का किसी के कार्यकाल से कोई लेना-देना नहीं है। मैं अपने कार्यकाल की भी जांच कर रहा हूं। कुछ अधिकारियों ने फंड जारी करते समय ... का अनुमोदन नहीं लिया इसलिए गड़बड़ी हुई।  -गौरीशंकर बिसेन

 

  • अक्स ब्यूरो

 

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