06-Apr-2015 01:31 PM
1234784
आम आदमी पार्टी की लड़ाई अब सड़कों पर लड़ी जा रही है। अरविंद केजरीवाल ने प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव सहित 4 दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। उन्हें कई महत्वपूर्ण

जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया है। आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास को हटा दिया गया है। कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी की टीम बिखर चुकी है। जो बचे हैं वे अरविंद केजरीवाल को सर्वशक्तिमान मानते हुए उनके गुणगान में लगे हैं। अंजलि दमानिया ने तो पहले ही आम आदमी पार्टी को अलविदा कह दिया था, अब मेधा पाटकर भी आम आदमी पार्टी से अलग हो गई हैं और भी कई हस्तियां जो अरविंद केजरीवाल के करिश्मे के कारण आम आदमी पार्टी से जुड़ी थीं, वे सब विदा लेने की कगार पर हैं।
आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह इसमें भी नेता एकमात्र ही है। अरविंद केजरीवाल के कद का नेता दूसरा पार्टी में कोई नहीं है। केजरीवाल जनता के बीच लोकप्रिय हैं, लेकिन पार्टी के भीतर जो बुद्धिजीवी जुड़ गए हैं उनके समक्ष केजरीवाल की छवि एक अपरिपक्व, जिद्दी और बहुत हद तक निरंकुश नेता की बनती जा रही है। प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने केजरीवाल की इसी निरंकुशता पर लगाम लगाने की कोशिश की थी, लेकिन केजरीवाल इस कोशिश को दूसरी दृष्टि से देखने लगे और छटपटाने लगे। छटपटाहट में उन्होंने अपने अंदर की खीज और गुस्सा जाहिर कर दिया। एक स्टिंग में केजरीवाल योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण सहित तमाम नेताओं को कमीना, लात मारकर बाहर निकाल देते जैसे शब्दों में धिक्कारते सुनाई पड़ रहे हैं। केजरीवाल इस शैली में भी बोलते हैं, यह उस स्टिंग ऑपरेशन के बाद पता चला। इससे यह तो स्पष्ट हो चुका है कि केजरीवाल आम आदमी पार्टी में विशिष्ट स्वभाव के बुद्धिजीवियों को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं।
आम आदमी पार्टी में जो चल रहा है, उसका कारण बाहर वालों को यह पता चला है कि एक धड़ा पार्टी में पारदर्शिता, आंतरिक लोकपाल और आंतरिक लोकतंत्र की मांग कर रहा है। सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो इन मांगों में बुरा कुछ नहीं है, हर पार्टी के भीतर इस तरह की मांग चलती रहती हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि अरविंद केजरीवाल इन सुधारों को लेकर उठ रहे सवालों से इतना तंग क्यों आ गए कि उन्होंने नई पार्टी बनाने की धमकी दे डाली और 4 महत्वपूर्ण नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया। क्या वास्तव में ये नेता केजरीवाल को इतना तंग कर रहे थे? अंजलि दमानिया जब आम आदमी पार्टी में थीं, उस वक्त उन्होंने खुद कहा था कि योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने केजरीवाल को इतना तंग किया था कि वे रो दिए थे। दमानिया के बयान से लगता है कि केजरीवाल पार्टी के भीतर ही कसमसा रहे हैं। उन्हें विरोध सहने की आदत नहीं है। जिस पार्टी का उन्होंने गठन किया है, उसके ज्यादातर निर्णय भी केजरीवाल द्वारा ही लिए गए और लोकसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो इस पार्टी ने अभूतपूर्व रूप से सफलता हासिल की। इसलिए पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ता, सभी विधायक और नेता एक सुर में अरविंद केजरीवाल के साथ हैं। जो केजरीवाल का विरोध कर रहे थे वे अलग-थलग पड़ चुके हैं।
28 मार्च को हुई राष्ट्रीय परिषद की बैठक के दौरान योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के समर्थकों से बाउन्सरों ने धक्का-मुक्की की। योगेन्द्र यादव ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल ने मीटिंग में आरोपों की झड़ी लगा दी, कार्यकर्ताओं को भड़काने का आरोप लगाया। रमजान चौधरी को 2 बाउन्सर घसीट कर ले गए, उन्हें पीटा तभी अरविंद केजरीवाल बैठक की जिम्मेदारी गोपाल राय पर छोड़कर चले गए। बाद में मनीष सिसौदिया ने बिना चर्चा के वोटिंग कराई और योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण तथा अजीत झा को राष्ट्र्रीय कार्यकारिणी के पद से हटा दिया गया। 247 लोगों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, 8 ने विरोध किया, 54 उदासीन रहे, उन्होंने कोई मत व्यक्त नहीं किया। पूरी मीटिंग के दौरान योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के खिलाफ नारेबाजी चलती रही। प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने बाद में प्रेस कॉन्फें्रस करके कहा कि बैठक में गोपनीयता नहीं बरती गई, गुण्डागर्दी फैलाई गई। अगले दिन केजरीवाल ने प्रशांत भूषण को अनुशासनात्मक समिति से भी बाहर कर दिया। 48 घंटे के भीतर आम आदमी पार्टी में वह सब कुछ घट गया जिसकी कल्पना दिल्ली चुनाव जीतने के बाद किसी ने नहीं की थी। चुनावी नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी संगठित दिखाई दे रही थी। देश की जनता भी उम्मीद लगाए बैठी थी कि केजरीवाल अन्य राज्यों में पार्टी का विस्तार करेेंगे। पर चंद दिनों बाद ही आम आदमी पार्टी के मतभेद सामने आ गए। योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने पहले तो पार्टी फोरम में अपनी बात रखने की कोशिश की, लेकिन बाद में मतभेद मीडिया में भी जाहिर हो गए। इस बीच केजरीवाल के एक स्टिंंग ऑपरेशन ने यह जाहिर कर दिया कि आम आदमी पार्टी के भीतर सब एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने जो 9 पेज का खत लिखा था, उसमें भी बहुत से मुद्दे उठाए गए थे जिन्हें नजरअंदाज किया गया।
अब यह साफ हो चुका है कि केजरीवाल बिना किसी दबाव के काम करना चाहते हैं। आम आदमी पार्टी अन्य दलों से भिन्न नहीं है। पारदर्शिता, आंतरिक लोकतंत्र, आंतरिक लोकपाल अन्य दलों ने भी नहीं अपनाया है, तो आम आदमी पार्टी क्यों यह मुसीबत मोल ले। केजरीवाल जानते हैं कि इस सबको अपनाने के बाद वे इन्हीं में उलझे रहेेंगे और खुलकर कुछ नहीं कर पाएंगे। जहां तक प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव या ऐसे ही तमाम नेताओं के पार्टी से बाहर जाने अथवा हाशिए पर जाने का प्रश्न है, इससे कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला। आम आदमी पार्टी वन मैन पार्टी है। योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण की पहचान इस पार्टी में आने से पहले सीमित ही थी। आम आदमी पार्टी से जुड़े अन्य नेताओं का भी यही हाल है। ये सब मास लीडर नहीं हैं। इनमेें भीड़ खींचने की क्षमता नहीं है और न ही उस भीड़ को मत में तब्दील करने का जादू इन नेताओं के पास है। ये अच्छे रणनीतिकार हो सकते हैं। अच्छी ड्रॉफ्टिंग कर सकते हैं, अच्छे सिद्धांत कागजों पर लिख सकते हैं, टीवी पर सुव्यवस्थित बहस भी कर सकते हैं लेकिन केजरीवाल की तरह आम जनता के बीच जाकर लोगों को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए राजी नहीं कर सकते।
इतिहास गवाह है कि जो लोकप्रिय नेता थे या हैं, वे बहुत बड़े बुद्धिजीवी या सिद्धांतकार नहीं हैं। उनमें से कुछ तो उतने विचारशील भी नहीं हैं। फर्क इतना है कि उनमें एक मास अपील है। केजरीवाल की तरह ही मोदी का करिश्मा है। केजरीवाल उस वैक्यूम को भरने की कोशिश कर रहे हैं, जो मोदी के बरक्स इस देश मेंं पैदा हो गया है। यदि वे सिद्धांत, विचार और पारदर्शिता इत्यादि में उलझे रहेंगे तो आम आदमी पार्टी का विस्तार कैसे होगा। इसलिए उन्हें अपने आस-पास ऐसे लोगों की जमात एकत्र करनी पड़ेगी जो उनकी हां में हां मिलाए और उनके हर फैसले को शिरोधार्य करे। आम आदमी पार्टी से जुड़े कुछ बुद्धिजीवी ऐसा करने को राजी नहीं हैं। इसी कारण उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। आने वाले दिनों में कुछ और बड़े चेहरे आम आदमी पार्टी को अलविदा कह सकते हैं, इससे अरविंद केजरीवाल की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा बल्कि वे थोड़ी राहत ही महसूस करेंगे। केजरीवाल को इस राहत की सख्त आवश्यकता है।
अब इनकी चेगी
प्रशांत भूषण को अनुशासनात्मक समिति से बाहर का रास्ता दिखाने में एक नई समिति की भूमिका महत्वपूर्ण रही, जिसमें अशीष खैतान, पंकज गुप्ता और दिनेश वाघेला हैं। इससे पहले केजरीवाल की 28 मार्च की बैठक का एक वीडियो भी मीडिया में जारी किया गया, जिसमें केजरीवाल यह कहते नजर आ रहे हैं कि हमारी पीठ में छुरा घोंपा गया। हालांकि उन्होंने प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव का नाम नहीं लिया। वीडियो में भूषण ने यह भी चेतावनी दी है कि पार्टी को इस तरह न खत्म किया जाए। उन्होंने कहा कि यह आपको फैसला करना है कि आप मेरे साथ हैं या नहीं। पिछले माह ही तत्कालीन लोकपाल एडमिरल रामदास ने एक ईमेल करके चेतावनी दी थी कि पार्टी में दो गुट बन रहे हैं। रामदास को हटा दिया गया, अब योगेन्द्र यादव ने कहा है कि रामदास को नेशनल काउसिंल की मीटिंग से बाहर रखना दु:खद है क्योंकि आम आदमी पार्टी का जन्म ही लोकपाल समर्थक आंदोलन से हुआ है।
लड़ाई बेडरूम तक जाएगी
आम आदमी पार्टी के प्रोफेसर आनंद ने चेतावनी दी है कि इस पार्टी के भीतर चल रही लड़ाई लोगों के बेडरूम तक जाएगी। अमेठी में लोकसभा चुनाव लड़ चुके कुमार विश्वास के बेडरूम तक तो लड़ाई पहुंच भी चुकी है। विश्वास पर आरोप है कि वे अमेठी चुनाव प्रचार के दौरान किसी महिला कार्यकर्ता के साथ रात गुजारते थे और उनकी पत्नी ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ा था। श्रृंगार रस के कवि विश्वास की इस हरकत पर एक ई-मेल भी केजरीवाल को भेजा गया था। हालांकि विश्वास ने इस आरोप को नकारते हुए आरोप लगाने वालों को सच सिद्ध करने की चेतावनी दी है। लेकिन प्रोफेसर आनंद ने जो कहा है उसके बाद जनता और मीडिया को आम आदमी पार्टी के अगले स्केंडल का इंतजार है। सुना है बहुत से नेताओं की वीडियो क्लिप बनाई गई है। कभी केजरीवाल ने जनता से कहा था कि भ्रष्टाचारियों का स्टिंग करें, लेकिन यहां तो आप के लीडर एक-दूसरे का ही स्टिंग कर रहे हैं।
-दिल्ली से रेणु आगाल