क्यों जरूरी है गार्ड ऑफ ऑनर
05-May-2015 03:30 PM 1234902

महाराष्ट्र सरकार ने मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों और उच्चाधिकारियों को दिए जाने वाले गार्ड ऑफ ऑनर की प्रथा समाप्त कर दी है। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इस परम्परा में मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों को समय-समय पर गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस का कहना है कि यह समय और संसाधनों की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। वे वीआईपी लोगों की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों की संख्या में भी कटौती करने के हिमायती हैं। संभवत: इसीलिए प्रफुल्ल पटेल और अजीत पवार की जेड सुरक्षा वापस ले ली गई है। कुछ समय पहले जब एक समारोह में फडणवीस जा रहे थे, उस वक्त उनके काफिले को रास्ता देने के लिए आम जनता की गाडिय़ों को रोक दिया गया था। मुख्यमंत्री जिस क्लब के अंदर गए उस क्लब में भी सदस्यों को एंट्री देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि मुख्यमंत्री पहले से मौजूद थे। बाद में मुख्यमंत्री फडणवीस ने लोगों से माफी मांगी और कहा कि वे इस घटना की जांच करवाएंगे। महाराष्ट्र देश का पहला राज्य है जिसने गार्ड ऑफ ऑनर को खत्म किया है। इसे वीआईपी संस्कृति खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
हालांकि देश में फडणवीस के अलावा भी अनेक राजनीतिज्ञ हैं, जो सादगी से रहते हंै और वीआईपी संस्कृति से बचने की कोशिश करते हैं। लेकिन अपनी सादगी को एक प्रोपेगंडा की तरह प्रचारित करने में अरविंद केजरीवाल सबसे आगे हैं। उन्होंने वीआईपी संस्कृति को समाप्त भले ही न किया हो, इसके खिलाफ सुनियोजित तरीके से प्रचार अवश्य किया और स्वयं को जनता का मुख्यमंत्री का तमगा दिलाने की कोशिश की। वे बहुत हद तक कामयाब भी हुए। चुनावों में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। 
बहरहाल केजरीवाल ने अन्य राजनीतिज्ञों को एक प्रेरणा तो दी ही है। उनसे प्रेरित होकर कई प्रदेशों के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों ने अपना ताम-झाम कम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बड़े भारी काफिले और लाव-लश्कर के खिलाफ हैं। कोई भी बदलाव तभी कारगर होता है, जब वह सच्चे मन से किया गया हो। देवेन्द्र फडणवीस, मनोहर पर्रिकर, माणिक सरकार जैसे कई राजनेता दिखावे की सादगी नहीं ओढ़ते बल्कि उनकी सादगी स्वाभाविक और सहज है। उन्होंने केजरीवाल की तरह अपनी सादगी का प्रोपेगंडा भी नहीं किया।
राजनीति में आने के बाद कुछ घमंडी और मूर्ख किस्म के राजनेताओं, अधिकारियों को यह लगने लगता है कि वे खास हो गए हैं इसलिए जनता के पैसे पर सुविधाओं को भोगना और अपनी विशिष्टता का फूहड़ प्रदर्शन करना उनका जन्म सिद्ध अधिकार है। इसीलिए बहुत से छोटे, मोहल्ला छाप नेता भी जब तफरी को निकलते हैं, तो साथ में बड़ा भारी काफिला भी होता है। ऐसे नेताओं को मंत्री बना दिया जाए, तो उनके भाव सातवें आसमान पर जाने में देरी नहीं लगती। इसी कारण देश में वीआईपी संस्कृति पनपी। अंग्रेजों ने तो इस संस्कृति को इसलिए पनपने दिया क्योंकि वे स्वयं को भारत के निवासियों से ज्यादा श्रेष्ठ समझते थे। उन्हें लगता था कि दंभ, दमन और ताकत का प्रदर्शन शासन करने की अनिवार्य योग्यता है। लेकिन भारत स्वतंत्र होने के बाद कांग्रेस ने अंग्रेजों की इस संस्कृति को बहुत पाला-पोसा। घोटालेबाजों, भ्रष्टाचारियों, अपराधियों, हत्यारों और रिश्तेदारों को वीआईपी स्टेटस से नवाज दिया। जिनकी कोई औकात नहीं थी, जो पार्षद का चुनाव जीतने की योग्यता नहीं रखते थे उन्हें भी कांग्रेस के राज्य में जेट श्रेणी की सुरक्षा से नवाज दिया गया। लेकिन अब यह बुखार उतर रहा है। जनता समझदार हो चुकी है। उसे न तो ऐसे नौकरशाह चाहिए और न ही ऐसे नेता, जो जनता के साथ वैसा व्यवहार करें जैसा अंग्रेजी राज में होता था। अब जनता ऐसे लोक सेवकों को पसंद करती है, जो सहज हैं, गलतफहमी के शिकार नहीं हैं, जो कृतज्ञ भाव से स्वयं को जनता का सेवक मानते हुए सेवा करने को तत्पर रहते हैं। इसीलिए फडणवीस की पहल को जनता के एक वर्ग ने सर-आंखों पर लिया है।
लेकिन प्रश्न वही है, कि क्या इस छोटे से कदम को देश में पनप रही वी आईपी संस्कृति समाप्त करने की शुरुआत माना जा सकता है। फडणवीस के पास गृह मंत्रालय भी है। इसलिए उन्होंने बहुत से लोगों को वीआईपी सुरक्षा देने से साफ इनकार कर दिया है। खासकर जिन नेताओं पर खतरे की आशंका बेहद कम है, उन्हें अब जेड कैटेगरी की सुविधा नहीं मिलेगी। हालांकि गैर राजनीतिक वीआईपी जैसे अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, आमिर खान आदि को कड़ी सुरक्षा मिलती रहेगी। फडणवीस का मानना है कि इन सुरक्षा बलों को वीआईपी लोगोंं की सुरक्षा से हटाकर आम जनता की सुरक्षा में लगाया जाएगा। लेकिन उनके इस सार्थक कदम का विरोध भी होने लगा है। एनसीपी ने तो कहा है कि सुरक्षा किसी खास मकसद को ध्यान में रखते हुए प्रदान की गई है। सरकार को इसकी समीक्षा करनी चाहिए। देखा जाए तो नेताओं और अन्य वीआईपी ने जो सरकारी हैं या राजनीतिज्ञ हैं, सुरक्षा व्यवस्था को एक तरह से स्टेटस सिंबल ही बनाकर रखा है। इस देश का आधे से ज्यादा सुरक्षा अमला, तो नेताओं और वीआईपी की चौकसी कर रहा है। इसीलिए अपराधी बेखौफ हैं। वे निडर होकर घूमते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि सरकारें आम जनता को कीड़े-मकोड़े ही समझती हैं। बहुत से प्रदेशों मेंं सुरक्षा के ताम-झाम अनावश्यक रूप से किए गए हैं। जो प्रदेश नक्सलवाद और आतंकवाद से प्रभावित हैं उन्हें छोड़ दिया जाए, तो अधिकांश प्रदेशों में वीआईपी सुरक्षा की आवश्यकता ही नहीं है। लेकिन सभी प्रदेशों में शासक वर्ग फडणवीस की तरह दिलेर नहीं है।

  • मुंबई से बिंदू माथुर

 

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