रिहा होते ही वंजारा ने बदले तेवर
04-Mar-2015 10:31 AM 1234814

लगभग 8 साल तक जेल की सलाखों के पीछे रहे गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डी.जी. वंजारा ने जेल से बाहर आते ही अपने तेवर बदल लिए। कभी वंजारा ने मोदी पर निशाना साधा था, लेकिन इस बार उन्होंने गुजरात पुलिस का बचाव किया और कहा कि राज्य पुलिस को कानून से इतर राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया गया।
ज्ञात रहे कि इशरत जहां एनकाउंटर के अलावा सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मामले में बंजारा लगभग 51 माह तक जेल की सलाखों के पीछे रहे हैं। सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मामले में उन्हें पहले ही जमानत मिल गई थी। लेकिन इशरत जहां मामले में जमानत मिलने के बाद ही जेल से वंजारा बाहर आ पाए।  अभी लंबी कानूनी लड़ाई बाकी है। जिस तरह वंजारा ने कहा है कि गुजरात पुलिस के अच्छे दिन आ गए हैं, उसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। शायद वंजारा का निशाना यूपीए सरकार हो सकती है। उन्होंने बताया था कि देश के हर राज्य में पुलिस आतंकवाद के खिलाफ लड़ रही है लेकिन पूर्व के राजनीतिक शासन ने एक बार नहीं बल्कि 8 साल तक गुजरात पुलिस को निशाना बनाया। मोदी शासन के दौरान अनेक ऐसे एनकाउंटर हुए जिनमें गुजरात पुलिस के ऊपर उंगली उठी। कहा गया कि गुजरात पुलिस जानबूझकर एक समुदाय विशेष को निशाना बना रही है और फर्जी एनकाउंटर को अंजाम दे रही है। वंजारा का कहना है कि सबसे ज्यादा मुठभेड़ उत्तरप्रदेश में हुई जबकि सबसे कम गुजरात में हुई। लेकिन राजनीतिक कारणों से गुजरात पुलिस को निशाना बनाया।
सवाल यह है कि क्या गुजरात दंगों को लेकर गुजरात और मोदी को बदनाम करने की साजिश चल रही थी। सितंबर 2013 में ही जब मोदी को भाजपा ने बतौर प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट किया था उस वक्त वंजारा ने अपने 10 पृष्ठ के त्यागपत्र में मोदी, उनके तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह और 32 अधिकारियों पर धोखा देने का आरोप लगया था। उस वक्त वंजारा का कहना था कि सरकार की असली जगह गांधीनगर नहीं बल्कि जेल में होनी चाहिए। उन्होंने यहां तक कहा कि शाह खुद सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मामले में आरोपी हैं लेकिन गुजरात पुलिस के अधिकारियों पर कार्यवाही की गई, इसके लिए मोदी जिम्मेदार हैं। कभी मोदी को अपना भगवान मानने वाले वंजारा ने तब कहा था कि अमित शाह के बुरे प्रभाव के कारण मोदी मौका पडऩे पर उनके साथ खड़े नहीं हुए, शाह 12 सालों से मोदी को गुमराह करते रहे।
लेकिन आज जेल से छूटकर वंजारा बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। वे कहते हैं कि आतंकवाद आज अंतर्राष्ट्रीय समस्या बन चुका है और इससे निपटना हर किसी की जिम्मेदारी है। इस मामले के सभी आरोपी निर्दोष हैं और यह बात अदालत में सिद्ध हो चुकी है। पुलिस का कोई धर्म नहीं होता, उसका कत्र्तव्य नागरिकों की हिफाजत करना है। वंजारा ने कहा कि पिछले सात साल से भी ज्यादा समय से गुजरात के 32 पुलिसकर्मी जेल में बंद हैं और वे सभी निर्दोष हैं। पहली बार गुजरात में पुलिस को इंसाफ मिलने का उल्लेख करते हुए वंजारा ने कहा कि जेल में रहने के बावजूद वे हिम्मत नहीं हारे। देश की न्याय व्यवस्था में देर हो सकती है, परंतु इंसाफ जरूर मिलता है। गौरतलब है कि 15 जून 2004 को अहमदाबाद के कोतरपुर इलाके में इशरत जहां, जावेद शेख उर्पस प्रणेश पिल्लई, अमजदअली राणा और जिशान जौहर को पुलिस ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश के लिए आए आतंकवादी समझकर मार गिराया था। इशरत जहां केस के अलावा वंजारा ऐसे ही अन्य दो मामले सौहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मुठभेड़ मामले में पिछले आठ वर्षों से जेल में बंद थे। वंजारा को सबसे पहले सौहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में 24 अप्रैल 2007 को गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें जुलाई 2013 में इशरत जहां मामले में गिरफ्तार करने के आदेश दिए गए। वंजारा को पहले अहमदाबाद की साबरमती जेल में रखा गया था, परंतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें नवंबर 2012 में मुंबई की जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था। शेख और प्रजापति के मामले को उच्चतम न्यायालय ने एक साथ जोड़ दिया था। वंजारा को गुजरात छोडऩा होगा क्योंकि अदालत ने उन्हें सशर्त जमानत देते हुए राज्य में प्रवेश नहीं करने का निर्देश दिया था।
केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने सोहराबुद्दीन शेख, प्रजापति और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामलों में वंजारा को आरोपी बनाया था। वंजारा उस वक्त शहर की अपराध शाखा में राज्य के आतंक निरोधी प्रकोष्ठ के मुखिया थे। अपराध शाखा ने उस वक्त दावा किया था कि मुठभेड़ में मारे गए लोग लश्कर ए तैयबा के आतंकी थे। सीबीआई ने गुजरात उच्च न्यायालय की ओर से नियुक्त विशेष जांच टीम (एसआईटी) से जांच की जिम्मेदारी अपने हाथ में ली थी। सीबीआई ने अगस्त 2013 में इस मामले में आरोप पत्र दाखिल किया था। आरोप पत्र में कहा गया था कि यह मुठभेड़ फर्जी थी और शहर की अपराध शाखा और क्राइम ब्रांच और सहायक खुफिया ब्यूरो (एसआईबी) ने संयुक्त अभियान में इसे अंजाम दिया। वंजारा ने पिछले साल जमानत याचिका दायर की थी और उसमें दलील दी थी वह जेल में सात साल गुजार चुके हैं और चूंकि आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है ऐसे में उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

कौन है वंजारा
1987 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और और मोदी के करीबियों में गिने जाते थे। सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड कांड में 24 अप्रैल, 2007 को सबसे पहले वंजारा को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें तुलसी प्रजापति, सादिक जमाल, इशरत फर्जी मुठभेड़ कांड में मुख्य आरोपी बनाया गया था।

-श्याम सिंह सिकरवार

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