06-May-2015 05:35 AM
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मध्य प्रदेश में बहु प्रतीक्षित प्रशासनिक सर्जरी में मुख्यमंत्री ने कुछ करीबी अफसरों को ठिकाने लगाकर और कुछ विवादास्पद अफसरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर नई परम्परा का श्रीगणेश किया है।
पिछली कैबिनेट में तबादलों से बैन 15 मई तक हटा लिया गया है। परंतु इस बैन हटाने का कोई असर ज्यादा अफसर और बाबुओं पर नहीं पड़ा है। उन्हें पता है कि तबादला ऐसे-वैसे नहीं होता है। जिनकी जुगाड़ है वह तो इस तबादला उद्योग में डुबकी लगाकर स्थापित हो जाएंगे। वैसे भी अब तो साल भर तबादले होते रहते हैं। बैन हटे या न हटे जुगाड़ू तो जुगाड़ बना ही लेते हैं। हालांकि सरकार ने आईएएस अफसरों की लंबी चौड़ी लिस्ट न निकालकर आसान किस्तों में लिस्ट निकालने का नायाब तरीका ढूढ़ा है। जब आईएएस अफसरों की सूची निकलना बंद हो तो फिर आईपीएस भी स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उसके बाद राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की भी बहुप्रतीक्षित सूची आने का इंतजार भी अफसर कर रहे हैं।
विवेक अग्रवाल को जिस दिन एमपीआरडीसी से हटाया था उसी दिन यह तय हो गया था कि सरकार के किसी बड़े काम वाले विभाग में उन्हें फिट कर दिया जाएगा। सिंहस्थ को देखते हुए विवेक को मुख्यमंत्री ने अपने विवेक से बिठाया है। विवेक उज्जैन के कलेक्टर भी रह चुके हैं। विवेक को बिठाने के पीछे की कहानी तो बड़ी उलझी हुई है और संजय को वहां से हटाने के पीछे 4 साल से अधिक समय एक ही जगह पर बीत जाने के कारण और विभागीय मंत्री से अच्छा तालमेल होने के कारण उन्हें वहां से रुखसत होना पड़ा। संजय और विवेक आपस में बेचमेट है परंतु यहां पर मुख्यमंत्री की पसंद न चली कि मंत्री की। इसी तरह विभागीय प्रमुख सचिव एसएन मिश्रा को साइड लाइन करने का राज भी यही है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ जो 1 टू वन किया था उसी दिन उन्होंने एसएन मिश्रा को हटाने का मन बना लिया था। जब विभागीय उपलब्धियां बताने के लिए मिश्रा आगे बढ़े थे तो शिवराज ने उन्हें झट से रोक दिया यह कहकर कि आपका विभाग तो बढिय़ा चल रहा है। वैसे भी सिंहस्थ में बड़े-बड़े काम हैं जो मिश्रा जी जैसे काबिल अफसर तो नहीं संभाल पाएंगे। परंतु दिल्ली से हाल ही में आए हुए अफसर को उनका विभाग देेकर मुख्यमंत्री ने अपनी इच्छा की पूर्ति तो कर ली। गलियारे में यह खबर है कि अगर चलती है तो एक ही आईएएस अफसर की। जो कि दो नंबर पर विराजते हैं। अगर उनकी कृपा बन जाए तो क्या कहना। अफसर आपस में यह बातचीत तो करते हैं कि सारे विभाग का अनुभव होना चाहिए परंतु बड़ा दिल भारी करके। उन्हें यह तो पता है कि हम एक ही विभाग में स्थाई तो नहीं हैं परंतु इस तरीके से लज्जित करके हमें खो कर दिया जाएगा यह पता नहीं। स्वास्थ्य विभाग के मुखिया प्रवीर कृष्ण को भी वजीर और सेनापति ने मिलकर निपटा दिया। जब वह दिल्ली से लौटकर प्रदेश में आए थे तो मानों उनमें 10 हार्स पॉवर की शक्ति थी जिसका उन्होंने खूब जमकर उपयोग किया और स्वास्थ्य विभाग में जितना काम किया उतना ही वहां के अधिकारी और कर्मचारियों को निपटा दिया। कोशिश तो उन्होंने भ्रष्ट विभाग को ठीक करने की की है। परंतु उसमें कामयाब नहीं हो पाए। कइयों बार विभागीय मंत्री से लेकर मीडिया और अफसरों से उलझने वाले अधिकारी हमेशा अपने किए हुुए काम का श्रेय अपने आपको ही देते रहे। वैसे तो यह विभाग डॉक्टरों का था पर डॉक्टरों की बलि चढ़ाने में महाशय ने कोई कमी नहीं छोड़ी। जुनून के पक्के और कुछ नया कर डालने वाले यह अफसर विभाग में कुछ न कुछ हर दिन करते ही थे। सूूत्र बताते हैं कि उनकी रवानगी के पीछे एक नहीं बल्कि एक दर्जन से अधिक कारण हैं। हाल ही में यूनिसेफ के अफसरों के साथ बैठक में कहा सुनी हो जाने से यूनिसेफ के अफसरों द्वारा अपने दिल्ली वाले आकाओं को बताने पर शिकायत भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव के पास पहुंचने पर उन्होंने बड़े तल्ख अंदाज में प्रदेश के मुख्य सचिव को चिट्ठी लिख डाली। वहीं विभागीय मंत्री से हॉट टॉक, नोट चिट, मंत्री को मीडिया से साइड लाइन करना और जिस जिले में जाना वहीं दो-चार को निपटाकर आना। यह उन्हें भारी महंगा पड़ा और इस कारण से उनकी प्रदेश के महत्वपूर्ण विभाग से छुट्टी हो गई। अब जो अफसर आई हैं वह भी हाल ही में दिल्ली से लौटी हैं। 1987 बैच की गौरी सिंह वैसे तो बहुत तेजतर्रार अफसर हैं परंतु उनके आने से अब कुछ नया तो नहीं तो यह जरूर हो जाएगा कि वह मीडिया की लाइम लाइट से दूर हो जाएंगी। इससे मंत्री की बखत बढ़ जाएगी। झगड़ा तो अभी भी होगा क्योंकि मंत्री और मंत्री का स्टाफ बगैर अर्थ के जिंदा नहींं रह सकते।
राजेश मिश्रा जो कि मंत्रालय में आने के लिए तड़प रहे थे उनकी तडफ़न दूसरी है। क्योंकि उन्हें अभी प्रमोशन नहीं मिला है। कारण 2006 में मंत्रालय से कैश बुक चोरी हो जाने के कारण आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने तो आर्थिक हानि पर तो पर्दा डाल दिया है। वहीं जहांगीराबाद थाने में चोरी की रिपोर्ट पर भी आंखें मूंद ली हैं। जबकि न्यायालय के एक विद्वान जज ने तो टिप्पणी कर डाली थी कि यह मामला चोरी का नहीं हेराफेरी का है। परंतु विद्वान जज का तबादला हो जाने के बाद बड़ी सफाई से इस पूरे मामले में ईओडब्ल्यू के अधिकारियों की मिलीभगत से बाद में दूसरे जज साहब के सामने खारिजी का आवेदन लगाकर सफाई से मामले को निपटवा दिया। बहुचर्चित कैश बुक चोरी कांड में सरकार को नीचा देखना पड़ा था पर जुगाड़ू अफसरों के कारण सरकार भी मौन हो गई। कबीना मंत्री के सखा होने से उनकी पोस्टिंग मंत्रालय में हो गई। जिससे वो अपने किए कारनामों पर्दा डाल सकने पर कामयाब हो पाएंगे।
-कुमार राजेंद्र