18-Mar-2015 01:31 PM
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ध्यप्रदेश में स्वाइन फ्लू से 230 के करीब मौतें हो चुकी हैं। सरकार को उम्मीद थी कि मार्च में तापमान बढऩे से स्वाइन फ्लू का प्रकोप अपने आप कम हो जाएगा, लेकिन तापमान

बढऩे के बजाए कम हो गया। मार्च में एक नहीं दो-दो बार बारिश हो गई। आगे भी होने की संभावना है। दो बारिशों ने स्वाइन फ्लू का प्रकोप बढ़ा दिया है। उत्तर से चल रही ठंडी हवाएं अपै्रल के मध्य तक तापमान कम रखेंगी, तब तक स्वाइन फ्लू डराता रहेगा उसके बाद डेंगू और मलेरिया तो हर वर्ष अपना कोटा पूरा करते ही हैं।
अकेले भोपाल में 500 से अधिक स्वाइन फ्लू पॉजीटिव आए हैं। हर दिन एक-दो मौतें हो रही हैं लेकिन व्यवस्थाएं वैसी ही हैं। संदिग्ध व्यक्ति अस्पताल जाता है, वहां अनुमान के आधार पर दवाएं दी जाती हैं, नमूना चेकिंग के लिए जबलपुर भेजा जाता है, जबलपुर से रिपोर्ट आते-आते बीमार व्यक्ति एक सप्ताह के करीब गंवा चुका होता है। ये एक सप्ताह ही उसकी जिंदगी पर भारी पड़ते हैं। सवाल यह है कि जब प्रति वर्ष स्वाइन फ्लू कहर ढा रहा है, तो प्रदेश के 8-10 बड़े शहरों में जांच की व्यवस्था क्यों नहीं है? प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर आवंटित बजट को पूरा खर्च नहीं कर पाती। तरह-तरह की योजनाओं का ढिंढोरा पीटा जाता है, लेकिन इलाज केवल उसको उपलब्ध है जिसकी जेब गर्म है, गरीबों के लिए अस्पताल के दरवाजे बंद ही रहते हैं। मध्यप्रदेश में स्वाइन फ्लू के मामले जब सैंकड़ों में पहुंच गए तो सरकार को होश आया। कुछ निजी अस्पतालों को चिन्हित किया गया, इससे पहले सरकार ने निजी अस्पतालों में स्वाइन फ्लू के उपचार पर रोक लगा रखी थी।
पहले निजी अस्पताल संदिग्ध मरीजों को लौटा रहे थे, जिसके चलते गंभीरता बढ़ गई। रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड और एयर पोर्ट पर फ्लू स्क्रीनिंग सेंटर खोलने की आवश्यकता महसूस नहीं की गई। 230 मरीजों की मृत्यु बड़ा आंकड़ा है। प्रदेश के इतिहास में पहली बार 13 मार्च तक स्वाइन फ्लू लोगों की जानें ले रहा था और 15 अपै्रल तक इसका प्रकोप रहेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि तब तक मौत का खतरा टलेगा नहीं। यह खतरा गर्भवती माताओं, छोटे बच्चों और स्वांस संबंधी बीमारियों से पीडि़त मरीजों, हृदय रोगियों को ज्यादा है।
बहुत से देशों में तो सभी संक्रामक बीमारियों का चेकअप रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड और एयर पोर्ट पर ही हो जाता है। संदिग्धों की पहचान कर उन्हें अलग करने की व्यवस्था भी कई देशों ने अपनाई है, लेकिन भारत में उपचार न के बराबर है। सारे देश में अब तक 1674 जानें जा चुकी हैं और एच-1 एन-1 से प्रभावित लोगों की संख्या भी 29 हजार को पार कर गई है। यह आंकड़ा और बढ़ेगा। भारत में इससे पहले स्वाइन फ्लू ने इतना कहर नहीं बरपाया।
संक्रमण तेजी से फैलना बहुत चिंताजनक है। इससे पता चलता है कि सरकारें केवल तापमान के बढऩे के भरोसे थीं, उनकी अपनी व्यवस्था कुछ नहीं थी। हर साल स्वाइन फ्लू फरवरी के पहले सप्ताह तक प्रकोप ढाता है लेकिन इस बार बारिश और उत्तर से आयीं ठंडी हवाओं ने सरकार की तैयारियों को बेनकाब कर दिया। 1700 के लगभग मौतें किसी महामारी से कम नहीं हैं। यह तो वे लोग हैं जो अस्पतालों में इलाज कराने आए थे, इसलिए स्वाइन फ्लू का यह आंकड़ा भी कमतर ही है। वास्तविक मौतें कितनी हुईं? यह शायद ही कभी ज्ञात हो सके।
भयावह हुई बीमारी
13 मार्च तक पूरे देश में कुल 1,674 मौतों की रिपोर्ट आई और संक्रमित लोगों की संख्या 29,103 हो गई है। गुजरात में सबसे अधिक 375 लोगों की मौत हुई है जबकि प्रभावितों की संख्या 6,032 हो चुकी है। राजस्थान भी स्वाइन फ्लू से बुरी तरह प्रभावित है। यहां 372 लोगों की मौत हुई है जबकि 6,154 लोग प्रभावित हुए हैं। महाराष्ट्र में 277 लोगों की मौत हुई है और 3,304 लोग प्रभावित हुए हैं। मध्य प्रदेश में मरने वालों की संख्या 230 और प्रभावितों की संख्या 1,834 हो गई है। दिल्ली में स्वाइन फ्लू से अब तक 11 लोगों की मौत हुई है और प्रभावितों का आंकड़ा 3,914 तक पहुंच चुका है। स्वाइन फ्लू के खतरनाक वायरस से पंजाब में 51, तेलंगाना में 79, हरियाणा में 35, उत्तर प्रदेश में 35, पश्चिम बंगाल में 18, कर्नाटक में 71, जम्मू-कश्मीर में 15, छत्तीसगढ़ में 11 और आंध्र प्रदेश में 20 लोगों की मौत हुई है।
-ज्योत्सना अनूप यादव