18-Apr-2015 03:27 PM
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भाजपा कार्यसमिति में मिले संकेत
ध्यप्रदेश में प्रदेश भाजपा कार्यसमिति में शिवराज की सराहना के साथ-साथ यह संकेत भी दिए गए कि प्रदेश मंत्रिमंडल का विस्तार शीघ्र किया जा सकता है। पंच से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक सभी पदों पर भाजपा के ही नेता विराजमान हैं इसलिए विकास और जनकल्याण को लेकर भाजपा पहले जो कहा करती थी कि केंद्र में सत्ता नहीं है या राज्य में नहीं है- वह बहाना अब नहीं बनाया जा सकता। अब तो कुछ करके दिखाना ही होगा इसीलिए कार्यसमिति ने शिव राजÓ की सराहना के साथ-साथ चेतावनी भी मिली। अक्सर सत्ता में रहते हुए अपने गुण ही दिखाई देते हैं, अवगुण दिखाई नहीं देते। इसीलिए अरुण जेटली ने सलाह दी कि प्रभारी मंत्रियों को अपने जिले में हर माह दौरा करना चाहिए ताकि आम जनता की तकलीफें सामने आ सकें। अरुण जेटली शिवराज की प्रशंसा तो कर रहे थे लेकिन उन्होंने इशारों ही इशारों में शिवराज को बताया कि टिकाऊ बने रहने के लिए गरीबों और वंचितों को उनका वाजिब हक देना पड़ेगा। गुणवत्तापूर्ण जीवन जब तक नहीं होगा, प्रदेश की सत्ता के स्थायित्व की गारंटी नहीं दी जा सकती। गरीबों का जीवन स्तर ऊपर उठाकर ही कांग्रेस को सत्ता से दूर रखा जा सकता है। इस सलाह के साथ-साथ प्रशंसा भी की गई। जेटली ने कहा कि शिवराज तीन चुनावों में लगातार इसलिए जीते क्योंकि मध्यप्रदेश की कृषि विकास दर 8 प्रतिशत से हमेशा ऊपर रही है। कार्य समिति पर व्यापमं घोटाले का साया तो था लेकिन किसी भी बड़े नेता ने कोई चुभने वाली बात नहीं की। जेटली ने तो शिवराज की विश्वसनीयता का गुणगान किया। रामलाल से उम्मीद थी कि वे कुछ बोलेंगे लेकिन वे तो नेताओं को केंद्रीय मंत्रियों के भाषण का रिवीजन करवाते नजर आए। पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी ने प्रदेश कार्यसमिति में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को स्थापना दिवस पर न बुलाए जाने के विरोध में एक चि_ी अमित शाह को लिखी थी, जिस पर विवाद रहा। बहुत से नेताओं ने कोठारी के इस कदम की आलोचना की लेकिन यह नहीं बताया गया कि इन नेताओं को बुलाया गया था अथवा नहीं। भाजपा इस प्रकरण को ढांकती नजर आई। खनन माफिया को नरेंद्र सिंह तोमर ने चेतावनी दी और कहा कि उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे ने लाल बत्ती प्राप्त नेताओं को बताया कि उन्हें लालबत्ती से नहीं बल्कि उनके काम से याद रखा जाएगा। प्रदेश कार्य समिति में 20 से ज्यादा राजनैतिक प्रस्ताव मंजूर हुए हैं। निगम मंडलों में नियुक्तियों को लेकर भी बंद कमरे में मंथन किया गया। सुनने में आया है कि चौहान मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है। कुछ नए चेहरों को शामिल किया जाएगा। आदिवासी और पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाएगा। बाबा अंबेडकर को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ लंबे समय से रणनीति बना रहा है। संघ की योजना अंबेडकर के माध्यम से दलित समुदाय के बीच भाजपा और संघ दोनों की पकड़ मजबूत करने की है। मध्यप्रदेश में तो 14 अपै्रल 2015 से 14 अपै्रल 2016 तक सामाजिक समरसता मजबूत करने के आयोजन किए जा रहे हैं। अंबेडकर प्रतिष्ठान के माध्यम से 200 करोड़ रुपए का एक केंद्र भी स्थापित किया जाएगा। इस आधार पर कहा जा रहा है कि पिछड़े वर्ग और दलितों को मंत्रिमंडल में ज्यादा से ज्यादा समायोजित करने की कोशिश होगी।
मध्यप्रदेश में ओला वृष्टि के कारण बड़े इलाके की फसल तबाह हो चुकी है। मुख्यमंत्री का मानना है कि फसल बीमा योजना यदि मजबूत हो, तो किसानों को तत्काल राहत मिल सकती है। इसलिए मुख्यमंत्री ने प्रदेश कार्यसमिति में फसल बीमा योजना पर विशेष बात की। दरअसल फसल को जो नुकसान पहुंचा है उसके लिए मध्यप्रदेश सरकार कसमसा रही है। केंद्र ने पैसे रोककर रखे हैं। ऐसे हालात में मुख्यमंत्री केवल घोषणा ही कर पाते हैं। घोषणाओं को अमल में लाने के लिए धन नहीं है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर ने तो प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में खुलकर कह दिया कि पहले यूपीए सरकार नहीं मानती थी तो मुख्यमंत्री धरना दे देते थे, अब धरना देने कहां जाएं। इससे साफ झलक रहा है कि मध्यप्रदेश में भी अन्य प्रदेशों की भांति केंद्र से सहयोग न मिलने के कारण मुख्यमंत्री कुछ ज्यादा ही परेशान हैं। मुख्यमंत्री ने भी सीधे तो नहीं बोला लेकिन संकेतों में अपनी परेशानी जाहिर कर दी। मुख्यमंत्री को पता है कि प्रदेश के निवासियों पर केंद्रीय करों का भार ही बहुत है और प्रदेश सरकार अब ज्यादा कर लगाने का जोखिम नहीं उठा सकती। हाल ही में जो बजट प्रस्तुत हुआ था उसकी भी जमकर आलोचना की गई। मध्यप्रदेश में उन राज्यों के मुकाबले पहले से ही ज्यादा कर हैं, जो अपेक्षाकृत समृद्ध राज्य कहे जाते हैं। इसलिए शिवराज सिंह चौहान संगठन को ही साध रहे हैं। उन्होंने संगठन से ही कहा कि पानी बचाओ, बिजली बचाओ, पर्यावरण के लिए काम करो। कार्यकर्ताओं को सामाजिक सरोकारों से जोड़ो। लेकिन राजनीति में जब तक सत्ता है तभी तक सरोकार भी है, सत्ता जाने के बाद अपने सरोकारों से नेता हो या मंत्री सभी कट जाते हैं। जेटली शिवराज का दर्द समझते हैं, लेकिन वे कुछ कर नहीं सकते क्योंकि मोदी का अर्थशास्त्र थोड़ा अलग है। मोदी राज्यों को ही सक्षम बनाने में यकीन करते हैं। जेटली ने केंद्रीय बजट की तारीफ करते हुए कहा था कि इससे पैसों के लिए बार-बार कटोरा लेकर राज्यों को आना नहीं पड़ेगा। लेकिन जेटली ने यह नहीं बताया कि जो राज्य प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध नहीं हैं अथवा जहां औद्योगिकरण पर्याप्त नहीं हो पाया है, वे कैसे काम चलाएंगे? केंद्रीय करों में राज्यों को ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी देने की बात उठती रही है। भाजपा जब विपक्ष में थी तब उसने भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया था लेकिन अरुण जेटली ने इस बारे में कुछ बात नहीं की। मध्यप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार चौहान सरकार और सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करने से बचते रहे। उन्होंने संगठन को ज्यादा तरजीह दी और कहा कि सभी पदाधिकारियों को परफार्मेंस रिपोर्ट देनी होगी। चौहान ने खुलकर कहा कि निगम मंडलों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनने वालों को विधायक या सांसद के टिकट नहीं मिलेंगे। लेकिन उसके साथ ही यह संकेत भी दिया गया है कि जो चुनाव हार चुके हैं उन्हें कोई पद नहीं मिलेगा। इस फैसले ने रामकृष्ण कुसमारिया जैसे कई नेताओं को निराश किया है, जो संगठन में कोई महत्वपूर्ण भूमिका तलाश रहे हैं। इस बार प्रभात झा अपेक्षाकृत शांत दिखे। इससे पहले कई मौकों पर झा अपनी बेबाक टिप्पणी से सरकार को नसीहत देते नजर आए थे लेकिन इस बार उन्होंने कुछ न बोलना ही उचित समझा।