20-Apr-2015 05:01 AM
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यमन में शिया और सुन्नी के बीच चल रहे घमासान युद्ध के दौरान भारत के विदेश राज्य मंत्री जनरल वी.के. सिंह के नेतृत्व में भारत ने हवाई हमलों के बीच से भारतीयों को बचाते हुए ऑपरेशन राहत के तहत 5600 लोगों को बाहर निकाल लिया। यह विदेशी धरती पर चलाया गया भारत का अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन है, जिसमें नौसेना, वायु सेना, एयर इंडिया और भारतीय रेलवे ने 4 हजार 640 भारतीयों और 41 अन्य देशों के 960 विदेशियों को सुरक्षित निकाल लिया। 10 दिन तक चले इस ऑपरेशन में भारत के बचाव दल ने अभूतपूर्व साहस दिखाया। यमन में कोई सरकार नहीं है। परोक्ष रूप से ईरान और अरब यमन में युद्धरत हैं। शिया और सुन्नी की इस लड़ाई में ईरान शियाओं का साथ दे रहा है और अरब सुन्नियों का। सउदी अरब ने हवाई हमले भी किए हैं, जिसके बाद तनाव बढ़ गया है। हालांकि ईरान विद्रोहियों को मदद न करने पर सहमत हो गया है लेकिन लड़ाई लंबी चलने वाली है। इस पूरे क्षेत्र में आग लगी है। सीरिया से लेकर यमन और इराक में हर दिन सैंकड़ों लोग मारे जा रहे हैं। भारत के बचाव अभियान की सारी दुनिया ने सराहना की। जिन भारतीयों को बचाया गया, उनमें एक 6 दिन की बच्ची भी शामिल है। बच्ची को डॉक्टरों की मौजूदगी में फ्लाइट से भारत लाया गया, फ्लाइट के अन्दर ही बच्ची के लिए इंक्यूबेटर का इंतजाम किया था। पाकिस्तान ने भी इस युद्धरत क्षेत्र से अभूतपूर्व साहस दिखाते हुए अपने नागरिकों के साथ-साथ भारत के भी 11 नागरिकों को सुरक्षित निकाला और दरियादिली दिखाते हुए सभी को अपने एयर फोर्स के विशेष विमान से भारत पहुंचाया। भारत ने पाकिस्तान की इस मानवता के लिए सराहना करते हुए उसे हृदय से धन्यवाद दिया है।
150 ईसाई छात्रों की हत्या
सोमालिया के इस्लामिक संगठन अल-शहाब ने केन्या के जिस गैरिसा विश्वविद्यालय में चुन-चुनकर 150 ईसाई छात्रों की हत्या की, उस पर अल-शहाब की नजर बहुत पहले से थी। सरकार के पास भी यह जानकारी थी कि अल-शहाब ईसाइयों को निशाना बना रहा है, पर बचाने वाला कोई नहीं था। गृहयुद्ध से जूझ रहे सोमालिया में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। 99.8 प्रतिशत मुस्लिम आबादी होने के कारण बाकी गिने-चुने दूसरे समुदायों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्हें या तो खदेड़ दिया गया है या फिर मारा जा रहा है। गैरिसा विश्वविद्यालय में 2 अपै्रल को तड़के घुसे आतंकवादियों ने छात्रावास के सभी छात्रों को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में बांटकर गैर-मुस्लिम छात्रों की बेरहमी से हत्या कर दी, जिनमें से अधिकांश ईसाई थे। सुन्नी आतंकवादी अन्य देशों की तरह सोमालिया से लगे केन्या में भी मौत का खेल खेल रहे हैं। जिस संगठन अल-शहाब ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है वह 1991 से चले आ रहे गृहयुद्ध से ही जन्मा है, जिसमें अब तक लाखों लोग कबीलों के बीच चल रही लड़ाई में मारे जा चुके हैं। भयानक भुखमरी और गरीबी का सामना कर रहे असफल देश सोमालिया की राजधानी मोगादिशु को कभी हिंद महासागर का सफेद मोती कहा जाता था। लेकिन आज यह खून का तालाब बन चुका है, जहां लाशों के ढेर लगे रहते हैं। कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। पड़ोसी देश केन्या के साथ सोमालिया के विद्रोही गुटों का झगड़ा चलता रहा है। केन्या की 84 प्रतिशत आबादी ईसाई है इसीलिए सोमालिया में ईसाइयों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। अल-कायदा से संबंधित इस्लामिक संगठन अल-शहाब का कहना है कि जब तक केन्या सभी मुस्लिम इलाकों को खाली नहीं करता लड़ाई, जारी रहेगी। पहले-पहल यह लड़ाई राजनीतिक थी लेकिन अब ईसाई बनाम मुस्लिम हो चुकी है। अल-शहाब ने खुली धमकी दी है कि वह स्कूलों, विश्वविद्यालयों, कार्यस्थलों और घरों में भी जाकर हत्याएं करेगा। केन्या की पुलिस और सुरक्षा बलों से अल-शबाब की सीधी लड़ाई है। वर्ष 1998 में अमेरिकी दूतावास पर बमबारी में सोमालिया में कई लोग मारे गए थे। उसके बाद से यह सबसे बड़ा हमला है। भुखमरी से जूझ रहे इस देश में राष्ट्रपति हसन शेख मोहम्मद नाम के राष्ट्रपति हैं, उनके पास न तो आतंक से लडऩे की शक्ति है और न ही रणनीति। देश के अंदर ही कई देश हैं जहां अलग-अलग कबीलों की हुकूमत चल रही है। मूलत: सोमालिया के निवासी सोमाली आदिवासी हैं, जिन्होंने कभी इस्लाम अपनाया था। 1 करोड़ की आबादी में 85 प्रतिशत सोमाली आदिवासी समूह एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। 90 के दशक में हालात कुछ ठीक थे, लेकिन उसके बाद स्थिति इतनी बिगड़ी की भुखमरी और गरीबी ने इस देश को बर्बाद कर दिया। जब तक सोमालिया का सिविल वॉर खत्म नहीं होता, आतंक के खात्मे की संभावना नहीं है।
सीरिया के शरणार्थी बने समस्या
सीरिया में जारी लड़ाई में दो लाख से ज्यादा लोग मारे गए हैं और उससे कहीं ज्यादा भागकर जार्डन और तुर्की जैसे पड़ोसी देशों में जाकर छिप गए हैं। यह वो देश हैं जो पर्यटन पर ज्यादा निर्भर हंै। अब जार्डन ने भी सीरिया पर हवाई हमले शुरू कर दिए हैं। इससे पर्यटन पर बुरा असर पड़ा है। पर्यटक जार्डन नहीं जाना चाहते सीरिया में जारी हिंसा से पहले जार्डन का पर्यटन उद्योग काफी मजबूत हुआ करता था, अब वहां भुखमरी जैसे हालात हैं। 2013 में यहां 54 लाख पर्यटक आए थे जो अब घटकर 20 लाख के करीब रह गए हैं। पर्यटन से जुड़े क्षेत्रों में बेरोजगारी फैल रही है। सीरिया के विद्रोहियों ने जार्डन के एक पायलट को जिंदा जला दिया था। उसके बाद जार्डन में हालात बिगड़ गए। यही हाल तुर्की का है। आसपास के कई देश पर्यटकों की कम संख्या से जूझ रहे हैं यदि लड़ाई बढ़ती है तो यह देश भुखमरी की कगार पर भी पहुंच सकते हैं। पर्यटन का धंधा मंदा पड़ गया है। ऐतिहासिक शहर पेट्रा में कभी एक दिन में 3000 सैलानी आया करते थे जो घटकर 7-8 सौ रह गए हैं। बाकी शहरों के भी बुरे हाल हैं। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने से जार्डन की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी है। कहने को तो इस लड़ाई में जार्डन अमेरिका का साथ दे रहा है। लेकिन अमेरिका ने जार्डन को कोई आर्थिक मदद नहीं दी है।
लखवी रिहा, भारत खफा
पाकिस्तान ने यमन में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए जिस मानवता का प्रदर्शन किया, वह मानवता लखवी के मामले में नहीं दिखाई। मुंबई पर हुए 26/11 के आतंकी हमले का मास्टरमाइंड और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सरगना जकीउर रहमान लखवी को रावलपिंडी की अदियाला जेल से रिहा कर दिया गया है। यह रिहाई ऐसे वक्त हुई है जब सारी दुनिया आतंकवाद से पीडि़त है और नरेंद्र मोदी 10 दिवसीय विदेश यात्रा पर हैं। मोदी ने लखवी की रिहाई को दुनिया के लिए बुरी खबर बताया है। लखवी को अज्ञात स्थान पर ले जाया गया है। लखवी की रिहाई के बाद कानपुर में चल रहे इंडो-पाक टे्रड फेयर में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने जमकर तोडफ़ोड़ की जिससे माहौल गड़बड़ा गया। भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान एक बार फिर दगाबाजी पर उतर आया है। बजरंग दल ने और प्रदर्शन की धमकी दी है।