06-May-2015 05:20 AM
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सरकारें चापलूसों और चाटूकारों को तो सिर पर बिठाती हैंं लेकिन विद्वानों के साथ बहुत घटिया व्यवहार करती हैं। इसका एक उदाहरण मध्यप्रदेश में देखने को मिला, जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने जा रहे अतिथि विद्वानों को पोलेटेक्निक चौराहे पर ही गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। मुख्यमंत्री को इसका पता ही नहीं था। पता गिरफ्तारी के बाद लगा। उन्होंने प्रशासन अकादमी में अपना दर्द बयां किया और कहा कि अतिथि विद्वानों को गिरफ्तार कर लिया गया किसी ने मुझे बताने की जरूतर भी नहीं समझी। यह दर्द है या लाचारी? कहना मुश्किल है। एक राज्य के मुखिया को महत्वपूर्ण सूचनाओं और फैसलों से इस तरह वंचित रखा जाएगा तो राज्य की दशा क्या होगी, सहज ही समझा जा सकता है। मुख्यमंत्री की नाराजगी वाजिब है किंतु प्रश्न यह है कि क्या वे दोषियों पर कार्यवाही करने का साहस दिखाएंगे?
अतिथि विद्वानों की संस्था ने सरकार के तमाम प्रस्तावों को ठुकरा दिया है। उन्हें केवल नियमितीकरण चाहिए। देखा जाए तो अतिथि विद्वान मजदूर से भी ज्यादा बुरे हालात में हैं। जितने घंटे काम उतना ही दाम उनकी नियति है। नरेगा के मजदूर को तो कम से कम 100 दिन की गारंटी है कि उसे काम मिल जाएगा, लेकिन अतिथि विद्वानों को कोई गारंटी नहीं है। वे जितना पढ़ाते हैं, उतने कालखण्डों का भुगतान नियमानुसार किया जाता है। लेकिन जिन लोगों ने इतनी उच्च शिक्षा प्राप्त की है, अपनी मेहनत और मेधा के बल पर डिग्रीयां हासिल की हैं उनका भविष्य अंधेरे मेें है। क्या यही सरकार का न्याय है? विभिन्न विषयों में डॉक्टरेट, डीलिट, स्नात्कोत्तर जैसी तमाम बड़ी-बड़ी उपाधियों से विभूषित ये अतिथि विद्वान आए दिन इस बात की बांट जोहते हैं कि उन्हें किसी कॉलेज से बुलावा आएगा तो वे पढ़ाने जाएंगे फिर पैसे मिलेंगे, तो जीवन चलेगा। इतनी घोर अनिश्चितता? सरकार उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैंकड़ों योजनाएं चला रही है। लेकिन उच्च शिक्षितों के साथ सरकार का बर्ताव कैसा है, यह अतिथि विद्वानों के साथ की गई बदतमीजी से जाहिर होता है। जिनको गिरफ्तार किया गया, वे जिलाबदर बदमाश नहीं थे बल्कि उच्च शिक्षित थे। उनमें महिलाएं भी शामिल थीं। वे मुख्यमंत्री तक अपनी बात ही तो पहुंचाना चाह रहे थे। बात पहुंचाना इतना बड़ा गुनाह है और उनकी मांग भी जायज है क्योंकि वे अलग से पदों की बात नहीं कर रहे, बल्कि उच्च शिक्षा में खाली पदों पर ही तो नियुक्ति चाह रहे हैं।
म.प्र.शासन के उच्च शिक्षा में लगभग 23 वर्ष से सामान्य कोटे हेतु सीधी भर्ती द्वारा नियमित नियुक्ति नहीं हो सकी है। नियुक्ति न होने से प्रदेश के विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखते हुये शासन द्वारा अतिथि विद्वानों के माध्यम से अध्यापन का कार्य कराया गया एवं जा रहा है। शिक्षण कार्य हेतु पूर्व में शासन को परेशानियों का समाना करना पड़ा। जिस हेतु समय समय पर शासन द्वारा अनेक आदेश, परिपत्र जारी कर अध्यापन व्यवस्था को वर्षों से अतिथि विद्वानों द्वारा सुचारू रूप से चलवाया जा रहा है।
जब व्यवस्था सुचारू हुई तो रिक्त पदों पर कार्य करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी। इस हेतु शासन स्तर पर एवं आयुक्त कार्यालय द्वारा अनेक आदेश परिपत्र जारी किये गए, जिससे पिछले लगभग 13 वर्ष से शासन एवं यू.जी.सी. द्वारा निर्धारित योग्यताधारी प्रत्याशी शासन द्वारा चयनित किए जाने लगे। ऐसे चयनित व्यक्तियों द्वारा विद्यार्थियों को अध्यापन कराया जाने लगा और उच्च शिक्षा में कम खर्च पर सुलभ और गुणवता युक्त शिक्षा प्राप्त होने लगी। इसी कारण नयी नियुक्ति हेतु भी सरकार ने विचार नहीं किया।
दूसरी ओर विद्यार्थी और सरकार को तो लाभ होने लगा परन्तु शासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत अतिथि विद्वानों का दोहन प्रारम्भ हो गया। लगतार 10 से 15 वर्षों तक प्रत्येक शैक्षिणक सत्र में सरकार के समक्ष शासन एवं यू.जी.सी. द्वारा निधार्रित योग्यताएं धारित करने के बाद एक कमजोर व्यक्ति के रूप में प्रति वर्ष लाइन में खड़े होकर अपने से कनिष्ठ एवं वगैर अनुभवी से संघर्ष उपरान्त अधिकतम एक शैक्षिणक सत्र में केवल सात-आठ माह हेतु ही अवसर प्राप्त कर पाते हैं।
नियुक्ति उपरान्त अपने से कम योग्यताधारी नियमित सहायक प्राध्यापकों एवं सम्बन्धित प्राचार्यों की हीन भावनाओं में कार्य की विवशता एवं उनके आदेश का पालन न करने पर किसी भी समय सेवा से पृथक होने का भय हमेशा बना रहता है।
अतिथि विद्वान के रूप में 13 वर्ष की सेवा, उच्च शिक्षा के बाद भी अतिथि विद्वानों को किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं, ना ही किसी प्रकार के अवकाश की पात्रता, ना ही चिकित्सा की पात्रता। वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा दैनिक वेतन भोगी मजदूरों, दैनिक ठेके पर कार्य करने वाले मजदूरों को सप्ताह में एक अवकाश एवं उस अवकाश का वेतन, प्रेग्नेंसी होने पर 15 दिवस का अवकाश दिया जाता है। परन्तु ऐसे उच्च शिक्षाधारी अतिथि विद्वान जो प्रदेश के नौजवानों को उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे है, को किसी भी प्रकार की अवकाश की पात्रता नहीं। केवल कार्य करने के उपरान्त ही मानदेय की पात्रता और प्रति वर्ष अपने से कनिष्ठ के साथ लंबी कतार में खड़े होकर अवसर की प्रतीक्षा उनके हिस्से में है। फिर भी वे मजबूरी में अतिथि विद्वान के रूप में पढ़ाने का कार्य करते हैं।
दूसरी तरफ नियमित प्रध्यापकों, सहायक प्राध्यपकों के पदों पर पदस्थ और कर्मचारियों को प्रतिवर्ष वेतन वृद्वि और अन्य लाभ दिये जाते हैं परन्तु अतिथि विद्वानों को पांच वर्ष उपरान्त अर्थात वर्ष 2009 में जारी परिपत्र में निर्धारित मानदेय भुगतान को परिवर्तित कर वर्ष 2014 में सौगात के रूप में बढ़ाने के बजाय घटाकर मानदेय रुपए 720/ के स्थान पर रुपए 600/ कर दिया गया है साथ ही अतिथि विद्वानों द्वारा जिन छात्र-छात्राओं को पढ़ाया जा रहा है उन्हीं छात्र-छात्राओं से अतिथि विद्वानों का गोपनीय चरित्र प्रतिवेदन लिखवा कर अगले वर्ष अध्यापन कार्य हेतु उसके भविष्य को अंधकारमय बनाने का प्रयास किया जा रहा है जो खेद जनक है। इतना सब होने के बाद वर्तमान में युक्ति-युक्ति करण की नीति के तहत कम विद्याॢथयों वाले विषयों के कई महाविद्यालय के विद्यार्थियों को, किसी एक ही महाविद्यालय मे स्थानान्तरण करने का आदेश जारी कर, कई वर्षो से भर्ती नियम और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियम के तहत कार्यरत अतिथि विद्वानों के स्थान पर नियमित सहायक प्राध्यापक की पद स्थापना करके, ऐसे अनुभवी व्यक्तियों को सेवा से पृथक करने की तैयारी सरकार द्वारा की जा रही है, जिसने पिछले 10 से 15 वर्ष से अतिथि विद्वानों के रूप में कार्य किया। अब वे अपने घर का रास्ता देखने को विवश होगें और उनके परिवार को भूखे मरने की स्थिति निर्मित होगी। जबकी शासन के द्वारा जारी भर्ती नियमों में पद रिक्त होने पर आपाती शिक्षक रखने का अधिकार शासन को है और पूर्व में शासन द्वारा ऐसी रिति से नियुतियां भी की गईं और उन्हें अनुभव के आधार पर नियमित नियुक्ति भी प्रदान की गई।
कब-कब क्या हुआ
16 अप्रैल को अतिथि विद्वानों ने उस वक्त शासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उच्च शिक्षा विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए नेट के अनिवार्यता को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं ले सका। इसी कारण असिस्टेंट प्रोफेसर के 1640 पद खाली पड़े हैं। उधर प्रदेश में उच्च शिक्षित 36 सौ अतिथि विद्वान नियमितीकरण की राह देख रहे हैं। सवाल यह है कि क्या उन्हें खाली पदों पर नियुक्त नहीं किया जा सकता। अतिथि विद्वान महासंघ के अध्यक्ष डॉ. देवराज सिंह का कहना है कि नेट की अनिवार्यता से अन्य राज्यों के उम्मीदवारों की दावेदारी भी बढ़ जाएगी। 19 अप्रैल को जब सीएम निवास के बाहर धरना देने जा रहे अतिथि विद्वानों को गिरफ्तार किया गया उस दौरान एक महिला अतिथि विद्वान को हार्ट अटैक भी आ गया था। बाद में अतिथि विद्वान जेल के बाहर धरने पर भी बैठे। प्रदेश भर में उनका आंदोलन बढ़ गया। रीवा, झाबुआ, मुरैना जैसे कई शहरों में कॉलेजों में ताले लग गए गया फिर हड़ताल के चलते कक्षाएं चालू नहीं हो सकी। उधर एनएसयूआई ने सरकार को आंदोलन की चेतावनी दी। 4 दिन की हड़ताल ने कॉलेजों की पढ़ाई को बहुत नुकसान पहुंचाया। एक दशक से पढ़ा रहे विद्वान अभी भी अतिथि है और चुतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से कम उनकी आमदनी है। 23 अप्रैल को सरकार ने अतिथि विद्वानों का वेतन 25 हजार करने के संकेत दिए। लेकिन मामला सुलझता नजर नहीं आ रहा। टकराव अभी भी जारी है। अतिथि विद्वान हड़ताल करके, बूट पालिश करके, यज्ञ करके, चाय बेंचकर, अन्य जल त्यागकर भोपाल में हड़ताल करते हुए, सीएम की तस्वीर का अभिषेक खून से करते हुए, कई तरह से विरोध प्रकट कर रहे हैं। छात्रों ने भी मांग की है कि अतिथि विद्वानों को नियमित करके पढ़ाई पर लगाया जाए। उधर मप्र कांग्रेस के प्रमुख अरुण यादव ने आरोप लगाया है कि सरकार अतिथि विद्वानों के साथ धोखा कर रही है। यह आंदोलन और गंभीर हो सकता है क्योंकि सरकार ने कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है।
अतिथि विद्वानों की मांगें
- मध्यप्रदेश राजपत्र (असाधारण) उच्च शिक्षा विभाग के पत्र क्र. 0 284 दिनांक 31/08/1990 के कंडिका 15 में राजकीय/शासकीय महाविद्यालय भर्ती (शैक्षणिक सेवा) नियम मे उल्लेख है कि आयोग द्वारा सहायक प्राध्यापकों की चयन सूची प्राप्त नहीं होने तक आपाती नियुक्ति जारी रहेंगी। इस आधार पर मानवीय दृष्टिकोण एवं वर्षों के कार्य अनुभव के आधार पर नियमित किया जा सकता है।
- हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव का अधिसूचना क्रमांक 6/7/2014-1-जी.एस. आई, दिनांक 16-06-2014 के अनुसार राजकीय/शासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत संविदा सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति तत्काल प्रभाव से की गयी है।
- ऐसे अतिथि विद्वान जिनके द्वारा मध्य प्रदेश के राजकीय/शासकीय महाविद्यालयों में शासन द्वारा निर्मित भर्ती नियम एवं यू.जी.सी. द्वारा निधार्रित अहर्ताएं रखते हुये अध्यापन का कार्य किया है उनको वरिष्ठता के आधार पर एक अलग कैडर बनाकर नियमित किया जावे।
- उत्तर प्रदेश सरकार के पत्र क्रमांक 6699/6744/2010-2011,दिनांक 17-03-2011 से ज्ञात है कि संविदा पर कार्यरत प्रवक्ताओं की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है।
- राजस्थान सरकार द्वारा भी राजकीय/शासकीय महाविद्यालयो में सहायक प्राध्यापक/प्राध्यापक के रिक्त पद के विरुद्ध कार्यरत संविदा व्याख्याताओ को नियमित नियुक्ति दी गयी है।
- लोक सेवा आयोग,बिहार के विज्ञापन क्रमांक 44/2014 से 84/2014 द्वारा सहायक प्राधयापको की भर्ती प्रक्रिया केवल साक्षात्कार के आधार पर करायी जा रही है।
- भोपाल से रजनीकांत