20-Apr-2015 05:48 AM
1234856

लगभग सभी राजनीतिक दलों में बड़बोले नेताओं ने बेहूदा बयान देकर भारत के राजनीतिक माहौल को विषाक्त बना दिया है। बयानों का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना, जनता दल यूनाइटेड, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल सहित लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के मुंह से गंदे और शर्मनाक बयान पिछले दिनों सुनने में आए हैं। गिरिराज सिंह ने कहा कि सोनिया गांधी गोरी हैं इसलिए कांग्रेस की अध्यक्ष हैं यदि राजीव गांधी किसी अश्वेत महिला से विवाह करते तो वह कांग्रेस की अध्यक्ष नहीं बन पातीं।
गिरिराज सिंह के इस बयान के जवाब में लालू यादव ने जो कहा वह और भी शर्मनाक था। उन्होंने कहा कि गिरिराज को चूड़ी, सिंदूर, बिंदी लगाकर उनके चेहरे पर कालिख पोती जानी चाहिए। इससे पहले संसद मेें शरद यादव दक्षिण भारतीय महिलाओं के सौन्दर्य वर्णन में तल्लीन हो गए थे, बाद में उन्होंने पद्म पुरस्कारों पर यह भी कह डाला कि पद्म पुरस्कार गलत लोगों को दिए जाते हैं। भारतीय राजनीति में बेहूदा बयानबाजी करने वाले नेताओं की कमी नहीं है। प्राय: 90 प्रतिशत नेताओं के मुंह से कुछ न कुछ आपत्तिजनक सुना जा चुका है। इन बयानों से नेताओं की मनोवृत्ति भी पता लगती है लेकिन सरकारों और पार्टियों को जनता तथा मीडिया के सवालों का जवाब देना मुश्किल हो जाता है। गिरिराज सिंह के बयानों से भाजपा ने तुरन्त खुद को अलग कर लिया। अरुण जेटली ने तो भोपाल में पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं को संभलकर बयानबाजी करने की नसीहत तक दे डाली। अमित शाह और राजनाथ सिंह भी नेताओं से संभलकर बयानबाजी करने का कह चुके हैं। लेकिन लगता है उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। भाजपा में कुछ नेता अनियंत्रित और गैर-अनुशासित हो चुके हैं। बड़े नेताओं की सलाह भी नहीं मानी जाती। भाजपा, कांग्रेस बड़ी पार्टियां हैं इसलिए इनकी जिम्मेदारी कुछ ज्यादा है लेकिन छोटे दल भी कुछ कम नहीं हैं। ओवैसी बंधुओं ने जब शिवसेना को मुंबई जाकर ललकारा, तो शिवसेना के संजय राउत ने बयान दिया कि मुस्लिमों से मतदान का अधिकार छीन लेना चाहिए। सामना में छपे लेख में संजय राउत की बयानबाजी बिल्कुल वैसी ही है जैसी ओबैसी बंधुओं की हुआ करती है। बयानों के मामले में कोई किसी से कम नहीं है। सब बयानों की वीरता दिखा रहे हैं। मीडिया को बयानबाजी में नया मसाला मिलता है इसलिए वह बढ़ा-चढ़ाकर छापता है। राजनीतिज्ञ भी अपने-अपने आकाओं को खुश करने के लिए बयानों के बाद बयानों की लड़ाई पर उतारू हो जाते हैं। वफादारी दिखाने का यह भी एक अच्छा तरीका है।
खबर है कि महाराष्ट्र के कांग्रेसी विधायक सोनिया के बारे में गिरिराज सिंह की टिप्पणी को राज्य विधानसभा में उठाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें ऐसा करने से कोई रोक नहीं सकता, यह नादानी का एक नया नमूना ही होगा। कई कांग्रेसी ऐसे नमूने पहले ही पेश कर चुके हैं। राजबब्बर ने फरमाया कि गिरिराज सिंह को पागलखाने भेज दिया जाए। उनके इलाज का खर्च वह खुद उठाएंगे। संजय निरूपम ने मुंबई में प्रदर्शन करते वक्त कहा कि वह गिरिराज जैसे नहीं हैं, क्योंकि जब उन्होंने स्मृति ईरानी को ठुमका लगाने वाली कहा था तब वह..ठुमक चलत रामचंद्र वाले भजन से प्रेरित थे। इससे पहले कि आप इन दोनों नेताओं के इन बयानों को वाहियात करार दें, यह तथ्य जान लें कि बब्बर हाल ही में राज्यसभा के लिए चुने गए हैं और निरूपम मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए हैं। जाहिर है कि वे अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करने को बेचैन रहे होंगे। पुद्दुचेरी के उन कांग्रेसियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं जिन्होंने गिरिराज पर गुस्सा दिखाने के बहाने भाजपा के दफ्तर में पथराव कर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया। शायद वे फुरसत में रहे होंगे।
नि:संदेह गिरिराज सिंह का यह कहना अरुचिकर और आपत्तिजनक है कि राजीव गांधी ने किसी नाइजीरियन से शादी की होती तो क्या कांग्रेसजन उनका नेतृत्व स्वीकार करते, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि यह आपसी बातचीत में की गई टिप्पणी थी। जिसने भी उनकी यह निजी बातचीत सार्वजनिक की उसने शरारत ही की। ऐसी निजी बातचीत को उजागर करने का तब कोई मतलब हो सकता था जब वह किसी घोटाले या षड्यंत्र की ओर संकेत कर रही होती। यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं हो सकता कि औसत नेता और जनता काली रंगत के प्रति किस तरह दुराग्रह अथवा पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। यह साबित करने के लिए किसी की निजता में सेंध लगाने की जरूरत नहीं। इस दुराग्रह-पूर्वाग्रह को नस्लभेदी बताना भी कुछ ज्यादा ही है। मुश्किल यह है कि मीडिया के एक हिस्से को यह समझ ही नहीं कि आम भारतीय समाज यह नहीं जानता कि नस्लभेद क्या होता है? किसी भी देश की परिपक्वता का प्रदर्शन इससे ही होता है कि वह किन मसलों पर चिंतन-मनन करता है। यदि दुनिया वाले यह धारणा बनाए कि हम भारतीय बेतुके बयानों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने और समय खपाने वाले लोग हैं तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता।
स्तरहीन राजनीति
इस तरह की बयानबाजी से राजनीतिक मर्यादा का उल्लंघन तो हो ही रहा है, राजनीति भी निम्रस्तरीय होती जा रही है। कांग्रेस के एक नेता जयराम रमेश ने नरेंद्र मोदी की तुलना दुर्योधन से की। बाद में एमजे अकबर ने कह दिया कि अगर जयराम रमेश रामायण और महाभारत पढ़ लें तो पता चलेगा कि वे खुद नारद हैं।
लालू यादव ने नरेंद्र मोदी को हिरण्यकश्यप तक कह डाला। भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के विरुद्ध जिस तरह की बयानबाजी हुई है वैसी किस अन्य के विरुद्ध नहीं हुई। उन्हे राक्षस तक कहा गया। लेकिन जिस शख्स को देश की जनता ने बहुमत से प्रधानमंत्री चुना है उसके विरुद्ध बयानबाजी करते समय सही शब्दों का उपयोग किया जाए तो ऐसा लगेगा कि जनता के फैसले का उचित सम्मान हो रहा है। मोदी दुर्योधन, हिरण्यकश्यप या राक्षस नहीं हैं बल्कि इस देश के प्रधानमंत्री हैं। इसी तरह सोनिया गांधी भी श्वेत या अश्वेत नहीं बल्कि इस देश की सबसे बड़ी पार्टी की अध्यक्ष हैं।
गिरिराज सिंह, लालू यादव, संजय राउत, प्रवीण तोगडिय़ा, मणिशंकर अय्यर, योगी आदित्यनाथ, ओवैसी, आजम खान, साध्वी निरंजन ज्योति, साध्वी प्राची जैसे नेताओं ने भारतीय लोकतंत्र को मर्यादा विहीन और विषाक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन पर लगाम लगना अतिआवश्यक है।