06-May-2015 05:17 AM
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मध्यप्रदेश कांग्रेस में सितंबर 2015 में होने वाले सांगठनिक चुनाव की गतिविधियां शुरू हो गई हैं। 15 मई तक सदस्यता अभियान चलेगा। उसके बाद जून से सितंबर तक सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया चलेगी। मतदाता सूची इत्यादि तैयार की जाएगी। देखा जाए तो छुट-पुट आंदोलन को छोड़कर मध्यप्रदेश में कांग्रेस सुप्तावस्था में है। कांग्रेस के तमाम पदाधिकारी सुर्खियों से गायब हैं और एक तरह से शांत बैठे हुए हैं। विधानसभा जिस वक्त चलती है, उस समय थोड़ा-बहुत हंगामा अवश्य होता है लेकिन प्राय:-प्राय: पेपरों में बयान देने के अलावा कांग्रेस के नेता न तो ज्यादा सक्रिय हैं और न ही कांग्रेस मध्यप्रदेश में विभिन्न मुद्दों पर बड़ा भारी आंदोलन खड़ा करने में कामयाब हो पाई है।
दिग्विजय सिंह अवश्य गाहे-बगाहे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को परेशान करने के लिए कोई छोटा-मोटा विस्फोट कर देते हैं और कांग्रेस कम बीजेपी ज्यादा उन्हें हीरो बना देती है, लेकिन व्यापमं एक्सल शीट को लेकर हाईकोर्ट ने जो निर्णय दिया है, उसके बाद दिग्विजय सिंह की तलवार भी उतनी पैनी नहीं रही। हालांकि एक्सल शीट प्रकरण से कांग्रेस ने दूरी बना ली है, पर व्यापमं को लेकर कांग्रेस पहले की तरह मुखर नहीं हो सकती। हर विधानसभा सत्र से पहले व्यापमं को उछालने की परम्परा से भी कांग्रेस को तौबा करना पड़ेगी क्योंकि गलत तथ्यों के आधार पर बार-बार लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती।
इसीलिए कांग्रेस का पूरा ध्यान सांगठनिक चुनाव पर है। इन चुनावों के परिणाम से कांग्रेस की दशा और दिशा तय होगी। प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के नेतृत्व में कांग्रेस प्राय:-प्राय: सभी चुनावों में पराजित हुई है लेकिन यादव का विकल्प भी तो नहीं है। कांग्रेस में राहुल गांधी के पुन: सक्रिय होने के बाद अब युवा पीड़ी को मौका देने का वक्त आ चुका है। राहुल खुद भी कांग्रेस में निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक लोकतांत्रिक माहौल बनाए जाने के इच्छुक दिखाई पड़ते हैं। पहले अप्रैल में राहुल गांधी की अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी तय मानी जा रही थी, लेकिन अब राहुल गांधी ने इसे टाल दिया है। भीतरी सूत्र बताते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को भी राहुल चुनावी प्रक्रिया से तय करना चाहते हैं। यह बात अलग है कि संगठन में उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है लेकिन राहुल ने यह प्रक्रिया अपनाई, तो उसका संदेश निचले स्तर तक जाएगा और इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसीलिए मध्यप्रदेश मेें कांग्रेस का नेतृत्व सांगठनिक चुनावों को सफल बनाने की मुहिम में जुट गया है। सूत्र बताते हैं कि यह चुनाव पूर्ण पारदर्शिता के साथ संपन्न हुए, तो कांग्रेस के ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन आ जाएंगा और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की एक नई नेतृत्व पंक्ति सामने दिखाई देगी। स्वयं सोनिया गांधी इस कदम से सहमत बताई जा रही हैं लेकिन कुछ नेताओं की मध्यप्रदेश में सक्रियता को लेकर सवाल भी पैदा हुए हैं।
जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गांधी के खासमखास बन गए हैं, उसे देखते हुए कुछ लोगों का यह कयास था कि राहुल मध्यप्रदेश की बागडोर सिंधिया को सौंप सकते हैं। लेकिन यह एक गलतफहमी ही है। राहुल अपने साथ केंद्र में कुछ जुझारू नेता रखने के इच्छुक हैं और ज्योतिरादित्य कदम-कदम पर उनका साथ दे रहे हैं। इसीलिए कुछ लोग कहने लगे हंै कि फिलहाल अरुण यादव या दूसरे युवा नेताओं की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है। अरुण यादव का भविष्य चुनाव के बाद तय होगा। कांग्रेस की एक खासियत और है कि वर्तमान में मध्यप्रदेश में गुटबाजी कम दिखाई दे रही है। इसका कारण संभवत: कांग्रेस का सत्ता से दूर होना है। पिछले 12 वर्ष से वनवास भोग रही कांग्रेस के कर्णधार अब यह समझने लगे हैं कि जब तक एकजुट नहीं होंगे सत्ता हासिल नहीं होगी।
मध्यप्रदेश आएंगे राहुल
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी किसानों का मुद्दा जोर-शोर से उठाने में जुट गए हैं। इसी क्रम में उनकी मध्यप्रदेश यात्रा मई माह के तीसरे सप्ताह में हो सकती है। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रभारी महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि किसानों को लेकर राहुल गांधी ने जो देशव्यापी यात्रा शुरू की है, वह मध्यप्रदेश आए बगैर पूरी नहीं हो सकती। संभव है कि राहुल गांधी भिंड के अटेर विधानसभा क्षेत्र की यात्रा करें। इसके लिए 22 किलोमीटर लंबे रूट चार्ज का ब्यौरा बनाकर भेज दिया गया है। अंबेडकर जयंती पर भारतीय जनता पार्टी ने महू मेें विशेष कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसके जवाब में राहुल गांधी भी महू जा सकते हैं। ज्ञात रहे कि सोनिया गांधी ने भी भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ अपने अभियान के दौरान मध्यप्रदेश में नीमच जिले में ओला प्रभावित किसानों से मिलते वक्त केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि शिवराज सिंह केंद्र से राहत राशि क्यों नहीं लेते।