02-Mar-2013 09:29 AM
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ब्रिटेन के चैनल-4 की शीघ्र ही प्रदर्शित होने वाली एक फिल्म तमिलनाडु में तहलका मचा सकती है। नो वॉर जोन द किलिंग फील्ड ऑफ श्रीलंकाÓ नामक यह डाक्यूमेंट्री फिल्म तमिलों के ऊपर श्रीलंकाई सेना द्वारा किए गए अत्याचार की दर्दनाक कहानी को बयां करती है। इस कहानी का सबसे मर्मांतक क्षण है लिट्टे के प्रमुख नेता वी. प्रभाकरण के बारह वर्षीय निहत्थे पुत्र की श्रीलंकाई सेना द्वारा क्रूरता पूर्वक की गई हत्या। फिल्म के एक दृश्य में प्रभाकरण के पुत्र को सेना की कस्टडी में बिस्कुट खाते हुए बताया गया है और बाद में उसका गोली से छलनी शव दिखाई देता है। इसे देखकर लगता है कि बच्चे को बिस्कुट खिलाने के कुछ ही देर बाद नजदीक से गोली मारी गई। (चित्र में बच्चे के मृत शरीर पर वही हाफ पेंट है जो उसने बिस्कुट खाते समय पहनी हुई थी इससे सिद्ध होता है कि बिस्कुट खाने और गोली से छलनी किए जाने के समय में कोई विशेष अंतर नहीं था। यदि अंतर होता तो कम से कम कपड़े अवश्य दूसरे पहने होते।) यह मार्मिक हत्या इस बात का प्रमाण है कि लिट्टे के आतंक को खत्म करने के लिए श्रीलंकाई सेना ने आतंकियों से भी बर्बर तरीके अपनाएं। फिल्म में महिलाओं को चीत्कार करते हुए और पुरुषों को गोलियों से छलनी दिखाया गया है। कुछ महिलाएं भी बुरी तरह घायल हैं। लाशें पड़ी हुई हैं और सैनिकों की गाडिय़ां वहां से गुजर रही हैं। निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई जा रही हैं चारों तरफ चीत्कार है, लेकिन सैनिकों को हिदायत है कि उन्हें इन दृश्यों को देखकर पसीजना नहीं है। शायद इसी कारण प्रभाकरण के मासूम बेटे को बेदर्दी से गोली मारी गई। फोरेंसिक विशेषज्ञों ने उन तस्वीरों की (संलग्न) जांच करके बताया था कि प्रभाकरण के बेटे बालचंद्रन को पांच गोलियां लगी हैं। जो उसकी छाती पर हैं। गोली वाले स्थान के आसपास काला धब्बा देखा जा सकता है। जिससे यह साफ है कि गोलियां पास से दागी गई थीं।
एक मासूम को इस बेदर्दी से श्रीलंका की सेना ने मौत की नींद सुला दिया और मानव अधिकारवादियों से लेकर कश्मीर के उग्रवादियों की पैरवी करने वाली अरुंधती राय जैसे बुद्धिजीवी भी शांत बैठे रहे। किसी ने उस नरसंहार की भत्र्सना नहीं की। भारत सरकार भी कायरों की तरह हाथ पर हाथ धरकर बैठी रही और अपने लोगों को गोलियों से छलनी होते देखते रही। कुल मिलाकर लिट्टे और श्रीलंका सेना के बीच हुई जंग में 70 हजार लोग अभी तक मारे जा चुके हैं। लगभग इतने ही स्थायी रूप से विकलांग हो गए हैं। लाखों लोग रातों-रात जान जोखिम में डालकर छोटी-छोटी नावों से समुद्र में सैकड़ों मील नाव चलाते हुए तमिलनाडु में पहुंचकर किसी तरह अपना जीवन बचाने में कामयाब रहे। बहुत सी नावें डूब गई। बहुतों को जानबूझकर श्रीलंकाई नौकाओं ने डुबो दिया। नरसंहार का ऐसा घृणित उदाहरण इतिहास में दूसरा मौजूद नहीं है। इसकी तुलना हिटलर के यातना शिविरों से भी नहीं की जा सकती। क्योंकि वहां जो कुछ हुआ वह दुनिया से छुपाकर किया जा रहा था, लेकिन श्रीलंका में तो दुनिया की आंखों के सामने निर्दोष लोगों को मारा जा रहा था तथा यह प्रचार किया जा रहा था कि यह एक युद्ध है जो एक आतंकी संगठन के विरुद्ध छेड़ा गया है। इस दर्दनाक कार्रवाई में अकेले लिट्टे के समर्थक या लड़ाके नहीं मरे, बल्कि हजारों की संख्या में महिलाएं मारी गईं, छोटे बच्चे मारे गए, कई गर्भवती महिलाओं का गर्भपात हो गया। बूढ़े लोग मारे गए या फिर स्थायी रूप से विकलांग हो गए। इसके बाद भी श्रीलंका सरकार ने सहानुभूति के एक शब्द नहीं बोले बल्कि चैनल-4 की डाक्यूमेंट्री को ही गलत ठहराने का प्रयास श्रीलंका सरकार ने किया। श्रीलंका सरकार का दावा था कि प्रभाकरण का पुत्र बालचंद्रन क्रास फायरिंग में मारा गया है, लेकिन जो चित्र चैनल-4 ने जारी किए गए हैं उनसे श्रीलंकाई सरकार के दावे की पोल खुल जाती है इस जघन्य हत्याकांड को मानव अधिकार आयोग ने गंभीरता से लिया है।
तमिलनाडु की राजनीति में भी इस घटना ने नया भूचाल पैदा कर दिया है। तमिलनाडु में जनता के मन में लिट्टे के प्रति सहानुभूति शुरू से ही रही है और अब इस रहस्योद्घाटन ने तमिलनाडु की जनता को उद्धेलित कर दिया है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का कहना है कि प्रभाकरण के पुत्र की हत्या एक युद्ध अपराध है। संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रस्ताव पारित करते हुए श्रीलंका में हुए युद्ध अपराधों की जांच करनी चाहिए। जयललिता का कहना है कि यह न भूलने योग्य घटनाक्रम है। उन्होंने भारत की सरकार से अमेरिका सहित अन्य समानधर्मी देशों से इस विषय पर बातचीत करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ में एक प्रस्ताव पारित कराने की मांग की है। जयललिता की यह भी मांग है कि भारत सहित तमाम देशों को श्रीलंका पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना चाहिए। क्योंकि वहां युद्ध अपराध किए जा रहे हैं। तमिल आंदोलनकारियों की हत्या एक बार फिर एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ गई है। इसके बाद अब यह लगने लगा है कि राजीव गांधी के हत्यारों को सजा देने में सरकार जल्दबाजी नहीं करेगी। क्योंकि इसका असर विपरीत भी पड़ सकता है। उधर सरकार के एक महत्वपूर्ण सहयोगी डीएमके ने भी श्रीलंकाई तमिलों के प्रति संवेदना दिखाते हुए कुछ समय पूर्व श्रीलंकाई राष्ट्रपति राजपक्षे की दक्षिण यात्रा का विरोध किया था।
श्याम सिंह सिकरवार