19-Mar-2013 09:35 AM
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कर्नाटक में निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की पराजय ने भविष्य की राजनीति पर छाई धुंध पैदा कर दी है। अब यह तय हो चुका है कि भारतीय जनता पार्टी इस वर्ष मई में होने वाले चुनाव में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है और येदियुरप्पा का हश्र वही होने वाला है जो उत्तरप्रदेश में कल्याण सिंह का हुआ था। हाल ही में संपन्न 4,976 वार्ड के चुनाव में नगरीय निकायों में कांग्रेस ने 1909 वार्ड पर विजय पाई है और उसकी यह जीत भविष्य का संकेत है। भारतीय जनता पार्टी और जनता दल सेकुलर को 906 वार्डों पर जीत मिली है जबकि येदियुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी को 272 सीटें ही मिली हैं। साढ़े छह सौ से अधिक वार्ड ऐसे हैं जहां निर्दलीय जीते हैं। अब भारतीय जनता पार्टी यह प्रचार कर रही है कि ये निर्दलीय उसी के समर्थन से जीते हैं या भाजपा के ही बागी है। वैसे देखा जाए तो निर्दलीयों, येदियुरप्पा और भाजपा को मिलाकर जो आंकड़ा बनता है वह कांग्रेस से अधिक है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस ने 1909 वार्डों में जीतकर सबको चौंका दिया है और महत्वपूर्ण बढ़त हासिल कर ली है। भाजपा से अलग हुए पूर्व मंत्री बी श्रीरामुलु की बीएसआर कांग्रेस भी 80 वार्डों में जीतने में सफल रही है।
हालांकि जिस तरह भाजपा के सफाए की भविष्यवाणी की गई थी वैसा नहीं हुआ लेकिन भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई। जहां तक नगरीय निकाय में राजनीति का प्रश्न है कांग्रेस प्रारंभ से ही इसमें आगे रहती है। इसका कारण यह है कि नगरीय क्षेत्रों में कांग्रेस की पकड़ अन्य सभी दलों से मजबूत बताई जाती है। जबकि भाजपा की पकड़ ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा मजबूत है। वर्ष 2007 में नगरीय चुनाव में पराजित होने के बावजूद भाजपा को विधानसभा में बहुमत मिला था। उस वक्त कुल 5007 वार्डों के लिए हुए स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस को 1606 वार्डों में जीत मिली थी जबकि जनता दल एस 1502 और भाजपा 1180 वार्डों में जीत पाई थी। वर्तमान चुनावों के रुझान को देखते हुए यह तो कहा जा सकता है कि भाजपा की अंतर्कलह का फायदा जनतादल एस को न मिलकर कांग्रेस को मिलता दिखाई दे रहा है और यदि हालात यही रहे तो आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड, गुजरात, गोवा जैसे राज्यों की तर्ज पर कर्नाटक भी उन राज्यों में शामिल हो जाएगा जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहता हो। येदियुरप्पा को ज्यादा सफलता न मिलने से भारतीय जनता पार्टी ने संतोष की सांस ली है। भाजपा को उम्मीद है कि अब येदियुरप्पा उतने आक्रामक नहीं रह जाएंगे जितने वे पहले हुआ करते थे। इन चुनाव परिणामों को भाजपा ने खारिज कर दिया है और कहा है कि वर्ष 2007 में भी इससे मिलते-जुलते चुनाव परिणाम सामने आए थे, लेकिन तब भाजपा की सरकार राज्य में बनी थी। भाजपा के एक आला नेता ने कहा कि स्थानीय निकाय के चुनाव के आधार पर विधानसभा चुनाव की भविष्यवाणी करना उचित नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार इस निष्कर्ष से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि वर्तमान चुनावी नतीजे सभी राजनीतिक दलों के लिए खतरे की घंटी हैं। इन चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने से साबित होता है कि मतदाताओं ने स्थानीय मुद्दों को तरजीह दी है। बहरहाल भारतीय जनता पार्टी के मनोबल को ये चुनावी नतीजे अवश्य प्रभावित करेंगे क्योंकि पिछली बार की तुलना में उसका प्रदर्शन सुधरा नहीं है। कर्नाटक की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 3 जून को समाप्त हो रहा है और कुछ ही दिनों के भीतर कर्नाटक में चुनाव की तारीख घोषित की जा सकती है।
देखना यह है कि भाजपा येदियुरप्पा जैसे नेताओं के बगैर अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा सकेगी अथवा नहीं। इस बीच भाजपा राज्य इकाई के अध्यक्ष केएस ईश्वरप्पा ने पद छोड़ दिया है। प्रभावशाली कुरुबा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले ईश्वरप्पा राज्य में मंत्री भी थे और दोहरी जिम्मेदारी संभाल पाने में कठिनाई महसूस कर रहे थे। उन्होंने वर्ष 2010 में येदियुरप्पा मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन जगदीश शेट्टार के मुख्यमंत्री बनते ही वह पुन: मंत्रीमंडल में शामिल हो गए तथा उप मुख्यमंत्री बनाए गए। भाजपा में चल रही इन उठा-पटक के कारण पार्टी की छवि को खासा नुकसान पहुंचा है। बचाखुचा नुकसान लालकृष्ण आडवाणी के उस बयान से हो गया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के मामले में भाजपा ने जो रवैया अपनाया था वह गलत था। आडवाणी के इस बयान से यह बात साफ जाहिर हो रही है कि येदियुरप्पा को हटाने में नितिन गडकरी ने जो देरी बरती उसका नुकसान भाजपा को हुआ और भाजपा के प्रति भी जनता उतनी आशान्वित नहीं रही। आडवाणी का बयान ऐसे समय में आया है जब कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी भारी नुकसान की ओर बढ़ रही है। भाजपा के पास राज्य में कोई कद्दावर नेता नहीं है। जो नेता हैं वे विशेष पहचान नहीं रखते।