05-May-2015 01:31 PM
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दिल्ली के जंतर-मंतर में केजरीवाल भाषण देते रहे और उन्हीं की पार्टी का एक कार्यकर्ता गजेन्द्र जो कि पेशे से किसान था। सामने वाले पेड़ पर चढ़कर फांसी लगाकर झूल गया। दिल्ली पुलिस का

कहना है कि गजेन्द्र की मौत असावधानीवश हुई। शायद वह कोई सांकेतिक प्रदर्शन करना चाह रहा होगा, लेकिन उसका बैलेंस बिगड़ गया और देखते ही देखते फांसी लगने से गजेन्द्र्र की मृत्यु हो गई। दिल्ली पुलिस का अपना अलग आंकलन है। उधर गजेन्द्र के मित्र जीत ने आरोप लगाया है कि गजेन्द्र फांसी से पहले कुमार विश्वास से मिला था और उन्हें किसानों की समस्याएं बताई थीं। जिस पर कुमार विश्वास ने उसे उकसाते हुए कहा था कि अब तो आत्म हत्या ही एकमात्र सहारा बचा है। कुमार विश्वास सच हैं या गजेन्द्र का दोस्त या मीडिया या इस खबर की चीर-फाड़ करने वाले बुद्धिजीवी, इस विषय मेंं कोई भी कुछ नहीं कह सकता।
सच तो यह है कि गजेन्द्र ने देश की राजधानी दिल्ली में हजारों लोगों के सामने मौत को गले लगा लिया और कोई उसे बचाने नहीं आया। कमलेश्वर की कहानी दिल्ली में एक मौत में बताया गया है कि किस तरह एक अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले लोग अपने-अपने लुक और फैशन को लेकर कुछ ज्यादा ही सचेत थे। कोई सूट पहन रहा था, तो कोई महिला लिपिस्टिक लगा रही थी। अंतिम संस्कार के लिए सभी पूरी तैयारी से पहुंचे थे। दिल्ली में उस दिन जंतर-मंतर पर और टीवी चैनलों मेें कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला। सहानुभूति का सैलाब आ गया। मीडिया और राजनैतिक दल अचानक किसानों के सबसे बड़े हितैषी बन गए। मृतक गजेन्द्र के घर पैसों की बारिश होने लगी। दिल्ली सरकार ने 10 लाख भिजवाए, भाजपा ने 4 लाख दिए, कांग्रेस ने भी कुछ दिया।
मानसिक रूप से दिवालिया हो चुके राजनीतिक दलों को पिछले 3 दशक से यही लग रहा है कि पैसा ही सारी समस्याओं का हल है। इसी पूंजीवादी मनोवृत्ति ने किसानों और मजदूर वर्ग को नैराश्य के कगार पर धकेल दिया है। लेकिन गजेन्द्र न तो गरीब था और न ही उसे इतना बड़ा नुकसान हुआ था कि वह पीपली लाइव के नत्था की तरह अपनी आत्म हत्या का मंहिमामंडन करने की कोशिश करता। फिर गजेन्द्र ने मौत को गले क्यों लगाया? क्या यह एक सुनियोजित नाटक था? इन सब बातों का पता लगाने के लिए जब केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ ही मजिस्ट्रीरियल जांच का आदेश दिया, तो दिल्ली पुलिस ने इसे तुरंत ठुकरा दिया। केजरीवाल पुलिस को कटघरे मेंं खड़ा करना चाह रहे थे, लेकिन जनता ने जंतर-मंतर पर प्रत्यक्ष देख लिया था कि किस तरह गजेन्द्र की फांसी के साथ-साथ केजरीवाल का भाषण भी चलता रहा। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया कि केजरीवाल भी अब चौबीस कैरेट राजनीतिज्ञÓ बन चुके हैं। बाद में केजरीवाल ने माफी मांगी। उन्हीं की पार्टी के आशुतोष ने भी मीडिया के सामने टीवी चैनल पर जार-जार आंसू बहाए। मीडिया ने इस पूरे मामले को किसानों की आत्महत्या से जोड़कर देखने की कोशिश की।
यह दु:खद ही कहा जाएगा कि जब तक एक किसान ने जंतर-मंतर पर भीड़ के सामने आत्महत्या नहीं कर ली, मीडिया के जेहन में किसान का मुद्दा आया ही नहीं। मीडिया कितना निर्लज्ज और पूंजीवादी हो चुका है, इसका यह श्रेष्ठ उदाहरण है। ढाई लाख किसानों की आत्महत्या के बाद मीडिया का जागृत होना, कई सवाल खड़े कर रहा है। आए दिन कभी खेत में तो कभी घर के किसी अंधेरे एकांत कोने में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उनकी आत्महत्याओं के विभिन्न कारण हो सकते हैं लेकिन मूल कारण तो कृषि का लगातार घाटे वाला व्यवसाय बनते जाना है। आजादी के बाद हर क्षेत्र ने तरक्की की लेकिन अन्नदाता किसान लगभग उन्हीं हालातों में हैं और सरकारें किसानों की हमदर्द बनने का ढोंग किया करती हैं।
किंतु जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की नौटंकी का कारण भीतरी है। भीतर ही भीतर आम आदमी पार्टी में दरार गहराने लगी है। योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण सहित चार बड़े नेताओं की विदाई और लोकसभा में मान की जगह किसी दूसरे को नेता पद का दायित्व सौंपना जैसे कई कदम हैं, जो आम आदमी पार्टी के वजूद पर खतरा बनते जा रहे हैं। पार्टी का एक बहुत बड़ा धड़ा अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली से नाखुश है। उनके आस-पास जो लोग जमा हैं, उन लोगों के प्रति भी पार्टी के भीतर ही आक्रोश है। पार्टी के कई कार्यकर्ता खुलकर विरोध प्रकट कर चुके हैं। योगेन्द्र यादव ने पार्टी के टिकट वितरण पर असंतोष प्रकट करते हुए कभी आरोप लगाया था कि आम आदमी पार्टी में गलत लोगों को टिकट दी गई है। इसका प्रमाण दिल्ली के कानून मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर की कानून की फर्जी डिग्री के रूप में सामने आ चुका है।
भागलपुर यूनिवर्सिटी के जवाब ने केजरीवाल सरकार को कई सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। जिनके जवाब सरकार को देने ही होंगे। सिर्फ बचाव से काम चलने वाला नहीं, या तो सरकार यूनिवर्सिटी को गलत साबित करे या फिर कानून मंत्री को बाहर का रास्ता दिखाकर मिसाल कायम करे। तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय ने दिल्ली हाईकोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया है। उसके मुताबिक, तोमर की वकालत की डिग्री जाली है। प्रोविजनल डिग्री का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। तोमर के नंबर वाली डिग्री 1999 में दूसरे छात्र को जारी हुई है। प्रोविजनल डिग्री पर दस्तखत भी फर्जी हैं। विवाद उनकी विज्ञान की डिग्री को लेकर भी मचा है और यहां भी उन्हें बैकफुट पर जाना पड़ सकता है। यूपी के अवध विश्वविद्यालय ने उनकी मार्कशीट और डिग्री को पूरी तरह फर्जी करार दे दिया है। दुनिया भर को ईमानदारी का चिराग दिखाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार इस मसले पर खुद फंसती दिख रही है। सरकार और मंत्री भले बचाव की मुद्रा में हों लेकिन विपक्षी दलों ने हमला तेज कर दिया है। कोर्ट में अब इस मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त को होगी। कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया और दिल्ली बार काउंसिल को भी मामले की जांच कर 20 अगस्त की सुनवाई के दौरान अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
सिसोदिया,विस्वास, सिंह के उकसावे पर आत्महत्या?
दिल्ली पुलिस ने गजेन्द्र हत्याकाण्ड में कई अहम् सबूत ढूढ़ निकाले हैं, क्राइम ब्रांच में इस प्रकरण में एक चश्मेदीद गवाह के ब्यान भी दर्ज कर लिए हैं, जिसके अनुसार गजेन्द्र ने पेड़ पर चढऩे से पहले कुमार विस्वास ने लम्बी बातचीत भी की है गृह मन्त्रालय को सोंपी अपनी रिपोर्ट में पुलिस का कहना है की गजेन्द्र मनीष सिसोदिया, कुमार विस्वास, संजय सिंह के उकसावे पर ही आत्महत्या का नाटक करने पेड़ पर चढ़े थे, टीवी फुटेज में साफ है की संजय सिंह उससमय हाथ में माइक लिए पेड़ की ओर देखते हुए भाषण कर रहे थे, उसके फंदे से लटकते ही सांय के चेहरे से हवाइयाँ उडऩे लगीं थीं, इसके अलावा पुलिस के पास इतने अहम् सबूत हैं जो कि इन तीनो को मुजरिम साबित करेंगे....!!
किसने क्या कहा?
- गजेन्द्र की मौत के बाद केजरीवाल ने कहा कि उन्हें भाषण नहीं देना चाहिए था और रैली रोक देनी थी। उन्होंने यह भी माना कि ऐसे मामले में पुलिस को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि पुलिस को इस तरह की घटना का अनुमान नहीं रहा होगा।
-आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष ने पहले तो व्यंग्य किया कि अगली बार कोई फांसी लगाएगा तो केजरीवाल से कहेंगे कि खुद पेड़ पर चढ़ेंं, लेकिन बाद में जब हंगामा हुआ तो उन्होंंने कहा हमारे कार्यकर्ताओं को किसी ने बताया कि कोई खुदकुशी करने की कोशिश कर रहा है, मगर कुछ साफ नहीं हो पाया। कैमरे वालों को दिख रहा होगा, क्योंकि कैमरे में जूम होता है।
-कुमार विश्वास ने कहा कि देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने झूठ बोला है। गृहमंत्री ने कहा कि आप कार्यकर्ता ने उतराने नहीं दिया। आपके कैमरे वहां थे। आप सच दिखाए कि क्या मंच से किसी ने कहा कि पुलिस को काम ना करने दे। लगतार ये कहा जा रहा था कि पुलिस पहुंचे।
- बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने आरोप लगाया कि ये आत्महत्या नहीं हत्या है। दिल्ली सरकार की लापरवाही की वजह से उस किसान ने अपनी जान दे दी। एक शख्स खुदकुशी कर रहा था और कुछ ही मीटर की दूरी पर आप के सभी दिग्गज नेता बैठे थे उन्होंने कोई कदम क्यों नहीं उठाया।
- कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी किसान की मौत की खबर सुनकर आरएमएल अस्पताल पहुंचे। हालांकि आरएमएल अस्पताल से किसान गजेंद्र का शव लेडी हॉर्डिंग अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था। राहुल फिर लेडी हॉर्डिंग अस्पताल पहुंचे।
- कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा कि सरकार की तरफ से मदद ना मिलने से किसान निराश हैं और इस तरह की रैली कर रहे हैं। सचिन ने आप पर आरोप लगाते हुए कहा कि अगर एक शख्स खुदकुशी कर रहा था तो रैली रोकी क्यों नहीं गई।
-बीजेपी नेता जगदंबिका पाल ने कहा है धरना स्थल पर ऐसी घटना रोकने की जिम्मेदारी पार्टी की है। उनके खिलाफ प्रोवोकेशन की कार्रवाई होनी चाहिए। अगर आप पार्टी के धरना स्थल पर खुदकुशी हुई तो उसके लिए पार्टी जिम्मेदार है। आप पार्टी इस तरह की घटनाओं से एक राजनीतिक लाभ लेना चाहती है।
-ऋतेंद्र माथुर